aaja aaja main hun pyar tera

आजा आजा मैं हूँ प्यार तेरा अल्लाह इंकार तेरा अ अ आजा अ अ आजा अ अ आ

ये वो गाना था जिसने हिंदी में प्रचलित गीतों के चलन को बदल कर रख दिया था, इस गाने ने ऐसी आग लगाई थी जिसकी तपिश आज भी हिंदी सिनेमा के गानों में खूब पाई जाती है,

Rizwan Ahmed (Saif) 24-10-21

अ अ आजा अ अ आजा अ अ आ

लेकिन किया आप जानते हैं के इस गाने को गाने में उस दौर की सबसे चुलबली सिंगर आशा भोसले https://en.wikipedia.org/wiki/Asha_Bhosle के भी पसीने छूट गए थे,

इस गीत को गाने में किस आर्टिस्ट सिंगर को मिला था कितना इनाम इस गीत से जुडी हैं कई कहनाइयाँ मैं आज यहाँ कुछ चटपटी जानकारी इसी गीत के लिहाज से लेकर हाज़िर हूँ,

दोस्तों मैं हूँ आपका दोस्त रिज़वान अहमद और पढ़ रहे हैं तीसरी मंज़िल फिल्म के एक रोचक और चुलबुले गाने के बारे में कुछ रोचक तथ्य,  


निर्माता निर्देशक फिल्मकार नासिर हुसैन की फिल्म तीसरी मंज़िल आई थी सन 1966 में उन दिनों एक महान संगीतकार एस डी बर्मन के बेटे आर डी बर्मन यानी राहुल देव बर्मन वैसे कई फिल्मों में अपना संगीत दे चुके थे लेकिन उन्हें अब तक कोई हिट फिल्म नहीं मिली थी नासिर हुसैन का नाम उस दौर के सफल निर्माताओं में आता था और उनके साथ अपना नाम जोड़ना उस किसी भी फ़िल्मी हस्ती  के लिए गर्व की बात थी,

आर डी बर्मन ने अपने दोस्त मज़रूह सुल्तान पूरी से सिफारिश करके नासिर हुसैन जी से मुलाकात की और फिल्म में संगीत देने का कॉन्ट्रेक्ट हासिल कर लिया, नासिर हुसैन जी ने उन्हें पूरी आज़ादी देते हुवे कहा के वो जैसा चाहे प्रयोग करें लेकिन गाना सबसे अलग किस्म का होना चाहिए,

दरअसल उन दिनों फिल्म इंडस्ट्रीज़ में मॉडर्न संगीतकारों में शंकर जयकिशन का जलवा था, उन्होंने तीसरी मंज़िल के बनने से एक साल महल एन एन सिप्पी के लिए गुमनाम फिल्म में एक गाने का संगीत कम्पोज़ किया था जो काफी मशूहर हुवा था, जान पहचान हो जीना आसान हो  उस गीत को रफ़ी साहब ने गाया था, नासिर हुसैन ने आर डी  बर्मन से ऐसा ही गाना तैयार करने की पेशकश की,




आर डी बर्मन अपने धुनों के चुनने के लिए अपने खुले विचारों के लिए मशहूर थे वो पूरे देश का दौरा करते थे यहाँ तक के उन्हें किसी प्रदेश राज्य की लोकल धुन भी पसंद आ जाती थी तो वो उसे भी अपने संगीत में शामिल कर लेते थे, 

कहते हैं इस आइकोनिक गाने को भी उन्होंने कोलकाता में एक लड़के को गुनगुनाते हुवे सुने था, अ अ आजा अ अ आजा अ अ आ, उन्होंने इस धुन पर वेस्टन संगीत का छोंक (तड़का) लगाया और उस समय की मशहूर और चुलबुली गायिका आशा भोंसले के सामने परोस दिया,

आशा जी वैसे तो वेस्टन धुनों पर पहले ही कई गाने गए रखे थे लेकिन ये गीत कुछ अलग था, वो इस गाने की धुन को सुनते ही चौंक गई थीं उन्होंने आर डी बर्मन से कहा मैं तुरंत इस गीत को नहीं गए सकती, आरडी बर्मन ने पेशकश की के वो इस धुन को थोड़ा आसान बना देंगे, लेकिन आशा जी कहने लगीं के वो इसी धुन पर जाएंगी लेकिन थोड़ा वक़्त चाहिए, थोड़ी प्रेक्टिस के बाद वो इसी धुन पर इस गाने को गाएंगी, 

कहते हैं आरडी बर्मन ने उनसे चैलेंज कर दिया शर्त लगा ली  के वो इस धुन पर गा ही नहीं सकतीं, आशा जी ने पंद्रह बीस दिन इस गाने की प्रेक्टिस की और जब वो रिकॉर्डिंग के लिए स्टूडियो आईं तो वो एक दम खरी उतरीं, 

आरडी बर्मन ने खुश हो कर उन्हें सौ रूपये शर्त के दिए कहते हैं उन दिनों सौ रूपये की बहुत वैल्यू हुवा करती थी एक तोला सोने का सिक्का उन दिनों चौरासी रुपयों का आता था,

इस लेख को लिखने का खास मकसद ये है के इसी गाने को रफ़ी साहब ने एक ही रिटेक में बिना रिहर्सल किये गाया था  

 अ अ आजा अ अ आजा अ अ आ

कहते हैं आरडी बर्मन ने मोहम्मद रफ़ी साहब को भी सौ रूपये का इनाम देने की कोशिश की जिसे रफ़ी साहब ने बड़े अदब के साथ मना कर दिया 

 

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