humne suna tha
Rizwan Ahmed (Saif)
हमने सुना था चमन के आँगन में खुशियों के बदल छाये हैं
हम भी गए थे वहां दिल बहलाने आंसू बहा कर आये हैं
फूल खिले तो दिल मुरझाये शमा जले तो जान जले
हमने एक ख़ुशी की चाहत में कितने ग़म अपनाये हैं
एक सुलगती याद चमकता दर्द तड़पती तन्हाई
पूछो ना उसके शहर से किया किया सौगातें लाये हैं
सोये हुवे जो दर्द थे दिल में आंसू बन कर बह निकले
रात सितारों की छाओं में याद वो इस तरह आये हैं
आज भी सूरज डूब गया बेनूर अँधेरे सागर में
आज भी फूल चमन में तुझको बिन देखें मुरझाये हैं
एक क़यामत का सन्नाटा एक बला की ख़ामोशी
इन गलियों से दूर ना हँसता चाँद ना रोशन साये हैं
प्यार की बोली बोल ना "रिज़वान" इन बस्ती के लोगों से
हमने सुख की कलियाँ खो कर दुःख के कांटे पाए हैं,
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