Ertugrul ghazi real histoy

 

वो बचपन से ही  निडर बहादुर और बेबाक था, उसे घुड़सवारी तीरअदाज़ी और तलवारबाज़ी अपने बाप सुलेमान शाह से विरासत में मिली थी, वो शिकार पर निकलता था तो कभी खाली हाथ नहीं लौटता था,

Rizwan Ahmed 25 September 2020 

वो बचपन से ही  निडर बहादुर और बेबाक था, उसे घुड़सवारी तीरअदाज़ी और तलवारबाज़ी अपने 
बाप सुलेमान शाह से विरासत में मिली थी, वो शिकार पर निकलता था तो कभी खाली हाथ नहीं लौटता
था, इसके साथ साथ वो बला का ज़हीन (दिमागदार) था, इसी वजह से उसके वालिद उसपे बहुत 
ज्यादा भरोसा करते थे, उसका ताल्लुक औगोज़ तुर्कों के काई कबीले से था,


उसके वालिद का नाम सुलेमान शाह था लेकिन बहुत से इतिहासकार उसके वालिद का नाम "गुंदूज़
अव्वल" बताते हैं, 

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Ertugul Ghazi The Father Osman 

तारिख इस बहादुर को Ertugul Ghazi के नाम से जानती है सल्तनत ए उस्मानियाँ की नींव रखने वाला
उस्मान इसी के बेटा था,

दोस्तों आप पढ़ रहें History Of Ertugul Ghazi और मै हूँ "रिज़वान अहमद" मै आपको बहुत थोड़े में
Ertugul Ghazi की पूरी हिस्ट्री बताने कोशिश करूँगा, मेरी इस पोस्ट को पूरा पढ़िए और साथ ही
अपने ईमेल द्वारा मेरी वेबसाइट सब्सक्राइब भी कीजिये ताकि मेरी  पोस्ट ईमेल द्वारा आप तक 
पहुँचती रहें,और साथ ही अपनी कीमती राये देकर मेरी हौंसला अफ़ज़ाई कीजिये,

Ertugul 1180 में मौजूदा तुर्की के एक सूबे में पैदा हुवा, जब मंगोलो ने तुर्कमानिस्तान पे हमला 
किया तो बहुत से कबीलों ने हिज़रत की,              


काई कबीले ने शाम के क़रीब एक इलाके में पड़ाव डाला था, लेकिन ये इलाक़ा सर्दियों के मौसम के
ऐतबार से सही नहीं था ,
     

इसलिए Ertugul के वालिद सुलेमान शाह चाहते थे के जल्दी से जल्दी किसी महफूज़ (सुरक्षित) मक़ाम
की तरफ हिज़रत की जाये, उसके लिए उन्होंने Ertugul को हलप भेजने फैसला किया,


जहाँ पर सुल्तान अलाउद्दीन के जानशीन हुकूमत कर रहे थे, हलप के सुल्तान अलअज़ीज़ के पास
Ertugul को दूत के तौर पे भेजा जाना था,


लेकिन उससे पहले एक ऐसा वाक़िया (घटना) हुआ जिसने काई कबीले को मुसीबतों में धकेल दिया,
Ertugul जब  अपने जांबाज़ सिपाहियों के साथ शिकार पर निकला हुआ था तो वहां उसने देखा कुछ
ईसाई सलीबी सिपाही तीन  कैदियों को लेकर जा रहे थे,


उसने क़ैदियों को बचा लिया और सलीबियों को क़त्ल कर दिया, और क़ैदियों को कबीले ले आया,
सलीबियों से झड़प में उसने सलीबियों के सरदार तीतुस  के भाई को भी क़त्ल कर दिया जिसकी वजह 
सलीबी काई कबीले के जानी दुश्मन हो गए,
जब के जो क़ैदी वो साथ लाया था उनमें एक बूढ़ा शख्स और उस शख्स की बेटी और बेटा था,

ये शख्स शलजोग सल्तनत का शहज़ादा गयासुद्दीन था जिसे शहज़ादा नोमान भी कहा जाता है,  


उसकी बेटी हलीमा सुल्तान शलजोग शहज़ादी थी जो बाद में Ertugul की बीवी बनी उसका भाई
शहज़ादा शहीर भी उनके साथ था, उस वक़्त तख़्त की हिफाज़त और किसी भी बगावत को कुचलने 
के लिए सुल्तान ने अपने भाइयों को क़ैद कर दिया था, लेकिन शहज़ादा नोमान Ertugul के हाथ लग 
गया था, उसकी वापसी के लिए शलजोग गवर्नर ने भी काई कबीले को धमकाना शुरू कर दिया 
था,  क्योंकि काई कबीले का सरदार सुलेमान शाह अपनी ज़बान और रिवायत का पाबंद था, तो उसने 
अपनी रिवायत की इज़्ज़त के लिए क़ैदियों को वापस देने से मना कर दिया,  
जब Ertugul हलप के अमीर अलअज़ीज़ से मिलने हलप गया तो क़ैदियों को उसके हवाले कर दिया, 
हलप में Ertugul साज़िशों का शिकार हुवा लेकिन अपनी बहादुरी और ज़हानत से बच निकला,



Ertugul ने अपने कबीले के लिए जो इलाका अलअज़ीज़ से हासिल किया वो सलीबियों के क़िले के 
करीब था, और वहां रहने का मतलब था हर वक़्त मौत के मुँह में रहना,  कबीले के सरदारों ने 
मुखालफत तो की लेकिन सब मुख़ालफ़तों के बावजूद कबीला अनातोलिया की शरहद पर आबाद हो 
गया,
तीतुस ने अपने भाई का बदला लेने के लिए उनपर हमला किया, और काई  कबीले ने Ertugul की 
क़यादत में सलीबियों के क़िले पर हमला कर दिया और क़िला फतह कर लिया,


1225 में सुलेमान शाह के इंतक़ाल के बाद, कबीले की सरदारी का मसला सामने आया, लेकिन उससे पहले कोई फैसला होता मंगोल काई कबीले पर हमला कर चुके थे, 1230 में मंगोल तातारी चंगेज़ खान की क़यादत में चीन और ईरान फतह कर चुके थे, मंगोलो की एशियाई मुहीम का सरदार नोयान था उसने तमाम तुर्क कबीलों पर हमला किया और उन्हें रोंद्ता चला गया, उसने काई कबीले पर भी हमला किया और उसमे आग लगा दी,   कबीले के लोगों ने मुश्किल से जान बचाई और Ertugul की माँ "हायमा" और Ertugul के भाई गुलदारो की कयादत में अपने दोस्त कबीले दोदूरगा चले गए, दोदूरगा का सरदार Ertugul का मामू था, उसने उनको रहने की जगह दी और मदद का वादा किया,  Ertugul ने मंगोलो के खिलाफ लड़ने का  फैसला किया लेकिन कबीले के सरदारों  उसके मामू और उसके ने उसकी मुखालफत कर दी, लेकिन Ertugul खामोश बैठने वाला नहीं था उसकी दूरंदेशी ने उसको बता दिया था के मंगोल सुकून से बैठने वाले नहीं हैं


वो मौका मिलते ही सबकुछ तबाह कर देंगे, Ertugul ने अपनी बीवी हलीमा सुल्तान को सुल्तान अलाउद्दीन के पास भेजने का फैसला किया ताकि उसको वहां रहने के लिए जगह मिल सके, और साथ ही वहां रह कर मंगोलो के खिलाफ जंग छेड़ सके, एर्तुग्रुल जल्द से जल्द से जल्द सलजोग रियासत में जानाचाहता था,



इसके लिए अनातोलिया के करीब एक इलाके का इंतखाब (चुनाव) किया, नोयान के खिलाफ जंग में उसे शदीद मुश्किलों का पड़ा, उसके मामू के इंतक़ाल के बाद उसके मामू के कबीले की सरदारी उसके मामू के बेटे के पास आगई लेकिन वो  अपनी सौतेली माँ और सौतेले मामू के हाथों की कठपुतली मात्र बन कर रह गया था, और जब Ertugul के कबीले की सरदारी का इंतखाब हुवा तो उसके भाई गुलदारों ने सरदारों को पैसे देकर खुद सरदारी हासिल कर ली, उसका सरदार बनने का मकसद था के वो Ertugul को अनातोलिया जाने से रोक सके, गुलदारों जो उस वक़्त सलजोग सल्तनत के वज़ीरं सादतीन कोबक के बहकावे में आगया था,


सादतीन कोबक जो एक बहुत बड़ा फितना था सल्तनत का सबसे बड़ा गद्दार जो हमेशा सुल्तान को मार कर सुल्तान की गद्दी पर बैठने के सपने देखा करता था. लेकिन Ertugul को वो अपने रास्ते की सबसे बड़ी रुकावट समझता था, Ertugul ने मंगोलों के सरदार नोयान को शिकश्त दी और सलीबियों की सरहद पर हिजरत करने का फैसला कर लिया , Ertugul को एक दीनी सख्सियत इब्नुलअरबी    की रहनुमाई भी हासिल थी,


जो Ertugul के हर फैसले पर उसकी रहनुमाई करते थे, उसके साथ साथ Ertugul की बहादुरी की  वजह से तुर्कों की एक तंजीम सफ़ेद दाढ़ी वाले भी Ertugul की वक़्त वक़्त पर मदद करते थे, 
और उनके कहने के मुताबिक ही वो सलीबियों के करीब सरहद पर हिज़रत करना चाहता था, एर्तुग्रुल ने अपने भाई से बगावत की और अपनी माँ बीवी छोटे भाई और अपने बहादुर सिपाहियों के आलावा कबीले के 400 लोगों को लेकर वो वहां से हिज़रत कर गया, 



और अनातोलिया  मगरिबी सरहद पर आबाद हो गया,  और कबीले के छोटे से इस टुकड़े का सरदार बन गया, क्योंकि नई जगह थी तो परेशानिया आना तो लाज़मी था, जिसके बाद कबीले पर फाकों (भूखमरी) की नौबत आ गई, इस दौरान कबीले की औरतें कालीन बनाने का काम करती रहीं,और उन कालीनों को बेच कर अनाज लाया जाने लगा, लेकिन वो  बहुत थोड़ा था, मगरिबी सरहद पर उसके करीब में जादोदार कबीला था जिसके सरदार के बेटे ओराल ने Ertugul कालीन वाले काफिले पर हमला करके उसकी तमाम क कालीनें जला दी और उसके कई भरोसेमंदसिपाही  क़त्ल कर दिए, जिसके बाद  Ertugul के कबीले पर और मुसीबतें टूट पड़ीं, वो जिस बाजार में तिज़ारत करते थे उस बाजार को हानीली बाजार कहा जाता था, वो बाजारआज भी तुर्की में हानीली बाजार के नाम से मौजूद है, उस बाजार का मालिक समून सलीबियों का बहुत बड़ा जासूस था, साथ ही साथ बहुत बड़ा ज़ालिम और फितना था, वो अपने बाजार के सभी दुकानदारों का सूद और कर्ज़े के नाम पर खून चूसता था, सफ़ेद दाढ़ी वालो ने एर्तुग्रुल को बाजार के मालिक को ख़त्म करने का हुक्म दिया, एर्तुग्रुल ने अपने सिपाही नूरगल के साथ मिलकर पहले उसे बेनकाब किया और बाजार पे हमला करके बाजार पर कब्ज़ा कर लिया, उसने जादोदार कबीले के ओराल से भी बदला लेने की ठानी लेकिन सलजोगी रियासत के अमीर सादतीन कोबक ने सल्तन से बगावत का कह कर उसे  रोक लिया,


क्योंकि वो उस इलाके का सरदार ए आला था इस लिए Ertugul को उसकी बात माननी पड़ी, लेकिन Ertugul उसको कभी खातिर में नहीं लाता था, इस दौरान जब सुलतान अलाउद्दीन का इस इलाके से गुज़र हुवा तो उसने हानली बाजार और वहां आसपास रहने वालों से Ertugul की ईमानदारी और ज़हानत के किस्से सुने जिससे वो एर्तुग्रुल से बिना मिले ही उसका कायल हो गया,


एर्तुग्रुल की खासियत थी के वो सबमे इंसाफ करता था चाहे मुसलमान  हो ईसाई हो या चाहे कोई भी हो, सादतीन कोबक ने सुल्तान को बरगलाने की खूब कोसिस की के वो रियासत के अंदर रियासत बना रहा है उसका इरादा हानली बाजार खुद अपने पास रखने का है, क्योंकि सुल्तान को पहले ही एर्तुग्रुल के बारे में हर बात का पता चल चूका था और उसकी रिवायत में था के तलवार से हासिल किया गया हर माल उस तलावर से हासिल करने वाले का है, इसलिए सुल्तान ने हानली  बाजार एर्तुग्रुल ही को को दे दिया और साथ ही एर्तुग्रुल को उस पूरे इलाके का सरदार ए आला बना दिया, और सादतीन कोबक को वापस कोनिया आने का हुक्म दे दिया,
और एर्तुग्रुल को सरदार ए आला बनाने के साथ ही कारा चाइसार किला फतह करने का भी हुक्म दिया, क्योंकि उन्होंने सुल्तान को क़त्ल करने की कोशिस की थी, सुल्तान ने उसको वादा किया वो जल्द ही फ़ौज की एक टुकड़ी उसकी मदद को भेजेगा, उन सब जंगों में जादोदार कबीले का ओराल एर्तुग्रुल के खिलाफ साजिशें करता रहा, मगर उसका छोटा भाई आलियार और बहन असलाहान खातून ने हमेशा एर्तुग्रुल का साथ दिया, आलियार बे, जंग में बहादुरी के साथ लड़ते हुवे शहीद हो गया, एर्तुग्रुल ने बगावत के जुर्म में ओराल को क़त्ल कर दिया और उसकी बहन को कबीले का सरबराह बना दिया साथ ही एर्तुग्रुल ने अपने सबसे ख़ास दोस्त तुर्गुत जिसे नूरगुल भी कहा जाता है से उसकी शादी करा दी,



यहाँ पर आपको एक बात और बताना ज़रूरी है नूरगुल की पहली बीवी को मंगोलो ने ज़िंदा जला दिया था,  इस तरह दोनों कबीलों में बहुत गहरी दोस्ती हो गई,  इस दौरान एक झड़प में किले का कमांडर वेसोलियूस एर्तुग्रुल के हाथों मारा गया, जिसके बाद, निकिया के शहंशाह ने आरिस नाम के एक शख्श को किले का नया गवर्नर बना कर भेजा, जिसने आकर एर्तुग्रुल की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा कर जंग को रोक दिया, लेकिन उसने  अमीर सादतीन कोबक और जादोदार कबीले की दूसरी शाख के सरदार बहादुर बे के साथ मिलकर एर्तुग्रुल के खिलाफ साजिशें शुरू कर दीं,,

आरिस ने आगे जाकर इस्लाम क़ुबूल कर लिया था 


आरिस जो सिर्फ एर्तुग्रुल से दिखावे की दोस्ती करके गया था गवर्नर आरिस ने एर्तुग्रुल के बेटे को अगवा करवा लिया और एर्तुग्रुल के खिलाफ बहादुर बे की हर साजिश में उसकी भरपूर मदद भी की , एर्तुग्रुल ने बहादुरी के साथ ना सिर्फ अपने बेटे को उसके चंगुल से छुड़ाया साथ ही बहादुर बे को क़त्ल करके उस कबीले का सरदार अपने दोस्त और असलाहान खातून के शोहर नूरगुल को बना दिया,   इसके बाद एर्तुग्रुल ने सुल्तान की फ़ौज का इंतज़ार किये बगैर किले पर हमला कर दिया और किला फतह कर लिया, किले का गवर्नर आरिस अपनी जान बचा कर भाग गया और किले पर सलजोग और काई कबीले का झंडा लहरा दिया गया,



 किले पर फतह और हानली बाजार पर कब्ज़े के बाद एर्तुग्रुल का चर्चा हर तरफ होने लगा, एर्तुग्रुल ने अपने बड़े भाई सारिम को  जिसको बचपन में मंगोल उठा कर ले गए थे जो अपनी बहादुरी के चलते सालों बाद वापस आगया था, किले का कमांडर बना दिया,
एर्तुग्रुल सुल्तान को सादतीन कोबक की असलियत का बताने के लिए कोनिया चला गया,  कोनिया में उसने सादतीनकोबक के खिलाफ सुबूत भी दिए लेकिन वो साजिशी शख्स अपनी साजिशों बलबूते बच निकला, 1237 में उसने सुल्तान और उसके जानशीन शहज़ादा अरसलान को क़त्ल करवा कर शहज़ादा  गयासुद्दीन को सुल्तान बनवा दिया, और सुल्तान के क़त्ल का इलज़ाम एर्तुग्रुल पर आगया और उसे कैद में दाल दिया गया,एर्तुग्रुल को कैद में डालने के बाद सल्तनत पर अमीर सादतीन कोबक का कब्ज़ा हो गया,  उसने कराचाइसार किले और उस इलाके से एर्तुग्रुल की सरदारी ख़त्म करवा दी,   
और गुनाल नाम के एक किलेदार को सरदार ए आला और किले का निगरान बना दिया, लेकिन जब सुल्तान गयासुद्दीन का ये पता चला के उसके बाप सुल्तान अलाउद्दीन को एर्तुग्रुल नहीं सादतीन कोबक ने खुद उसी की माँ  मिल कर क़त्ल करवाया है तो उसने ना सिर्फ एर्तुग्रुल को रिहा किया बल्कि उसे उसको सरदार ए आला का ओहदा और किला दोनों वापस  कर दिया,
सुलतान गयासुद्दीन ने सादतीन कोबक के क़त्ल फरमान जारी किया इसकी ज़िम्मेदारी एर्तुग्रुल सौंपी,

इसके बाद एर्तुग्रुल गुनाळ बे को किले की  ज़िम्मेदारी सौंप कर अपने कबीले को लेकर सोगुत हिज़रत करने की तयारी करने लगा , सोगुत वो इलाका था जो सुल्तान अलाउद्दीन ने उसकी बहादुरी से खुश होकर उसे तोहफे में दिया था और साथ में यहाँ तक इजाज़त दी थी जितना मर्ज़ी इलाका फतह करके अपनी मिल्कियत बढ़ा सकता है , एर्तुग्रुल जाते जाते हानली बाजार भी रियासत को सौंप गया,     
इस दौरान चंगेज़ खान के बेटे औकताई खान ने दोबारा अनातोलिया पर हमला करने का ऐलान कर दिया,

नोट: चंगेज़ खान, औकताई खान, हलाकू खान, इन लोगों ने  सिर्फ अपने नाम की शान बढ़ाने खातिर अपने नाम के आगे खान लगाया था इन लोगों का दूर दूर तक इस्लाम से कोई लेना देना नहीं इस्लाम के तो ये लोग कट्टर दुश्मन थे,

औकताई खान ने हमले की ज़िम्मेदारी नोयान को सौंपी या तो वो सुल्तान गयासुद्दीन दोगुना लगान और उसकी इताअत पे राज़ी करे या फिर सल्तनत को तबाह बर्बाद कर दे, 

सुलतान ने एर्तुग्रुल को सुलह कराने के वास्ते सफीर बना कर भेजा, एर्तुग्रुल की गैरमौजूदगी का फायेदा  उठा कर नोयान की बहन ने उसके कबीले पर हमला करने का मन्सूबा बनाया, लेकिन वो कामियाब ना हो सकी और नोयान की बहन मारी गई, उधर जब एर्तुग्रुल औकताई खान के पास पहुंचा उसने सुलहनामे पर मोहर लगा दी,  और दो साल तक उन लोगो को मोहलत मिल गई, लेकिन इसी दिन औकताई खान मारा गया उसकी मौत का ज़िम्मेदार एर्तुग्रुल को करार दिया गया लेकिन वो भाग निकलने में कामियाब हो गया, नोयान ने उसका पीछा किया लेकिन वो नाकाम रहा,    
नोयान वापस चला गया और औकाताई खान के बेटे को जो उसका जानशीन था उसे अनातोलिया पर हमले करने के लिए  तैयार किया जिसके नतीजे में 1243 में कूसेडाक की जंग लड़ी गई, 


एर्तुग्रुल जब वापस कबीले पहुंचा तो उसने कबीले को सोगुत हिज़रत करने तयारी करने का हुक्म दिया, इस दौरान  सरहद पर मौजूद किले के गवर्नर ने एर्तुग्रुल और उसके सिपाहियों पर हमला किया जिसके जवाब में  एर्तुग्रुल ने गवर्नर का क़त्ल कर दिया, और किले पर कब्ज़ा करने का  फैसला किया लेकिन ठीक उस वक्त शहंशाह का बेटा खुद उसके पास आया और उसने शहंशाह की तरफ से एर्तुग्रुल से माफ़ी मांगी, और उसकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया, और उसके बाद सोगुत में सलीबियों की तरफ से खतरा टल गया,  जिसके बाद एर्तुग्रुल ने अपने कबीले को लेकर सोगुत हिज़रत कर ली, जो एर्तुग्रुल की अपनी जागीर थी, 
कोसेडाक की जंग में सलजोगियों को बुरी तरह शिकस्त हुई और मंगोलो ने अनातोलिया पर कब्ज़ा कर लिया, और इर्दगिर्द के तमाम किलेदार कबीलों के सरदार यहाँ तक के सुल्तान भी मंगोलो को टैक्स देने पर मज़बूर हो गया, सुलतान का  जानशीन मुकम्मल तौर पर मंगोलो के हाथों में खेल रहा था, मुस्लिम रहबर उनसे सोना लेकर उनके फायदे के लिए काम कर थे, 
सुल्तान के बड़े बेटे  कैकाउस ने मंगोलो से बगावत की लेकिन उसका साथ देने वाला कोई नहीं था, इसलिए उसने निकिया में जाकर पनाह ली और उसका भाई रुकनुद्दीन जरसलान सुल्तान बन गया, मंगोलो का  हुक्मरान हलाकू खान बन गया था जो पूरे मशरिक मेंचारों और   खून की नदियां बहा चूका था, और अनक़रीब अनातोलिया के बाकियों को रोंदने का मंसूबा बना रहा था, इस दौरान एर्तुग्रुल ने सोगुत में अपना कबीला बसा लिया और वहां से मंगोलों के खिलाफ जद्दोजहद कर रहा था लेकिन ये जद्दोजहद खुलेआम नहीं थी खुलेआम तौर पर वो मंगोलों को टैक्स देता था लेकिन अंदर ही अंदर वो मंगोलो के खिलाफ बहुत बड़ा बड़ा मंसूबा बना रहा था , उसने मिस्र के सुल्तान मलकुल ज़ाहिर रुकनुद्दीन और चंगेज़ खान के पोते बरका खान जिसने अपने कबीले के साथ इस्लाम क़ुबूल कर लिया था और मंगोलो के खिलाफ लगातार जंग लड़ रहा था उसके साथ मिलकर एक मंसूबा बनाया, सुल्तान केकाउस और उसके साथ के कबीलों को इकट्ठा किया और मंगोलो से लड़ने के लिए तैयार कर लिया, लेकिन अंदरूनी साजिशों और सलीबी किले के गद्दार गवर्नर   की तरफ से हमलों के बाद एर्तुग्रुल बुरी तरह फस  गया था,  अज़ीम मकसद को पूरा करने के लिए एक बड़ी जंग ज़रूरी थी,इस दौरान वो किसी भी तौर पर बाजनातिनियों से जंग का सोच भी नहीं सकता था,  मंगोलों के हमले जारी थे जबकि बहुत सारे  कबीले मंगोलो से मिल चुके थे , एर्तुग्रुल का सोगुत से कंटरोल ख़त्म करने के लिए सलजोग वज़ीर बहाउद्दीन ने  अमरूलू कबीले को सोगुत में बसाने का फैसला किया,  अमरूलू कबीले का   सरबराह  एर्तुग्रुल के खिलाफ था लेकिन उसकी बेटी एर्तुग्रुल को पसंद करने लगी थी और बाद में दोनों ने शादी कर ली थी , 
सलीबी बागियों ने किले पर कब्ज़ा कर लिया सलीबी बागियों का सरबराह कमांडर ड्रागोस वो एर्तुग्रुल को सोगुत से निकालना चाहता था,

      
उसने अमरोलो कबीले सरदार का क़त्ल कर के उसके क़त्ल का इलज़ाम एर्तुग्रुल के बड़े बेटे गुंदूज़ पर लगा दिया,जिसके बाद दोनों कबीलों में लड़ाई का अंदेशा हो गया, लेकिन एर्तुग्रुल की ज़हानत  समझदारी से वो इस मुसीबत से बच निकले, 
उमरु बे के मरने के बाद उसका बेटा बेबोलात बे उस कबीले का सरबराह बना , वो मंगोलो का खास आदमी था,


बेबोलात बे सभी कबीलों के खिलाफ मंगोलो की मुहीम चलए हुवे थे और अपनी  असलियत छिपा कर वो अलबासती के नाम से तुर्क कबीलों के लिए दहशत बना हुवा था,दूसरी तरफ ड्रागोश भी गुमनाम था वो कुबड़ा लाचार बनकर एर्तुग्रुल की ही मुलाज़मत में लगा हुवा था, एर्तुग्रुल को दो अनजान दुश्मनो का सामना था जो हर वक़्त एर्तुग्रुल के सामने और उसके अपने बन कर रह रहे थे, और एर्तुग्रुल उन्ही को तलाश कर रहा था,

लबासती ने एर्तुग्रुल के भाई गुलदारों का भी जीना हराम कर दिया गुलदारों को पहाड़ों में छिप कर रहने पर मज़बूर कर दिया था, और गुलदारों के कबीले को भी तबाह कर दिया था,

एर्तुग्रुल के सामने दो अनजान दुश्मन थे और एक अज़ीम मुक़द्दस मकसद उसका मुन्तज़िर था , इस सूरत ए हाल में वो मामूली से मामूली दुश्मन को भी नज़र अंदाज़ नहीं कर सकता था,
एर्तुग्रुल ने मंगोलो के दो सरदारों को क़त्ल कर दिया जो उसके कबीले पर हमला करने आये थे,



उनकी मौत के बाद हलाकू खान का भाई बोका एर्तुग्रुल का मुकबला करने के लिए सोगुत आगया और उसने अलबासती की मदद की , और एर्तुग्रुल के खिलाफ जाल बुनने शुरू किये, लेकिन एर्तुग्रुल एक मर्तबा फिर अपनी ज़हानत की वजह से बच निकला, उसने ड्रागोस को बेनकाब किया और क़त्ल किया,


अलबासती भी जब खुल कर सामने आया तो एर्तुग्रुल के हाथों मारा गया, इसके बाद एर्तुग्रुल बरके खान से मिलने चला गया, बोका को जब इस बात का पता चला तो वो भी एर्तुग्रुल  के पीछे चला गया,
एर्तुग्रुल ने पहले बरके खान केगद्दार  वज़ीर को बेनकाब किया और बोका भी एर्तुग्रुलहाथो मारा गया.,


बरका खान 
उसके बाद बरके खान के साथ मिलकर एर्तुग्रुल ने मंगोलों के खिलाफ जंग की और बरके खान को यकीन दिलाया  मंगोलो के खिलाफ जंग में तुर्की कबीले उसके साथ कंधे से कन्धा मिला कर लड़ेंगे,
उसके बाद एर्तुग्रुल अपने कबीले वापस आया और अपने छोटे भाई को कबीले का सरबराह बना कर जंग में चला गया उस जंग में मंगोलो को बुरी तरह शिकश्त हुई, लड़ाई के दौरान ही हलाकू खान जख्मी होकर बीमार हो और बीमारी से ही चल बसा, मुसलमानो को फतह नसीब हुई, 


बग़दाद से खिलाफत ए अब्बासिया के खात्मे के बाद खिलाफत ए अब्बासिया काहिरा मुन्तक़िल हो गई, 
एर्तुग्रुल जंग से गाज़ी बन कर लौटा इसी लिए एर्तुग्रुल के नाम के आगे गाज़ी लगा है,

1280 एर्तुग्रुल सोगुत में इंतक़ाल कर गया, 

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Thanks
Rizwan Ahmed ......  

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