Rizwan Ahmed (Saif)
कभी कभी मैं सोचता हूँ अल्लाह तआला मुझे इतना ना सुनते मुझे तो मैं किया करता,
मतलब के अगर अल्लाह मुझे अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दीन पर ना पैदा करता तो मैं किया करता,
- मैं किसको बताता मेरा दुःख मेरी परेशानियां
- कौन सुनता मुझे बिन बोले
- कौन मेरा दिल पढ़ पाता
- कौन मेरे दिल का तड़पना महसूस करता
- कौन मुझे बिन बोले समझ लेता
- कौन मुझे सुकून देता बेसूकूनी के लम्हों में
- मैं इस संगदिल दुनिया में कहाँ भटक रहा होता
- अभी तो दिल भर जाये तो घर में मुसल्ला बिछा कर या मस्जिद में जाकर रो लेता हूँ
- या अल्लाह अल्लाह की सदा लगा लेता हूँ
- तब किया करता मैं अगर वो मुझे खुद से वाकिफ ही ना करवाता
- ये कितना बड़ा करम है उसका उसने अपनी ज़ात से वाकिफ करवाया है
- इससे बड़ा और अहसान किया होगा के उसने मुझे अपने नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की उम्मत में पैदा फ़रमाया है
- ये कितना बड़ा रहम है के उसने मुझे अपनी रहमत से नवाज़ा है
मैं तो उसकी बस इसी अता का शुक्रिया भी अदा नहीं कर सकता,
अल्लाह तआला हम सब पर अपना रहम आता फरमाए हमें अपनी क़ुरबत अपनी मोहब्बत अता फरमाए, हमे अपने लाडले हबीब जनाब-ए-मोहम्मदुर्रसूल्लुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नक्स-ए-क़दम पर चलने की तौफ़ीक़ अता फरमाए,
आमीन,
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