Phir se bachcha hona chahta hun




Writer Rizwan Ahmed 


बड़ा हूँ मगर फिर से बच्चा होना चाहता हूँ 

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


कभी इसके लिए जिया कभी उसके लिए जिया 

याद नहीं मुझे मैं कब अपने लिए जिया 

बुरा ना मानों मैं थोड़ा सा अपने लिए जीना चाहता हूँ 

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


माना के दूसरों के लिए जीने वालों को जन्नत मिलेगी 

यहाँ ना खिल सकी जो अरमानों की कली वो क़यामत में खिलेगी 

बताओ किया है बुरा जो थोड़ी सी जन्नत दुनिया में चाहता हूँ 

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


था शरारती ज्यादा प्यार माँ बाप का बचपन में पा ना सका 

थोड़ी ग़ुरबत भी थी इसलिए ज्यादा मुस्कुरा ना सका 

मुझे रुलाने वालों मैं भी अब खूब हंसना चाहता हूँ
 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


मैं जानता हूँ मैं बात बात पे रो देता हूँ 

इसी रोने की वजह से अपनी कदर खो देता हूँ 

लेकिन मैं कब किसी और को रुलाना चाहता हूँ 

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


हूँ दिल का सच्चा इसी लिए चुटकिओं में दिल भर आता है 

ज़ुल्म सह लेता है ये दिल ज़ुल्म मगर नहीं कर पाता है 

अब अपने आपको ज़ुल्मों से बचाना चाहता हूँ 

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


झूठे ही सही मगर वो सच्चों से अच्छे दिन थे 

थोड़े ही थे मगर ज्यादा से नहीं ज़रा कम थे

उन्ही झूठे दिनों में फिर से लौट जाना चाहता हूँ 
 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


सुनते ही मेरी गाडी के होरन को वो सब दौड़े आते थे 

मतलब ही के लिए सही मुझे देख कर सब मुस्कराते थे 

उसी मतलबी दुनिया में फिर जाना चाहता हूँ

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ


बड़ा हूँ मगर फिर से बच्चा होना चाहता हूँ 

मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
#सैफ 

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