Rizwan Ahmed (Saif)
वो कहा करते थे के मुझे आलमपनाह मत कहो मुझे रफ़ी ही रहने दो, सिर्फ मोहम्मद रफ़ी, किसी चाहने वाले का खत आता था तो रफ़ी साहब अपने हाथों से खुद उसका जवाब लिखते थे,
मैं आप[का दोस्त रिज़वान अहमद
सभी दोस्तों को मेरा आदाब दोस्तों आज मैं मोहम्मद रफ़ी साहब के जिस अनसुने किस्से को आपके सामने लाया हैं ये पांच दिलचस्प और अनसुनी जानकारियां जो की मोहम्मद रफ़ी साहब के ड्राइवर अल्ताफ हुसैन जी ने साझा की है,
पहली बात: साहब एक बहुत अच्छे मिस्त्री मकैनिक भी थे जब वो विदेश से देश वापस आया करते थे तो अपने साथ तरह तरह के औज़ार साथ में लाया करते थे, हालाँकि उनके घर में पहले ही से बहुत सारे औज़ार मौजूद थे,
रफ़ी साहब जब भी फ्री हुवा करते थे जब भी उन्हें छुट्टी मिलती वो लुंगी पहन कर एक दम घरेलु इंसान बन जाया करते थे ,
कभी घर के खिड़की दरवाज़े ठीक करने लगते थे कभी घर की पानी की मोटर सुधारने बैठ जाते थे कभी गाड़ी ठीक करने लग जाते थे, और तो और प्लंबिंग का काम भी बहुत अच्छे से कर लेते थे, रफ़ी साहब को इस तरह देख कर कोई कह नहीं सकता था के वो इतने महान बड़े गायक हैं, जिनका दुनिया में डंका बजता है,
दूसरी बात: रफ़ी साहब को उनके करीबी दोस्त आलमपनाह कहा करते थे उनका अंदाज़ अनोखा था वो कहीं भी गाडी रुकवा कर अपने चाहने वालों से मिल लिया करते थे, उनको देख कर कोई ये कभी कह ही नहीं सकता था के रफ़ी साहब इतनी आलीशान शख्शियत के मिल्क हैं इतना सादा मिजाज़ इंसान थे कभी घमंड तकब्बुर उनके आसपास से हो कर भी नहीं गुज़रा था,
वो कहा करते थे के मुझे आलमपनाह मत कहो मुझे रफ़ी ही रहने दो, सिर्फ मोहम्मद रफ़ी, किसी चाहने वाले का खत आता था तो रफ़ी साहब अपने हाथों से खुद उसका जवाब लिखते थे,
तीसरी बात: जब रफ़ी साहब के ड्राइवर अल्ताफ हुसैन की शादी थी 1965 में अल्ताफ की शादी हुई थी तो रफ़ी साहब ने उनको 1500 रूपये दिए थे 1965 में 1500 रकम बहुत बड़ी रकम हुवा करती थी दोस्तों, रफ़ी साहब अल्ताफ को खुद उनके घर तक छोड़ने गए थे, जब भी रिकॉर्डिंग पूरी होती थी रफ़ी साहब अल्ताफ को दस रूपये का नोट ज़रूर देते थे,
चौथी बात: रफ़ी साहब घर से कभी कोई सवाली खाली हाथ नहीं गया, रफ़ी साहब को डायबटीज़ थी उनको खाने पीने का बहुत शौक था लेकिन डायबटीज़ की वजह से वो कम खाते थे, लेकिन अपने मेहमानों को बहुत खिलाते थे, उनकी बहुत ही खातिर तवाज़ो किया करते थे, पान तो मानो रफ़ी साहब की जान था रफ़ी साहब को पान खाना बहुत ही पसंद था,
पांचवी बात: रफ़ी साहब को शायरी का ग़ज़लों का बहुत ही ज्यादा शौक था रुबाई (पंक्तियाँ) में उनकी बहुत दिलचश्पी थी कभी कभी वो रुबाई लिख भी लिया करते थे,
मगर उन्होंने कभी किसी पर ज़ाहिर नहीं किया के वो ग़ज़ल या रुबाई लिख भी लेते हैं, रफ़ी साहब की अलमारी पच्चीस हज़ार रिकॉर्ड रखे रहते थे और वो हर गाने की एक अलग डायरी बनाया करते थे उस डायरी में फिल्म की सारी जानकारी लिखा करते थे,
और किया किया लिखें रफ़ी साहब के बारे में उनकी नेक ज़िंदगी को दिल से सलाम, यही सारी बातें उनके ड्राइवर अल्ताफ ने उनके बारे में बताई थीं, दोस्तों अल्ताफ का ये इंटरवियु एक हिंदी अख़बार में भी छप चूका है,
जानकारी पसंद आई हो तो नीचे कमेंट ज़रूर करें,
Thanks to read......
0 Comments