Aryan khan



माँ बाप अमीर हो या गरीब लेकिन कोई माँ बाप ये नहीं चाहेंगे के उनकी औलाद किसी तरह का कोई भी गलत रास्ता इख्तयार करे, 

ये सब निर्भर करता है उसकी संगत पर. संगत अच्छी मिल जाये तो बच्चे गलत करने से बचे रहे रहते हैं, संगत खराब मिले तो गलतियों के चांसेज़ बढ़ जाते हैं, 

मैं आज बात कर रहा हूँ ऐसी ही एक औलाद की जो शायद गलत संगत में रह कर कुछ गलत कर बैठा है, शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान की यहाँ बातें हो रहीं हैं,

असल में मीडिया द्वारा आर्यन खान के मुद्दे को तूल देने का असल मकसद किया है हम ये जानने की  कोशिश करेंगे,

Rizwan Ahmed (Saif) 17-10-2021



क्योंकि इस वक़्त देश का सबसे बड़ा मुद्दा आर्यन खान ही तो, 

महंगाई हमारे देश से पूरी तरह खत्म हो चुकी है, तो किया हुवा अगर पेट्रोल सौ से पार हो कर डेढ़ सौ रूपये लीटर की और तेजी से बढ़ रहा है, शाहरुख़ खान के बेटे से बड़ा मुद्दा तो नहीं है ये , तो किया हुवा अगर गैस का सिलंडर गरीब आदमी तो किया एक मिडिल क्लास आदमी की पहुंच से भी दूर होता जा रहा है, बस थोड़े दिनों में इकाई दहाईं सैकड़ा हज़ार पूरे करने वाला है, 

ये भी कोई मुद्दा है हमारे देशवासियों के लिए ये मुद्दा कोई आर्यन खान के मुद्दे से बड़ा मुद्दा थोड़े ही है, तो किया हुवा अगर प्याज़ टमाटर सब्जी आम आदमी की थाली तक आते आते आम आदमी का खून निचोड़ कर पी रहीं हैं, पता नहीं चल पा रहा आदमी सब्जियां खा रहा है या सब्जियां आदमी को खा रही हैं, प्याज़ सत्तर से पार टमाटर अस्सी से पार कोई भी सब्जी साठ रूपये किलो से नीचे नहीं, छि ये भी कोई मुद्दे हैं मीडिया और देशवासियों के लिए, असल मुद्दा तो आर्यन खान का मुद्दा ही है,  

तो किया हुवा अगर अडानी के मुंद्रा पोर्ट पर हज़ारों करोड़ की ड्रग्स बरामद होती है, ये मुद्दा भी कोई आर्यन खान के मुद्दे से बड़ा है,

तो किया हवा जब आये दिन हमारे देश में मासूम बेटियों का बलात्कार हो रहा है, ये मुद्दा भी शाहरुख़ खान के बेटे के मुद्दे के सामने साबुन के झागों  जैसा मुद्दा है,

लखीमपुर में हज़ारों आँखों के सामने एक मंत्री के बेटे की गाडी किसानों को रौंदती हुई निकल जाती है पीछे चीखों पुकार छोड़ जाती है उन कुचले गए किसानों के परिवार वालों की, लेकिन ये मुद्दा भी आर्यन खान के मुद्दे के सामने कोई खाक मुद्दा है,  

तो किया हुवा अगर आज हमारे देश के अन्न पैदा करने वाले किसानों को तीन कानूनों के के खिलाफ सड़कों पर बैठे हुवे साल होने जा रहा है, तीन कानून जो किसानों का कहना है के ये कानून काले हैं पता नहीं काले हैं ये कानून या सफ़ेद हैं हम तो इतना नहीं जानते लेकिन अगर ये कानून काले नहीं हैं सफ़ेद हैं तो सरकार को किसानों की गलतफहमी दूर करने चाहिए, लेकिन अभी फ़िलहाल आर्यन खान के मुद्दे के सामने ये मुद्दा भी बाकी मुद्दों की तरह कोई अहमियत नहीं रखता,   

आम आदमी बेचारा किया करे इन मुद्दों को देखे या अपने घर की रोज़ी रोटी को देखे, जब वही लोग इन मुद्दों से आम आदमी का ध्यान हटा कर शाहरुख़ खान के बेटे के मुद्दे जैसे हज़ारों बेफिज़ूल के मुद्दों की तरह आये दिन हमारा ध्यान लगाए रखते हैं, 

वैसे सच तो ये है के आज हमारे देश का अगर कोई सबसे बड़ा मुद्दा है तो वो है हमारे देश की मीडिया, जी हाँ सबसे बड़ा मुद्दा देश का इस वक़्त हमारे लिए हमारे देश की मीडिया ही बनी हुई है,  

असल में न्यूज़ चैनल और अख़बार किसी ज़माने में लोगों तक सच और देश के हालात पहुंचाने का माध्यम हुवा करते थे, साथ ही इन माध्यमों की ज़िमेदारी जनता अवाम में किसी तरह की बेचैनी ना फैले हुवा करती थी, हम बचपन में अखबार पढ़ते थे या टेलीविज़न पर खबरे देखा करते थे बहुत साधारण तरीके से वो लोग हम तक ऐसी बातें पहुंचा दिया करते थे के जो बातें जनता में बेचैनी और नफरत फ़ैल सकने की वजह बन सकती हो, 

हम देखा करते थे के अगर कहीं पर हिन्दू मुस्लिम फसाद भी हो जाता था मीडिया और अखबार फसाद को दो समुदायों के बीच हलकी से कहा सुनी हो गई कह कर बातों को बहुत हलका कर दिया करते इससे समाज में नफरत पैदा नहीं होती थी और जहाँ फसाद हुवा होता था फसाद उससे आगे नहीं बढ़ता था, कोई न्यूज़ चैनल किसी पार्टी को समर्थन नहीं करता था सब न्यूज़ चैनल और अख़बार स्वतंत्र हुवा करते थे,   

लेकिन आज हम देख रहे हैं जब से इन प्राइवेट न्यूज़ चैनलों की बाढ़ आई है तब से समाज में नफरत की शुरुवात हुई है और ऐसी शुरुवात हुई के रुकने का नाम ही नहीं ले रही है,   

रात दिन टीवी कर हिन्दू मुसलमान मंदिर मस्जिद के नाम पर डिबेट कराना और समाज के बीच दिन पे दिन नफरत की खाई को चौड़ी करना और इस कदर चौड़ी करते चले जाना के ये नफरत की खाई कभी दोबारा ना पाटी जा सके, वो तो ऊपर वाले का शुक्र और अहसान है के इनकी सोच से तालमेल बिठाने वाले इनकी सोच से इत्तेफ़ाक़ रखने वाले लोग बहुत थोड़े हैं हमारे हिन्दुस्तान में वरना इस देश में शमशान और कब्रिस्तान के लिए जगह थोड़ी पड़ जातीं, 

ये लोग ऐसे गिद्ध हैं के लाशें गिरवाने की ताक में लगे रहते हैं हरदम जिस तरह गिद्धों को मुर्दा अच्छे लगते हैं इसी तरह इन्हे लोगों की लाशों पर रोटी सेकना अच्छा लगता है, किया पत्रकारों का यही सब काम रह गया हमारे देश में ? किया सच दिखा कर इनकी रोज़ी रोटी नहीं चलती,? 

पत्रकारों का सिर्फ इतना काम होना चाहिए के जो भी देश में चल रहा है उसको जनता तक सच्चाई के साथ पहुंचा दे, और सच जो भी जहाँ भी अगर सात तहखानों में भी बंद है उसे ढून्ढ कर जनता के सामने रखे, 

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