Rizwan Ahmed (सैफ) 26-10-2021
या अल्लाह कुछ तो मेरी ज़िन्दगी में कभी निखार आये
खुद की कमी देखूं औरों की बुराई ना मुझे नज़र आये
ये हक़ीक़त मेरी ज़िन्दगी से कभी ना निकल पाए
मैं बुरा सब अच्छे हैं, अल्लाह मुझे ये सच समझाए
जो भी मिला बहुत मिला इस बात की तसल्ली रहे हमेशा
नज़र मेरी हमेशा नीचे देखें ऊपर का कुछ ना नज़र आये
मेरे आक़ा ﷺ ने बांधे बहुत दिनों अपने पेट पर पत्थर
ना नज़र मेरी, मेरे अल्लाह कभी अच्छे पकवानो पर जाये
रूखी सूखी मिले दाल चटनी मिले कभी नाशुक्री मुँह से ना निकले
सैकड़ों हज़ारों लाखों को ये भी नहीं मिलता है बस ये सब्र मुझे आये
दुनिया का किया है मकड़ी का जाला है ये तो गुज़र ही जानी है
आख़िरत हमेशा ही से दुनिया से अफ़ज़ल है ये समझ मुझे आये
दूर रख मुझे मेरे मौला हमेशा माल-ओ-दौलत की हिरस से,क्योंकि
सहाबाओं की तमन्ना बस इतनी थी कभी तो हम पेट भर खाना खाएं
याद रख "सैफ" सहाबाओं के बच्चो ने भुखे प्यासे उनकी गोदों में दम तोडा
ये इम्तिहान कहाँ अभी तुझ पे आया खुदा तुझे बस ये बात समझाए
तेरे आक़ा ﷺ की शान में तौहीन होती रही और तू सोता रहा
रात दिन तेरी आंखों से रहें ज़ारी आंसू ये छोटा अमल तो खुदा तुझसे करवाए,
तेरे आमालों का ही नतीजा है जो मुसल्लत है आज ज़ालिम बादशाह तुझपे
ये छोटी सी बात तेरे छोटे से दिमाग़ में खुदा जल्दी लाये
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