hazrat bahlol aur ek bachcha


Rizwan Ahmed (Saif) 01-03-22


बच्चे ने कहा बहलोल मुझे धोखा ना दो, मैंने अपनी माँ को देखा है वो सुबह को जब चूल्हे में आग जलाती है तो पहले छोटी छोटी लकड़ियां चूल्हे में रखती है, 

एक जगह से हज़रत बहलोल गुज़र रहे थे उन्होंने देखा कुछ बच्चे अखरोट से खेल रहें हैं, एक बच्चा अकेला खड़ा रो रहा है, उन्होंने सोचा इसके पास अखरोट नहीं है इस लिए रो रहा है, सोचा इसे अखरोट ले कर दे देता हूँ,  

उन्होंने बच्चे से कहा बेटा रोवो नहीं मैं तुम्हे अखरोट खरीद कर दे देता हूँ फिर तू भी खेलना, बच्चा बोला बहलोल हम दुनिया में खेलने के लिए आये हैं क्या, 

हज़रत बहलोल चौंक गए उन्हें इस बच्चे इस तरह के जवाब की कतई उम्मीद ना थी, के बच्चा ऐसा जवाब देगा, 

उन्होंने कहा फिर हम किया करने आये हैं, बच्चे ने कहा अल्लाह की इबादत करने आये हैं, हज़रत बहलोल कहने लगे बच्चे अभी तुम बहुत छोटे हो ये सब बातें तुम्हारे सोचने के लिए नहीं हैं अभी इन सब बातों को सोचने के लिए तुम्हारे पास बहुत वक़्त है,

बच्चे ने कहा बहलोल मुझे धोखा ना दो, मैंने अपनी माँ को देखा है वो सुबह को जब चूल्हे में आग जलाती है तो पहले छोटी छोटी लकड़ियां चूल्हे में रखती है, जब आग दहक जाती है उसके बाद वो बड़ी लकड़ियां रखती हैं, मुझे डर है के दोज़ख की आग मुझसे ही ना जलाई जाए, 

ये सुनते ही हज़रत बहलोल बेहोश हो गए,      



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