Ahmed Faraz Ki Mashoor Shayari




Rizwan Ahmed 04-Oct-2020

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ 

आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ,


अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख्वाबों में मिलें 

जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ,,


दिल को तेरी चाहत का भरोसा भी बहुत है 

और तुझसे बिछड़ जाने का ग़म भी नहीं जाता,


किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम 

तू मुझसे खफा है तो ज़माने के लिए आ,,


हुवा है तुझसे बिछड़ने के बाद ये मालूम 

के तू नहीं तेरे साथ एक दुनिया,


 तुम तकल्लुफ को भी इखलास समझते हो फ़राज़ 

दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला,


ज़िन्दगी से यही गिला है मुझे 

तू बहुत देर से मिला है मुझे ,,


आँख से दूर ना जा दिल से उतर जायेगा 

वक़्त का किया गुज़रता है गुज़र जायेगा,


लो फिर तेरे लबों पे उसी का ज़िक्र 

"अहमद फ़राज़" तुझसे कहा ना बहुत हुवा 


ना शब-रोज ही बदले है ना हाल अच्छा है 

किस ब्राह्मण ने कहा था ये साल अच्छा है ,


शहर वालों की मोहब्बत का मै कायल हूँ "मगर"

मैंने जिस हाथ को चूमा वो खंजर निकला,


किसी बे वफ़ा की खातिर "फ़राज़" ये जूनून कब तक  

जो तुम्हे भुला चूका उसे तुम भी भूल जाओ,


ऐसी तारीकियां आँखों में बसी हैं की "फ़राज़"

रात तो रात है हम दिन को जलाते हैं चराग़,


चुपचाप अपनी आग में जलते रहो फ़राज़ 

दुनिया तो अर्ज़-ए-हाल से बे-आबरू करे,


हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं 

एक मुसाफिर भी काफिला है मुझे,


सामने उम्र पड़ी है शब-ए-तन्हाई की 

वो मुझे छोड़ गया शाम से पहले पहले,


सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं 

ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं,


No comments

Powered by Blogger.