Rizwan Ahmed 04-Oct-2020
दिल में रहकर दिल दुखते हो
अपना मुकाम देखो और अपना काम देखो,
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
हम भी सादा हैं चाल में आ जाते हैं,
बिछड़ने का इरादा है तो हमसे मशवरा कर लो
मोहब्बत में कोई भी फैसला जाती नहीं होता,
शिकस्त-ए-ज़िन्दगी वैसे भी मौत ही है ना
तू सच बता ये मुलाक़ात आखरी है ना,
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
इसको कहते हैं इंतज़ार मियां,
लोगों ने आराम किया और छुट्टिया पूरी कीं
लेकिन मई में भी मज़दूरों ने मज़दूरी की,
बना रखी हैं घर की दीवारों पे तस्वीरें परिंदों की
वरना हम तो अपने घर की वीरानी से मर जाएँ,
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
यूँ ही बाजार आये हैं खरीदारी नहीं करनी,
इतनी सारी यादें होकर भी जब दिल में
वीरानी होती है तो बहुत हैरानी होती है,
मुझे रोना नहीं आवाज़ भी भारी नहीं करनी
मोहब्बत की कहानी मेरी आखरी नहीं करनी,
मै खुद भी यार तुझे भुलाने के हक़ में हूँ
मगर ये बीच में कम-बख्त शायरी है ना,
किसी ने ख्वाब में आ कर मुझे ये हुक्म दिया
तुम अपने अश्क़ भी भेजा करो दुआओं के साथ,
नहीं था ध्यान कोई,तोड़ते हुवे सिगरेटें
मै तुझको भूल गया छोड़ते हुवे सिगरेटें,
डुबो रहा है मुझे डूबने का खौफ अब तक
भंवर के बीच हूँ दरिया के पार होते हुवे,
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