Allama Iqbal Urdu Hindi Shayari


Writer Rizwan Ahmed



 پوچھ اسے کے مقبول ہے فطرت کی گواہی 
تو ساحبے منزل ہے کے بھٹکا ہوا رہی 

पूछ इससे के मक़बूल है फितरत की गवाही 
तू साहिब ए मंज़िल है के भटका हुवा राही 

کوئی اندازہ کر سکتا ہے اسکے زورے بازو کا 
نگاہ مرد مومن سے بدل جاتی ہیں تقدیریں 

कोई अंदाज़ा कर सकता है उसके ज़ोर ए बाज़ू का 
निगाह मर्द मोमिन से बदल जाती हैं तक़दीरें 

 عقل عیار ہے سو بھس بنا لیتی ہے 

عشق بیچارہ نا ملّا ہے نا زھاہد نا حقیم 

अक़्ल अय्यार है सौ भेस बना लेती है 

इश्क़ बेचारा ना मुल्ला ना ज़ाहिद ना हक़ीम। 


مجھے عشق کے پر لگا کر اڈا 

میری خاق جگنو بنا کر اڈا 

मुझे इश्क़ के पर लगा कर उड़ा 

मेरी खाक जुगनू बना कर उड़ा। .. 

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