maa baap shayari
Rizwan Ahmed (Saif)
ये क़यामत भी हम सह चुकें हैं
बाप को अलविदा कह चुके हैं
वो लोग क़यामत सह चुके हैं
जो लोग माँ को अलविदा कह चुके हैं
मुमकिन अगर होता किसी को अपनी उम्र लगाना
मैं अपनी माँ के नाम अपनी हर सांस लिख देता
अल्लाह ने माँ को भी किया अज़मत कमाल दी
जन्नत बनाई और बना के माँ के क़दमों में डाल दी
मुझ पे आने वाली मुसीबतों तुम्हारी औक़ात है अगर
मेरी माँ की दुआओं से तुम टक्कर ले कर दिखाओ
सूरत की बात किया करते हो साहब
मेरी माँ मुझे चाँद का टुकड़ा कहती है,
फूल सारे खरीद कर देख लिए
माँ तेरी खुशबु कहीं ना मिली,
औरत बहुत बा बरकत हस्ती है
सबूत चाहिए तो अपनी माँ को देखलो
उन्वान है मोहब्बत और किताब है ज़िन्दगी
माँ के बगैर सिर्फ अज़ाब है ज़िंदगी,
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