yaadon ka mausam

 



Rizwan Ahmed (Saif)


तेरी यादों का मौसम अब भी मुझे सुहाना लगे 

इन्ही यादों में ठहर जाऊं जो तुझे बुरा ना लगे 


तुम्हारे बस में  हो तो   भूल जाओ मुझे 

तुम्हे भुलाने में शायद मुझे ज़माना लगे


जो डूबना हो तो इतने सुकून से डुबो 

के आसपास की लहरों को भी पता ना लगे 


वो फूल जो मेरे दामन से हो गए गायब 

खुदा करे उन्हें बाजार की हवा ना लगे 


ना जाने किया है उस की उदास आँखों में  

वो मुँह छुपा के भी जाये तो बेवफा ना लगे 


तू इस तरह से मेरे साथ बेवफाई कर 

के तेरे बाद मुझे कोई बेवफा ना लगे 


तुम आँखे मूँद के पी जाओ ज़िंदगी को "रिज़वान"

के एक घूँट में मुमकिन है बेमज़ा ना लगे,



 

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