Wo Chizen Jo Us Zamane Mei Logon Ka Khwab Thin

80 और  90 का वो दौर और वो चीज़ें चीज़ें जिनके घर में आ जाने के बाद बच्चों के दिल में शहंशाहों वाली फीलिंग आती थी, और वक़्त के साथ लोगों के बदलते मिजाज़ ,

आज तो पैसों की रेलमपेल है और अगर पैसे नहीं भी हैं तो चुटकियों में बैंक के ज़रिए कुछ भी हासिल किया जा सकता है लेकिन ये एक सच्चाई है उस ज़माने में ये चीज़ें ज्यादातर लोगों का ख्वाब ही बन कर रह जाया करती थीं,

Rizwan Ahmed 10-Oct-2020 

मै आपका दोस्त रिज़वान अहमद आज में आपके लिए कुछ भूली बिसरी यादें लेकर हाज़िर हुवा हूँ, ऐसी यादें जो आज के दौर में देखने वालों के लिए बहुत सादा और अजीब सी लगेंगी, लेकिन ये वो चीज़ें हैं जो उस दौर के बच्चों और बड़े दोनों के लिए दुनिया और जहान से बढ़कर कीमत रखा करती थीं, और साथ ही लोगों के मिजाज़ वक़्त के साथ साथ किस तरह बदले, 

1 ब्लैक-एंड-वाइट टीवी 


देखने में ये सिपंल सादा सा टीवी लेकिन उस दौर के लोगों के लिए उस वक़्त दुनिया की हर नेमत से बढ़कर हुवा करता था हफ्ते में दो फिल्मे और दो बार आधा घंटा का फ़िल्मी गानों का चित्रहार दिखाने वाला ये सादा सा टीवी लोगों के दिलों को जोड़ने का भी काम करता था, महाभारत हो रामायण हो या टीपू सुल्तान जैसा धारावाहिक प्रोग्राम हो या कोई हिंदी फिल्म, सारा मोहल्ला एक साथ बैठ कर देखता और आनंद लेता था पचास पचास सौ सौ घरों में से सिर्फ एक या दो घरों में ये टीवी हुआ करता था पूरे मोहल्ले के बच्चे बड़े हिन्दू मुस्लिम सब एक साथ बैठ कर प्रोग्रामों का आनंद लेते थे, क्योंकि लोगों के दिलों में गुंजाईश थी मोहब्बत थी, 

 2  VCR      



वक़्त ने बदलने के साथ साथ थोड़ा तरक्की की वीसीआर नामी एक चीज़ आई जिसके अंदर बड़ी सी एक कैसेट डाली जाती थी और मनचाही फिल्म देखी जाती थी, मज़े की बात तो ये थी के 150 रूपये में चार मनचाही फिल्मों के साथ कलर टीवी वीसीआर रातभर के लिए किराये पर भी मिल जाता था,  मर्द, निकाह, शोले, लोहा, नगीना, जैसी फिल्मो का वो दौर था, जब भी वीसीआर किराये पर कहीं भी किसी के घर भी मंगाया जाता इन चार पांच फिल्मो में से दो फिल्मो का मंगवाना तो लाज़मी था, 

ये नीचे की कुछ लाइने गौर करने वाली हैं 
अब यहाँ से लोगों के मिजाज़ थोड़ा थोड़ा बदलना शुरू हुवे, 
उस वक़्त जो पैसे वाले लोग हुवा करते थे वो कलर टीवी और वीसीआर खरीद ही लिया करते थे और फिर उनके घर में लोगों की एंट्री बंद हो जाया करती थी , 
और जो मिडल क्लास लोग हुवा करते थे वो हफ्ते में एक बार किराये पर खासकर शनिवार की रात को मंगवा लिया करते थे और वो कुछ ख़ास लोगों को घर में दाखिला दे दिया करते थे , 
और जो मज़दूर तबके के लोग हुवा करते थे, वो आपस में पैसे इकठ्ठा करके हफ्ते की रात को किराये पर मंगवा कर देख लिए करते थे और उनके यहाँ सब लोगों की एंट्री हुवा करती थी, 

3  स्कूटर-मोटर साइकल    

Lmbretta Scooter
Bajaj 150 Scooter

ग़ुरबत और मज़दूरी का दौर था लोग साइकलों से खुश रहा करते थे दहेजों में भी साइकल ही मिला करती थी लोग अपनी अपनी साइकलों को तेल में भिगो कर कपडा मार कर चमका चमका कर रखा करते थे, 
ज़माने ने करवट बदलनी शुरू की लोगों की कमाइयों में थोड़ा थोड़ा इजाफा होना शुरू हुवा लोगों ने स्कूटर मोटर साइकल खरीदना भी शुरू कर दिया, लेकिन यहाँ भी वही हाल था पचास पचास सौ सौ घरों में एक या दो घरों में मोटर साइकल स्कूटर हुआ करता था, और वो लोग अमीर लोगों में शुमार हुवा करते थे, फिर थोड़ा आगे चल कर यहाँ भी दो तरह के मिजाज़ बने, मिडिल क्लास और अमीर लोग वैसे तो दोनों मिजाज़ के लोग ही मिडल क्लास थे लेकिन सोच सोच का फर्क हुवा करता था,
घर में आने वाले सामान के साथ, ये जो दो मोडल के स्कूटर ऊपर दिखाई दे रहे हैं एक लम्ब्रेटा दूसरा बजाज का वेस्पा जो बजाज 150 के नाम से आता था इसी को वेस्पा भी कहा जाता था, जो लोग हकीकत में मिडिल क्लास लोग थे वो सेकंड हैंड लम्ब्रेटा खरीदते थे और जो खुद को अमीर समझते थे वो नई ब्रांड वेस्पा खरीद कर अपनी अमीरी दर्शाते थे यही हाल बाइक खरीदने वालों का भी था, जो मिडिल क्लास लोग थे वो राजदूत बाइक खरीदते थे वो भी सेकंड हैंड और खुद को अमीर समझने वाले यामाहा 100 खरीद कर लाते थे, लेकिन कुछ भी कहो, इन में से कोई सा भी सामान घर में जब आता था फीलिंग राजाओं वाली ही आती थी 

Rajdoot 
Yamaha RX 100 

4  कार    

वक़्त ने कुछ और करवट बदली लोगों के पास पैसा भी थोड़ा ज्यादाआना शुरू हुवा स्कूटर बाइक के साथ लोग कारों पे भी आने लगे लेकिन हालत यहाँ भी वही थी अमीर और मिडल क्लास वाली उस वक़्त के मिडिल क्लास जुगाड़ तुगाड़ करके जो कार खरीदते थे वो या तो सेकंड हैंड अम्बेस्डर होती थी या सेकंड हैंड फिएट होती थी, 


और जो उस वक़्त ज्यादा पैसा रखते थे यानी खुद को अमीर लोगों में शुमार करते थे वो खरीद कर लाते थे मारुती 800, जी हाँ इस में कोई दो राये नहीं वो वक़्त जहाँ खटर पटर करने वाली कहीं भी बंद पड़ जाने वाली धक्के से ज्यादातर स्टार्ट होने वाली गाड़ियों का दौर थो, तब उस दौर में एक गाडी आई मारुती 800 जो के गाडी के मालिक अमीरी का अहसास दिलाती थी यहाँ तक के देखने वालो भी यही अहसास कराती थी के ये गाडी वाला अच्छा खासा अमीर आदमी है,

चाहे कुछ भी कहो लेकिन ये एक सच है के दोनों में से कोई सी भी गाडी जिसके घर में भी आ जाती थी उन घर वालों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं होता था बच्चे हो या बड़े हों, 

आज तो पैसों की रेलमपेल है और अगर पैसे नहीं भी हैं तो चुटकियों में बैंक के ज़रिए कुछ भी हासिल किया जा सकता है लेकिन ये एक सच्चाई है उस ज़माने में ये चीज़ें ज्यादातर लोगों का ख्वाब ही बन कर रह जाया करती थीं,

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