anam aur saif ki kahani

 

अनम हो लुबना हो सादिया चाहे ज़ैनब हो या घर का कोई भी मेम्बर हो वो सब लोग फैज़ान के लिए हर क़ुरबानी देने को तैयार थे और क़ुरबानी दे भी रहे थे, वो लोग फैज़ान के लिए हर परेशानी उठा रहे थे अपनी खुद की परेशानियों को अपने सीने में दफ़न किये बैठे थे अपने हर अरमान दबाये बैठे थे सबकी शादियों की उम्र बहुत पहले हो चुकी थी, हर लड़की लड़के की तमन्ना होती है उसकी शादी हो वक़्त पर हो अच्छे घर में हो, लेकिन फिर भी अपनी हर तमन्ना भुला कर ये लोग अपने भाई के लिए सिर्फ क़ुरबानी पे क़ुरबानी दिए जा रहे थे, लेकिन इन सब के पास क़ुर्बानी का सिर्फ एक ही बकरा था और उस बकरे का नाम था सैफ, 

इधर इन लोगों का टॉर्चर सैफ सह ना सका और उसको हार्ट अटैक आ गया बड़ा वाला, दिल में तो पहले भी उसके तकलीफ हुई थे एक दो बार; लेकिन उस दिन सैफ मौत के मुँह तक पहंच गया, 

सेक्टर 142 नोएडा Advant IT Park  बिल्डिंग के सामने चाय की दुकान पर बैठा हुवा सैफ अपनी सोचों में गुम था

 घर से अपनी बीवी से लड़ कर आया था, Advant IT Park बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर KFC रेस्टॉरेंट बन रहा  जिसका प्रोजेक्ट मैनेजर था सैफ,


सैफ घर से झगड़ा कर के आया था, साइट पर आते ही 10 दिन में साइट कम्पलीट करने की चेतावनी मिली थी जब के 20 दिन से कम का काम किसी भी सूरत में साइट पर नहीं था ऊपर से उसके सामने ये चैलेंज था के काम सिर्फ रात को 8 बजे के बाद से लेकर सुबह 6 बजे तक ही हो सकता है, दिन में किसी तरह का कोई काम साइट पर नहीं हो सकता,

वो बस इन्ही सब परेशानियों की सोच में गुम चाय की दुकान पर बैठा था के तभी उसके मोबाइल की रिंगटोन ने उसकी सोच में खलल डाल दी, डिस्प्ले पर एक अनजान नम्बर दिखाई दे रहा था,

सैफ ने फ़ोन रिसीव किया दूसरी तरफ से किसी लड़की की आवाज़ थी 

 सैफ ने कहा दूसरी तरफ से उस लड़की ने शरारती अंदाज़ में कहा पहचानो तो मान जाऊं सैफ सोच में पड़ गया कौन हो सकती है क्योंकि कई लड़कियों से उसकी बातें होतीं थी मगर सबके नंबर सेव किये हुवे थे उसने अपने मोबाइल की फ़ोनबुक में मगर ये नम्बर सेव नहीं था, सैफ की समझ में नहीं आया बोला बताओ आप कौन बोल रही हो?

अनम बोल रही हूँ दूसरी तरफ मौजूद लड़की ने कहा 

अनम कहते हुवे सैफ सोच में पड़ गया कौन अनम? फिर उस लड़की ने बताया कौन अनम तो सैफ को और ज्यादा हैरत हुई इस लड़की ने मुझे फ़ोन क्यों किया?

अनम सैफ ही की गली में रहने वाली एक लड़की थी ये लोग सैफ के रिश्तेदार भी थे और पडोसी भी थे लेकिन इनका मिलना जुलना कोई ख़ास नहीं था महीने दो महीने में कभी कभी आते जाते हुवे बात हो जाती थी, सैफ कभी कभी उनके अब्बा के पास उनके लकड़ी के कारखाने में जो के गली में ही उनके घर में बाहर की तरफ बना हुवा था बैठ जाता था, घर के अंदर भी चला जाता था मगर कई महीनो में एक बार, 

और दूसरी बात ये थी के दोनों परिवारों के सम्बन्ध बिलकुल भी अच्छे नहीं थे बस सैफ ही उनसे कभी कभी बात कर लेता था, जब ऐसे घर से किसी लड़की का फ़ोन सैफ के पास आया तो उसका चौकना लाज़मी था,

हाँ अनम के भाई फैज़ान से तो सैफ की बातें होती रहती थीं, घर पर भी और फ़ोन पर भी लेकिन उनके घर की किसी लड़की से पहली बार सैफ की बात हुई थी,  

हाँ अनम कैसी हो कहते हुवे सैफ मुस्कुराया उधर से भी हंसी के साथ आवाज़ आई आप तो हमें बिलकुल याद नहीं करते सोचा हम ही याद कर लें, 

ये बात सैफ को बहुत रोमांचित कर रही थी क्योंकि सैफ असल में उनके परिवार के खुद ही करीब रहना चाहता था और वो लोग भी सैफ से बहुत अच्छे से पेश आते थे जब भी सैफ उनके घर जाता था,

मेरे पास आप लोगों का नंबर ही नहीं था मैं कैसे आपको याद करता सैफ कहने लगा, और घर पे सब लोग कैसे हैं  आप कैसी हो सैफ ने पुछा। बस अल्लाह का शुक्र है उधर से अनम बोली, आप बताओ आप कैसे हो, अल्हम्दुलिल्लाह मैं भी ठीक हूँ सैफ ने कहा,

अनम कहने लगी सैफ शाम को हमारे घर आना आपके लिए मैंने दही भल्ले बनाये हैं अपने हाथ से, ये सुनकर सैफ बहुत रोमांचित हुवा कहने लगा इंशा अल्लाह मैं ज़रूर आऊंगा कह कर सैफ मन ही मन मुस्कुराया, 


सारा दिन सैफ की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था बस अब तो वो शाम होने का इंतज़ार कर रहा था , 

सारा दिन गुज़र गया सैफ का ये सोचते हुवे और शायद सोचने से ज्यादा खुश होते हुवे के मेरे लिए दही भल्ले बनायें हैं अनम ने, 

अनम अपने घर की सबसे छोटी लड़की है अनम से बड़ी पांच बहने और हैं और तीन भाई वो भी उससे बड़े हैं, शादी सिर्फ एक भाई और एक बहन की हुई है, 

दरअसल वो लोग उस वक़्त बहुत परेशानी से गुज़र रहे थे , एक भाई जिसकी शादी हुई है ये लोग उसकी बीवी से बहुत परेशान हैं वो घर छोड़ कर चली गई थी और इनके पूरे परिवार के ऊपर पुलिस केस किया हुवा था जिसकी वजह से इन लोगों को बहुत ही ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है,  यहाँ तक के तीन लड़कियां और उनके माँ बाप दो बड़े भाइयों को जेल तक काटनी पड़ी, हालांकि सैफ के पापा और सैफ के चाचाओं और पड़ोसियों ने उन सब की जमानतें मिल कर कराईं, लेकिन इतना होने के बावजूद भी सैफ के घर वालों से उन के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे, लेकिन इसमें ज़रा भी शक नहीं था के वो लोग सैफ के साथ बहुत अच्छे से पेश आते थे, सैफ को उनके बर्ताव से बिलकुल ख़ास परिवार जैसी फीलिंग आती थी,

और इस सच से भी बिलकुल मुँह नहीं मोड़ा जा सकता था के सैफ किसी भी क़ीमत पर खुद उनके परिवार के करीब रहना चाहता था, लेकिन मज़बूरी ये थी के उनका परिवार ज्यादा लड़कियों का परिवार था सब लड़कियां कुंवारी थीं, इसी वजह से सैफ उनके घर जाता हुवा हिचकिचाता था, लेकिन किसी भी बहाने ही सही सैफ को उनके घर जाना अच्छा लगता था, 

आइये थोड़ा पीछे चलते हैं बात को ठीक से समझने के लिए तक़रीबन सन 1994 या 1995 में अनम और उसका परिवार मेरठ से दिल्ली आये थे रहने के लिए उस वक़्त सैफ कुंवारा था जब इसने पहली बार अनम की बड़ी बहन मनाहल यानी (रुक) को देखा था, यहाँ मैं एक बात क्लियर कर दूँ ये जो भी नाम मैं लिख रहा हूँ ये सब नाम काल्पनिक हैं जो के सैफ ने ही इन सब को दिए थे क्योंकि जब मैं ये कहानी लिख रहा हूँ तो इन सब बातों को तकरीबन 7 साल होने जा रहें तो सैफ को भी अब ये याद नहीं के किस को किया नाम दिया था सिवाए 3 नामो के और सैफ का ये सैफ नाम लुबना ने दिया था जो के ज्यादातर सैफ अब इसी नाम को यूज़ करता है उसकी ट्विटर आईडी भी (R सैफ) नाम से है जिस पर वो बहुत पॉपुलर है,

इस इस बात को कई साल गुज़र चुके हैं, हो सकता है नामों में कुछ इधर उधर हो जाये क्योंकि सब नाम काल्पनिक हैं

आज जब मैं ये कहानी लिख रहा हूँ 01-10-2021 तारिख है,

अनम के परिवार को दिल्ली आये हुवे तक़रीबन  26 या 27 साल हो गए हैं सैफ उस वक़्त इनकी गली में नहीं रहता था क्योंकि ये लोग आपस में रिश्तेदार थे इस लिए सैफ इनके घर कभी कभी आ जाता था, इस बात में कोई शक नहीं था के सैफ सिर्फ मनाहल (रुक) के लिए इनके घर आता था, अंदर ही अंदर सैफ मनाहल (रुक) को चाहता था शादी करना चाहता था लेकिन इसके पीछे कई बड़ी बड़ी रुकावटें थीं, सबसे पहली रूकावट मनाहल (रुक) से बड़ी 3 बहने और थीं जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती तब तक मनाहल की शादी मुमकिन नहीं थी, दूसरी रूकावट ये थी के सैफ के घर के बड़े यानी उसके वालिद और चाचा बड़े सख्त मिज़ाज लोग थे सैफ चाह कर भी अपने दिल की बात उनसे नहीं कह सकता था, एक बार को सैफ के वालिद मान भी जाते तो वो अपने भाइयों यानी सैफ के चाचाओं की सलाह के बगैर कोई कदम नहीं उठाते थे और सैफ के चाचा इस रिश्ते के लिए कभी हाँ नहीं करते, 

और अगर सैफ के वालिद और सैफ के चाचा भी मान जाते तो उसके एक आगे और रूकावट थी जो के सबसे बड़ी रूकावट थी वो रूकावट ये थे के अनम के वालिद साहब सऊदी में काफी वक़्त गुज़ार कर आये हुवे थे माशा अल्लाह अच्छा खाँसा पैसा जमा किया हुवा था उन्होंने इसलिए उनकी नज़र में सैफ का परिवार गरीब परिवारों की गिनती में आता था, और उस वक़्त उनके मिज़ाजों के अनुसार वो किसी भी क़ीमत पर एक गरीब परिवार में अपनी लड़की नहीं ब्याहते, 

लेकिन उनके सऊदी जाने से पहले के उनके दिन बहुत तरस खाने वाले थे अल्लाह किसी को ऐसे दिन ना दिखाए जैसे उनके दिन थे, अनम के पापा को लकवा मार गया था अनम की अम्मी ने उनकी बहुत खिदमत की थी, छोटे छोटे बच्चे घर में बहुत सारे थे, सैफ के गाँव से सैफ के दादा के यहाँ से इनके लिए गेहूं और खाने पीने के गुड़ शक्कर वगैरा आते थे, लेकिन जब अल्लाह किसी को बुरे दिनों से निकाल कर थोड़ा अच्छा वक़्त देता है तो ज्यादातर लोग अपने बुरे दिनों को भूल जाते हैं     

हालांकि सैफ का परिवार इतना गरीब भी नहीं था के उनके घर में,  कोई रिश्ता ना आये और उस वक़्त सैफ के परिवार के पास जो चीज़ थी उस चीज़ के सामने उस दौर में रुपयों पैसों की कोई औक़ात नहीं थी, और वो चीज़ थी  उनका खानदानी होना उस दौर में सैफ का परिवार बहुत इज़्ज़तदार परिवार कहलाता था जो के उनको विरासत में मिला था सैफ के दादा की वजह से ये लोग ब्रादर में बहुत सम्मान भरी नज़रों से देखे जाते थे, रही बात गरीबी की तो ये बता दूँ के वो लोग उस वक़्त भी एक मिडिल क्लास फैमिली की तरह ठीक ठाक खाते पीते घर से थे,

खैर बाहरहाल ये टॉपिक दूसरा है इस टॉपिक पर अलग से लिखूंगा वरना ये वाक़िया बहुत लम्बा हो जाएगा, 

सैफ शाम को घर आया और अपनी बाइक घर पर खड़ी कर के अपना बैग वगैरह घर रख के ख़ुशी ख़ुशी उनके घर गया और दरवाज़ा बजाया, 

इस वक़्त सैफ के ये तो याद नहीं के दरवाज़ा किसने खोला था हाँ मगर ये बहुत अच्छी तरह याद है के उस दिन सैफ का वेलकम अनम के घर में बिलकुल अलग अंदाज़ से हुवा था सैफ को देख कर उनके घर का हर मेम्बर इस से खुश था जिस तरह से किसी ख़ास मेहमान को देख सब खुश होते हैं,
किसी ख़ास मेहमान का इंतज़ार कर रहे थे बिलकुल ऐसा माहौल था उनके घर का, 

दुआ सलाम हुई उठना बैठना हुवा खूब बातें हुईं किया किया बात हुई ये सैफ को याद नहीं, लेकिन इज़्ज़त बहुत ही ज्यादा हुई ये उसको बहुत अच्छे से याद है, फिर अनम ने खुद अपने हाथ से दस्तरखान लगाया और दही भल्ले परोसे, दही भले वाकई में बहुत टेस्टी बनाये थे जिसने भी बनाये थे, खैर बाहरहाल दो तीन घंटे हँसते बोलते कब गुज़र गए सैफ का पता ही ना चला, दुआ सलाम करके सैफ उठकर चलने लगा मगर सच बात तो ये है के सैफ का दिल चाह रहा था के उनकी बातें कभी खत्म ना हों और सैफ को कभी वहां से जाना ना पड़े, क्योंकि ये दुनिया है और दुनिया के उसूल बहुत सख्त होते हैं आपको हर वो काम करना पड़ता है जिसको आपका मन ना चाहे,

सैफ वहां से वापस अपने घर आ गया और दिन गुजरने लगे बात आई गई होने लगी, क्योंकि अब सैफ के पास अनम का मोबाइल नंबर था, इसलिए सैफ उन से बात करने के बहाने ढूंढ़ने लगा, एक दिन वैसे ही साइट पर बैठे बैठे सैफ ने अनम को एक पहेली मैसेज की उधर से तुरंत उस पहेली का जवाब आया, यहाँ पर एक बात और आपको बताता चलूँ अभी तक सैफ इस बात को लेकर सियोर नहीं था के ये नंबर हकीकत में कौन कौन चलाता है अकेली अनम चलाती है या घर की बाकी सदस्य भी इस्तेमाल करते हैं भाई भी चलाते हैं या नहीं, 

खैर पहेलियों के ज़रिये उनकी आपस में बाते होती रहीं उसी दौरान एक दिन सैफ साइट पर जाने के लिए घर से निकला तो अनम की सबसे बड़ी से छोटी बहन उसका अपने दरवाज़े पर इंतज़ार कर रही थी उसने सैफ को इशारे से रोका सलाम किया और कहने लगी भैया मुझे आपसे एक काम है, सैफ बोला हां हां बताओ किया काम है,
कहने लगी मुझे कुछ पैसों की ज़रूरत है कितने पैसों की ज़रूरत है सैफ ने पुछा, बोली मुझे ये चबूतरा बनवाना है उसने जहाँ वो खड़ी थी उसी जगह की तरफ इशारा करके कहा, सैफ ने पुछा बताओ तो कितने पैसे चाहिएं, लेकिन सैफ अंदर ही अंदर हैरत में था क्योंकि इसको लग रहा था इसे पैसों की ज़रूरत नहीं है बात कुछ और है लगता है सैफ तुझे ये आज़माना चाहती है सैफ मन ही मन ये बात सोच रहा था हकीकत में सैफ भी यही चाह्ता था के किसी भी तरह उनकी नज़दीकियां बढ़ें क्योंकि सैफ अपने पारवारिक ज़िन्दगी में बहुत परेशान था सैफ के वालिद और सैफ के छोटे भाई का इंतक़ाल हो गया था वो अपनी बीवी से बहुत ज्यादा परेशान था कोई दिन जाता था जिस दिन सैफ और उसकी बीवी की लड़ाई ना होती थी सैफ की बीवी जो चाहती थी सैफ किसी भी कीमत पर वो काम नहीं कर सकता था, हाँ अगर उसके वालिद और छोटा भाई ज़िंदा होते तो शायद रोज़ रोज़ की कलेश से बचने के लिए वो अपनी बीवी की बात मान भी लेता मगर इस हाल में तो बिलकुल नहीं जिस हाल से उस वक़्त उसका परिवार गुज़र रहा था , उसने फिर पुछा बताओ तो आपको कितने पैसे चाहिए, शायद उसने ढाई हज़ार रूपये सैफ से मांगे, सैफ ने वो पैसे उसको दे दिए, दिन फिर से इसी तरह गुजरने लगे,
सैफ ने एक दिन अनम से कहा के मेरा और तुम्हारा आज से दोस्तों वाला रिश्ता रहेगा ताके हम जो भी बातें करें खुल कर करें एक दम क्लोज फ्रेंड्स की तरह, ठीक है अनम ने जवाब दिया, अब उन दोनों की हर बात खुल कर होती थी, 
अब उनकी बातें मैसेज के ज़रिये और भी ज्यादा खुल कर होने लगीं यहाँ तक सैफ ने पहेलियों पहेलियों में अपने दिल की बात अनम को बता दी क्योंकि अनम ने उसको भरोसा दिलाया था के हमारी बातें सिर्फ मुझे और मुझसे बड़ी वाली बहन लुबना को पता होती हैं, 
खैर सैफ ने अनम को खुलकर बताया के वो मनाहल (रुक) से शादी करना चाहता है, तुम्हे मेरी ये  बात मनाहल तक पहुचानी पड़ेगी, उसने कहा मैंने उसको बता दिया है और उसने यानि मनाहल ने हाँ कर दी है, 
सैफ को यकीन नहीं हो रहा था वो कहने लगा के सच बताओ और मेरी उससे बात करवाओ वरना मैं खाना नहीं खाऊंगा, अनम बोली आप खाना खा लो और मेरी बात का यकीन करो, मैं उससे बात नहीं करवाउंगी, सैफ पागल था सच में उसने दो दिन खाना नहीं खाया लेकिन अगले दिन शाम को सैफ के चाचा के यहाँ मंढा था सैफ के चाचा के लड़के की शादी थी और इससे ज्यादा भूका रहना भी मुमकिन नहीं था इसलिए उसने अगले दिन रात को खाना खाया मंढे में और बात उसने खुद अनम और लुबना को बताई थी उन्ही के घर पे, 

उसी दिन एक ज़बरदस्त वाक़िया पेश आया सैफ उनके अब्बा के कारखाने में खड़ा उनके अब्बा से बातें कर रहा था, के अचानक उनकी सबसे बड़ी से छोटी बहन कारखाने में आई और एक शरारती अंदाज़ में सर झुका कर हाथ के इशारे से सैफ को सलाम किया, सैफ उसी वक़्त समझ गया के इसको भी अनम ने सबकुछ बता दिया है, लेकिन सैफ ने ये बात अनम को नहीं बताई, के मुझे पता है तुमने मुझसे झूठ बोला है के सिर्फ मुझे और मुझसे बड़ी वाली बहन को हमारी बातें पता होती हैं, क्योंकि कभी कभी कुछ झूठ भी अच्छे लगते हैं, शरारती अंदाज़ में सलाम करने के आलावा अनम की बड़ी बहन ने भी सैफ को ये बात नहीं ज़ाहिर होने दी के मुझे भी सबकुछ पता है, 

खैर उस वक़्त जो भी कुछ हो रहा था सैफ को अच्छा लग रहा था, अनम ने भी सैफ को ये बात साफ कह दी के आप अम्मी से बात कर लो मनाहल के बारे में, मैं अब इससे ज्यादा आपकी इस बारे में कोई मदद नहीं कर पाऊँगी, फिर सैफ ने पुछा के आपको किया लगता है अम्मी और बाकी घरवाले मान जायेंगे? अनम ने जवाब दिया अल्लाह पर भरोसा रखो जो भी होगा बेहतर होगा, कहीं ना कहीं अनम के बात बताने के अंदाज़ में एक इशारा था के सब लोग राज़ी हो जायेंगे लेकिन अनम खुल कर इस बारे में बात नहीं करना चाह रही थी और वो सैफ को नाउम्मीद भी नहीं करना चाहती थी कुल मिला कर ना हाँ करना चाहती थी ना ही ना करना चाहती थी, 

सैफ भी ये बात अच्छी तरह जानता था ये काम इतना आसान नहीं था, लेकिन उस वक़्त के उन के घर के हालातों के हिसाब से ये काम नामुमकिन भी नहीं था इस लिए सैफ को भी उम्मीद थी के अल्लाह कोई ना कोई रास्ता निकाल देगा और सैफ की चाहत पूरी जाएगी, वो उम्मीद इस लिए और भी ज्यादा और यकीनी थी के जब भी सैफ उनके घर में बैठ कर अपनी परेशानी के बारे में यानी अपनी बीवी की बातें बताता था, उनके घर के सब लोग यही मशवरा सैफ को देते थे के सैफ तू दूसरी शादी कर ले तेरी बीवी की अक्ल ठिकाने आ जाएगी और यही उसका इलाज भी है, 

ये मशवरा ज्यादातर अनम का वो भाई सैफ को हमेशा देता था जिस भाई की बीवी उसको छोड़ कर चली गई थी, सैफ के तीन बच्चे हैं, लेकिन सैफ की बीवी उसको खून के आंसू रुलाती थी और इस मामले सैफ के घरवाले उसका साथ बिलकुल नहीं देते थे क्योंकि वो डरते थे के अगर हमने इसका साथ दिया तो ये यक़ीनन दूसरी शादी कर लेगा, क्योंकि सैफ के दो चाचा पहले ही दो शादी करे हुवे थे उनको डर था के अगर इसने भी दूसरी शादी कर ली तो हमारा खानदान पूरी तरह बदनाम हो जायगा, हालांकि सैफ के घरवाले भी इस हक़ीक़त से वाक़िफ़ थे के सैफ की घरवाली बहुत लड़ाका है लेकिन उनकी मज़बूरी बस यही थी के वो नहीं चाहते थे के सैफ ऐसा कोई काम करे जिसकी वजह से उनका खानदान पूरी तरह बदनाम हो जाये, हाँ अगर सैफ के चाचाओं ने पहले ही दो दो शादियां ना की हुई होतीं तो शायद वो सैफ का साथ देते, लेकिन खानदान की बदनामी के डर से वो अपने बेटे को पिसता हुवा अपनी आँखों से देख रहे थे और बेबसी के आंसू पी रहे थे, क्योंकि अब सैफ के वालिद साहब इस दुनिया में नहीं थे तो सैफ ने भी ठान ली थी के अब मुझे किसी से नहीं डरना, बहुत जी लिया दूसरों की खातिर अब कुछ अपने लिए भी जियूँगा,
 
सैफ मनाहल से बचपन से बहुत प्यार करता था और अब सैफ की उम्मीदों को पर लग चुके थे सैफ की उम्मीदें अब परवान चढ़ने लगीं थीं लिहाज़ा सैफ अब बहुत खुश रहने लगा था, अनम के भाई से सैफ की बहुत अच्छी बोलचाल थी दोनों अच्छे दोस्तों की तरह मिलते रहते थे कभी गली में कभी उनके कारखाने में कभी घर में उन दोनों की बातचीत होती ही रहती थी, क्योंकि  अनम के भाई के पीछे पुलिस लगी हुई थी इसलिए अब वो घर पे कम रहता था और सैफ से मुलाकात भी कम होती थी, एक बार बहुत दिन हो गए थे सैफ की और अनम के भाई की मुलाक़ात नहीं हुई थी सैफ बहुत परेशान हुवा अल्लाह खैर करे कहीं अनम के भाई के साथ कुछ बुरा तो नहीं हो गया वो दिखाई नहीं दे रहा, वो चाहता था के अनम के घरवालों से इस बारे में पूछे के फरहान भाई बदला हुवा नाम कहाँ हैं दिखाई नहीं दे रहे लेकिन वो डर रहा था क्योंकि अनम के घरवालों में एक खासियत थी के वो अपने राज़ किसी से ज़ाहिर नहीं करते थे, 

लेकिन एक दिन उनके घर से फ़ोन आया सैफ को याद नहीं किसने फ़ोन किया था किया लेकिन किसी लड़की ही ने किया था के अम्मी बुला रहीं आपको घर पे, ठीक है शाम को आऊंगा सैफ ने कहा, शाम को सैफ उनके घर पहुंचा तो पूरा घर उदास था सैफ तुरंत समझ गया के फरहान के साथ कुछ बुरा हुवा है, कुछ देर इधर उधर की बात हुईं थोड़ी देर बाद सैफ ने ही हिम्मत करके पुछा के फरहान भाई कहाँ हैं, अभी तक उन्होंने खुद अपनी तरफ से फरहान के बारे में सैफ को कुछ नहीं बताया लेकिन सैफ ने आख़िरकार पुछा, 
बस सैफ ने पुछा ही था के फरहान भाई कहाँ है कई दिनों से दिखाई नहीं दे रहे, बस सैफ का इतना पूछना था के उनकी अम्मी रोने लगीं और बताया के वो तो कई दिनों से जेल में है मेरठ की, उसकी ज़मानत करवानी है तू किसी भी तरह पचास हज़ार का इंतज़ाम कर दे, 

सैफ को ये बात सुन कर अजीब सा लगा वो अपने दिल में सोचने लगा के ये तेरे माँ बाप से तो खुश नहीं रहते मगर तुझसे इतनी बड़ी उम्मीद कैसे लगा रहे हैं, बात सैफ समझ नहीं पा रहा था लेकिन उनकी हाँ में हाँ मिला रहा रहा था,     
हालांकि उस वक़्त सैफ के पास उतने पैसे थे लेकिन अगर वो उस वक़्त उनको पचास हज़ार दे देता तो सैफ के आगे मुश्किलें खड़ी हो जाती क्योंकि सैफ का मकान टूट गया था और सैफ उस वक़्त किराये के मकान में जाने वाला था, लेकिन फिर भी सैफ ने सोच लिया था के वो उनकी मदद हर हाल में करेगा,

आज उन्होंने पहली बार सैफ को सबकुछ खुल कर बताया सैफ को ऐसा लगा के ये सबकुछ उसके साथ हो रहा क्योंकि वो भी अपनी बीवी से बहुत दुखी था, सैफ को एक तरफ उनकी बात अजीब सी लग रही थी दूसरी तरह उसे  उनसे सच में बहुत हमदर्दी हो रही थी उसके दिमाग़ में ये सब बातें चलने लगीं के अगर ऐसा उसके घरवालो के साथ होता उन पर किया बीतती सैफ उस दिन उनसे ये वादा करके उठा के खाला आज से तुम्हारा दुःख मेरा है, मुझे आज से अपना बेटा ही समझना अब चाहे कुछ भी हो जाये जब तक आप लोग इस परेशानी से बाहर नहीं निकल जाते तब तक मैं आप लोगों का साथ नहीं छोडूंगा, आज से मैं समझूंगा के मेरे दो परिवार हैं

इसी बीच पता लगा के कुछ दिनों बाद फरहान जेल से छूट कर आ गया अब सैफ का और अनम के घरवालों का मिलना जुलना बहुत ज्यादा होने लगा, एक बार सैफ फिर से ज़िद पर अड़ गया के मनाहल से मेरी बात करवाओ वरना मैं खाना नहीं खाऊंगा उस दिन अनम ने साफ़ मना कर दिया के मनाहल मना कर रही वो आपसे शादी नहीं करना चाहती, सैफ को लगा के उसकी दुनिया ही उजड़ गई उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया इत्तेफ़ाक़ से वो खुरेजी के एक होटल पर बैठा हुवा था खाने का आर्डर कर दिया था, जब अनम ने कहा के मनाहल ने मना कर दिया है तो वो बिना खाना खाये खाने के पैसे देकर चला आया, 

लेकिन सैफ ये ठान चूका था अब चाहे जो हो जाए वो इनकी मदद ज़रूर करेगा, लेकिन इस दौरान सैफ की और अनम की बातें मैसेज के ज़रिये बहुत ज्यादा होने लगी थीं, सैफ ने अनम से दोस्ती सिर्फ मनाहल की वजह से की थी, क्योंकि अब मनाहल ने बिलकुल मना कर दिया था तो सैफ अनम से बातें कम करना चाहता था, लेकिन अनम अब बहुत ज्यादा सैफ को मैसेज करने लगी थी सैफ थोड़ा अपने आपको अनकंफ़र्टेबल महसूस करने लगा था, वो चाहता था के वो अनम से अब जयादा बात ना करे उसके लिए उसने एक तरीका ढूंढा ताके अनम खुद ही उससे दूर हो जाये, 

i love you Anam main tumse bahut pyar karta hun 
ye kiya kah rahe ho aap 
main sach kah raha hun 
lekin aap to manaahal se pyar karte ho 
bhad mei jaye manaahal jab use meri parwahh nahi to main kyon uski parwah karun aap batao aap mujhse pyar karti ho nahi 
uske baad ek lambi khamoshi
jawab do Anam haan yaa naa 
theek hai 
aise nahi I love you too likh kar bhejo 
I love you too 
are pagal main to mazak kar raha tha 
muje pata tha aap mazak kar rahe the main bhi mazak kar rahi thi 

ये बातें फिर से हुईं 

i love you Anam main tumse bahut pyar karta hun 
ye kiya kah rahe ho aap 
main sach kah raha hun 
lekin aap to manaahal se pyar karte ho 
bhad mei jaye manaahal jab use meri parwahh nahi to main kyon uski parwah karun aap batao aap mujhse pyar karti ho nahi 
uske baad ek lambi khamoshi
jawab do Anam haan yaa naa 
theek hai 
aise nahi I love you too likh kar bhejo 
I love you too 
are pagal main to mazak kar raha tha 

muje pata tha aap mazak kar rahe the main bhi mazak kar rahi thi 

फिर कुछ दिन का गैप और सैफ और अनम की बातें होना कम हो गईं फिर कुछ दिन बाद सैफ कलकत्ता जा रहा था और अनम का मैसेज आया किया बात है आप नाराज़ हो किया, लेकिन सच कुछ और था क्योंकि मनाहल ने सैफ का पूरी तरह दिल तोड़ दिया था लेकिन सैफ अभी तक ये बात नहीं समझा था के अनम दिल से सैफ को चाहती है बिलकुल साफ दिल से और वो सैफ को इस क़दर चाहती है के सैफ के लिए वो कुछ भी कर सकती है यहाँ तक के सैफ से शादी भी कर सकती है सैफ इस बात को लेकर दिल ही दिल में शर्मिंदा था के उसे अनम के साथ ऐसा नहीं करना चाहिए था, क्योंकि सैफ चाह कर भी अनम से मोहब्बत नहीं कर सकता था क्योंकि दोनों की उम्र में बहुत फ़र्क़ था और अनम वैसे भी अपने घर की सबसे छोटी लड़की थी, यहाँ पर सैफ वाक़ई में गलत था और ये कोई छोटी गलती नहीं थी, बहुत बड़ी गलती थी, ये गलती उससे इसलिए हुई क्योंकि वो पूरी तरह झुंझलाहट में था कहीं ना कहीं सैफ को ये लगता था के अनम मेरी बात मनाहल तक नहीं पहुंचा रही, अनम की सच्ची मोहब्बत को समझने में सैफ ने बहुत वक़्त लगा दिया इस बीच वो दो बार अनम का दिल तोड़ चूका था, और इस बात की माफ़ी उसने कई बार नमाज़ों में अल्लाह से मांगी, 

किया बात है आप नाराज़ हो जिस वक़्त अनम का ये मैसेज आया तो सैफ कलकत्ता जाने वाली ट्रैन में बैठा हुवा था उस वक़्त, अपनी इस हरकत की वजह से सैफ को लग रहा था के अब अनम उससे कभी बात नहीं करेगी, लेकिन ना जाने क्यों फिर भी उसका मैसेज आया सैफ को ये बात अच्छी लगी के उसने सबकुछ भुला कर मुझे मैसेज किया, क्योंकि सैफ आज भी उनके करीब रहना चाहता था और उनके साथ उनकी हर परेशानी में खड़े रहने का फैसला कर चूका था, 
इसलिए सैफ भी ये सब भूल कर नार्मल होना चाहता था अब उसे ये यक़ीन हो गया था के मनाहल ने सच में उसकी मोहब्बत को ठुकरा दिया है, इसलिए फिर से उन दोनों की बातें मैसेज की ज़रिये शुरू हो गईं, लेकिन अब सैफ को इस बात का अहसास होने लगा था के अनम के दिल में उसके लिए प्यार जाग रहा है, और वो डरने लगा के कहीं उसे भी अनम से प्यार ना हो जाये, अगर ऐसा हो गया तो लोग किया कहेंगे क्यों की सैफ की और अनम की उम्र में लगभग दस बारह साल का अंतर था, इसलिए सैफ जानबूझ कर अनम से उखड़ी उखड़ी बातें करने लगा लेकिन अनम फिर भी उससे सबकुछ भुला कर बातें करती थी, एक दिन सैफ ने अनम को टॉर्चर करने के लिए उससे कहा के अब मैं लुबना से प्यार करता हूँ किया तुम लुबना से मेरी बात करवाऊंगी, 
वो उसपर भी राज़ी हो गई और अल्लाह जाने के अनम ने लुबना को सैफ से बातें करने के लिए मज़बूर किया या लुबना खुद ही तैयार थी, क्योंकि मैसेज तो दोनों साथ में ही पढ़ते थे अनम के कहे अनुसार,  

अब वो अनम को लुबना से बात कराने के लिए मज़बूर करने लगा ताके वो सैफ से बात करना बंद करदे लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था , 
अनम थोड़ी थोड़ी बातें लुबना की और सैफ की कराने लगी ऐसे ही बातों में दिन गुजरने लगे अब कभी कभी सैफ और अनम की नोकझोंक भी होने लगी नोकझोंक कभी कभी इतनी बढ़ जाती थी के हम कई बार कई दिन बातें नहीं करते थे,
लेकिन एक सच ये भी है ना तो बात किये बिना सैफ को चैन मिलता था ना अनम को,सैफ गुवाहाटी में साइट करा रहा था तब सैफ ने अनम से कहा के मेरी लुबना से फ़ोन पर बात कराओ, उस बेचारी ने उसी दिन सैफ और लुबना की फ़ोन पर बात कराई, फिर एक बार सैफ ने कहा के लुबना के फोटो भेजो मेरे पास अनम ने अपने और लुबना दोनों के फोटो सैफ के पास भेजे, 
क्योंकि अब लुबना सैफ से बातें करने लगी तो सैफ के दिमाग़ में ये बात आई के तुझे दूसरा निकाह तो करना ही लुबना भी अच्छी लड़की है खूबसूरत भी है खानदानी भी है, कुल मिलकर तेरी बीवी से हर हाल में अच्छी है,  

यहाँ मैं एक राज़ की बात लिखने जा रहा हूँ लुबना की जो की आज तक अनम और लुबना को भी नहीं पता के सैफ ये बात जानता है लुबना किसी लड़के के साथ घर से चली गई थी शायद अपनी खाला के लड़के साथ और वो एक या दो रात वो घर से बाहर भी रही है, सैफ ये बात बहुत पहले बहुत ही पहले से जानता था उसके बावजूद भी सैफ ने लुबना से निकाह करने का फैसला किया क्योंकि सैफ सच में उनके परिवार का हिस्सा बन कर अपनी और उनकी परेशानियों से मुकाबला करना चाहता था, क्योंकि ना जाने क्यों सैफ उन लोगों से इतनी मोहब्बत हो गई थी जिसका शुमार करना मुमकिन नहीं था, और वैसे भी गलती इंसान से होती है इसलिए सैफ ने लुबना की ये नादानी भुला कर उससे निकाह करने का फैसला किया ,
बात का निचोड़ ये है के किसी भी सूरत में सैफ हर हाल में उनके परिवार के करीब रहना चाहता था साथ रहना चाहता था, 

सैफ और लुबना की अब फ़ोन पर भी बातें होने लगीं और इसका जरिया सिर्फ अनम ही थी अनम के बगैर ये सब मुमकिन नहीं था, एक दिन सैफ ने लुबना से कहा के मैं तुम्हारे साथ एक ऐसी ज़िन्दगी गुज़ारना चाहता हूँ जिसमे दीन और दुनिया दोनों शामिल हों मतलब किया तुम मेरे साथ एक दीन से भरी हुई ज़िन्दगी गुज़ारना पसंद करोगी जिसकी वजह से हम दोनों साथ में जन्नत में जाएँ इस ज़िंदगी में हम हर किसी का हक़ अदा करने की कोशिस करें, और लुबना इस बात पर राज़ी थी, 

फिर दिन गुजरने लगे और सैफ सपनो की दुनिया में जीने लगा अनम और सैफ की नोकझोंक बढ़ते बढ़ते झगड़ों तक पहुँच गई 
एक दिन अनम और सैफ का झगड़ा हुवा इत्तेफ़ाक़ से सैफ अपने ऑफिस में था उस झगडे की वजह से सैफ इतना अपसेट हुवा के उसने अपनी कंपनी के मालिक से झगड़ा कर लिया और जॉब छोड़ दी, अब अब सैफ बेरोज़गार हो चूका था सैफ के पास कोई काम नहीं बचा इधर किसी कारणवश सैफ का घर टूट गया था, अब सैफ के ऊपर असल इम्तिहान था, इधर फरहान के ऊपर फिर से पुलिस का दबाओ पड़ना शुरू हो गया सैफ के दो तीन महीने बगैर नौकरी के गुज़रे  इधर फैज़ान केबल वाले बिट्टू की एक बड़ी सी अलमारी बना रहा था डरते डरते काम करना पड़ रहा था बेचारे को ज़रा सी आहट से पूरा घर काँप जाता था कहीं पुलिस तो नहीं आ गई ये सोच कर सब का  कलेजा मुँह को आ जाता था उस वक़्त सैफ ने उनकी हालत बहुत क़रीब से देखी थी, अल्लाह किसी को ऐसे दिन ना दिखाए, 

इसी बीच अल्लाह की मेहरबानी से सैफ की जॉब लग गई हैदराबाद की एक कम्पनी में जिसकी साइट मनाली में चल रही थी सैफ मनाली जाने की तयारी करने लगा तभी कहानी में अचानक दो लोगों की एंट्री हुई सैफ की रिश्ते की एक मामी और कोई फौजी फौजी करके एक गुंडा सा दिखने वाला आदमी, इन लोगों फैज़ान की ज़मानत दी हुई थी ये इन दोनों को पुलिस परेशान कर रही थी के या तो फैज़ान को पेश करो या फिर तुम दोनों को पैसे भरने पड़ेंगे ज़मानत के, उन दोनों ने इनको परेशान करना शुरू कर दिया या तो फैज़ान तुम पेश हो जाओ या हमें ज़मानत के पैसे दे दो, 

कुल मिला कर मुसीबत चारों तरफ से उनकी तरफ मुँह फाड़े खड़ी थी, जब तक सैफ वहां था तो फौजी को भगा देता था क्योंकि अब सैफ को मनाली जाना था तो वो फैज़ान से बोल गया कुछ दिन एडजेस्ट करो मैं जल्दी तुमको मनाली बुलाता हूँ, हालांकि सैफ पहले ही से फैज़ान से कहता था के मैं तुम्हे अपने साथ रखूँगा काम सिखाऊंगा,
लेकिन अब वक़्त यही मांग थी के फैज़ान को दिल्ली में ना छोड़ा जाये, 

सैफ मनाली चला गया लेकिन अब अनम की और सैफ की बातें खुल कर हर टॉपिक पर होने लगी अब लुबना भी सैफ से खूब बातें करती लेकिन जब अनम चाहे अनम की चाहत के बगैर लुबना और सैफ बातें नहीं कर सकते थे एक दिन सैफ ने लुबना से कहा के आप मुझे कोई ऐसा गाना बताओ जो आप मेरे लिए सोचती हो, याद आया ये बात अब से बहुत पहले की है लुबना से बातों की शुरुवात की बात है जब लुबना ने सैफ के लिए ये गाना बताया था,

कहिये तो आपको हमसे किया चाहिए बस अदा ही अदा या वफ़ा चाहिए 

एक चुटकी में दिल तोड़ सकते हैं दिल जो टूटा हो तो जोड़ सकते हैं 

सैफ को किया मालूम था यही खासियत है उनकी चुटकिओं में दिल जोड़ते थे चुटकिओं में दिल तोड़ते थे,  


इस गाने को देखने और इसके बोल समझने के बाद सैफ को लुबना में फूल और पत्थर की हेमा ही दिखने लगी हमेशा, यहाँ तक सैफ ने इस गाने को कम से कम पचास बार देख लिया होगा उस वक़्त दस पंद्रह दिनों में यकीन  करो सैफ आज भी इस गाने को देखता है लुबना की याद में, तेरी दुनिया संवारूंगी मैं प्यार से भूल जाएगा ग़म के फ़साने, कितना सही गाना सोचा था लुबना ने सैफ के लिए कभी कभी तो इस गाने को सुनते हुवे सैफ की आँखों में आंसू आ जाते थे, 

सैफ को मनाली गए हुवे एक डेढ़ महीना हो गया होगा इधर फैज़ान पर पुलिस का और जमानतियों को दबाव बढ़ता जा रहा था सैफ की बहने बार बार फ़ोन कर रहीं थीं भैया हमारे भैया को जल्दी बुला लो, अब सैफ की समझ में ये नहीं आ रहा था के फैज़ान को बुलाऊँ तो उससे काम किया करवाऊंगा लकड़ी का थोड़ा बहुत काम था जो सैफ ने अपने भाई को ठेके में दिया हुवा था जो के खत्म हो चूका था, खैर सैफ ने छोटे मोटे काम के बहाने फैज़ान को मनाली एक और कारीगर के साथ बुला लिया, सैफ ने अपने दुसरे वाले छोटे भाई को भी बुला लिया था, क्योंकि वो भी काम से परेशांन था फैज़ान एक कारीगर के साथ मनाली पहुँच गया था साथ में सैफ का छोटा भाई भी मनाली पहुंच गया था,



तीनो छुटपुट काम करते रहते थे, सैफ को ये देख कर बिलकुल भी अच्छा नहीं लग रहा था के फैज़ान उसके पास दिहाड़ी लगा रहा है, हालांकि उस पागल का सगा भाई भी उसी के पास दिहाड़ी लगा रहा था लेकिन सैफ को भाई की नहीं फैज़ान की फ़िक्र थी, यहाँ तक के वो सैफ को खाना खाने के लिए रोज़ अपने फ्लैट पर बुलाता था उस कमबख्त को कभी अपने छोटे भाई का ख्याल नहीं आया के उसके दिल पर किया गुज़रती होगी जब सैफ वापस जाकर वहां कमरे पर उसको बताता होगा के आज ये खाया आज वो खाया, ऐसा लगता था सैफ को दुनिया में उन लोगों के अलावा कुछ और दिखना ही बंद हो गया था, यहाँ तक के इन्ही बातों को दिमाग़ में रख कर सैफ का भाई एक गलत रास्ते पर चल पड़ा था, वो नशे की लत में लग गया था, मगर आज अल्लाह का शुक्र है ये खत्म हो गया अब वो बेचारा ठीक ठाक अपने बच्चे पाल रहा है लेकिन जब तक वो नशा करता रहा सैफ को और सैफ के घरवालों को खून के आंसू रुलाता रहा, 

सैफ ने दो चार दिनों के बाद बड़ी चालाकी से फैज़ान को काम करने की बजाये काम देखने भालने में लगा दिया क्योंकि कंपनी के मालिक सैफ की बहुत इज़्ज़त करते थे इसलिए उन्होंने भी सैफ के इस फैसले पर कोई ऐतराज़ नहीं, लेकिन शायद सैफ के भाई को ये बात पसंद नहीं आई और वो गुस्से में बिना बताये वहां से चुपचाप दिल्ली वापस चला आया ये सब बातें सैफ को पहले ही से पता थीं लेकिन उसने कभी फैज़ान के सामने ये बातें नहीं कीं कही फैज़ान खुद को छोटा महसूस ना करने लगे, जबकि हकीकत ये थी सैफ ये नहीं समझ पा रहा था के फैज़ान को मुश्किलों से निकालते निकालते वो खुद मुश्किलों में घिरने वाला है,
और ये बात सैफ ख्वाब में देख चूका था अब बहुत दिन गुज़र चुके हैं ठीक से याद नहीं रहा वो ख्वाब सैफ को 
लेकिन बड़ा डरावना ख्वाब था इन लोगों को ट्रैन में बिठाने के मुताल्लिक कोई ख्वाब था 


अपनी जगह भागते दौड़ते अनम की सबसे बड़ी से छोटी वाली बहन और फैज़ान को ट्रैन में बिठाने के चक्कर में अपनी ट्रैन निकाल दी और चारों तरफ से बंदूकों में घिरा हुवा अपने आपको देखा

इतने भी वफादार ना बनिये की
लोग 
आपको अपना गुलाम समझने लगे

लेकिन अब सैफ इन लोगों से दिल से कनेक्ट हो चूका था वो अपने परिवार से ज्यादा इनके परिवार की फ़िक्र करने लगा था, 
एक बार फिर से थोड़ी देर के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं, अनम के कहे अनुसार सैफ और अनम की जो बातें होती हैं वो सिर्फ अनम और लुबना ही को पता होता था, फिर बाद में अनम ने अपनी भतीजी ज़ैनब से भी सैफ की बात कराइ और ज़ैनब को भी उनके राज़ का पता चल गया, जब सैफ की और ज़ैनब की बातें होने लगी तो सैफ ने ज़ैनब से बोला के ज़ैनब आप मुझे अब्बू बुलाया करो आज से आप मेरी बेटी हो ज़ैनब भी ये बात सुन कर बहुत खुश हुई बोली ठीक है अब्बू जी आज से मैं आपको अब्बू ही बुलाऊंगी, दरअसल ज़ैनब फैज़ान की बेटी है बिन माँ के पली है, बाकी लोगों की तरह वो भी उस औरत से नफरत करती है जिस औरत ने उनका पूरा घर तबाह कर दिया वो औरत कोई और नहीं फैज़ान की बीवी और ज़ैनब की अपनी सगी माँ है, इसलिए सैफ को उस पर बहुत ज्यादा प्यार और सच पूछो तो प्यार से ज्यादा तरस आता है, यहाँ पर आता था की जगह आता है इसलिए लिख रहा हूँ क्योंकि सैफ आज भी उसे अपनी बेटी की तरह मानता है सगी बेटी की तरह, वो बात अलग है ज़ैनब सैफ को भुला चुकी है,

जिस वक़्त सैफ फैज़ान को मनाली लेकर गया था उस वक़्त तक सैफ ऐसी कंडीशन में आ चूका था के अब उस घर की किसी लड़की से वो निकाह करे या ना करे वो घर उसके लिए उसका अपना घर बन चूका था उस घर का गम उसका गम हो चूका था उस घर की ख़ुशी उसकी अपनी ख़ुशी बन चुकी, इस बात का अंदाज़ा हम इसलिए भी लगा सकते हैं के मनाली में सैफ ज्यादातर नमाज़ें तन्हाइयों में ही पढता था और ज्यादातर नमाज़ों में फुट फुट कर रो रो कर अनम के परिवार की खशियों के लिए दुआ करता था,

वो दुआओं में मांगता था या अल्लाह तू दिलों के हाल जानता है तू मेरे दिल का हाल भी जानता है मुझे किसी तरह का कोई लालच नहीं उस घर से, मेरा जो बनता है बने बस तू किसी भी तरह उस घर की मुसीबतों को उनसे दूर कर दे मेरा निकाह उस घर की किसी लड़की से हो या ना हो पर अल्लाह तू उस घर की हर लड़की का निकाह इज़्ज़त और आफ़ियत से करा दे, या अल्लाह मेरा घर तो बहुत पहले ही उजड़ा हुवा जब से मेरा निकाह हुवा तब से मेरा घर उजड़ा हुवा है, अल्लाह मेरा घर फिर से बसे या ना बसे पर तू उस घर को फिर से बसा दे, या अल्लाह मेरी आँखों के देखते देखते चौदह पंद्रह साल हो गए हैं उन लोगों को तड़पते हुवे या अल्लाह तू उन लोगों के दिलों को सुकून पहुंचा दे, या अल्लाह कोई कैसे इतनी परेशानी उठा सकता है , तेरा वादा है के तू किसी काँधे पर उसकी बर्दास्त से ज्यादा बोझ नहीं डालता या अल्लाह उनके कांधों का बोझ बहुत भारी हो गया है अब तू उन के कांधो के बोझ को हल्का कर दे,                 
                
या अल्लाह तू जानता है जब से मैंने होश संभाला है जब से मेरे वालिद और मेरे छोटे भाई का इंतक़ाल हुवा है तभी से तूने मुझे होश दिया है थोड़ी बहुत हिदायत भी दी है, तू अच्छी तरह से जानता है, जब से तूने मुझे होश दिए हैं तब से लेकर आज तक मैंने अपने लिए और अपने बच्चों के लिए एक लुक्मा भी नाजायज़ नहीं कमाया है मेरा हर लुक़मा हक़ और हलाल का है, जब से तूने मुझे अक़्ल दी है तब से लेकर आज तक मैंने किसी का बुरा करना तो दूर किसी का बुरा सोचा तक नहीं है, या अल्लाह मेरी इन्ही नेकियों के सदक़े तुफेल से इन लोगों के चेहरों पर मुस्कान ला दे,
या अल्लाह तेरे लाडले हबीब ﷺ का कहना है जिन आँखों में आंसू हों उन आँखों के मालिक की मांगी हुई दुआ कभी रद्द नहीं की जाती है, या अल्लाह मेरी आँखों में आंसू हैं या अल्लाह मेरी आँखों के आंसुओं के सदक़े उन लोगों की ज़िन्दगी को खुशहाल बना दे ,  आमीन या रब्बुल आलमीन 
अल्लाह की कसम सैफ उन लोगों के लिए फूट फूट कर रो रो कर दुआएं मांगता था,  

मनाली में सैफ साइट से फ्लैट की तरफ पैदल पैदल जा रहा था तभी सैफ के मोबाइल की रिंगटोन बजी ये बात फैज़ान को मनाली बुलाने से पहले की है, 
एक अनजान नंबर सैफ के मोबाइल की स्क्रीन पर नज़र आ रहा था सैफ ने कॉल रिसीव किया, हेलो कौन: उधर से एक लड़की की अनजान आवाज़ जो सैफ ने फ़ोन पर पहली बार सुनी थी वैसे तो बहुत बार सुनी हुई थी, अस्सलामु अलैकुम: वालैकुम अस्सलाम: उधर से मुस्कुराती आवाज़ ने पुछा पहचानो कौन, कुछ देर सैफ ने सोचा तुरंत समझ गया अनम की सबसे बड़ी बहन बोल रही थी दुआ सलाम हुई अच्छे से बातें हुईं किया किया बात हुई अब सैफ को याद नहीं है मगर एक अहम् बात जो याद रह जाने वाली थी वो ये थी के सैफ ने उनसे कहा के आप लोग मुझे अपने घर का परमानेंट मेम्बर बना लो बात हसियों में उड़ गई लेकिन घर पर चर्चा हुई इस बात की और उनसे ये कह दिया गया के अब से तुम सैफ को फ़ोन नहीं करोगी और सैफ को इस बात की भनक भी नहीं लगी, या बात सैफ को बहुत दिन बाद पता चली के ऐसा हुवा था, 

कुछ दिन और गुज़रे अब फैज़ान मनाली में पूरी तरह सेट हो चूका था, सबकुछ ठीक चल रहा था अनम लुबना ज़ैनब की रोज़ सैफ से बातें होतीं थीं रोज़ाना सैफ और अनम की लड़ाई होती थी, बल्कि यूं कहूं तो ज्यादा बेहतर होगा के अब सैफ और अनम की लड़ाई रोज़ाना का मामूल बन चुकी थी लेकिन इस लड़ाई के पीछे एक मोहब्बत छुपी हुई थी ये ऐसी लड़ाई थी जो दो अपनों के बीच होती ही रहती थी, 
नहीं इसे हम लड़ाई नहीं कहेंगे हम इसे नोकझोंक लिखेंगे हाँ ये नोकझोक ही थी जो दो मोहब्बत करने वालों के बीच होती है, दरअसल इस बात की गहराई सैफ की समझ में अब आई है के अनम किया चाहती थी, अनम चाहती थी के सैफ सिर्फ और सिर्फ मुझसे बात करे, यहाँ हम 
फिर से थोड़ा पीछे चलेंगे अनम के पास एक पुराना सा कीपैड वाला फ़ोन हुवा करता था, सैफ और अनम को मैसेज के ज़रिये बात करते हुवे चार या पांच महीने गुज़र चुके थे, एक दिन सैफ ने अनम से कहा के मैं आपको एक स्क्रीन टच फ़ोन गिफ्ट करना चाहता हूँ किया तुम लोगी, 
अनम ने शाम को जवाब देने का कहा शायद घर में मशवरा करना चाहती होगी, क्योंकि उस वक़्त फैज़ान भी घर ही में मौजूद था, शाम को अनम ने कहा ठीक है आप फ़ोन ले आओ, उस वक़्त सैफ ने अनम को एक सात हज़ार क़ीमत का फ़ोन ला कर दिया फ़ोन का नाम शायद कार्बन था,

और शाम को सैफ फ़ोन लेकर अनम के पास उनके घर आया पूरा परिवार खुश था क्योंकि उनके घर मे ये पहला स्क्रीन टच मल्टी मीडिया फ़ोन था, 

नया फ़ोन अनम के पास आ गया और तीन दिन सैफ को मैसेज नहीं किया जबकि रोज़ मैसेज करती थी सैफ का दिमाग ख़राब के किया बात है पता नहीं कोई गलती तो नहीं करदी मैंने सैफ सोच सोच कर टेंशन में था, तीन दिन बाद पता चला बेचारी फ़ोन को ऑपरेट नहीं कर पा रही थी, फिर सैफ ने उसको ऑपरेट करना बताया, उसके बाद फिर से मैसेजों का दौर बदस्तूर जारी हुवा, 

फिर एक दिन: हेलो मैं बोल रही हूँ भइया सबसे बड़ी से छोटी वाली बहन का फ़ोन सैफ के पास आया,  
अस्सलामु अलैकुम वालैकुम अस्सलाम कैसी हो अल्लाह का शुक्र है, दुआ सलाम हुई राज़ी ख़ुशी पूछी गई, 
भैया आपको मेरठ वकील के पास जाना पड़ेगा उससे बात करनी है, सैफ मनाली में है और नौकरी कर रहा है उसका अपना खुद का काम भी होता तो कोई बात नहीं थी जब मर्ज़ी आ जा सकता था लेकिन नौकरी तो नौकरी होती है भले ही मालिक सगा भाई ही क्यों ना हो, और वैसे भी एक कहावत है नौकरी के नौ काम दसवां काम हांजी, लेकिन कोई बात नहीं सैफ पहले ही ये बात बता चूका है के इस परिवार की ख़ुशी से ज्यादा कोई चीज़ ज़रूरी नहीं नौकरी रहे ना रहे परवाह नहीं लेकिन सच तो ये  था के उस वक़्त सैफ नौकरी खोने की कंडीशन में नहीं था, लेकिन जो होगा देखा जायेगा, ठीक है कब चलना है एक काम करो दोनों चलते हैं साथ में, उस वक़्त फैज़ान भी सैफ के साथ था फैज़ान ने भी तुरंत कहा अपनी बहन से तुम दोनों साथ चले जाओ, 

सैफ दिल्ली आया और घर पहुंचा रात भर का जाएगा हुवा था नाश्ता वगैरा किया बाइक निकाली घर से और रोड पर पहुँच कर सबसे बड़ी से छोटी बहन का इंतज़ार करने लगा, वो अपने अब्बा जी के साथ आई अब्बा जी उसको छोड़ कर वापस चले गए, दोनों मेरठ की तरफ चल पड़े, 

मेरठ पहुंचे और वकील के पास गए सैफ के ताऊ का लड़का वकील के आसपास ही रहता था सैफ ने उसको भी बुलवा लिया ये परवाह किये बगैर के एक लड़की साथ वो जब सैफ को देखेगा तो किया सोचेगा, सैफ को उस वक़्त उनकी ख़ुशी के आलावा कुछ भी दिखाई देना बंद हो चूका था उसे अपने इज़्ज़त बेइज़्ज़ती की कोई परवाह नहीं थी उनके ग़म को वो पूरी तरह अपना ग़म मान चूका था, इस लिए तो वकील से बातें करते हुवे उसकी आँखे डबडबा गईं थीं ये बात उसके ताऊ के लड़के ने भी गौर की थी पता नहीं बड़ी से छोटी बहन ने इस बात पर ध्यान दिया था या नहीं , सैफ ने बड़ी से छोटी बहन को किया नाम दिया था अब उसको याद नहीं है इसलिए हम उसको यहाँ एक नाम देते हैं क्योंकि बार बार बड़ी से छोटी बहन कहना अच्छा नहीं लग रहा, अब से उसका नाम सादिया लिखूंगा, ये बात ज़रूर सादिया ने भी गौर की होगी के सैफ की आंखे डबडबा गईं थी वकील से बातें करते हुवे, और ये तभी होता है जब कोई इंसान किसी और के ग़म को पूरी तरह अपने सीने में उतार लेता हैं,

वकील ने उनको इलाहबाद जाने की सलाह दी, अब इलाहबाद कौन जाये सैफ को मालूम था उसे ही जाना पड़ेगा, क्योंकि उनके घर में और कोई ऐसा नहीं था, उनके अब्बा जी थे जो उमरदार थे उनके बसका नहीं था जाना, एक बड़ा भाई है जो के सबसे बड़ा है उसने अपने आपको पागल समझा हुवा है हालांकि उसकी नज़र में उसे छोड़ कर पूरी दुनिया पागल है लेकिन परेशानी ये है के पूरा घर ही उसकी हाँ में हाँ मिलाता जैसे वाकई में कोई पागल हो और कोई उससे फ़ालतू पंगे ना लेता हो या पंगे लेना ना चाहता हो, एक सबसे छोटा भाई अनम से बड़ा वो उनकी नज़र में आज तक बच्चा ही है, अब बचा कौन जाने के लिए, सिर्फ सैफ और सैफ पहले ही अंदर से अपने आपको तैयार कर चूका था इलाहबाद जाने के लिए, लेकिन खामोश था, रास्ते में सादिया ने खुद ही सैफ से बोल दिया वापस आते हुवे के भैया आपको ही जाना पड़ेगा इलाहबाद, ठीक है सैफ ने कहा मैं मनाली जाता हूँ फिर कोई बहाना बनाता हूँ इलाहबाद जाने के लिए दो चार दिनों में, आसमान गवाह सुबह से शाम तक सैफ और सादिया एक साथ अकेले रहे मज़ाल है ज़रा भी मुँह बोले भाई बहन के रिश्ते पार आंच आई हो, हाथो से ज़हन से किसी भी तरह जैसे सगे भाई बहन सफर पर जाते हैं और आते हैं दोनों ऐसे ही गए और ऐसे ही वापस आये, 

फिर से एक बार थोड़ा सा पीछे चलते हैं अनम का फ़ोन आया और दुआ सलाम हुई हालचाल पूछे गए रोज़मर्रा की तरह, थोड़ी देर बाद अनम बोली के सादिया आपसे बात करना चाहती है, यहाँ पर एक बात और लिखना चाहूंगा अनम और सैफ का रिश्ता वो रिश्ता था जो शायद दुनिया में किसी से किसी का ना होगा वो आपस में दोस्त थे मगर दोस्तों से बहुत आगे थे, दोनों की रोज़ लड़ाई होती थी मगर दोनों एक दुसरे से बात किये बगैर नहीं रह सकते थे वो गर्लफ्रेंड बॉयफ्रेंड नहीं थे लेकिन सच्चा प्यार करते थे वो दोनों जानते थे के उनकी शादी नहीं हो सकती मगर मियां बीवी की तरह बातें करना पसंद करते थे दोनों मज़बूर थे अगर उम्र का फांसला ना होता तो शायद आज अनम और सैफ दोनों मिया बीवी होते और हो सकता है साथ भी रह रहे होते दोनों के एक दो बच्चे भी होते क्योंकि अनम बहादुर और जीदार लड़की थी लुबना की तरह बेवक़ूफ़ बनाना उसने नहीं सीखा था, इस कहानी में अगर कोई सबसे ज्यादा सैफ के बाद पिसा है तो वो अनम है  , ये बात कहते हुवे सैफ ज़रा भी नहीं हिचकिचायेगा के अगर इस घर में कोई शख्श कदर करने के क़ाबिल है तो वो अनम है, और अनम का कुसूरवार अकेला सैफ ही नहीं उसका पूरा घर है, ज्यादतर सबलोग सैफ का जी बहलाने के लिए अनम की बुराई ही करते थे, 

लो सादिया से बात करलो अनम बोली,अस्सलामु अलैकुम, वालैकुम अस्सलाम, कैसे हो भैया, अल्हम्दुलिल्लाह मैं अच्छा हूँ आप कैसी हो मैं भी अच्छी हूँ, 
भैया मैंने एक बात सुनी है, सादिया बोली, किया बात सुनी है मुझे भी बताओ सैफ हैरत से बोला हालंकि थोड़ा थोड़ा वो समझ रहा था के किया बात है, मैंने जो सुना है किया वो सच है सादिया शरारती अंदाज़ में बोली, बताओ तो सही किया सुना है सैफ अनजान बनकर पूछने लगा, तुम हमारे घर में किसी से निकाह करना चाहते हो सादिया बहुत संभल कर बोली, वैसे तो सैफ जानता था के एक ना एक दिन ये होना है लेकिन फिर भी सादिया की ज़बान से ये बात सुनकर सैफ थोड़ा सकपकाया , 
क्योंकि सैफ हर वक़्त इस बात से डरता था के कोई ये ना कह दे के हमारी मदद करने के बदले में सैफ ऐसा चाहता है जो की ये बात कई बार अनम से और लुबना से वो कह चूका था, वो यहाँ तक कह चूका था के एक बात याद रखना अगर मेरा निकाह लुबना से नहीं भी होता है तो तब भी मैं अपने क़दम वापस नहीं खीचूंगा हर हाल में तुम्हारे साथ रहूँगा तुम्हारा साथ दूंगा बिलकुल परिवार के सदस्य की तरह, 
निकाह इसलिए करना चाहता हूँ इसकी दो वजह हैं एक तो मुझे भी ख़ुशी चाहिए एक ऐसा जीवन साथी चाहिए जो मेरे दुःख में दुखी हो मेरी खुशियों में मुस्कुराये, मुझे ऐसी एक बीवी चाहिए जो मेरी हर जायज़ बात माने नाजायज़ मैं उससे कुछ भी नहीं करवाऊंगा, 
जिस तरह मैं घर का बड़ा हूँ वो भी बड़ी बन कर रहे जिसका जो हक़ है वो उसको दे, दीन ओ इस्लाम के दायरे में हर काम करे दीन पर चले यहाँ पर सैफ एक बात और कहना चाहता है, 
सबको सबका हक़ दे और दीन पर चले, इस बात का पता नहीं उन्होंने किया मतलब निकाल लिया जो के इस बात पर उस वक़्त तो लुबना ने हाँ में हाँ मिलाई लेकिन बाद में इस बात को लेकर उन्होंने सैफ की ज़िन्दगी में तूफ़ान खड़ा कर दिया, वो मैं आगे लिखूंगा, लेकिन यहाँ में इन दोनों का खुलासा कर दूँ, 
सबको सबका हक़ देने का मतलब ये था जब कभी बहने वगैरा घर में आएं तो ख़ुशी ख़ुशी उन्हें अपने हाथों से बिदाई देकर रुखसत करेी इस बात का फायदा ये होता के अल्लाह भी राज़ी होता और घर वाले भी उससे खुश रहते कहते ये हैं हमारी अच्छी भाभी, दीन पर चलने का सिर्फ ये मतलब था पांच वक़्त की नमाज़ों को अहतमाम क़ुरान की पाबन्दी रोज़ों की पाबन्दी और सबसे बड़ी बात कोई अगर तुम्हारा दिल दुखा दे गलती से या जानबूझ कर तो उसे अल्लाह की रज़ा की खातिर माफ़ कर देना, बताओ इसमें किया बुराई है दुनिया भी खुश अल्लाह भी राज़ी, उन्होंने ना जाने इस बात का किया मतलब निकाल लिया, 
जबकि वो तभी तो सबको सबका हक़ दे पाती जब सैफ उसको इतना पैसा कमा कर देता,जो भी देती सैफ के कमाए हुवे ही में से तो देती, 
खैर आगे बढ़ते हैं, हाँ मैं निकाह करना चाहता हैं आपके घर की एक लड़की से आपके घर का सदस्य बनकर रहना चाहता हूँ, मैं इसलिए निकाह करना चाहता हूँ के उसके बाद कोई हमारे ऊपर ऊँगली ना उठा सके के सैफ क्यों हर वक़्त इनके साथ रहता है क्यों इनकी हर लड़ाई में कूदता है, आखिर इनका रिश्ता किया है, मैं एक मज़बूत रिश्ता आपके घर से रखना चाहता हूँ क्योंकि मुँह बोले रिश्ते का कोई यकीन नहीं करता खासतौर पर मुहल्ले वाले,
 
सादिया कहने लगी मुझे बताओ किस्से निकाह करना चाहते हो जिससे बोलोगे उससे करा दूंगी जैसे बोलोगे वैसे करा दूंगी निकाह बोलोगे निकाह करा दूंगी कोर्ट मैरिज बोलोगे कोर्ट मैरिज करा दूंगी, आप बस उसका नाम बताओ, 
सैफ कहने लगा मैं लुबना से निकाह करना चाहता हूँ वो भी मुझसे निकाह करना चाहती है, इस बार सादिया चौंकी हैं मैंने तो किसी और का सुना था, अब सैफ को यकीन हो गया के अनम ने आजतक सैफ से झूंठ बोला था के ये बात मुझे और सिर्फ लुबना को पता है जबकि सादिया को शुरू से सबकुछ पता है, सैफ कहने लगा के मनाहल ने मना कर दिया है इस लिए अब मैं और लुबना दोनों निकाह करना चाहते हैं,सादिया को थोड़ा अजीब तो लगा मगर वो राज़ी हो गई कहने लगी इस मसले से निपट कर ये काम करते हैं, सैफ अब थोड़ा और सुकून में हुवा लेकिन इस क्रेडिट की असल में हक़दार अनम ही थी कोई और नहीं , 

कुछ दिन और गुज़रे अब इलाहबाद जाना था सैफ को सैफ वहां से कोई बहाना बना कर दिल्ली के लिए निकला सुबह घर पहुंचा, सैफ की इलाहबाद की टिकट सादिया पहले ही करा चुकी थी,


घर पहुंचते ही सैफ घर से कोई काम है बोलकर इलाहबाद के लिए निकल गया आराम तो जैसे सैफ से खफा हो चूका था, लेकिन वो जी रहा था तो बस इसी आस पर के मेरी वजह से कुछ मायूस चेहरों पर मुस्कराहट आ जाएगी अल्लाह भी राज़ी होगा बाकी ज़िन्दगी है कट तो रही है देखो आगे अल्लाह को किया मंज़ूर है, 
हालांकि इस परिवार के आलावा सैफ का अपना एक परिवार भी था, इस परिवार की फ़िक्रों के आलावा भी सैफ की अपनी कुछ फिक्रें थीं और वो फिक्रें कोई मामूली फिक्रें नहीं थीं, वो ऐसी फिक्रें थीं जिनका मुकाबला करना एक अकेले इंसान के बस में नहीं था, सैफ के आगे जो अपने परिवार की ज़िम्मेदारी थी ना तो उन ज़िम्मेदारियों से निपटना किसी अकेले इंसान के बस में था, और जो अनम के घर की ज़िम्मेदारियाँ थीं ना ही वो ज़िम्मेदारियाँ इतनी छोटी थी के जिनसे कोई अकेला इंसान निपट सके, लेकिन सैफ दोनों परिवारों की ज़िम्मेदारियों से अकेला लड़ रहा था, अकेला चट्टान बन कर दोनों परिवारों की मुसीबतो के सामने डट कर खड़ा था, और सैफ की बदनसीबी देखो दोनों परिवारों की तरफ से सिर्फ उसकी टांग खींचने वाले तो थे मगर उसके बारे में सोचने वाला उसकी तकलीफों का अंदाज़ा लगाने वाला कोई नहीं था, अनम का परिवार तो जैसे इसे मौके में रहता था के कब सैफ को किसी बात का ताना दिया जाए, जबकि उनको तो ये चाहिए था के सैफ का इतना ख्याल रखें के उसको कभी अकेले होने का अहसास ना हो ऐसे किसी अल्फ़ाज़ों का इस्तेमाल ना करें जिससे सैफ का दिल दुखे सब जानते थे के आज की तारीफ में सैफ हमारे लिए फरिश्ता बना हुवा है, लेकिन उसके बावजूद भी जिसके जो दिल में आता था सैफ को कह देता था, कोई ये ना सोचता के ये भी इंसान है कोई पत्थर नहीं है,   
सैफ इलाहबाद पहुंचा वकील से मिला उसे लग रहा था वकील उसका बेवक़ूफ़ बना रहा है उसने सिर्फ उसको अपनी फीस लेने के लिए बुलाया है, ना जाने उसने सैफ को किया किया समझाया ये करना है वो करना है वगैरा वगैरा अपनी फीस ली और वापस मेरठ वाले वकील के पास जाने की सलाह दे दी, सैफ फीस दे कर वहां से उठ कर बाहर आ गया, 
यहाँ मैं एक बात एक और लिखना चाहूंगा सैफ के बाप दादाओं ने भी कभी कोर्ट कचहरी का मुँह नहीं देखा होगा सैफ की तो बात ही दूर है मगर वो बेचारा उन लोगों की ख़ुशी के लिए सबकुछ कर रहा था यहाँ तक के बहुत पहले वो कोर्ट में झूंठी गवाही भी दे चूका था ना चाहते हुवे भी जब तो सैफ की और अनम के घरवालों की इतनी बातचीत भी नहीं थी, 
सैफ ने कभी अपने लिए अपनी कंपनी से कोई छुट्टी नहीं मांगी मगर इन सब के लिए वो बार बार छुट्टी लेकर दिल्ली आता था मनाली से कभी कड़कड़डूमा कोर्ट जाना है कभी मेरठ जाना है कभी इलाहबाद जाना है, 
इधर सैफ की एक चाची ने भी उनसे ज़मानत वापस लेने की धमकी दे डाली उसको दस हज़ार रूपये देने के लिए स्पेशल मनाली से दिल्ली आना पड़ा, 
सैफ ने कभी किसी चीज़ से मुँह नहीं मोड़ा जहाँ पैसा खर्च करना है पैसा खर्च किया जहाँ भागदौड़ करनी भागदौड़ की किसी के आगे हाथ जोड़ने हैं हाथ जोड़े किसी को धमकाना है तो धमकाया,
यहाँ तक के जब ज़रूरत पड़ती वो मनाली से अपने ताऊ के लड़के को मेरठ फ़ोन करता के भैया ज़रा वकील के पास चले जाओ उससे बात करो वो किया चाहता है और वो वकील हरामजादा इतना सुव्वर था के सिर्फ पैसे ऐठने के लिए उनको बुलाता था, और सैफ के ताऊ का लड़का भी बेचारा उसकी एक फोन कॉल पर वकील के पास चला जाता था और वकील जो पैसे मांगता दे आता था उसने कभी ना नहीं कहा,  ये सब कुछ सैफ ने एक परिवार की मुस्कान वापस लाने के लिए किया  
एक बात बताऊँ अगर किसी के पास बहुत ज्यादा पैसा पावर है और वो किसी की मदद करता है तो कोई बड़ी बात नहीं बड़ी बात ये है के किसी के पास उतना ही पैसा हो जिससे या तो वो अपना घर ठीक से चला ले या किसी की मदद कर दे और उसके बावजूद वो किसी की मदद कर रहा है तो ऐसे इंसान का कभी दिल ना दुखाना कियोंके उसका जीना मरना सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए हो रहा है, 

एक बार तो सैफ ने अपने एक दोस्त को फ़ोन करके इनके घर पैसे पहुंचयाये    

              
जबकि सैफ की ज़िन्दगी उस वक़्त खुद ही  ऐसे इम्तिहानों से गुज़र रही थी के उसे खुद ही किसी का सहारा चाहिए था, जब के सैफ खुद ही बेसहारा था इतने बड़े जहाँ में एक दम तने तनहा था एक इंसान ऐसा नहीं था उसकी अम्मी को छोड़ कर जो उसके आंसू पोंछे, लेकिन सैफ अपनी अम्मी के साथ अपनी कोई परेशानी शेयर नहीं करता था क्योंकि उसकी अम्मी को खुद ही कई ज़ख्म पहले से लगे हुवे थे शोहर छोड़ कर चले गए दुनिया से जवान बेटा चला गया मकान टूट गया, अब अगर सैफ भी उन्हें अपनी परेशानियों का भागीदार बनाता तो वो बिलकुल टूट जातीं इसलिए सैफ उनके सामने अपनी कोई परेशानी नहीं बताता था हालांकि माँ से औलाद का कोई ग़म नहीं छुपता लेकिन वो बेचारी भी किया कर सकतीं थीं, कुल मिला कर सच यही था के एक इंसान सैफ के आंसू पोंछने वाला नहीं था, इसलिए सैफ को लगा के मैं अनम के परिवार के आंसू पोछूँगा उनका परिवार सैफ के आंसू साफ़ करेगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था, या यूं कहिये के सैफ की किस्मत में कोई ख़ुशी थी ही नहीं,  

तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो तुमको अपने आप ही सहारा मिल जायेगा



सैफ कोर्ट से बाहर निकला और ऑटो पकड़ा वापस स्टेशन आया, गर्मी अल्लाह की पनाह थी गर्मी से इस क़दर गर्मी पड़ रही थी तौबा तौबा, स्टेशन के बाहर होटल पर बैठ कर खाना खाया, अनम के घर फ़ोन किया बातों बातों में ये बात होने लगी के कल हम डॉक्टर के जायेंगे, सादिया और अनम, सैफ कहने लगा तो एक काम करना लुबना को भी साथ ले लेना हम दोनों थोड़ी सी बातें कर लेंगे, जिसका ताना सैफ को तुरंत ही मिल गया के इलाहबाद जाने के बदले में सैफ ने ये शर्त रखी है, जब के अल्लाह गवाह है ऐसी कोई बात नहीं थी, बस ये था के जिस लड़की के साथ निकाह करना है उससे एक बार फेस टू फेस बातें तो हो जाएँ, 
लेकिन जब बुराईआनी होती है तो आकर ही रहती है,. डॉक्टर के यहाँ से वापस आते हुवे सैफ और लुबना बातों में इतने मशगूल हो गए के पीछे आती हुई अनम और सादिया बहुत पीछे रह गईं और थोड़ी देर के लिए बिछड़ गईं, उसकी वजह ये रही के सैफ घबराया हुवा था इस बात से कहीं कोई सैफ के साथ उन लोगों को देख ना ले क्योंकि सैफ को उनकी इज़त की परवाह अपनी जान से भी ज्यादा थी, इस बात का भी अलग ही मतलब निकाला गया के सैफ ने ये जानबूझ कर किया है जबकि लुबना खुद इस बात की गवाह थी के उन्होंने ये जानबूझ कर नहीं किया बस हो गया था,
जैसे तैसे करके सैफ इलाहबाद से दिल्ली पहुंचा क्योंकि सैफ की दिल्ली से इलाहबाद की टिकट तो बुक थी लेकिन वापसी की टिकट नहीं थी अल्लाह गवाह है सैफ जब से नौकरी पर लगा था कभी बिना शीट बुक हुई ट्रैन में नहीं बैठा क्योंकि अगर ट्रैन में पहले ही से शीट बुक ना हो तो सफर नहीं अजाब बन जाता है, लेकिन सैफ नै हर वो काम के लिए किया जो वो अपने लिए कभी ना करता, 

अब हमे सबको इस बात का पूरा यकीन हो चूका था के कोर्ट कचहरी से हमारे पक्ष में कोई फैसला होने वाला नहीं था वकील सिर्फ पैसे ऐठ रहा था, तो फैसला ये हुवा के इन लोगों से फैसला किया जाये, उधर पुलिस का और जमानियों का दबाओ हमारे ऊपर बढ़ता जा रहा था के फैज़ान को पेश करो सब जानते थे के फैज़ान सैफ के पास मनाली में है, 
तो फैसला ये हुवा के ये लोग जो भी मांग रहे हैं इसको दो और इनसे अपनी जान छुड़ाओ, 
पांच या साढ़े पांच लाख रूपये उन लोगों ने मांगे, 
अब आगे समस्या ये थी के इतना पैसा कहाँ से लाया जाये, ना तो इतना पैसा अनम के घरवालों पर ना ही सैफ के पास था तो फैसला ये हुवा के घर का थोड़ा हिस्सा बेचा जाये कारखाने वाला हिस्सा, जो 20 या 22 गज बन रहा था, हमने वो हिस्सा नापा, नापने में थोड़ी गलती हो गई हमारे हिसाब से एक या दो गज़ ज्यादा नप गया, जितना हमने लोगों को बताया था के इतना बेचना है पैसे लेते वक़्त जब खरीदने वाले लोगों ने वो हिस्सा नापा तो एक या दो वो जगह कम निकली, लिहाज़ा जो कीमत लगाई गई थी उस हिस्से की उसके हिसाब से खरीदने वालों ने एक या दो गज़ ज़मीन के पैसे कम कर दिए, बिकवाने वाला सैफ का एक चाचा था जो के प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता था उसने अपना कमीशन ले लिया, जो के कोई भी होता तो लेता, 

पैसे देने के वक़्त जो हंगामा घर में उस वक़्त हुवा यकीन करो अगर सैफ के पास उतने पैसे होते जितना एडवांस लिया गया था तो सैफ उस वक़्त ज़मीन बिलकुल ना बिकने देता चाहे सैफ को अपनी जेब से एडवांस वापस करना पड़ता क्योंकि जो एडवांस आया था उसके पैसे खर्च हो चुके थे,
और फिर एक कहानी और भी थी अगर जैसे तैसे पैसों का इंतज़ाम कर भी लेता सैफ तो प्रॉपर्टी बेचने के एक उसूल है अगर हम खुद बयाना वापस करते हैं तो डबल वापस करना पड़ता है और खरीदने वाला खुद वापस मांगता है तो उसको आधा मिलता है,
अब इतने पैसे तो सैफ भी नहीं ला सकता था शायद दो लाख का बयाना आया हुवा था जिसका डबल चार लाख वापस करना पड़ता, अगर सैफ के बस में ये होता तो उसी दिन सैफ बयाना अपने पास दे कर उनकी ज़िन्दगी से उसी वक़्त निकल जाता हालांकि सैफ को मकान बिकवाने के लिए लोगों की खुशमंद करनी बड़ी थी मिन्नतें करनी पड़ी थीं क्योंकि ज़रूरत के वक़्त ना कोई चीज़ आसानी से बिकती है ना कोई चीज़ आसानी से मिलती है,
और वैसे भी उस वक़्त प्रॉपर्टी की हालत बहुत खराब थी लोग ओने पौने में बेच रहे थे ओने पौने में खरीदी जा रही थी, 
कचहरी में लिखाई के पैसे लगते हैं ये बात सब जानते हैं ना तो वो पैसे खरीदने वाला देने को तैयार इधर अब्बा जी ने भी साफ़ मना कर दिया के मैं पैसे नहीं दूंगा, सैफ अपनी जेब से लिखाई के पैसे निकाल कर दे रहा है, सैफ पर किया गुज़र रही है इस बात से किसी को मतलब नहीं बस सब लोग अपनी अपनी ज़िद पर अड़े हुवे हैं, यहाँ तक बाद में भी किसी ने ये नहीं पुछा के तेरे कितने पैसे खर्च हुवे हैं, कोई ये तक सोचने को तैयार नहीं के सैफ का कुसूर किया है,   

परखा गया मुझे बहुत 
लेकिन समझा नहीं गया  

उस वक़्त सैफ ने खुद को कितना बेबस महसूस किया था ये सैफ का दिल ही जानता था, सैफ को लगने लगा था कहीं उससे कोई गलती तो नहीं हो रही इन सबका साथ दे कर, 
सैफ दिलो जान से उनकी मदद में लगा हुवा था, मगर कभी कभी ऐसा वक़्त आ जाता था जब सैफ को ये लगता था के तू इनकी ज़िन्दगी से निकल जा, लेकिन फिर सैफ की आँखों के आगे उन सब के मायूस चेहरे घूमने लगते थे,
अब सैफ ने ये सोच लिया था के जो होगा देखा जायेगा तूने जो ज़िम्मेदारी उठाई है उसको पूरा किये बगैर कदम वापस नहीं लेने, और सच्चाई यही थी के उस सैफ के आलावा अगर कोई उनका अपना था तो सिर्फ अल्लाह ही था, जो के तमाम जहान का है,  
इधर सैफ और अनम की नोकझोंक लड़ाई का रूप लेती जा रही थी,


नोकझोंक इतनी बढ़ गई थी के सैफ चिड़चिड़ा होता जा रहा था सैफ की समझ में ये नहीं आ रहा था के वो करे तो किया करे अगर इनको छोड़ कर चला जाता है तो ये अकेले रह जायेंगे, अब ये बात सैफ का जूनून बन चुकी थी के किसी भी तरह इनको इस मुसीबत से बहार निकालना है चाहे मैं बर्बाद ही क्यों ना हो जाऊं अब कोई परवाह नहीं,  जबकि अनम को ये लगने लगा था के वो सैफ पर अहसान कर रही है, अल्लाह की कसम सैफ के दिमाग में जो निकाह का भूत था वो पूरी तरह उत्तर चूका था, अब तो बस किसी तरह इनका मसला हल हो और सैफ अपने रस्ते निकले,

धीरे धीरे वक़्त गुज़र रहा था इधर फैज़ान की ससुराल वालों के मुँह पर पैसे मार कर उन से जान छुड़ा ली गई थी, दो जगह जा कर उनको पैसे दिए गए थे पहली क़िस्त मेरठ के कोर्ट में जा कर अदा की गई थी जहाँ सैफ के साथ सादिया भी गई थी और सैफ के मामू मामी भी साथ गए थे, वो लोग फैज़ान की ससुराल वालों के साथ गाडी में बैठ कर गए थे, सैफ और सादिया बाइक पर मेरठ गए थे, वहां पैसे देने के बाद सैफ के मामू मामी जो सगे मामू मामी नहीं थे रिश्ते में लगते थे, वो लोग फैज़ान की ससुराल वालों के साथ उनके गाँव तक गए थे ये कह कर के सही सलामत पैसे पहुंचाने हैं, जो के सैफ को बिलकुल अच्छा नहीं लगा था, लेकिन हर इंसान अपनी मर्ज़ी का मालिक है,

हालांकि इन लोगों का साथ देने में सैफ के घरवाले बिलकुल खुश नहीं थे रोज़ाना सैफ की और सैफ की बीवी की लड़ाई होती थी के तुम उनके यहाँ किया करते हो हर वक़्त किया मतलब है तुम्हारा उनसे, मोहल्ले का कोई ना कोई आदमी सैफ के घर शिकायत करता रहता था के सैफ हर वक़्त अनम के घर में रहता है, सैफ ये बात भी जानता था के सैफ की अम्मी भी तेरे इनके साथ रहने से खुश नहीं है लेकिन वो बेचारी कहती कुछ नहीं थीं सैफ से, 

यहाँ तक के सैफ के सामने एक दिन ऐसा इम्तिहान आ गया था जो शायद सैफ ने कभी सोचा तक ना होगा, 
कोर्ट जाना था अनम की अम्मी को लेकर तारिख पर उसी दिन सैफ की अम्मी की आँख के ओप्रशन की तारिख थी, अब सैफ उलझन में फंस गया करे तो किया करे बहुत सोचने के बाद उसने अम्मी को समझाया के अम्मी ओप्रशन की तारिख आगे की ले लेते हैं आज मुझे बहुत ज़रूरी काम है, क्योंकि इनकी कोर्ट की तारिख आगे बढ़ने का मतलब था इनका और मुसीबतों में घिरना,. 
उस दिन सैफ अपनी अम्मी को ना ले जाकर उनके साथ कोर्ट गया सोचों सैफ पर किया गुज़री होगी इस बात को लेकर, सैफ का छोडो सैफ की अम्मी का कितना दिल दुखा होगा उस दिन भले ही उन्होंने अहसास ना होने दिया हो, 

खैर बाहरहाल फैज़ान की ससुराल वालों से जान  छूट चुकी थी अब धीरे धीरे उनकी ज़िन्दगी सामान्य होने लगी थी, जैसे जैसे उनकी ज़िन्दगी सामान्य हो रही थी वैसे वैसे अनम और सैफ की लड़ाई दिन पे दिन बढ़ती जा रही थी, क्योंकि अनम को तो शुरुवात से ही इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था के फैज़ान की बीवी का मसला हल हो या ना हो, बस सैफ मेरे आलावा किसी और से बात ना करे, सैफ सिर्फ और सिर्फ उसी का बन कर रहे, बाकी लोग सैफ के हर तरह से साथ थे, उनकी बातों से लगता था के अब वो सैफ का अहसान मान रहे हैं, लेकिन सैफ के भी दिल में कहीं ना कहीं अनम धीरे धीरे अनम घर बना रही थी बीवी ना सही लेकिन एक दोस्त के नाते सैफ अनम को बहुत चाहता था, मगर अनम दिन पे दिन ज़िद्दी होती जा रही थी दोनों का झगड़ा बढ़ता ही जा रहा था इस वजह से सैफ बहुत ज्यादा अपसेट रहने लगा था वो अनम पर बहुत ज्यादा चिल्लाने लगा था यहाँ तक के अब वो अपने घरवालों पर भी चिल्लाता रहता था उसके स्वभाव में बहुत ज्यादा तबदीली आती जा रही थी, लेकिन दूसरी ओर बाकि घरवालों की नज़र में सैफ की बहुत ज्यादा इज़्ज़त हो गई थी अब हालात ये बन चुके थे के एक दिन भी अगर सैफ अनम के घर ना जाये तो ना तो सैफ को चैन आता था ना ही अनम के घरवालों को चैन आता था, ज्यादातर अनम और सैफ लैपटॉप पर काम करते रहते थे, बस 

अनम और सैफ की लड़ाई को अगर एक तरफ रख दें तो सबकुछ ठीक चल रहा था, सैफ को वो लोग बिलकुल घर दामाद या बेटे की तरह चाहते थे, यहाँ तक के अनम की अम्मी और अब्बा जी भी सैफ को एक दम औलाद की तरह समझते थे, अगर किसी दिन सैफ घर नहीं आता था तो अनम की अम्मी और अब्बा जी भी फ़ोन कर के पूछने को कहते के पता करो आज सैफ क्यों नहीं आया, वो लम्हे ऐसे लम्हे थे के जिनकी कोई कीमत नहीं होती ऐसे लम्हो को बेशकीमती कहा जाता है, जो ज़िन्दगी भर की यादें बन जाते हैं, 

एक बार फिर से थोड़ा पीछे चलते हैं सैफ का काम मनाली में ख़त्म हो चूका था उसे वहां से पैकअप करके वापस आना था, लेकिन फैज़ान के पीछे पुलिस का सिकंजा कसता ही जा रहा था वो किसी भी कीमत पर घर नहीं आ सकता था, लेकिन मनाली में जब काम ही नहीं बचा तो वो वहां भी नहीं रह सकता था, 
इधर फैज़ान की अम्मी बहुत परेशान थीं के अब किया होगा उन्होंने सैफ को फ़ोन किया के भैया तू किसी भी तरह से उसे वहां रोक ले वो अपना खाना पीना खुद के पैसों से कर लेगा, जब के वो ये नहीं समझ रही थीं के खाना पीना तो खुद के पैसों से कर लेगा मगर रहेगा कहाँ,  क्योंकि जिस फ्लैट में वो लोग रहते थे उसका किराया कंपनी देती थी जिसे खाली कर के आना था, सैफ की समझ में कुछ नहीं आ रहा था के किया करा जाए, फिर सैफ ने एक दूसरी कंपनी के मैनेजर से बात की जिनको आगे का काम वहां मिल गया था, के भाई तुम फैज़ान को अपने पास रख लो ये समझ लेना के एक लेबर ज्यादा काम कर रही है तुम्हारे पास भले ही कम पैसे दे देना लेकिन इनको जब तक मैं ना कहूं दिल्ली नहीं भेजना, और वो मान गया उसने फैज़ान को अपने साथ अपने ही फ्लैट में रखा, इस तरह से फैज़ान का वहां रुकने का इंतज़ाम हो गया, लेकिन यहाँ भी सैफ के ऊपर बुराई आई के वो खाना टाइम पर नहीं खिलाता, 
यहाँ पर सरासर फैज़ान की गलती है वो मर्द है घर का बड़ा है छोटी छोटी बातें घर पे नहीं बतानी चाहिए खासतौर पर माँ को तो पता भी नहीं लगना चाहिए के उसकी औलाद परेशान है,

जब सबकुछ सामान्य हो गया था तो अब सैफ भी मनाली का काम खत्म करके दिल्ली आ गया था नॉएडा में साइट चल रही थी रोज़ाना रात को सैफ साइट से वापस आने के बाद अनम के घर एक डेढ़ घंटे के लिए जाता था आंधी आ जाये तूफान आ जाये लेकिन अब इनका मिलना बदस्तूर होता था, अब ज़िक्र लुबना के और सैफ के निकाह का चलने लगा के चलो इस काम को निपटा लेते हैं, सैफ ने बार बार इनसे पुछा के घर वाले मान भी जायेंगे या नहीं, सादिया ने सैफ को सलाह दी के तुम कहीं से चीनी पढ़वा   लाओ, जबकि सैफ ने ये काम ज़िन्दगी में कभी नहीं किया, अल्लाह गवाह सैफ आज तक कोई भी किसी भी तरह का काम करवाने मुल्ला मौलवी के पास नहीं गया, भला चीनी पढ़वा कर कहाँ से लाता, चलो देखेंगे आगे चल कर किया होता है, अब बात सिर्फ निकाह की हो रही थीं सैफ ने बोल दिया के ये तो चुटकियों का काम है, बोल तो दिया लेकिन जब इस काम के लिए निकला तो सैफ के दांत खट्टे हो गए, किस मौलवी से बात करे सब तो सैफ को जानते हैं, हाँ ये सच है के ये चुटकियों का काम था लेकिन अगर किसी और का निकाह करवाना होता तब, 

अपने लिए सैफ किस्से करे उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी इसी कश्मकश में कई दिन निकल गए, और फिर सैफ आज भी इस बात से डर रहा था के कहीं बदले वाली बात ना आ जाये के सैफ ने हमारी मदद के बदले में ये काम किया है, कुल मिला कर सैफ जानबूझ कर भी इग्नोर कर रहा था निकाह की बात को, इस बात को लेकर एक दिन लुबना और सैफ की फ़ोन बहुत लड़ाई हुई लुबना ने गुस्से में कह दिया के अब कोई ज़रूरत नहीं है निकाह की, सैफ ने भी गुस्से में बोल दिया के हाँ अब ज़रूरत भी क्यों होगी सारा काम जो निपट गया, फिर थोड़ी देर बाद लुबना का फ़ोन आया के जल्दी से मौलवी को ढून्ढ लो,

फ़ोन से याद आया के जब मनाली में साइट चल रही थी सैफ दिल्ली में ही था फैज़ान का फ़ोन सैफ के पास आया के जब अबकी बार मनाली आओ तो मेरे लिए एक फ़ोन ले कर आना, ठीक है ले आऊंगा सैफ ने बोलै, सैफ मार्किट जा कर साढ़े नौ हज़ार का एक फ़ोन फैज़ान के लिए लेकर आया और लाकर उनके घर पे रख दिया, के जब मैं मनाली जाऊंगा तो ले जाऊंगा, उससे पहले सैफ के पास Asus का एक फ़ोन था जिसके लिए ज़ैनब अक्सर कहा करती थी के अब्बू जी जब आप नया फ़ोन लाओ तो ये फ़ोन मुझे दे देना,

ठीक है बेटा सैफ ने ज़ैनब से वादा कर दिया, फिर सैफ नया फ़ोन ले आया, 
अब सैफ के सामने एक नया इम्तिहान आ कर खड़ा हो गया सैफ का बेटा भी उस फ़ोन को मांगने लगा जिस फ़ोन को ज़ैनब ने माँगा था, क्योंकि वो फ़ोन था बहुत लाजवाब, हालांकि ज़ैनब ने भी कहा था के अब्बू जी ये फ़ोन आप अपने बेटे को दे दो, लेकिन सैफ ने वो फ़ोन ज़ैनब को ही दिया, लुबना से बात करने में परेशानी होती थी इस लिए लुबना को भी एक पुराना नोकिआ का फ़ोन ला कर दे दिया, जो के सैफ के घर का फ़ोन था,
उस दिन रात को सैफ की और लुबना की खूब लड़ाई हुई निकाह को लेकर के तुम जानबूझ कर देर कर रहे हो, फिर सैफ ने अपने दोस्त कासिम से बात की और कासिम ने एक इमाम का इंतज़ाम किया, और फिर 31 दिसंबर 2015 को वो अजीब ओ गरीब दिन आया, हाँ अजीब ओ गरीब दिन ही कहूंगा मैं उसे क्योंकि उस दिन के बाद से सैफ की ज़िन्दगी में वो तूफ़ान आया के अल्लाह किसी दुश्मन को ऐसे दिन ना दिखाए, 
अनम लुबना और सादिया अस्पताल का कह कर घर से निकलीं आज सैफ और लुबना का निकाह है, निकाह की जगह जनरल अस्पताल शायद दुनिया का ये पहला निकाह होगा जो अस्पताल में हुवा था, 
निकाह हुवा पच्चीस हज़ार हक़ महर बंधी जो के उन लोगों को कम लग रही थी, एक सिंपल निकाह हो गया, 


निकाह हो गया मौलवी साहब को जो फीस दी उनको भी कम लगी, कई बार मौलवी साहब ने सैफ को फ़ोन कर कर के कई बार अपनी फीस ली, वहां से वो लोग निकले घर के लिए सैफ बहुत खुश था वो अपने दिल में अनम से सारे गीले शिकवे खत्म कर चूका था, तक वक्त उसने अनम से कहा था के अब तू अपने जीजू का अलग रूप देखेगी, अल्लाह जाने उस बात का उसने किया मतलब निकाला, जब के सैफ के कहने का मतलब ये था के अब तुमसे कभी नाराज़ नहीं होऊंगा कभी झगड़ा नहीं करूँगा लेकिन किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर था, क्योंकि कुछ बदनसीब इस दुनिया में ऐसे पैदा होते हैं जिनके मुक़द्दर में प्यार नाम का परिंदा ही नहीं होता, 

खैर उनका आपस में ये तय हुवा था के जब तक हम दो तीन लड़कियों की शादी ना हो जाये तब तक आप ये ज़ाहिर नहीं करोगे के आप दोनों का निकाह हुवा है, 
और चीनी पढ़वाने की बात पर अब भी सादिया कायम थी वो बार बार कहती थी के किसी मौलवी से चीनी पढ़वा लाओ, और सैफ उनकी हाँ में हाँ मिलाता और बात को टाल देता, 

अब सैफ की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था कम से कम उसके लिए इतना ही काफी था के दुनिया में कोई उससे भी प्यार करने वाली है जो के उसका इंतज़ार किया करेगी जब वो दिल्ली से बाहर जाया करेगा उसकी सलामती की दुआ किया करेगी, 
उसको फ़ोन किया करेगी उसकी ख़ुशी में खुश होगी उसके ग़म में उदास होगी, लेकिन ये सब सैफ के लिए बहुत जल्दी ख्वाब साबित होने वाला था, वो नहीं जानता था तूने ख़ुशी नहीं तबाही खरीदी है,
 
क्योंकि सैफ ने हदीस की किताबों में पढ़ा हुवा था जिसकी दो बीवी हों उसके चाहिए के दोनों में इंसाफ करे, तो इस लिए सैफ जो भी पैसे अपनी बीवी को ज़ाती खर्च के लिए देता था उतने ही पैसे लुबना के लिए निकाल कर अपने लैपटॉप के बैग में छिपा कर रख देता था, एक बार उसने लुबना से फ़ोन पर कहा के इस इस तरह से मैंने तुम्हारे लिए पैसे रखे हुवे हैं जब मैं रात को घर आऊंगा तो तुम मेरे बैग से वो पैसे निकाल लेना, इतना सुनते ही लुबना आग बबूला हो गई सैफ ने उसका जो रूप उस दिन देखा उसकी कल्पना तक सैफ ने नहीं की थी,

 
तुमने समझ किया रखा है मुझे किया मैं तुम्हे पैसों की भूखी दिखाई देती हूँ भड़कते हुवे लुबना बोली, सैफ सकपकाया और कहने लगा मैंने ऐसा कब कहा है मैं तो वही कर रहा हूँ जिसका हुक्म अल्लाह ने दिया है, नहीं नहीं मुझे पैसों की कोई ज़रूरत नहीं और नाही मैं पैसों की भूकी हूँ कहते हुवे लुबना को बहुत गुस्सा आ रहा था, जो भी करंगे तब करेंगे जब मैं तुम्हारे घर में आ जाऊंगी लुबना अब थोड़ा ठंडी होती हुई बोली, 
सैफ को लगा चलो ये ऐसी ही होगी इसको पैसों की बात पर इसलिए गुस्सा आया होगा कहीं मैं उसको पैसों की भूखी ना समझूँ, ये सोच कर सैफ ने सब्र किया और आइंदा कभी उससे पैसों की बात ना करने की सोच ली, 

उसके कुछ दिन बाद ईद या बकराईद आ गई डर की वजह से सैफ ने लुबना लुबना से पैसों का नहीं पुछा कहीं फिर से झगड़ा ना हो जाये, फिर से  झगड़ा हुवा अबकी बार इसलिए हुवा के पैसों का नहीं पुछा, नहीं नहीं याद आया सैफ चाहता था उसे चूड़ी और कपड़ों के लिए पैसे देना लेकिन वो अपने हाथ से उसको पैसे देकर उसके चेहरे की मुस्कान को देखना चाहता था, और उसने ज़ैनब से भी कहा था के लुबना को बोलना दो मिनट के लिए मुझे जीने पर मिले, लेकिन वो नहीं मिली उसने मना कर दिया, उसका 


फिर से झगड़ा हुवा पहले इसलिए झगड़ा हुवा के पैसों का क्यों पुछा, दोबारा इसलिए झगड़ा हुवा के पैसों का क्यों नहीं पुछा, पढ़ने वाले साथियों इंसाफ करना सैफ किस मुसीबत में फंस चूका था अब तुम देखते रहना आगे आगे सैफ के साथ किया किया होने वाला है, सब लिखूंगा आज मैं कुछ नहीं छुपाऊंगा फैसला पढ़ने वाले साथी करेंगे के सैफ कहाँ कहाँ गलत था,         

इधर फैज़ान का केस खत्म हो चूका था और फैज़ान मनाली से वापस आ गया था, मकान बेच कर जो पैसे केस से बचे थे वो तक़रीबन दस या ग्यारह लाख थे,
उन बचे हुवे पैसों से अगर वो लोग चाहते तो कम से कम तीन लड़कों की शादी कर सकते थे लेकिन उनके दिमाग़ में तो कुछ और चल रहा था, सैफ ने उनसे कहा भी था के अब दो या तीन लड़कियों की शादी कर दो,

लेकिन उन सबके दिमाग़ में कोई और ही खिचड़ी पक रही थी, कहने लगे नहीं पहले हम मकान बनाएंगे दो बड़े बड़े हॉल बनाएंगे फिर उनको किराये पर देंगे, फिर बहुत सारा पैसा आएगा और बाद में आराम से शादी कर लेंगे, सैफ ये बात सुनकर ठगा सा रह गया,. 
वो लोग ये भूल गए थे के अगर किराया आना शुरू हो गया तो घर का जो सदस्य भी अब काम करता है वो भी काम करना बंद कर देगा, ये पैसे भी खत्म हो जायेंगे बात वहीँ की वहीँ रह जाएगी अगर इनकम आती है तो खर्चा भी होता है इतना पैसा दोबारा कभी इकठ्ठा नहीं होगा, लेकिन अफ़सोस इस बात का था के उनके इस फैसले में घर की सब लड़कियां बराबर साथ दे रही थीं, सबसे ज्यादा सादिया साथ दे रही थी, यहाँ तक के उन्होंने सैफ को भी बुरा बना दिया, 
सैफ को तो वो कभी भी बुरा बना देते थे एक दिन सैफ चारपाई पर बैठा या लेटा था गलती से सैफ के पैर फैज़ान की तरफ हो गए थे जो के उसने जानबूझ कर नहीं किये थे क्योंकि उसे ये नहीं पता था के ये सब ऐसी ऐसी बातों का बुरा मानते हैं, 
सैफ ने तो बस इतना पढ़ा और सीखा था के काबे की तरफ और क़ुरान की तरफ पैर नहीं करते,
सैफ ने लाख यकीन दिलाया यहाँ तक के रो दिया वो लेकिन इन सब की यही तो खासियत है के अगर किसी के बारे में गलत सोच लिया तो बस सोच लिया उसके साथ हुई गलतफहमी को दूर नहीं कर सकते चाहे फिर वो बंदा कब्र ही में क्यों ना पहुँच जाये, कभी, और इस बात का सबसे ज्यादा फजीता सैफ का लुबना ने किया था उसने सैफ को इतना सुनाया इतना सुनाया के सैफ को रोना आ गया,  

इधर फैज़ान काम छोड़ कर घर बनवाने में लग गया अब उसको काम धंदे से कोई मतलब नहीं था, अब उसको सैफ से किसी भी तरह के सलाह मशवरे की भी ज़रूरत नहीं थी, उधर सैफ की नोएडा वाली साइट ज़ोरो शोरों पर स्टार्ट हो चुकी थी जब फैज़ान की साइट पर ज़रूरत थी तब वो अपना मकान बनवाने में मशरूफ था हाथ में जो पैसा था उसे जल्द से जल्द ख़त्म करना था, 
उधर सैफ की कंपनी ने जितने स्टाफ की ज़रूरत थी उतना स्टाफ पूरा कर लिया था अब फैज़ान की कोई ज़रूरत नहीं थी वहां पर, 
कुछ दिन बाद मनाली में फिर से साइट शुरू होनी थी उधर एक बार सादिया का फ़ोन सैफ के पास आया जब उनका मकान बन कर कम्प्लीट हो चूका था के भैया को काम पर ले जाओ, जबकि सैफ की कंपनी के मालिक सैफ से पहले ही मना कर चुके थे के अब फैज़ान को काम पर मत रखना, 
अगर किसी लड़की की शादी में मदद की ज़रूरत होगी तो थोड़े बहुत पैसे देकर मदद कर देंगे लेकिन उसको काम पर मत रखना, 
जब सैफ ने उनसे वजह पूछी तो बताया के वो आदमी सही नहीं है, उन्होंने बताया के शुरू शुरू में तो ये बंदा मुझे ठीक लगा लेकिन बाद में पता चला उसकी सारी हरकतें औरतों वाली हैं चुगलियां करता है अक्सर चन्दन की चुगली करता था रो रो कर, हकीकत में कंपनी मालिक की नज़रों में फैज़ान इसलिए उतरा था के वो अपनी बीवी की बुराई उनसे कर रहा था जब तक सिर्फ बुराई की तब तक तो उन्होंने कुछ नहीं कहा लेकिन जब फैज़ान ने उनसे कहा के मेरी बीवी का केस वकील फ्री में लड़ता है फीस के बदले में वो उसके केबिन में उससे गंदा काम करवाती है, 
बस इतना सुनते ही उन्होंने फैज़ान को डांटा खबरदार अगर मेरे सामने आज के बाद ऐसी कोई भी बात की तो अच्छा नहीं होगा, सैफ उस वक़्त दिल्ली में था मनाली में नहीं था शायद इलाहबाद गया था, फैज़ान ही के केस में,
उन्होंने कहा फैज़ान कोई आदमी अपनी रोज़ी रोटी पर ऐसा काम कैसे कर सकता है वो भी जहाँ हर मिनट में कोई भी आता जाता रहता है तुम झूंट बोल रहे ही कोई भी वकील अपने केबिन में कभी गंदा काम कर ही नहीं सकता क्योंकि सवाल ही पैदा नहीं होता पहली बात तो वो उसकी रोज़ी रोटी है दूसरी बात वो कचहरी है किसी ने देख लिया तो एक मिनट में उसका लाइसेंस कैन्सिल हो जाएगा, तीसरी बात हर मिनट में वकीलों के केबिनो में आर जार लगी रहती आज के बाद मुझसे ये बातें मत करना,
सैफ ने जब पहली बार फैज़ान को अपनी कंपनी के मालिक से मिलाया उसके बाद सैफ दिल्ली आ गया किसी काम से और फैज़ान को वो रहने के लिए अपने ही फ्लैट पर बुला चूका था, इत्तेफ़ाक़ से दूसरी बार सैफ का छोटा भाई फिर से मनाली गया हुवा था फैज़ान को अपने फ्लैट पर बुला लेने से उसके दिल पर किया बीती होगी ये वही जानता होगा सोचा होगा के मेरे भैया की नज़र में अपने भाई से ज्यादा फैज़ान की क़दर है, शायद यही बात सोच कर वो फिर से बिना बताये वापस दिल्ली आ गया, 
खैर जब सैफ दिल्ली आया तो फैज़ान को अपने फ्लैट में रख कर आया उसके बाद जब वापस मनाली गया तो सैफ के बॉस भी वहीँ पर थे उन्होंने फैज़ान की बहुत तारीफें की के अच्छा आदमी है रख लो इसको, 
उसके बाद फिर से सैफ को किसी काम से दिल्ली आना पड़ा शायद फैज़ान ही के केस में दिल्ली आया था, और बॉस को बता कर आया था, अब जब वो दोबारा मनाली वापस पहुंचा तो उसके बॉस के तेवर बदले हुवे थे सैफ से बोले यार ये आदमी तो औरत है, ये आदमी सही नहीं है, किसी का कुछ नहीं बिगड़ रहा था जो बिगड़ना था सैफ का बिगड़ना था,  

उन्होंने सैफ से बिलकुल साफ मना कर दिया था के फैज़ान को काम पर नहीं रखना, ये बात जब सैफ ने सादिया को बताई तो वो भी सैफ से लड़ी, ना तो उनके घर में कोई हालात समझने को तैयार था ना सैफ की मज़बूरी समझने को तैयार था लुबना से निकाह होने के बाद वो लोग सिर्फ सैफ को इस्तेमाल कर रहे थे और ये बात सैफ भी समझ चूका था, लेकिन वो लुबना की खातिर सबकुछ बर्दास्त कर रहा था क्योंकि अभी तक लुबना ने अपना असली रंग सैफ को नहीं दिखाया था,

सैफ उसे हालात की सताई हुई लड़की समझ रहा था एक ऐसी लड़की जो किसी पर भरोसा करके अपने माँ बाप अपना घर परिवार, घर परिवार की इज़्ज़त दाओ पर लगा कर घर से किसी लड़के के साथ चली गई थी, ना जाने किया हालात पेश आये होने जब वो वापस आई होगी उस लड़के ने उसको छोड़ दिया होगा या फिर उसके घरवाले उसको वापस लाये होंगे अल्लाह बेहतर जाने लेकिन सैफ से इस बात को उन्होंने कोई ज़िक्र नहीं किया वो तो इत्तेफ़ाक़ से सैफ बहुत पहले ही से सब बातें जानता था, 

दिन गुज़रते गए फिर मनाली की साइट स्टार्ट हुई सैफ ने बड़ी होशियारी से किसी तरह फिर से फैज़ान को मनाली साइट पर भिजवा दिया जबकि सैफ की कम्पनी के मालिक बिलकुल भी राज़ी नहीं थे सैफ ने बहाना बनाया के शमी को आने में टाइम लगेगा साइट दो तीन दिन में स्टार्ट करनी ज़रूरी है वहां पर कोई ना कोई ज़रूर चाहिए मैं भी नॉएडा छोड़ कर ज्यादा दिन के लिए नहीं जा सकता सैफ ने उनको समझाया, कहने लगे ठीक है जैसा आपको बेहतर लगे सैफ देख लो, 
अब सैफ सिर्फ दो तीन दिन के लिए मनाली जाता था ज्यादातर वक़्त उसको नॉएडा में देना पड़ता था, 

हेलो अब्बू जी मैं ज़ैनब बोल रही हूँ एक दिन ज़ैनब का फ़ोन आया उस वक़्त सैफ मनाली में ही था बल्कि सैफ और फैज़ान एक साथ किचन में खाना बना रहे थे फ़ोन से आवाज़ बाहर निकल रही थी फैज़ान के कानों में पड़ी, उसने सैफ से पुछा ज़ैनब है फ़ोन पर, सैफ ने हाँ कहा, फैज़ान मुस्कुरा दिया बिलकुल एक सगे परिवार जैसा माहौल बना हुवा था सैफ का और अनम के परिवार का,

हाँ बेटा बोलो सैफ ने हँसते हुवे ज़ैनब से पुछा, उधर शायद सादिया और ज़ैनब में किसी चीज़ की हंसी मज़ाक में बहस चल रही थी, ज़ैनब शायद कह रही थी मैं फलां चीज़ अब्बू जी से मँगवाउंगी वो मुझे लाकर देंगे, सैफ को ये बात याद नहीं रही वो किया चीज़ मंगवाना चाहती थी, सादिया उससे मज़ाक में कह रही थी आये बड़े तेरे अब्बू जी नहीं ला कर देंगे, तेरे अब्बू जी हैं तो किया हुवा हमारे भी तो भैया हैं, एक दम खुशनुमा माहौल हुवा करता था, बात का निचोड़ ये है उस वक़्त सैफ चाहे उनके घर की किसी भी लड़की से बातें करता हो और फैज़ान को पता चल जाए तो वो कोई ऐतराज़ नहीं करता था, चेहरे पर तो उसके कोई ऐतराज़ नहीं दिखाई देता था दिल में किया चलता था पता नहीं, 

वक़्त गुज़र रहा था नोक झोंक हंसी मज़ाक लड़ाई झगड़ा प्यार मोहब्बत की बातें चल रहीं थीं, एक दिन पता लगा के अनम ने मनाहल को लुबना और सैफ के निकाह के बारे में बता दिया, सैफ को पहली बार लगा के अनम के घर से हमेशा उसके आगे सिर्फ झूंठ ही परोसा गया था, 

हेलो मैं मनाहल बोल रही हूँ पहली बार मनाहल का फ़ोन सैफ के पास आया था सैफ समझ तो गया था कुछ कुछ के किया होने वाला है लेकिन जो हुवा उसकी सैफ ने सपनो में भी कल्पना नहीं की थी, मानो किसी ने सैफ की पूरी दुनिया उजाड़ दी हो, एक बेशकीमती खज़ाना जिसकी चाहत सैफ बचपन से कर रहा था वो खज़ाना उसके लिए संभाल कर रखा हुवा था लेकिन किसी ने सैफ को पता लगे बगैर पहले ही उस ख़ज़ाने को लूट लिया था, सैफ को ये तक नहीं पता था खज़ाना था भी और लुट भी गया , 

हाँ मनाहल कैसी हो, सैफ बोला मनाहल नै बेरुखी भरे अंदाज़ में जवाब दिया ठीक हूँ आप कैसे हो, मैं भी अल्हम्दुलिल्लाह ठीक हूँ, 
इतना बड़ा कारनामा कर दिया आपने मनाहल कहने लगी, सैफ सकपकाया किया हुवा, हम तो तुम्हे किया समझ रहे थे तुमने ऐसा काम कर दिया एक तंज कसने वाले अंदाज़ में मनाहल सैफ से मुखातिब थी, 
आप तो मुझसे प्यार करते थे फिर ये लुबना कहाँ से बीच में आगे मनाहल ने कहा, सैफ ने सारी बातें मनाहल को बताई और कहा के आपने तो एक दम साफ़ मना कर दिया था मुझसे निकाह करने को, 
बोली नहीं मैंने कभी मना नहीं किया था, मैं तैयार थी, उसके बाद जो जो बातें मनाहल ने सैफ को बताएं सैफ का सर चकरा गया, 
सैफ का भरोसा इस दुनिया में हर किसी से उठ गया, उसने सैफ को बताया मैंने कभी आपके लिए मना नहीं किया बल्कि आपकी वजह से में सालों से जलील हो रही हूँ मुझे घर में ताने दिए जाते हैं के तुझे कोई और नहीं मिला एक शादीशुदा आदमी ही मिला मैं जब भी कभी आपको देखने गली में आती थी हमेशा मुझे जलील किया जाता था, 
और जलील करने वाली कोई और नहीं आपने जिससे निकाह किया है लुबना है, अब उसके लिए आपमें कैसे सुर्खाब के पर लग गए, 
अब उसने आपमें किया देखा अब आप शादीशुदा नहीं रहे किया अब आप कुंवारे हो गए, काटो तो खून नहीं जैसी हालत गई सैफ की, इतना बड़ा धोखा लुबना और अनम ने सैफ के साथ किया, सैफ का बचपन का प्यार दोनों ने मिलकर छीन लिया, 
सोचों सैफ के ऊपर उस वक़्त किया गुज़री होगी, उस दिन उनके घर में मनाहल की किया हैसियत थी ये सैफ को पता चला, मनाहल को वो लोग एक अनाथ लड़की की तरह ट्रीट करते थे, बड़ी मुश्किल से सैफ ने खुद को संभाला, 
सैफ को लगा के हो सकता है लुबना मुझसे प्यार करती होगी और जैसे फिल्मो में दिखाया जाता है एक बहन किस तरह अपने प्यार को पाने के लिए चालाकी से दूसरी लड़की को साइड में कर देती है ऐसे ही लुबना ने किया है, लेकिन अब सैफ खुद को मनाहल का मुज़रिम समझने लगा था सैफ की समझ में नहीं आरहा था के ये हो किया रहा है तेरे साथ,   

अनम के पित्ते में पथरी थी जिसकी वजह से अनम अक्सर बीमार रहती थी, एक दिन अनम के पित्ते की पथरी के ओप्रशन के तारिख रखी गई, हज़ार झगड़ों के बावजूद अनम ने कह दिया के सैफ मैं आपके बगैर ओप्रशन नहीं करवाउंगी जब तक आप मेरे साथ नहीं होंगे मैं ओप्रशन नहीं करवाउंगी, सैफ को बहुत ज़रूरी मीटिंग में जाना था जिस मीटिंग में एक कई करोड़ के काम की बात होनी थी, 
उसी दिन अनम का ओप्रशन था, अनम की ज़िद की वजह से उसने मीटिंग में जाना कैंसिल किया जिसकी वजह से वो काम उनके हाथो में नहीं आया,
सच पूछो तो सैफ को उस दिन अनम पर गुस्सा कम उसकी मासूमियत पर प्यार ज्यादा आया, उसकी ये ज़िद के आपके बगैर में ओप्रशन नहीं करवाउंगी उसके दिल में घर कर गई, लेकिन उन लड़ाई झगड़ों का किया करें जिन का कोई सर पैर ही नहीं था जो बिना मतलब ही दोनों के बीच हो जाया करती थी जिनका दोनों में से किसी के पास कोई इलाज नहीं था, 

इन्ही लड़ाइयों के चलते ही अनम ने मनाहल को निकाह वाली बात बताई थी गुस्से में, किया ही मनहूस दिन था जब अनम की और सैफ की वो लड़ाई हुई थी, जाने अनम ने उस रोज़ सैफ से किया किया कह डाला था, जो गुस्से में सैफ के मुँह से ये निकल गया के तुम क्यों मुझे नोच नोच कर खा रही हो, 

कई बार इंसान कहना कुछ चाहता है निकल उसके मुँह से कुछ और जाता है ऐसा ही कुछ सैफ के मुँह से उस दिन गुस्से में निकला था नोच नोच कर खाना या लूट लूट कर खाना, उस दिन ये बात अनम की अम्मी तक पहुँच गई थी, मगर शाबाश अनम की अम्मी को भी,

रात को जब सैफ अनम के घर पहुंचा तो सब पहले ही तैयार थे सैफ पर चढ़ाई करने को , किस क़दर चालाकी से पूरे घर ने उस वक़्त काम लिया, क्योंकि सैफ कभी कभी उनके घर में अपने पैसों से खाना बनवा देता था, तो अनम की अम्मी ने सैफ से कहा के हमने कभी तुमसे ये तो नहीं कहा के खाना बनवाओ तुम तो अपनी मर्ज़ी से खाना बनवाते थे कितने पैसे लगा दिए होंगे तुमने अब तक खाने में, तुम वो पैसे हमसे ले लो, 
जबकि सैफ उन लोगों पर अपनी औकात से ज्यादा पैसे खर्च कर चूका था अपना और अपने परिवार का पेट काट काट कर एक एक पैसे का हिसाब सैफ के पास है, 
लेकिन आप दिमाग़ देखिये उन लोगों का के गुस्से में पैसे लौटाने चाहे भी तो सिर्फ खाने के, जो के कोई बेगैरत ही होता जो खाने के पैसे वापस मांगता, अगर गुस्सा ही था तो ये पूछना था उनको सैफ से के भैया तेरे अब तक कितने पैसे खर्च हो गए, हमें हसाब बता दे जैसे ही पैसे आएंगे हमारे पास हम तुझे दे देंगे, 

जब के सैफ ने सादिया से खुद कहा था जब उनके मकान के पैसे उनको मिल चुके थे, के सादिया आप लोग अब मुझे मेरे पैसे दे दो मेरा हाथ बहुत टाइट है अब तो आपके पास पैसे भी हैं, नहीं भैया अभी नहीं जब मैं बताउंगी तब पैसे माँगना ऐसे बात खराब हो जाएगी सादिया ने जवाब दिया,
सैफ को लगा के सादिया इस लिए अभी पैसे मांगने को मना कर रही है ताके वो इन सब बातों का हवाला दे कर अपनी अम्मी और अपने भाई को सैफ और लुबना के निकाह के बारे में बता सके और दोनों को साथ में रहने की मंज़ूरी ले सके, लेकिन सैफ ये नहीं जानता था के इसके पीछे कितनी खतरनाक प्लानिंग चल रही है,

फिर एक दिन आया और इन लोगों ने अपनी बहन आयेजा (गुल) को भी ये बात बता दी, सैफ को ये याद नहीं है, के आयेजा को क्यों बताना पड़ा, उन्होंने सैफ को फ़ोन पर ये बात बताई के हमें आयेजा को ये बात बतानी पड़ गई, सैफ थोड़ा परेशान हुवा के अब आयेजा से नज़रे कैसे मिलाएगा, सादिया ने या लुबना ने उसको तसल्ली दी के हमने उसे समझा दिया है वो आपसे फ़ोन पर बात करेगी, 

हेलो: मैं आयेजा बोल रही हूँ अगले दिन आयेजा का फ़ोन सैफ के पास आया, अस्सालमु अलैकुम सैफ ने सलाम किया, वालैकुम अस्सलाम आयेजा ने सलाम का जवाब दिया, 
भइया हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी आप हमारे साथ इतना बड़ा धोखा करोगे हमारी पीठ में खंजर घोंपोगे और ना जाने सैफ को आयेजा ने किया किया कहा, सैफ की आँखों में आंसू आ गए आवाज़ भर्रा गई आयेजा से बात करते हुवे, कहने लगा मैंने तो साफ़ कह दिया था के कोई ज़बरदस्ती नहीं है अगर निकाह नहीं भी होगा तो मैं इसी तरह आपके साथ रहूँगा आपका हर हाल मैं साथ दूंगा, जो भी जवाब उस वक़्त सैफ को सूझा उसने वो जवाब दिया, लेकिन हकीकत तो ये थी जिस तरह की बातें आयेजा ने सैफ से कीं उसके बाद सैफ को कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था,
फिर आयेजा थोड़ा ठंडे होते हुवे बात करने लगी, कहने लगी हमारी अम्मी को पैसे दो ताके हमारा निकाह हो सके, सैफ बोला हाँ इंशा अल्लाह मैं जल्दी ही डेढ़ दो लाख रूपये दूंगा, आयेजा चौंकते हुवे बोली हैं डेढ़ दो लाख में किया होगा, कम से कम चार पांच लाख रूपये तो होने चाहिएं,

सैफ सकपकाया सैफ की समझ में अब आने लगा के तेरा सिर्फ और सिर्फ इस्तेमाल हो रहा है और यहाँ तेरा कोई हमदर्द नहीं तेरे ज़रिये सब लोग अपनी मुश्किलों को हल करना चाहते हैं, 
क्योंकि एक बार सादिया ने भी बातों बातों में सैफ से कह दिया था के हम चाहते तो हम आपसे कहते के हमारे भैया के केस के सारे पैसे आप खर्च करो, झटके झटके पर झटके लग रहे थे सैफ को लेकिन अभी असली झटके लगने बाकी हैं ये तो सिर्फ छोटे झटके हैं,
ठीक है इंशा अल्लाह देखते हैं वक़्त आने पर किया होता है  सैफ ने आयेजा से कहा वक़्त आने दो कितने पैसों तक का इंतज़ाम होता है अल्लाह मालिक है, सैफ ने किसी तरह उसको भी समझाया और खुद को भी समझाया,

इधर एक बार झगड़े में अनम सैफ को चैलेन्ज कर चुकी थी के मैं तुम्हे और लुबना को किसी भी क़ीमत पर एक नहीं होने दूंगी, यहाँ तक के उसने सैफ को अहसान फरामोश तक कह डाला, सैफ की ये समझ में नहीं आ रहा था के अहसान वो उन पर कर रहा है या वो लोग सैफ पर अहसान कर रहे हैं, सोचो उससे शख्स के ऊपर उस वक़्त किया गुज़री होगी जो शख्स अपना जीना मरना सिर्फ उन्ही लोगों के लिए कर चूका था, यहाँ तक के वो ये भी भूल गया था के इन लोगों के आलावा उसका अपना एक परिवार भी है, 

आप खुद अंदाज़ा लगाओ जो इंसान किसी पर अहसान कर रहा हो और उसका अहसान मानने के बजाये वो लोग उसी को अहसान फरामोश कहने लगें, 
और ऐसा भी नहीं के सैफ बुज़दिल इंसान हो भीगी बिल्ली हो, वो तो वक़्त पड़ने पर किसी से भी भिड़ने की ताक़त रखता है, उस फौजी को सैफ ने उनके घर से धक्के मार कर निकाल दिया था जो अपने आपको बदमाश कहता था और इनकी ज़िंदगी हराम किये हुवे था, 
सैफ अल्लाह के आलावा किसी से नहीं डरता था, किया सैफ उनको सबक़ नहीं सिखा सकता जब वो लोग सैफ के साथ खेल रहे थे, लेकिन नहीं सैफ सबकुछ जानते बूझते भी सब्र किये जा रहा था अब सैफ के मन में ये बात भी आती थी के चलो कोई बात नहीं ये अजर ना देंगे अल्लाह तो देगा अल्लाह सब देख रहा है, 

सैफ को बहुत गुस्सा आया इतना गुस्सा आया अहसान फरामोश वाली बात सुन के अगर उस वक़्त अनम उसके सामने होती तो कहीं सैफ उस पर हाथ ना उठा देता, लेकिन गुस्से में सैफ उसको गाली देना चाहता था लेकिन सब्र करते हुवे सैफ ने उसको साली कह डाला क्योंकि वो सच में साली ही तो लगती थी, 

बात लुबना तक पहुंची, हेलो अस्सलामु अलैकुम लुबना ने सैफ को फ़ोन किया, वालैकुम अस्सलाम कैसी हो लुबना सैफ ने जवाब दिया, आपने अनम को गाली दी थी? लुबना बिना खैरियत बताए सैफ से पुछा, हाँ साली तेरा मुँह तोड़ दूंगा कहा था, तो किया आपको अनम ने ये नहीं बताया के मैंने साली क्यों कहा, सैफ ने पुछा, लेकिन उसको इस बात से कोई मतलब नहीं था के अनम ने सैफ को किया कहा किया नहीं कहा, उसको तो बस इस बात से मतलब था के सैफ ने गाली क्यों दी क्योंकि पानी ढलान की तरफ बहना शुरू हो गया था, 
सैफ लगता भी किया था लुबना का वो तो सिर्फ मोहरा था सिर्फ निकाह के कागज़ पर ही तो वो शोहर था दिल से तो वो लुबना का कुछ भी नहीं था सिर्फ ज़रूरत पूरी करने की मशीन था, 

कोशिस करो के सबकुछ टूट जाये मगर वो भरोसा कभी ना टूटे 

जो किसी अपने ने आप पर किया हो, 

लकिन सैफ का भरोसा धीरे धीरे कर के ये लोग तोड़ रहे थे, आयेजा से बात होने के बाद सैफ ने लुबना से बात की,

हेलो, अस्सलामु अलैकुम लुबना ने सलाम किया, वालैकुम अस्सलाम जवाब देते हुवे सैफ बोला कैसी हो, अल्लाह का शुक्र है लुबना ने जवाब दिया, किया मैंने आपसे से साफ़ साफ़ नहीं कहा था के आप पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं आप मुझसे निकाह नहीं भी करोगी तो भी मैं आप लोगों का साथ दूंगा, 
कहा था लुबना ने जवाब दिया, सैफ रुआंसे अल्फ़ाज़ों में बोला फिर ये सब मेरे साथ किया हो रहा है, जिसके जो जी में आ रहा है वो मुझे बोल रहा है, 
जबकि आपने कहा था के हम सब सम्भाल लेंगे तो फिर ये सब क्यों हो रहा है मेरे साथ, क्यों आपने मुझसे निकाह किया बोलो जब मैं बार बार कह रहा था के निकाह की ज़रूरत नहीं है मैं आपका साथ इसी तरह देता रहूंगा, 
मैं डर गई थी कहीं आप हमारा साथ ना छोड़ दो इसलिए निकाह करना ज़रूरी था मैंने अपने भइया की ख़ुशी की खातिर आपसे निकाह किया उधर से लुबना कह रही थी, ये सुनते ही सैफ पर मानो आसमान से बिजली गिर गई हो, 
सैफ को अब तक लग रहा था लुबना उससे प्यार करती है इसलिए मनाहल को साइड में करके खुद सैफ से निकाह किया, 
लेकिन अब सैफ की समझ में आया क्यों उन्होंने सैफ से मनाहल का निकाह नहीं होने दिया, क्योंकि मनाहल सैफ को पसंद करती थी वो भी सैफ से निकाह करना चाहती थी सैफ ही की तरह, इन लोगों को इस बात का डर था अगर सैफ और मनाहल का निकाह हो गया तो फिर मनाहल सैफ की हो जाएगी सैफ से कभी धोखा नहीं करेगी हो सकता है सैफ के साथ उसकी बीवी बन कर घर छोड़ कर चली भी जाए, 
अगर वो सैफ के साथ चली गई तो हमारा किया होगा, इसी लिए इन्होने ये प्लानिंग की, मनाहल को एक तरफ किया लुबना ने और खुद कमान सम्भाली, 
लुबना की ये बातें सुनकर सैफ को लग रहा था के ज़मीन फ़टे और वो उसमें दफन हो जाये, 

एक बार फिर थोड़ा पीछे चलना होगा, बात नोटबंदी के वक़्त की है, नोटबंदी हुई और हर घर नए नोटों के लिए परेशान था, कोई किसी के काम आने को तैयार नहीं था, क़यामत के दिन की तरह नफ्सा नफ़्सी का आलम हो गया था हर शख्स को अपनी ही पड़ी हुई थी, 
उस वक़्त भी सैफ सिर्फ उन्ही के बारे में सोच रहा था उनके घर में सैफ ने नए नोटों की कभी कमी ना आने दी, एक बार को भले ही सैफ के घर में नए नोट ना हों लेकिन अनम के घर में कभी किल्ल्त ना होने दी, डेढ़ दो साल उनके घर का सगा और ज़िम्मेदार और इनके हिसाब से घर का सबसे समझदार बेटा फैज़ान दिल्ली से बाहर मनाली में रहा, 
आठ नौ महीने पुलिस से बचने के लिए और बाद में आठ नौ महीने पैसे कमाने के लिए वो मनाली में रहा, जब तक फैज़ान मनाली में रहा तब तक सैफ उनके घर का सगा बेटा बन कर रहा, कभी सैफ ने उनको ये कमी महसूस ना होने दिया के सैफ उस घर का सगा बेटा नहीं है, 

यहाँ तक के नए नोट तलाश करने के लिए वो एक बार लुबना और मनाहल को लेकर कनाट पैलेस गया एक बार लुबना को अकेले लेकर आर के पुरम गया, सुबह से शाम तक वो दोनों अकेले साथ रहे खुद फैज़ान ने लुबना को सैफ के साथ भेजा, 
अब इसे भरोसा कहें या ज़रूरत कहें फैसला आप पढ़ने वाले करें, लुबना सुबह से शाम तक सैफ के साथ अकेले रही, 
अल्लाह गवाह है मियां बीवी होने के बावजूद सैफ कितनी हिफाज़त से उसको साथ लेकर गया और कितनी हिफाज़त से साथ वापस लेकर आया, बस रास्ते में इंडिया गेट पर मस्जिद में उन्होंने नमाज़ पढ़ने के लिए अपनी गाडी रोकी इसके आलावा बैंक में गाडी रोकने के आलावा सैफ ने कहीं गाडी तक नहीं रोकी एक क़ीमती अमानत की तरह वो लुबना को लेकर गया एक कीमती अमानत की ही तरह उसको वापस लेकर आया,   
नोटबंदी जैसे अफरा तफरी के माहौल में भी सैफ ने उनको अकेला नहीं छोड़ा भले ही अपने अकाउंट से पैसे निकाल निकाल कर उनको देने पड़े हों, 

इस दौरान फैज़ान ने  मनाली में सैफ के साथ दो बहुत ही टुच्ची हरकतें की, 
सैफ ने मनाली के लिए कुछ टाइलें आर्डर की वो आर्डर गलत हो गया, सैफ ने ये बात सिर्फ अनम की बहनों को बताई इसके आलावा किसी को भी ये बात पता नहीं थी क्योंकि सैफ चाहता था किसी को बिना पता लगे इस मसले को हल कर लूँ, लेकिन ये बात सैफ की कंपनी के मालिक तक पहुँच गई अब आप पढ़ने वाले फैसला करें के ये बात कैसे कंपनी के मालिक तक पहुंची होगी, 
एक बार उन्होंने सैफ से कहा के मनाली से हमारे लिए देसी घी लेकर आना, सैफ ने फैज़ान से कहा के चार किलो देसी घी की किसी से बात कर लो दो किलो अपने घर के लिए दो किलो मेरे घर के लिए कोई तीनसौ साढ़े तीनसौ रूपये किलो देसी घी का रेट था उस वक़्त मनाली में, 



फैज़ान  किसी जानने वाले से चार किलो घी ले आया, सैफ ने पुछा पैसे दे दिए या नहीं, फैज़ान ने जवाब दिया के हाँ अपने घी के पैसे दे आया, और मेरे घी के पैसे? सैफ ने पुछा, फैज़ान बोला नहीं तुम्हारे घी के पैसे नहीं दे कर आया, सैफ मुस्कुराया उसको पहले ही मालूम था के ऐसा ही होगा, सैफ ने उसको उसके घी के पैसे भी दिए हुए अपने घी के पैसे भी दिए और कहा के अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं थे तो मुझसे लेकर जाते, ये तुमने अच्छा नहीं किया के सिर्फ अपने घी के पैसे दे कर आए हो, सैफ के इतना करने के बावजूद भी ये लोग ऐसे थे,      

फिर एक दिन ऐसा आया जिसने सैफ की ज़िन्दगी को पूरी तरह बर्बाद करके रख दिया सैफ अपनी सात पुस्तों से कह कर मरेगा, के कभी किसी के बीच में इस तरह मत फंसना अगर किसी की मदद करनी हो और तुम्हारे पास फ़ालतू पैसा पड़ा हो तो सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए उनकी पैसों से मदद कर देना लेकिन कभी उनसे वफ़ा की भलाई की उम्मीद मत लगाना खास तौर से उनपर तो कभी भरोसा मत करना जो तुम्हारे माँ बाप से तो नफरत करते हों और तुमसे मोहब्बत की बातें करते हों, ऐसे लोग तुमसे कभी मोहब्बत नहीं कर सकते वो सिर्फ तुम्हे अपनी ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल करेंगे, ज़रूरत पूरी होते ही आपको दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फैक देंगे, जो लोग तुम्हारे माँ बाप से खुश नहीं उन्हें तुमसे भला किया मतलब, उनका सीधा सीधा मतलब अपना उल्लू सीधा करना होता है,    

सैफ और लुबना की फ़ोन पर बातें हो रही थीं, अस्सलामु अलैकुम, वालैकुम अस्सलाम दुआ सलाम राज़ी ख़ुशी पूछी जाने के बाद सैफ ने लुबना को बताया के यार मेरी बीवी प्रेग्नेंट है, बस ये अल्फ़ाज़ सैफ की ज़िन्दगी को जहन्नुम बना गए,   

ऐसा कैसे हो सकता है तुम तो ये कह रहे थे के मैं अपनी बीवी के साथ नहीं सोता उससे मेरे बिलकुल भी अच्छे ताल्लुकात नहीं हैं मैं उससे बात नहीं करता, तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया है तुमने मुझसे झूंठ कहा है अब मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आउंगी, और ना जाने सैफ की कोई बात सुने बिना लुबना कहती चली गई मानो वो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी, 
सैफ उस वक़्त नोएडा की मस्जिद में था नमाज़ के लिए गया था वो अक्सर आधा पोना घंटा पहले मस्जिद में पहुंच जाता था, 
उस वक़्त सैफ मस्जिद ही में था जब सैफ और लुबना की ये सब बातें चल रही थीं, 
लुबना के ये सब अल्फ़ाज़ सुन कर सैफ को लग रहा था के धरती फट जाये और वो उसमें समा जाए, सैफ ने जो भी बातें लुबना से कहीं थीं वो सच थीं, सैफ अपनी बीवी से बात नहीं करता सच था क्योंकि वो अपने दिल की कोई बात उससे नहीं करता था अपनी ख़ुशी अपनी परेशानी उसके साथ शेयर नहीं करता था, लेकिन वो मियां बीवी थे एक छत के नीचे रहते थे घर ग्रहस्ती की बातें तो करनी ही पड़ती थीं,   
सैफ और उसकी बीवी के अच्छे तालुक नहीं थे ये सच था, ऐसे ताल्लुकों का किया अचार डाला जाए जो सिर्फ मतलब के लिए होते थे मज़बूरी में होते थे, 
सैफ उसके साथ नहीं सोता सच था वो अलग कमरे में सोता था बीवी बच्चों के साथ अलग कमरे में सोती थी, लेकिन अगर दोनों की नफ़्सानी ख्वाहिशात जाग जाएँ तो ये सब होता था क्योंकि निकाह होने के बाद हमबिस्तरी हलाल है, सैफ ना भी चाहता था तब भी उसकी बीवी कभी कभी उसके बिस्तर में आ जाती थी, ये बात सिर्फ शादी शुदा इंसान ही समझ सकता है कुंवारा या कुवारी कभी इस बात को नहीं समझ सकते, 

जैसे अपनी बीवी से नफरत करते करते फैज़ान ने तीन बेटियां पैदा कर दिन जिसमें दो नाजायज़ हैं एक जायज़ है, सैफ के नहीं ये उन्ही लोगों के अल्फ़ाज़ हैं, 
फैज़ान की तीन बेटियां हैं और निकाह के कुछ दिनों बाद ही उन लोगों में अनबन हो गई थी मामला तलाक़ तक जा पहुंचा था फिर भी तीन बेटियां पैदा हुईं, जिसमे से सबसे बड़ी बेटी नाजायज़ है सबसे छोटी बेटी नाजायज़ है, बीच वाली बेटी जायज़ है इनके कहे अनुसार,   
अब बात तो फैज़ान ही ठीक से समझ सकता है ना के, नफरत करते करते तीन बेटियां कैसे हो गईं, क्योंकि शादीशुदा लोगों के मामले अलग ही होते हैं, ये कुंवारा कभी नहीं समझ सकता, हाँ ये बात इनकी बड़ी बहन भी अच्छी तरह समझ सकती है, लेकिन उस बेचारी के कोई औलाद नहीं,
       
खैर ये किसी तरह हो गया सैफ की बीवी प्रेग्नेंट हो गई, दोनों में से किसी को भी ये बच्चा नहीं चाहिए था, सैफ चाहता तो ये बात लुबना को कभी ना बताता और लुबना को ये बात कभी ना पता चलती लेकिन क्योंकि सैफ ने उसको बच्चा गिराने की ऐसी दवा खिलाई थी जो के तीन से चार महीने तक की प्रेग्नेंसी गिरा देती है, लेकिन सैफ अपने रिश्ते को सच्चाई की बुनियाद पर रखना चाहता था इसलिए लुबना से घर की कोई बात ना छिपाता था, लेकिन लेकिन उस बेवक़ूफ़ को ये नहीं पता था के झूंठ बोलो या सच जिनका आपसे मतलब निकल चूका है जिनको अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं है जो आपको अब छोड़ना ही चाहते हैं , उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता,  
इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी जिस्मानी ख्वाहिशात होती है चाहे कितना बड़ा आलिम हो मुल्लाजी हो मौलवी हो बीवी से बने या ना बने मगर जब बात जिस्मानी ख्वाहिश की आती है तो वो हथियार डाल ही देता है, हाँ बस रिश्ता हलाल होना चाहिए, लोग तो हराम भी नहीं देखते,   
ऐसा लग रहा था मानो वो लोग ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे,       

  कुछ इस तरह खूबसूरत रिश्ते टूट जाया करते हैं 
दिल भर जाता है तो लोग रूठ जाया___करते हैं   

ऐसा लग रहा था मानो वो लोग ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे,सैफ लुबना को समझाता रहा उसके आगे गिड़गिड़ाता रहा उसको यकीन दिलाता रहा के मुझे इस बच्चे की ख्वाहिश नहीं है लेकिब लुबना उसकी एक बात सुनने को तैयार नहीं थी, तुम झूठे हो दगाबाज़ हो धोका दिया है तुमने मुझे बस ऐसे ही अल्फ़ाज़ों से लुबना सैफ को नवाज़ती रही, उसके कहने के मतलब ये था के तुमने अपनी बीवी के साथ हमबिस्तरी क्यों की जब मुझसे निकाह कर चुके हो, अब कोई उससे ये पूछे के तुम सैफ को हाथ लगाने नहीं देती खुद सैफ को छूती नहीं, जब सैफ के अरमान जागेंगे और बीवी उसके पास है तो ये तो होना ही है,      

अब लुबना सैफ से बात बात पर झगड़ा करने लगी, और एक बार तो झगड़ा इतना बढ़ गया के सैफ मोटोरोला का 18 हज़ार कीमत वाला एक फ़ोन लाया था फ़ोन लाये हुवे ठीक से एक हफ्ता भी नहीं गुज़रा था के लुबना से बात करते हुवे लुबना ने सैफ को इतना गुस्सा दिला दिया के सैफ ने फ़ोन पटक दिया और फ़ोन किसी काबिल ना रहा आज भी सैफ के घर कबाड़ में वो फ़ोन पड़ा होगा, बड़ी चाहतों से सैफ ने वो फ़ोन खरीदा था,

सैफ ने सबकुछ कहा था उससे बीवी से बनती नहीं है बीवी से झगड़ा रहता है बीवी के पास सोता नहीं है लेकिन ये बात सैफ ने कभी नहीं कही उससे के वो बीवी के साथ जिस्मानी ताल्लुक नहीं बनाता, अगर जिस्मानी ताल्लुक ना बनाता होता तो सैफ के तीन बच्चे कहाँ से आ गये, किया लुबना में इतनी भी अक़्ल नहीं थी, नहीं ऐसी बात थी ही नहीं क्योंकि लुबना को लग रहा था के सैफ उसे दीन पर चलाएगा बुर्का पहनायेगा नमाज़ पढ़ने को कहेगा फिल्म दिखाने नहीं ले जायेगा, पार्क में नहीं घुमायेगा, आइसक्रीम खिलाने नहीं ले जायेगा वक़्त से पहले बुढ़िया बना कर रखेगा, ये सब बातें लुबना के दिमाग़ में थीं, 

तभी तो वो लोग सैफ को मस्जिद में ले गए थे, सादिया और लुबना सैफ से एक दिन बोले थोड़ा टाइम निकालो किसी दिन किसी मस्जिद में चलेंगे कुछ बात करनी है, सैफ हैरत में पद गया ऐसी कौनसी बात है जो सिर्फ मस्जिद में ही होगी घर पे या कहीं और नहीं, ठीक है चलेंगे सैफ ने हाँ कही, 

सैफ इतना तो समझ चूका था के शायद मस्जिद में उसे इस लिए चलने को कह रहे हैं के मस्जिद में झूठ नहीं बोलै जाते, शायद वो यही नहीं जानते जिसने झूठ बोलना होता है वो मस्जिद में भी झूठ बोलेगा और जो झूठ से बचता है उसके लिए हर जगह मस्जिद है, 

सैफ कभी जानबूझ कर झूठ नहीं बोलता गाहे बगाहे कभी गलती से काम वाम के चक्कर में झुठ निकल जाए या किसी की भलाई के लिए झुठ निकल जाए मुँह से तो वो बात अलग है, 

लेकिन इन लोगों के साथ एक समस्या ये थी अगर इन्हे किसी बात पर यकीन नहीं करना तो फिर करना ही नहीं है चाहे आसमान से अल्लाह फरिश्ता ही इनके बीच में उतार दे, 

अगर एक बार इनके दिमाग़ में कोई बात घर कर गई तो दुनिया में कोई ऐसी ताक़त नहीं जो उस बात को बदल दे, अगर इनसे कोई गलती हो जाए और ये बात इनकी समझ में आ जाये के हाँ ये हमारी गलती है, तो अब ये बात किसी पर ज़ाहिर नहीं करेंगे के हम से गलती हुई, अब पता है किया करेंगे, अब पूरा घर बैठ कर मशवरा करेगा के हमसे ये गलती हुई लेकिन जिसके लिए गलती हुई उसको पता नहीं चलने देना के ये हमारी गलती है, 

मशवरे में ये तय होगा के जैसे ही ये आता है इस पर तोहमत लगाना शुरू कर दो कोई भी तोहमत लगाओ इतनी तोहमत लगाओ के ये इंसान हमारी गलती के बारे में बात करना भूल जाये बस अपने बचाओ में लगा रहे,    ,  

और मज़े की बात तो ये है के आपस में इनकी चाहे कितनी लड़ाई हो कितनी नाइत्तफाकी हो मगर जब सैफ को बुरा साबित करने बात आती थी तो पूरा घर एक हो जाता था,  

एक बार अनम अपने अब्बा के साथ बदतमीज़ी कर रही थी, सैफ को ये बात अच्छी नहीं लगी सैफ कहने लगा के ये बात याद रखना सिर्फ माँ के पैरों तले जन्नत नहीं होती बाप भी जन्नत का दरवाज़ा होता है, ये बात इनको इतनी बुरी लगी के पूरा घर सैफ के खिलाफ हो गया, पूरा घर मिलकर अनम की पैरवी करने लगा यहाँ तक के इतनी पैरवी की के पूरा घर अपने अब्बा जी को गलत साबित करने लगा, मनाहल रोते रोते कहने लगी तुम्हे नहीं पता हमारे अब्बा कैसे हैं कितने ज़ालिम हैं इन्होने हमारे भैया सबसे बड़े भइया को इतना मारा है इतना मारा है के उनका दिमाग़ चल गया, हमारे भैया हमेशा ऐसे नहीं थे, ये तो हमारे अब्बा की वजह से ऐसे हो गए हैं, इन्हे ये नहीं पता के ऐसे भइया का किया अचार डालना है जो घर का मर्द होने के बावजूद बल्कि सबसे बड़ा होने के बावजूद घर की ताक़त बनने की बजाये घर की कमज़ोरी बना हुवा है, 

भाई तो बाप की तरह होता है, एक वो सबसे छोटा भइया है जिसे आजतक ये लोग बच्चा समझते हैं जबकि उस सबसे छोटे बच्चे की उम्र आज कम से कम, अगर वो दस साल का भी था जब ये लोग दिल्ली आये थे तो आप पढ़ने वाले हिसाब लगा लो के कितनी उम्र इस वक़्त उसकी हो रही होगी, आज 27 साल के करीब इन्हे दिल्ली आये हुवे हो गए 37 साल कम से कम उसकी उम्र है 37 साल के आदमी की शादी अगर टाइम पर हो जाये तो 16 17 साल के बच्चे होते हैं,       

लेकिन वो आज भी इनकी नज़र में बच्चा है, इन्हे बर्बाद करने के लिए बाहर से कोई नहीं आया बस आपस ही में इन्होने खुद को बर्बाद कर लिया है,     

खैर ये तीनो लोग मस्जिद गए, लुबना सादिया और सैफ, मस्जिद में इनकी बातें हुईं, ना जाने इनके दिमाग़ में किया चलने लगा था अपने भैया का केस ख़त्म होते ही, 
लुबना कहने लगीं के आपने मुझसे निकाह क्यों किया, सैफ ने वही बातें बातें जो हमेशा उनको बताता चला आया था, हालांकि असली बात सैफ ने उन्हें अभी भी नहीं बताई कहीं उनके दिल पर ज़ोर ना पड़े लेकिन झूठ एक नहीं बोलै सैफ ने उनसे, क्योंकि जो सैफ ने उन्हें बताया ये भी सच था, सैफ ने उनसे नहीं बताया के असल में तो ये सब तुम्हारा प्लान था मनाहल को एक साइड करके मेरी ज़िन्दगी को जहन्नुम बनाने का
दरअसल ये पहले जिस मस्जिद में जा कर बैठे थे तो वहां लोगों ने इनको बैठने नहीं दिया किनके मस्जिद में औरतों का जाना मना है, 
ये लोग दूसरी मस्जिद में गए वहां पर ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी और बाद में ये लोग बैठे, 
अब लुबना और सादिया अपने असली मक़सद पर आये, 
इन्होने सैफ से कहा के लुबना दीन पर नहीं चल सकती आपने तो सबकुछ देख लिया अभी लुबना ने कुछ भी नहीं देखा, 
पता नहीं दीन पर ना चल कर वो किया किया देखना चाहती थो जो दीन पर चल कर नहीं देख सकती थी, उसके बाद इन्होने सैफ के ऊपर अचानक आसमान गिरा दिया, दोनों कहने लगीं आप तलाक़ दे दो, 
टप टप टप सैफ की आँखों से ये बात सुनते ही आंसू चलने लगे, सैफ को लगा के तेरा इस दुनिया में कोई हमदर्द नहीं कोई चाहने वाला नहीं, ये लोग बस तुझे इस्तेमाल कर रहे थे अब इन्हे तेरी ज़रूरत नहीं,
किताबों की अहमियत अपनी जगह साहब 
सबक़ वही याद रहता है जो वक़्त और लोग 
सिखा देते हैं, 
#सैफ 

उस घर में शायद सैफ से सच्ची मोहब्बत करने वाली दो लड़कियां ही थीं अनम और मनाहल, लेकिन अनम अपने आलावा किसी और की सुनने को तैयार नहीं होती थी जो उसने कर दिया सही है पत्थर की लकीर है, मनाहल के साथ घर में सौतेला वियहवार होता था और वैसे भी लुबना ने उन दोनों के बीच में एक बहुत गहरी खाई खोद दी थी जो शायद ज़िन्दगी भर ना भर पाए, 
अब तक सैफ को लग रहा था के किस्मत ने उसे इनके क़रीब आने का मौका दिया है, लेकिन सैफ गलत था ये मौका क़िसमत ने उसे नहीं दिया था ये पूरी प्लानिंग से हुवा था, इसमें अनम का पूरा परिवार शामिल था, हर बात इनकी पहले से तय थी हर क़दम इनका उठाया हुवा सोचा समझा क़दम था, ऐसा लगता है ये सैफ की मज़बूरी जानते थे सैफ की हर कमज़ोरी से वाकिफ थे, इसलिए इनके घर से सैफ को दूसरी शादी करने की सलाह मिलती थी, ये सैफ के लिए बिछाया हुवा एक खूबसूरत जाल था,  
ये अच्छी तरह जानते थे सैफ के साथ कब किया करना है, 

इन्होने सैफ को मस्जिद में बिठा कर तलाक़ लेने की बहुत कोशिस कीं लेकिन सैफ ने साफ़ अल्फ़ाज़ों में मना कर दिया के मैं तलाक़ नहीं दूंगा, वक़्त आने दो देखते हैं किया होता है, वक़्त पर जो बेहतर होगा वो करेंगे,

फिर कुछ दिन गुज़रे लुबना ने सैफ को अपने घर बुलाया और फिर वही बात दोहराई, साथ में सादिया ने एक नई बात और जोड़ी, सादिया ने फिर पुछा आपने हमारे घर में निकाह क्यों किया, सैफ ने फिर से उनका दिल बहलाने के लिए वही बात दोहराई के ताके लोगों का मुँह बंद हो जाए, हालांकि सैफ अब पूरी तरह समझ चूका था निकाह करना सैफ की सिर्फ ख्वाहिश थी लेकिन अनम के परिवार की चाल थी, लेकिन अब ये लोग क्यों पीछे हट रहें हैं आगे इसकी वजह भी लिखूंगा, 
सादिया कहने लगी के तुम झूठ बोल रहे हो किया तुम मुझसे निकाह कर लेते अगर मैं कहती, सैफ ने कहा आप कहती तो आपसे निकाह कर लेता सिर्फ उसका दिल बहलाने के लिए, हालांकि दोनों जानते थे सादिया सैफ से बहुत बड़ी है लेकिन अगर बात आती तो सैफ ये भी कर लेता, 
इन्होने अपने घर में सैफ को बिठा कर उस दिन इतना टॉर्चर किया के सैफ की उन्ही के घर तबियत ख़राब हो गई सैफ को ठंडे पसीने आने लगे हर बात खुल कर और बुलंद आवाज़ में हो रही थी ऐसा लगता था के उन्हें किसी का डर नहीं था, और मज़े की बात देखो इतनी देर चीख चिल्लाहट के साथ बात हुई सैफ की तबियत खराब हुई काफी देर ये लोग सैफ की देखभाल में लगे रहे लेकिन ना तो इनकी अम्मी ऊपर से उतर कर आई ना अब्बा जी और ना कोई सा भाई,. पढ़ने वाले समझ रहे होंगे के किया कहानी थी, क्योंकि घर का हर बंदा हर बात जानता था और ये सब जो हो रहा था या अब तक जो भी हुवा था वो पूरे घर की सहमति से ही हुवा था,

आज जब सैफ ये कहानी लिख रहा है उसकी आँखे आगे गुज़रा हुवा हर मंज़र एक दम ताज़ा सा लग रहा है, वो देख रहा है किस तरह उसके घर में जाते ही पूरा परिवार खिल उठता था, वो देख रहा है के किस तरह सैफ के पहुँचते ही उसके लिए पानी आता था, वो देख रहा है थोड़ी देर बैठने के बाद ही कभी कोई सी बहन कभी कोई सी बहन चाय लेकर आती थी, वो देख रहा है के कैसे उसका वेलकम उस घर में दामाद की तरह होता था, वो देख रहा है, वो देख रहा के किस तरह सैफ के जिस मेम्बर से भी नाराज़ हो जाता था वही मेम्बर अपनी गलती मान कर सैफ को हर हाल में मनाता था सिवाए अनम के, चाहे उनकी ही क्यों ना हो वो कहती थीं जब भी सैफ नाराज़ हो जाता था के तू मेरे फैज़ान की तरह है, ऐसे हमसे नाराज़ ना हुवा कर अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो भुला दे, माफ़ कर दे, और सैफ मान जाता था
वो देख रहा है के अगर एक दिन भी सैफ उनके घर नहीं जाता था तो पूरा घर परेशान हो जाता था, वो देख रहा है के कैसे सादिया से एक बार फ़ोन पर उससे कहा जब वो एक रात उनके घर नहीं गया के आप कल क्यों नहीं आये जब सैफ ने कहा के मेरी बीवी से मेरा झगड़ा हुवा था मैं इसकी वजह से नहीं आया तो सादिया ने ये कहा था के ऐसे अगर आप अपनी बीवी से डरोगे तो वो तो आपको हमसे मिलने ही नहीं देगी, वो तो चाहती ही यहीहै,
आप उससे डर कर हमसे मिलना मत छोड़ो , वो दे देख रहा है के कैसे उसकी गाडी का होरन सुनते ही कोई ना कोई सी लड़की तुरंत उसको देखने के लिए अपने छज्जे पर आती थी कोई आये ना आये लेकिन ज़ैनब तो हर हाल में आती थी,
वो देख रहा है के जब सैफ का सुबह को साइट पर जाने का टाइम होता था तो दो तीन लड़की उसको देखने के लिए छज्जे पर खड़ी रहतीं थी, वो बात अलग है के आज अगर गलती से कोई छज्जे पर खड़ी हो और सैफ को निकलता बड़ता देख लें तो तुरंत घर के अंदर चली जाती है,

उन्होंने पहले धीरे धीरे सैफ को मैसेज करना कम किये उसके बाद धीरे धीरे फ़ोन पर बातें करना कम कर दीं , फिर तलाक़ लेने के लिए ज़ोर लगाना शुरू किया, यहाँ तक के धीरे धीरे सैफ के घर में आने के बाद उनका रवैया बदलना शुरू हुवा पहले जो चाय दस मिनट में आ जाती थी फिर वही चाय आधा घंटा एक घंटे में आने लगी, पहले बिना नागा किये सैफ के लिए चाय आती थी बाद में कभी कभी चाय आती ही नहीं थी ये सब होने लगा, पहले सैफ को कभी भी पानी मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ी अब बाद में सैफ को मुँह से पानी मांगना पड़ने लगा,


वक़्त मौसम और लोग सब की एक ही फितरत होती है 
कौन कब कहाँ बदल जाए मालूम नहीं पड़ता  
#सैफ 


ये सब क्यों हुवा ये जानने के लिए एक बार फिर से हम थोड़ा पीछे चलेंगे, 
मनाली की साइट फिर से ख़त्म हो गई कहने का मतलब है मनाली का दूसरा वाला काम भी ख़त्म हो गया इसलिए वहां से पैकअप करके सब लोग दिल्ली आ गये, फैज़ान भी दिल्ली आ गया अब फैज़ान को कहाँ काम पर लगाया जाए ये मसला सैफ के सामने मुँह फाड़े खड़ा था क्योंकि सैफ की कंपनी के मालिक फैज़ान को पहले ही मना कर चुके थे वो तो सैफ ने किसी तरह चालाकी और खुशामंद दरामंद से रखवा लिया था, लेकिन अब बार समस्या ये थी के नोएडा का काम लगभग खत्म पे चल रहा था और दूसरी नई साइट थी नहीं, और सबसे बड़ी बात ये थी के वो फैज़ान को काम पर रखना ही नहीं चाहते थे क्योंकि अब मैं इसकी खुल कर वजह लिखूंगा, नॉर्मली साइट पर काम कराने वाले सुपरवाइज़र दस से बारह हज़ार की तन्खवाह पर मिल जाते हैं, लेकिन वो फुल ग्रेजुवेट होते हैं डिग्री लिए हुवे होते हैं साइट की पूरी टैक्नीक से वाकिफ होते हैं मेल पढ़ते हैं मेल लिखते हैं सब काम समझते हैं कहने का मतलब ये है पूरी तरह पढ़े लिखे होते हैं,     
फैज़ान को भी ये लोग बारह हज़ार रूपये देते थे लेकिन फैज़ान वाह्टसप भी ठीक से चलाना नहीं जानता था इंग्लिश के आसपास नहीं था लकड़ी के काम को छोड़ कर सिविल के काम का ज़रा भी तजुर्बा नहीं था, इसके बावजूद भी उन्होंने सिर्फ सैफ की खातिर उसको काम पर रखा हुवा था, ये सिर्फ सैफ की इज़्ज़त की खातिर था सैफ की ख़ुशी की खातिर था, लेकिन कोई किसी की खातिर कब तक उस काम को करे जिससे वो खुश भी ना हो और उस काम में उसे नुकसान भी हो,    
उन्होंने सैफ से साफ साफ अल्फ़ाज़ों में बोल दिया के आप फैज़ान को बोलो के अपने लिए कहीं और नौकरी का बंदोबस्त कर ले, सैफ के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई उनकी ये बात सुनते ही क्योंकि सैफ जानता है अगर अब अनम के परिवार का और उसका जो भी थोड़ा बहुत ताल्लुक या रिश्ता बचा हुवा है सिर्फ फैज़ान की नौकरी की वजह से बचा हुवा है वरना इस रिश्ते में अब कुछ नहीं बचा था, सैफ ने उनको समझाने की कोशिस की लेकिन कोई फायदा नहीं हुवा, ज्यादा ज़ोर सैफ इसलिए नहीं दे पाया क्योंकि सैफ के बॉस को पहले ही से शक हो चूका था के सैफ के फैज़ान की किसी बहन से कोई ताल्लुक है, क्योंकि वो अक्सर सैफ से कहते रहते थे सैफ आप उन लोगों से थोड़ी दूरी बना कर रखो, 
 इस मौके पर सैफ पूरी तरह अपने आपको बेबस महूसस कर रहा था क्योंकि सैफ अनम के परिवार से चार पांच सालों तक बहुत करीब रहा था वो उनके घर के हर मेम्बर की आदत से अच्छी तरह वाकिफ हो चूका था वो जानता था अब आगे किया होने वाला है, 
वो जानता था इस बात का साइड इफ्फेक्ट किया निकलेगा वो लाख यकीन दिलाएगा के उसकी नौकरी हटवाने में मेरा कोई हाथ नहीं लेकिन वो अपने आप को कभी बेकुसूर साबित नहीं कर पायेगा,
सैफ ने अपने बॉस से कहा मैं फैज़ान से नहीं मना कर पाउँगा आप खुद ही उसको मना कर दो, उन्होंने अपने साले से फैज़ान को मना करने के लिए कहा,   
हालांकि सैफ जानता था के इससे कुछ बदलने वाला नहीं मूसल तेरे ही सर पे पड़ेगा इसी लिए सैफ जानबूझ कर उनके सामने अनजान बना जब रात को वो उनके घर गया, जैसे सैफ को फैज़ान की नौकरी के बारे में कुछ पता नहीं है,
लेकिन उस रात सैफ के साथ जो अनम के घर में हुवा उसका तो तसव्वुर भी सैफ ने नहीं किया था,    

मेहनत से उठा हूं, मेहनत का दर्द जानता हूं,आसमां से ज्यादा जमीन की कद्र जानता हूं,
लचीला पेड़ था, जो झेल गया आंधियां , मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूं
#सैफ

सैफ उस रोज रात को रोजाना की तरह उनके घर पहुंचा हालंकि सैफ का उस दिन उनके घर जाने मन नहीं था लेकिन नहीं जाता तो ना जाने किया किया समझा जाता, और जाने के बाद किया होगा सैफ ये भी जानता था, लेकिन ऐसा होगा जो हुवा, ये सैफ नहीं जानता था, 
घर पंहुचा रोजाना की तरह दुआ सलाम हुई, अब जो फैज़ान की अम्मी ने सैफ के सामने उन लोगों को बद्दुआ देना शुरू की अल्लाह की पनाह है, सैफ को बताया गया के ऐसे ऐसे उनका मैसेज आया है उन्होंने कहीं और काम ढूंढ़ने के लिए बोला है, सैफ सबकुछ जानते हुवे अनजान बनने की कोशिश करता रहा हालाँकि सैफ जानता था के अगर वाकई में भी उसे इस बात का पता ना होता के उन्होंने फैज़ान से काम को मना कर दिया है वो तब भी सैफ का यकीन करने वाले नहीं थे, इतना तो सैफ उन लोगों के बीच रह कर उनको समझ चूका था, लेकिन बात उससे भी आगे निकल गई थी उन्होंने ये अंदाज़ा लगा रखा था के फैज़ान को काम से निकलवाने में सैफ का हाथ है, ये बात उन्ही के घर की एक लड़की ने सैफ को बताई थी बाद में, 
फैज़ान की अम्मी बद्दुआ देती रहीं लगातार, सैफ को लग रहा था जैसे ये बद्दुआएं तुझे दी जा रहीं हैं क्योंकि सैफ के बॉस तो वहां बैठ कर सुन नहीं रहे थे, 
वो कहती जा रहीं थी के एक मेरे बच्चे के काम करने से उनपर फर्क पड़ रहा था औरों के काम करने से कोई फर्क नहीं पड़ा, सैफ की जब बर्दास्त से बाहर उनके ताने होने लगें तो सैफ को गुस्सा आ गया क्योंकि सैफ पहले ही बहुत गुस्से वाला हो चूका था, इन लोगों ने सैफ को इतना सताया हुवा था के अब सैफ से ज़रा बात बर्दास्त नहीं होती थी उसको ज़रा ज़रा सी बातों पर गुस्सा आने लगा था, 
यहाँ तक के इसका इफेक्ट सैफ के दिल पर होने लगा था, जिसकी वजह से सैफ मौत के मुँह से लौट कर आ चूका है, ये किस्सा भी आगे आएगा,        

बड़ा हूँ मगर फिर से बच्चा होना चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
कभी इसके लिए जिया कभी उसके लिए जिया 
याद नहीं मुझे मैं कब अपने लिए जिया 
बुरा ना मानों मैं थोड़ा सा अपने लिए जीना चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
माना के दूसरों के लिए जीने वालों को जन्नत मिलेगी 
यहाँ ना खिल सकी जो अरमानों की कली वो क़यामत में खिलेगी 
बताओ किया है बुरा जो थोड़ी सी जन्नत दुनिया में चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
था शरारती ज्यादा प्यार माँ बाप का बचपन में पा ना सका 
थोड़ी ग़ुरबत भी थी इसलिए ज्यादा मुस्कुरा ना सका 
मुझे रुलाने वालों मैं भी अब खूब हंसना चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
मैं जानता हूँ मैं बात बात पे रो देता हूँ 
इसी रोने की वजह से अपनी कदर खो देता हूँ 
लेकिन मैं कब किसी और को रुलाना चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
हूँ दिल का सच्चा इसी लिए चुटकिओं में दिल भर आता है 
ज़ुल्म सह लेता है ये दिल ज़ुल्म मगर नहीं कर पाता है 
अब अपने आपको ज़ुल्मों से बचाना चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
झूठे ही सही मगर वो सच्चों से अच्छे दिन थे 
थोड़े ही थे मगर ज्यादा से नहीं ज़रा कम थे
उन्ही झूठे दिनों में फिर से लौट जाना चाहता हूँ  
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
सुनते ही मेरी गाडी के होरन को वो सब दौड़े आते थे 
मतलब ही के लिए सही मुझे देख कर सब मुस्कराते थे 
उसी मतलबी दुनिया में फिर जाना चाहता हूँ
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
बड़ा हूँ मगर फिर से बच्चा होना चाहता हूँ 
मैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ
#सैफ 

सैफ कहने लगा के आप तो सीधा सीधा मुझे कह रही हैं ऐसा लग रहा है आप ये कहना चाहती हैं के फैज़ान को ही क्यों निकाला मुझे भी क्यों ना निकला आपके हिसाब से मुझे भी निकाल देना चाहिए था नौकरी से आपको सब्र आ जाता, वो मुँह बिगाड़ कर कहने लगीं के मैं तुझे क्यों कहूँगी, अगर उनके दिल में सैफ की तरफ से बुरी सोच नहीं थी तो तुरंत कहतीं के नहीं बेटा मैं तुझे क्यों कहूँगी, लेकिन उन्होंने एक बार भी सैफ को तसल्ली दिलाने जैसे कोई बात नहीं की, उनको तो बस इस बात का गुस्सा था के सैफ को कियों नहीं निकाला क्योंकि कोई और तो सुनने वाला था नहीं वहां, 
वो सबकुछ भूल कर उस रात बात कर रहीं थीं वो भूल चुकीं थी के मैं सैफ से कहती थीं के तू मेरे बेटे जैसा है, वो भूल चुकी थीं के सैफ ने हमारे लिए किया नहीं किया, 
उनको तो ये तक नहीं पता था के तुम लोगों की वजह से सैफ के परिवार वालों ने सैफ के साथ किया किया हंगामा किया हुवा है सैफ की बीवी ने कैसे उसकी ज़िंदगी अज़ाब की हुई है, 
जब तक सबकुछ ठीक रहता था तब तक इनके मन माफिक बातें होती रहती थीं चाहे सही हो चाहे गलत, जैसे ही ऐसी कोई बात होती थी जो इनके मन को माफिक नहीं आती थी सब कुछ बदल जाता था चाहे वो बात क़ुरान-ओ-हदीस के मुताबिक़ सही ही क्यों ना हो, 

मोहब्बत थी तो हार मान ली 
ज़िद होती तो बर्बाद कर देता 

#सैफ, 
www.lekhta.com 

ये लोग ये भूल गए थे के सैफ भले ही कंपनी मालिक के कितना ही क़रीब क्यों ना था लेकिन था तो एक स्टाफ ही, आजकल खून के रिश्ते बिना फायदे के एक दुसरे के काम नहीं आते उनका रिश्ता तो फिर भी नौकर और मालिक का था, सैफ की कम्पनी के मालिक क्यों सैफ को इतना चाहते थे यहाँ ये बात लिखना भी ज़रूरी है, 

सैफ जॉब के लिए परेशान था धीरे धीरे जो पैसे सैफ के पास थे वो खत्म होने लगे थे क्योंकि सैफ उस वक़्त किराये के मकान में रहता था उसका था, कई जगह इंटरवियु देकर आ चूका था कहीं बात नहीं बन रही थी, 
सैफ इंटरनेट पर जॉब तलाश कर रहा था, तभी एक हैदराबाद की कंपनी पर उसकी नज़र पड़ी, उसने तुरंत अपना रिज्यूम उस कंपनी को मेल कर दिया, थोड़ी देर बाद ही कंपनी के मालिक का सैफ के पास फ़ोन आया, बातचीत हुई उन्होंने कहा ,मैं आपको शाम तक बताता हूँ, 
शाम को दोबारा बात हुई उन्होंने सैफ से पुछा आपको हमारा नंबर कहाँ से मिला सैफ ने जवाब दिया के इंटरनेट से आपका नंबर मिला, 
ठीक है वो बोले सेलरी वगैरह की बात तय हुई आप 1 अप्रेल से ज्वाइन कर सकते 1 अप्रैल 2014 से मनाली में हमारी साइट चल रही है, आप हमारी मनाली साइट के इंचार्ज हो, 
ये सारी बातें सैफ ने अनम के घर पर बताईं फैज़ान भी था, सब लोग बहुत खुश हुवे चलो अच्छा है नौकरी लग गई सब कहने लगे, दो दिन बाद सैफ को मनाली जाना था, 31 मार्च को सैफ मनाली के लिए निकल गया, ये सब जितना आसान दिख रहा था उतना आसान भी नहीं था, क्योंकि सैफ पहली बार मनाली जा रहा था वो गलत बस में बैठ गया, नॉर्मली शाम को बस में बैठो तो अगले दिन सुबह सुबह बस मनाली उतार देती है, लेकिन सैफ जिस बस में बैठा था वो सरकारी बस थी, उसने सैफ को अगले दिन सुबह सुबह नहीं शाम को पांच बजे के आसपास मनाली उतारा, उधर सैफ के बॉस सैफ का इंतज़ार बेसब्री से कर रहे हैं,   
सैफ मनाली पहुंचा ठण्ड के मारे बुरा हाल अप्रैल के महीने में दिल्ली में पसीने टपकते हैं, वहां ठंड होगी ये तो सैफ को मालूम था मगर इतनी ठंड होगी ये सैफ ने नहीं सोचा था उसकी बीवी ने भी नहीं सोचा होगा इसीलिए वो सैफ के बैग में जैकेट रखना भूल गई हालंकि सैफ ने बोला भी था के जैकेट ज़रूर रख देना, 
बॉस  सैफ का अपने होटल के बाहर ही रोड पर इंतज़ार कर रहे थे दुआ सलाम हुई हाथ मिलाया दोनों होटल के रूम में चले गए, उस वक़्त क्योंकि नई नई साइट शुरू हुई थी फ्लैट नहीं लिया था होटल ही में रह रहे थे वो लोग,
खाना वगैरह से नमाज़ वगैरा से ये लोग फारिग हुवे और बातों का दौर शुरू हो गया, सैफ के बॉस को बातें करनी की बहुत आदत थी, उन्होंने सैफ को साइट के बारे में भी समझाया उसके बाद ये लोग सो गए सुबह सैफ फजिर के टाइम उठा अज़ान दे कर नमाज़ पढ़ने खड़ा हो गया रूम ही में 


अज़ान की आवाज़ से सैफ के बॉस की आँख खुल गई,  जैसे ही सैफ ने सलाम फेरा नमाज़ से फारिग हुवा सैफ के बॉस बोल उठे आज मेरी तबियत खुश हो गई आपकी अज़ान की आवाज़ से अब मुझे साइट की कोई चिंता नहीं है, 
दरअसल ये लोग हैदराबाद के रहने वाले थे पहली बार दिल्ली और मनाली की तरफ काम करने आये थे नया नया काम था इन लोगों का पहले छोटे छोटे काम करते थे बैंक के एटीएम के छोटे छोटे केबिन बनाते थे, इतनी बड़ी साइट पहली बार पकड़ी थी, साफ़ साफ़ अल्फ़ाज़ों में लिखूं तो ये लोग डर रहे थे के यहाँ पर किस तरह हम काम कर पाएंगे सैफ ने पहुंच कर इनकी हिम्मत बधाई इनको हिम्मत दिलाई के आप बेफिक्र रहो अल्लाह सब ठीक करेगा मुझे अल्हम्दुलिल्लाह इससे भी बड़ी बड़ी साइट्स का तजुर्बा है,

दो तीन दिन में सैफ ने पूरी साईट अपने अंडर में कर ली सैफ के बॉस बेफ़िक्र हो कर वापस हैदराबाद चले गए, बहुत जल्दी सैफ हैदराबाद तक हैदराबाद वालों में उन लोगों में भी मशहूर हो गया जिन लोगों ने सैफ को देखा भी नहीं था बिना देखे सैफ के बॉस का हर मिलने हर रिश्तेदार सैफ को जानता था, सैफ के बॉस ने सैफ की इतनी तारीफें की के गोया नौज़बिललाह उन्होंने सैफ जैसा कोई लड़का देखा ही ना हो, लड़का इसलिए लिख रहा हूँ उस वक़्त सैफ लड़का ही दीखता था वो तो अब इतना सताया जाने के बाद वो आदमी लगने लगा,
और हुवा भी कुछ ऐसा ही था मानो उनका अच्छा नसीब सिर्फ सैफ के उनकी ज़िन्दगी में आने कर था, सैफ और सैफ के बॉस का साथ 6 साल रहा 6 सालों में सैफ ने अपने बॉस को इतना पैसा कमा कर दिया के उनका कराये का फ्लैट था आज अपना फ्लैट है सैफ से पहले हैदराबाद में किराये का एक छोटा सा ऑफिस था आज

अल्हम्दुलिल्लाह साठ सत्तर गज़ में चार या पांच मंज़िला अपना खुद का ऑफिस है, और ये बात सैफ से खुद उसके बॉस ने कही थी के सैफ आप मेरा स्टाफ नहीं हो, आप मेरा मुक़द्दर हो आप मेरे लिए मेरे सगे भाई से बढ़कर हो, मगर मुँह बोले रिश्ते की कोई औकात नहीं होती, ये बात सैफ से ज्यादा भला कौन जान सकता है, सैफ अपने बॉस और अपने बारे में पूरी डिटेल लिखने बैठ जाए तो ये एक अलग कहानी बन जाएगी और बहुत लम्बी क्योंकि खून का रिश्ता वहां भी मुँह बोले रिश्ते पर भारी पड़ चूका था, खैर ये सब लिखने का मकसद ये बताना था के सैफ के बॉस सैफ की इतनी ज्यादा इज़्ज़त क्यों करते थे क्योंकि सैफ ने खुद को साबित कर के दिखाया था, 
इज़्ज़त किया अगर मैं लिखूं के उस दौरान सैफ अल्लाह माफ़ करे हैदराबाद वालों में भी और अनम के घर वालों में भी पूजा जाता था तो ये कुछ गलत ना होगा,

लेकिन दोनों ने ही काम पूरा होते ही सैफ को वो सबक़ सिखाया के इसका फैसला सिर्फ क़यामत में ही अल्लाह के सामने होगा,  

उन्होंने सैफ से फैज़ान के काम के लिए मना कर दिया ये बात फैज़ान को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी और ये बात वो भी अच्छी तरह जानते थे के सैफ को बिलकुल अच्छा नहीं लगा के फैज़ान अब हमारी कम्पनी में काम नहीं करेगा, 
हालांकि सैफ और उनका सेलरी के आलावा प्रॉफिट में हिस्सा भी तय था सैफ कंपनी में बिलकुल एक मालिक की तरह ही रहता था, लेकिन फैज़ान के काम को मना होने के बाद सैफ अपने बॉस से उखड़ा उखड़ा रहने लगा, लेकिन अनम के घरवाले अपने दिल में ये लिए बैठे थे के सैफ ने फैज़ान को काम से निकलवाया, ग़लतफ़हमी का कोई इलाज नहीं होता लेकिन कोई समझना चाहे तो गलफहमी भी दूर हो जाती है, लेकिन अनम के परिवार की ग़लतफ़हमी का कोई भी इलाज नहीं है,  

सैफ के दिल और दिमाग पर बोझ बढ़ता जा रहा था सैफ की समझ में नहीं आरहा था के किया करूँ किया ना करूँ अनम और उसका परिवार सैफ से दूरी बढ़ाता जा रहा था, सैफ अपनी गलती ढूंढने की कोशिस कर रहा था, सैफ का दिल ये सोच सोच कर लगातार दुःख रहा था के किसी का प्यार पाने के लिए जो कुछ भी मैंने किया है, अगर ये काफी नहीं है तो दुनिया में प्यार होता ही नहीं है, क्योंकि अगर प्यार होता तो सैफ वो सबकुछ कर चूका था जिससे किसी का प्यार पाया जा सके लेकिन उस प्यार का किया करे जो सिर्फ मतलबों पर टिका हुवा था उनके लिए तो सैफ जान भी देता तो वो प्यार नहीं मतलब ही रहता उल्टा तोहमत लगाई जाती के हमारे लिए नहीं मरा खुद की गलतियों से मरा 
जैसे सैफ के बच्चे के लिए कह दिया गया था के वो तुम्हारे झूठ बोलने की वजह से मरा ऐसे ही सैफ के मरने के बाद कह दिया जाता अपनी ही गलतियों से मरा है ये तो था ही इसी काबिल इसका मरना ही ठीक है,  

सैफ और सैफ के बॉस के बीच में फैज़ान की वजह से दूरियां बढ़ने लगी थीं सैफ अब अपने बॉस की ज़रा ज़रा सी बातों का बुरा मानने लगा था, एक दिन भोपाल में सैफ को उसके बॉस फ्लैट में लेकर बैठे के सैफ आप मुझे साफ़ साफ़ बताओ मामला किया है, मैं आपके बर्ताव में में बहुत बदलाव देख रहा हूँ, अब सैफ उनसे ये कैसे कहे के आपकी वजह से मुझसे मेरे वो लोग मुझसे नाराज़ हो गएँ जिनके लिए मैंने अपना सबकुछ दाओ पर लगा दिया है, सैफ ने उन्हें इधर की उधर की बातें बता दिन और बात को घुमा कर बात खत्म कर दी, जब भोपाल में सैफ उस वक़्त बादशाहो वाली ज़िंदगी जी रहा था, वो भोपाल के एक नवाब की साइट तैयार कर रहे थे उस नवाब की साइट जिससे मिलने के लिए भोपाल के मुख्यमंत्री को भी अपॉइंटमेंट लेनी पड़ती थी सैफ डायरेक्ट उनसे मिलने उनके बंगले पर जाता था उन्होंने सैफ को सैफ को और सैफ के बॉस को एक BMW कार दे रखी थी इस्तेमाल करने के लिए जिसको सिर्फ सैफ या सैफ के बॉस का भाई या खुद बॉस ही चलाते थे, इतना सबकुछ वहां सैफ के लिए था लेकिन सैफ के दिमाग में तो अनम का परिवार घुस कर बैठा हुवा था जो उसको कुछ करने ही नहीं दे रहा था,

यहाँ से हम थोड़ा सा और पीछे चलेंगे सैफ के मौत के मुँह में जाने की तरफ, सैफ रात दिन अब इन्ही लोगों के बारे में सोचता रहता था के ये लोग मेरे बारे में ऐसा कैसा सोच सकते हैं, कोई कैसे उस बंदे को गलत समझ सकता है जो बंदा दुआओं में उन लोगों के लिए रो रो कर खैर माँगा करता है, वो कैसे उसके बारे में ये सोच सकते हैं के सैफ ने उनके भाई को काम से निकलवाया है, जब के सैफ ने अपनी नौकरी दाओ पर लगा कर उसको नौकरी पर रखवाया, ये सब गलत फहमी है या ये लोग जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं, जब धीरे धीरे ये लोग सैफ से दूर हो गए तो एक दिन ऐसा आया जिसने सैफ को ये यकीन दिला दिया के ये जो भी कुछ तेरे साथ हो रहा है या अबसे पहले जो भी हो चूका है ये सब पूरी प्लानिंग से हुवा है, हम इस इस तरह सैफ को अपने जाल में फंसायेंगे वरना कौन इतना नज़दीक जाता है किसी के और इतना नज़दीक जा कर कौन इस तरह दूध में से मक्खी की तरह किसी को निकाल कर फैंकता है, ये सब बातें सैफ को जीने नहीं दे रहीं थीं, फिर एक दिन सैफ रोज़ाना की तरह उनके घर गया और लुबना सैफ को देख कर छुप गई वो दिन सैफ का उनके घर जाने का आखरी दिन था, उसके बाद ना सैफ उनके घर गया ना उन्होंने सैफ को कभी बुलाया, जैसे पहले एक दिन भी सैफ के बगैर उनको चैन ना आता था, जिसके बाद सैफ की भोपाल वाली साइट शुरू हुई थोड़े दिनों लुबना ने कसम देकर सैफ से पुछा आपको बताना पड़ेगा सैफ आप कहाँ हो, क्योंकि पहले तो गली में आता जाता सैफ दीखता था भोपाल जाने के बाद कैसे दिखेगा,

सैफ के भोपाल जाने के बाद लुबना और अनम धीरे धीरे फिर से सैफ से बातें करने लगीं थीं लेकिन सादिया नहीं चाहती थी के इनमे से कोई भी सैफ बातें करें, लुबना ने एक दिन सैफ को ख़ुशी ख़ुशी बताया के सैफ मैंने एक नया फ़ोन लिया है बड़ा वाला सैमसंग का सैफ ये बात सुनकर बहुत खुश हुवा, लेकिन सादिया ने धीरे धीरे उनको कस्मे दे दे कर लुबना और सैफ की यहाँ तक के अनम की भी सैफ से बातें बंद करा दीं, 


फिर एक दिन वो मनहूस दिन आया उस वक़्त सैफ दिल्ली में ही आया हुवा था क्योंकि  नॉएडा का काम पूरी तरह ख़त्म नहीं हुवा था और सैफ भोपाल की साइट भी और नोएडा की साइट भी दोनों को देख रहा था हालंकि उस वक़्त भोपाल में बीस से पच्चीस इंजीनियर थे काम देखने वाले लेकिन फिर भी सैफ को आठ दस दिन में दो तीन दिन के लिए भोपाल जाना ही पड़ता था, 

इधर काम का प्रेशर इधर इन लोगों का टॉर्चर सैफ सह ना सका और उसको हार्ट अटैक आगया बड़ा वाला दिल में तो पहले भी उसके तकलीफ हुई थे एक दो बार ;लेकिन उस दिन सैफ मौत के मुँह तक पहंच गया,   

सैफ को इमरजेंसी में सैफ के घर वाले हॉस्पिटल लेकर गए जब डॉक्टरों ने सैफ के चेकअप किये तो तुरंत सीनियर डॉक्टर ने कहा सोचना बंद कर दो वरना जान नहीं बचेगी, नसों में मामूली सी ब्लॉकेज थी बीपी बहुत ज्यादा है था डॉक्टरों ने बोला के अगर और ज्यादा टेंशन ली तो लकवा मार सकता है, शुगर भी बढ़ा हुवा निकला डॉक्टर बोला घर में और किस किस को शुगर है , किसी को नहीं सैफ के घरवाले बोले इसको किस बात की चिंता है जो इसने अपना ये हाल कर लिया है, घर में किसी को शुगर नहीं इसको शुगर है, सैफ की घरवाली को डॉक्टर ने डांटा इस पर ज्यादा दबाओ बनाती होगी तुम और ज्यादा दबाओ बनाया तो ये मर जायेगा, डॉक्टरों को किया पता शुगर की शुरवात तो बहुत पहले ही सैफ को हो चुकी थी सैफ ने शुगर बाकायदा खरीदी है और वो भी फ्री में नहीं दौलत और अपनी जान दी है कुछ लोगों को इस शुगर के बदले,

खैर ओप्रशन हुवा ठीक ठाक और एक छल्ला डला उसी से बात बन गई, ओप्रशन से तो सैफ बच गया लेकिन उसे किया पता था आगे उसके साथ और किया होने वाला है,

वो लोग ऐसा रंग बदलने वाले हैं जिसके आगे गिरगिट भी शरमा जाये ये सैफ को नहीं पता था 

 रंगों में वो रंग कहाँ 

जो रंग लोग बदलते हैं 

वो लोग जो सैफ को अगर जुकाम भी हो जाये तो हर घंटे सैफ का हाल पूछते थे, उसको दवाई बताते थे दवाई खाने का तरीका बताते थे, सैफ अगर उनके घर पर बैठा है और तबियत ख़राब है खुद दवाई मंगाते थे और खिलाते थे, पानी से बताई तो पानी से दूध से बताई तो दूध से चाय से बताई तो चाय से डॉक्टर ने जिस चीज़ से दवाई खाना बताई उसी चीज़ से खिलाते थे, सैफ मनाली जाता था पल पल का पूछते थे कहाँ तक पहुंचे कहाँ तक पहुंचे खाना खाया या नहीं खाया सुबह उठते ही कहाँ तक पहुंचे कॉम्पिटिशन करके पूछते थे आपस में ज़ैनब अलग लुबना अलग अनम अलग बीच बीच में सादिया भी पूछती थी हालांकि उसपे मोबाइल नहीं था और जब मोबाइल लिया तो चलाना नहीं आता था, लेकिन फिर भी पूछती थी,

अनम ज़ैनब लुबना का तो आपस में इतना कॉम्पिटिशन रहता था के पूछो मत कौन ज्यादा बात करेगी सैफ से कौन पहले गुड मॉर्निग का मैसेज भेजेगी कौन पहले खैरियत पूछेगी सैफ अकेला चाहने वाले बेशुमार, फिर सैफ अकेला नफरत करने वाले बेशुमार, और हाँ एक बात ऐसा भी वक़्त था जब सैफ अकेला था और उससे नाराज़ होने वाले बेशुमार, सैफ को मनाता था सबको खुश रखने की कोशिस करता था तनहा अकेला, उनकी मुसीबत में भी तनहा, और आज भी तनहा,      

एक बार की बात है सैफ कहने लगे मेरी पसंद बहुत अच्छी होती हर मामले में, सादिया बोली लेडिस शूट में नहीं होगी, सैफ ने कहा मेरी हर मामले में पसंद अच्छी है मेरी पसंद सबको पसंद आती है मैं तुम्हारे लिए अपनी पसंद का एक शूट ऑनलाइन आर्डर करूँगा तब देखना मेरी पसंद कैसी है, वो बोली ठीक है, सैफ को ऑनलाइन एक शूट डिज़ाइन में बहुत पसंद आया क्योंकि ऑनलाइन आप सिर्फ कपडे कलर और डिज़ाइन ही देख सकते हो कपडा पता नहीं कैसे होगा, सैफ ने वो शूट आर्डर कर दिया सादिया के लिए शूट घर पहुंच गया उनके, शूट की कीमत कम थी जब सादिया ने कीमत देखी शूट की तो सैफ से फ़ोन पर बहुत ही ज्यादा लड़ी, अच्छा नहीं लगा तो नहीं लगा इसमें लड़ने वाली किया बात थी बोल देती मुझे और महंगा चाहिए, लेकिन खैर, छोडो, 

सैफ के साथ इस तरह के सम्बन्ध थे सबके और अब?

काश इंसान को भी नोट की तरह होते 

रौशनी की तरफ करके देख लेते

असली है या नकली

#सैफ  

अब तो सैफ मौत के मुँह से निकल कर आया था सोचो अब कितना पुछा होगा किस कदर पुछा होगा घर में मातम छा गया होगा उनके, सैफ के गम में वो सब लोग रो रहे होंगे, यही सोच रहे हो ना पढ़ने वालों? 

नहीं ऐसा कुछ नहीं हुवा है बिलकुल इसका उल्टा हुवा था जो भी हुवा था सैफ के मौत के मुँह निकल आने के बाद, 

सैफ अस्पताल से घर आ गया, फैज़ान और उसके अब्बा जी देखने आये, उस वक़्त अनम लुबना ज़ैनब से बहुत कम बातें हो रहीं थीं, कम हो रही थीं लेकिन बातें होती थीं, एक दो दिन के बाद अनम ने मैसेज किया अब कैसी तबियत है आपकी, सैफ का दिल दुख हुवा था वो पूछ बैठा के आपको पता तो होगा के मेरी ये तबियत क्यों खराब हुई है, आज तीन साल से ज्यादा हो गएँ हैं आज तक अनम ने उस मैसेज का जवाब नहीं दिया, वो मैसेज उनके घर की किसी भी लड़की का सैफ के मोबाइल पर आखरी मैसेज था वो जो अनम ने पुछा था के अब कैसी तबियत है, उसके बाद सैफ ने सैकड़ों मैसेज सब को किये अनम को किये लुबना को किये लुबना जो अल्लाह की नज़र में और दुनिया में कुछ लोगों की नज़र ही में सही पर है तो सैफ की बीवी ही,उसने भी कोई जवाब नहीं दिया, यहाँ तक ज़ैनब जिसे सैफ बेटी कहता था, वो सैफ को अब्बू जी कहती थी बाप और बेटी का रिश्ता था दोनों का उस तक ने आज तक सैफ के किसी मैसेज का जवाब नहीं दिया, 

जो भी मेरी इस पोस्ट को पढ़ रहा है कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताये किया वजह हो सकती है, के एक साथ सब लोगों ने सैफ से बातें करनी एक दम बंद कर दीं जब के इस वक़्त सैफ को उन लोगों की बहुत ही ज्यादा ज़रूरत थी उनको चाहिए था के अच्छी अच्छी बातें करके सैफ का दिल बहलायें चार पांच साल सैफ का अपने झूठों से सबने मिलकर सैफ को बेवक़ूफ़ बनाया और थोड़ा बेवकूफ बना लेते, 

वैसे सैफ को इस वजह का पता है, सैफ उनके अचानक से बातें करना बंद कर देने की वजह जानता है, 

सैफ जानता है के उन्होंने सैफ से बातें करना बंद क्यों की क्योंकि अब सैफ कई दिन तक बिस्तर पर पड़ा रहेगा हो सकता सैफ मर ही जाये क्योंकि उन्होंने दो बार सैफ की हालत देखली थी अब तीसरा अटैक सैफ को आ चूका है तीन अटैक में आदमी अक्सर मर जाता है, 

इस लिए वो सब डर गए थे के सैफ के मरने के बाद सैफ का मोबाइल सैफ के घरवालों के हाथ में रहेगा, और वो लोग हमारे भेजे हुवे मैसेज पढ़ लेंगे, और उन्हें पता चल जायेगा के सैफ हमारी वजह से मरा है,

सोच देखो आप सब इनकी कितनी दूर तक चली गई कितना दूर का सोच सकते हैं ये लोग, 

यहाँ तक के सैफ ने सबको फ़ोन करना शुरू कर दिया लेकिन मज़ाल है जो  किसी ने भी सैफ का फ़ोन उठाया हो,  

धीरे धीरे वो दिन भी आ गए जब एक एक कर के घर के सदस्यों ने सैफ के नंबर को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया, या अपने नंबर बदल डाले लुबना ने तो नंबर ही बदल डाला सैफ की बीवी लुबना ने अपना नंबर बदल दिया हां हां नंबर बदल दिया,


अब सैफ ने भी उनको मैसेज करना बंद कर दिया   

एक दिन सैफ बहुत गुस्से में था, उसने फैज़ान को फ़ोन किया और कहा के मेरा हिसाब करो मेरा जो भी पैसा तुम पर निकल रहा है मुझे वापस करो, फैज़ान ने बात हंस कर टला दी और कहा के पहले ठीक हो जा हिसाब आराम से कर लेंगे,


दिन गुज़रने लगे सैफ की तबियत अब ठीक होने लगी बीस पच्चीस दिन गुज़रते ही सैफ भोपाल चला गया अकेला जब के डॉक्टर ने सैफ को दो महीने बेड रेस्ट करने को बोला था, लेकिन सैफ बीस पच्चीस दिनों में ही भोपाल चला गया, वो दिल्ली में रहना ही नहीं चाहता था ऐसा लगता दिल्ली उसे फाड़ खाने को आ रही है,


फिर एक दिन सैफ ने गुस्से में फैज़ान को घर से आवाज़ मारी उनकी सबसे बड़ी बहन उतर कर आई बोली किया बात है, सैफ बोलै फैज़ान को बुलाओ मुझे हिसाब करना है , कहने लगी गुस्सा मत करो कोई बात नहीं फैज़ान है नहीं अभी आ जायेगा तो हिसाब कर लेना देख लेंगे किसका किसकी तरफ निकलेगा, 

सैफ का दिमाग़ घुम गया वो सोचने लगा के इनका भी निकल सकता है मेरी तरफ कमाल है, जब के अनम की बड़ी बहन और उसके पति ने खुद ही सैफ से उधार पैसे ले रखे हैं जो के अनम के परिवार को दिए गए और पैसों से बिलकुल अलग हैं,


फिर कुछ दिन गुज़रे सैफ ने फिर आवाज़ मारी फैज़ान को, अब सैफ इनकी देहलीज़ पर क़दम नहीं रखता है, 

और दरअसल सैफ को पैसों की भी परवाह नहीं थी वो तो ये सब इसलिए कर रहा था के वो लोग कहें के चलो जो हुवा सो हुवा गीले शिकवे माफ़ करो और फिर से ऐसे ही रहते हैं जैसे पहले रहते थे,


ये बातें सोच सोच कर सैफ के दिमाग पर और बोझ बढ़ता जा रहा था ना कोई अब सैफ से बात करने को तैयार था और नाही सैफ के किसी मैसेज का कोई जवाब दे रहा था, फिर एक दिन सैफ को गुस्सा आया और फिर उसने घर के बाहर खड़े हो कर फैज़ान को आवाज़ मारी वो चाहता था के फैज़ान कहे चलो आराम से घर में बैठ कर बातें करते हैं और सारी ग़लतफ़हमी दूर करते हैं, लेकिन वहां तो कुछ और खिचड़ी पक कर तैयार थी, फैज़ान फिर से बाहर नहीं आया और नाही सादिया बाहर आई उन्होंने अपने अब्बा को बाहर भेजा जिन्होंने सैफ के सर पर आसमान गिरा दिया, 

हाँ किया बात है अब्बा सैफ से बोले, फैज़ान को बुलाओ सैफ ने कहा मुझे हिसाब करना है मुझे मेरे पैसे चाहिए, 

जा चला जा यहाँ से कभी हिसाब करवाऊं तूने हमारे मकान के पैसे कम करवा दिए अब्बा जी आपे दे बाहर हो कर कहते चले जा रहे थे वो ऐसी ऐसी बातें सैफ से कह रहे थे के उनकी हर बात सैफ को ऐसे महसूस हो रही थी मानो तारकोल पिघला कर कोई सैफ के कानों में डाल रहा था, सैफ का सारा शरीर गुस्से की ज्यादती के कारण कांपने लगा था, तभी मनाहल आकर खड़ी हो गई और अपने जीने पर से ही चुपके से इशारों से हाथ जोड़ने वाले अंदाज़ में कहने लगी आप चले जाओ प्लीज सैफ ने अपने गुस्से पर बड़ी मुश्किल से कंट्रोल किया और वहां से चला आया, और फिर उसके बाद सैफ नै उनसे किसी तरह का कोई कोन्टेकट करने की कोशिश नहीं की,

 ये वही अब्बा जी थे जो सैफ के एक बार उनसे नाराज़ होने पर सैफ की ठोड़ी में हाथ डाल डाल कर सैफ को मना रहे थे रो रो कर मना रहे थे तू मेरे फैज़ान जैसा है मुझसे जो गलती हुई मुझे माफ़ कर दे और सैफ ने भी उनकी गलती तुरंत भुला दी थी और सब बातें ख़त्म कर दीं थीं, गलती किया की थी उन्होंने ये सैफ को अब याद नहीं रहा लेकिन जैसा के मैं पीछे लिख चूका हूँ सैफ के किसी भी बात पर किसी से भी नाराज़ होने पर पूरा घर सैफ की खुशामंद करता था, 

दरअसल हुवा किया था ये भी लिखता चलूँ जैसा के मैं ऊपर भी लिख चूका हूँ फैज़ान का केस खतम करने के लिए पैसों की ज़रूरत थी जो इनके मकान का एक छोटा सा हिस्सा बेच कर पैसे इकठ्ठा किये गए हमने आइडिआ लगाया था के ये कारखाने वाला हिस्सा 22 या 23 गज़ है जब ग्राहक आये तो हमने उनको बताया के इतना गज़ है ये एरिया, लेकिन नापने पर वो हिस्सा एक या दो गज़ कम निकला उतने से जितना हमने लोगों को बताया, उसी हिसाब से पैसे देते वक़्त उतने पैसे कम कर दिए गए एक या दो गज़ के, हंगामा हुवा खूब हुवा लेकिन उस वक़्त सैफ को किसी ने कुछ नहीं कहा हालंकि के सैफ की आँखों में आंसू आगये थे उस वक़्त उसको लगने लगा था के तुझे ही ज़िम्मेदार ठहराया जायेगा इन सब बातों का लेकिन अनम के घरवालों ने सैफ को तसल्ली दी के तू क्यों परेशान होता है इसमें तेरी कोई गलती नहीं, 

लेकिन अब इतने सालों बाद इन लोगों ने ये बात कही के तू ही इन सब बातों का ज़िम्मेदार है सैफ के चाचा ने जो कमीशन लिया उसका भी ज़िम्मेदार सैफ को ठहराया गया यानी अब हर बुरे का ज़िम्मेदार सैफ है उनके कहने के मुताबिक़,

अगर ऐसी कोई भी बात थी तो इन लोगों को उसी वक़्त सैफ को बताना चाहिए था के ये जो भी पैसे कम हो रहे हैं और ये जो तेरा चाचा कमीशन ले रहा हम ये पैसे तेरे पैसों में से काटेंगे, 

सैफ उसी वक़्त उनका हिसाब फाइनल कर देता, लेकिन इन लोगों का डर था के अगर हमने अभी सैफ से कुछ कहा तो ये हमारी ज़िन्दगी से चला जाएगा क्योंकि अभी सैफ का काम पूरा नहीं हुवा था इसलिए अभी सैफ को उलझा कर रखना था,

इस पूरी कहानी को पढ़ने के बाद आप लोग एक बार ये ज़रूर सोचना के चक्की के पाटों में खूब ही पीसे जाने के बाद सैफ ने कुछ पाया भी था सिवाए खोने के?

सादिया अक्सर कहती थी जो आप हमारे लिए कर रहे हो ये काम असल में हमारे सगे बहनोई का था, 

सैफ ने अपनी तमाम परेशानी तमाम उलझने भुला कर इनके लिए जो भी करा, किया इतना वो आसान था उस इंसान के लिए जिसके ऊपर पहले ही नहीं ये बिलकुल भी आसान नहीं था, सैफ पर पहले ही से अपने परिवार की तरफ से मुसीबतों को पहाड़ टूटा हुवा था उसके वालिद का इंतक़ाल हो चूका था उसके छोटे भाई का इंतक़ाल हो चूका था और छोटा भाई भी ऐसा जो पूरा घर संभालता था जिसने अपने जीते जी अपने पूरे घर को वालिद की कमी का अहसास नहीं होने दिया था, सैफ को तो अपनी बीवी से ही फुर्सत नहीं मिलती थी, अब जबकि उसका वो भाई भी दुनिया से चला गया था मकान टूट चूका था परिवार तिनको की तरह बिखरा हुवा था घर में अब सैफ के आलावा कोई ऐसा नहीं बचा था जो परिवार को संभाल ले, एक भाई जो सबसे छोटा था उसके बस का खुद को संभालना नहीं था एक भाई जो हमेशा अपने आप में मस्त रहता था वो भी घर को सहारा नहीं लगा सकता था हाँ वो अपने बीवी बच्चों को ठीक से देख रहा था, एक भाई नशे का आदि हो चूका था, और सैफ की आदत ऐसी थी के वो तो फिल्मों में भी कोई जज़्बाती सीन देख ले तो रो पड़ता था अब आप सोचो के ये सब तो उसके सामने हकीकत में था, सैफ का दिल अल्लाह ने इतना कमज़ोर बनाया था ले वो ज़रा सी किसी की परेशानी देख ले तो उसकी आँखे भर आती हैं, और उसका खुद का परिवार बर्बादी की लकीर पर खड़ा था, सोचो सैफ के दिल की किया हालत होगी उस वक़्त उन्ही हालतों में घिरे होने के बावजूद सैफ अनम के परिवार की हर परेशानी से तने तन्हा लड़ रहा था, क्या इन लोगों को सैफ के साथ ऐसा करना चाहिए था किया इन लोगों को सैफ को इस तरह दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फैकना चाहिए था, इस कहानी को लिखते वक़्त सैफ ना जाने कितनी बार रोया होगा, 

सैफ का मकान अब बन कर तैयार हो चूका था. मकान बन कर तैयार हो चूका था, जिसने सैफ की ज़िन्दगी में वो तबाही मचाई जिसका तसव्वुर करना मुमकिन नहीं ये इसकी कहानी अलग से लिखी जाएगी के कैसे सैफ का मकान बनने से लोगों के असली चेहरे सामने आये, 

हल्की झलक लिख रहा हूँ, सादिया ने सैफ के मकान बनने से कैसे अपने दुखों का इज़हार किया लगता है वो भी नहीं चाहती थी के सैफ का मकान बने इसलिए वो सैफ के रेत बदरपुर ईंटों की ट्रॉली को अपने घर के आगे से निकलने नहीं देती थी,   

सैफ की बीवी वापस अपने मकान में आ गई थी अब इनको लगा के ये सैफ को हमारे घर आता जाता देखेगी तो हंगामा करेगी क्योंकि हकीकत में सैफ की बीवी बहुत ज़ालिम किस्म की औरत थी और किसी हद तक उनका ये सोचना सही था लेकिन उसका तरीक़ा कुछ और भी हो सकता था,'

जब जुदा ही होना था तो कोई अच्छा सा खुशनुमा तरीक़ा ढूढ़ते यूं इस तरह जुदा होना तो अच्छा नहीं था ना,  

वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन 

उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा।।।     

लेकिन इस अफ़साने को बहुत ही बदसूरत मोड़ दिया गया, 

अब सैफ और अनम की किसी तरह की कोई बातें नहीं होती हैं और ना ही अनम के घर के बाकी लोग सैफ से बातें करते हैं, वो सैफ जिसे अनम के अब्बा जी मनाली जाते वक़्त ऑटो में बैठाने जाते थे सैफ का मुँह चूमते थे, आज वो सैफ के सलाम तक का जवाब नहीं देते हैं. 

दिन गुज़रते गए महीने गुज़रे साल गुज़रे लेकिन सैफ का जख्म आज भी हरा है, अभी कुछ दिन पहले अचानक सैफ को खबर मिली के अनम की अम्मी का इंतक़ाल हो गया है  सैफ को सदमा सा लगा तुरंत सबकुछ भुला कर सैफ उनके घर गया जहाँ जीने पर चढ़ते वक़्त सादिया नज़र आई, सैफ को देखते ही वो सैफ को लिपट कर रोने लगी, 

सैफ ऊपर गया अम्मी के चेहरे को देखा बहुत कोशिस की लेकिन अपना दिल भर आने से खुद को ना रोक सका हालांकि उन्होंने शायद सैफ को सैफ के अपनी ज़िन्दगी से चले जाने के बाद हमेशा बुराइयों में याद किया होगा लेकिन सैफ का दिल बहुत बुरा दिल है सबकुछ भुला देता है, 

सैफ ने एक दामाद होने का पूरा फ़र्ज़ निभाया खुद ऊपर से उनके जनाज़े को निचे लिवा कर लाया सबसे पहले जनाज़े को कन्धा दिया, 

उस दिन उनके सबसे छोटे बेटे के हालात देखे अल्लाह माफ़ करे कोई कैसे इतनी गफलतों में ज़िंदगी गुज़ार सकता है उसको जनाज़े को कन्धा देना नहीं आरहा था कभी उल्टा कन्धा कभी सीधा कन्धा कभी कहीं से पकड़ना कभी कैसे पकड़ना ऐसा लगता था मानो उसने आज से पहले किसी जनाज़े को कन्धा ही नहीं दिया था, कब्रिस्तान पहुंचे जनाज़े की नमाज़ हुई पहली बार सैफ किसी कब्र में उतरा एक तरफ बड़ा दामाद एक तरफ सैफ दोनों कबर में उतरे, सैफ अपने वालिद की कब्र में नहीं उतरा अपने भाई की कब्र में नहीं उतरा अपने दादा दादी की कब्र में नहीं उतरा असल बात ये है सैफ पहली बार किसी की कब्र में नीचे उतरा था, 

सैफ ने एक दामाद होने का एक बेटा होने का फ़र्ज़ पूरा किया, 

लेकिन ये लोग दिलों में तास्सुब रखने की बुरी आदत को अभी भी ना बदल पाए, 

जनाज़ा दफ़न करके सबलोग घर आगये सैफ भी घर आ गया बेशर्म बनके जनाज़े का खाना सबको खिलाया और खुद भी खाया, फिर अपने घर आ गया

रात को वापस इनके घर चला गया नीचे हॉल में मेहमानो में जाकर बैठ गया, सादिया से कहा के घबराना मत मैं आज भी पहले की तरह तुम्हारे साथ हूँ, सादिया ने तंज भरे अंदाज़ में कहा जिसका कोई नहीं होता उसका अल्लाह होता है, काश अल्लाह को साथ लेने की कोशिस सच में ही तुमने की होती सैफ ने खामोश रहते हुवे मन में कहा, अल्लाह को साथ लेने वाले मन में ज़िन्दगी भर की नफरत नहीं पाला करते किसी के लिए, सारी दुनिया तुम्हारी नज़रों में बुरी है,

खैर सैफ वहीँ कुर्सी पर बैठ गया उनका सबसे छोटा वाला भाई सबको पानी पिला रहा था सबको पानी पिलाया पूछ पूछ कर पानी पिलाया फैज़ान बोल रहा था इनको भी दो इनको भी दो पानी सबके लिए बोला पर सैफ के लिए उसके मुँह से एक बोल ना निकला के तू भी पियेगा पानी बस इतना ही पूछ लेता, 

पानी ही तो था पूछ ही लेता माना के सैफ उनका दुश्मन था लेकिन पानी को तो दुश्मन से भी पूछ लिया जाता है,

अब आप सब पढ़ने वाले लोग बताओ ऐसे लोगों के साथ किया करना चाहिए ??????  ये बात सबको पता चलना चाहिए ना ????    

अभी इस कहानी में बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है,    हालांकि सैफ ने इस कहानी को लिखने का कई बार मन बनाया था लेकिन हर बार ये सोच कर जाने दिया के चलो छोड़ो हो सकता है इन्हे खुद ही अपनी गलती का अहसास हो जाये और खुद ही सैफ से बातें करके दिल साफ करलें, लेकिन अनम की अम्मी के इंतक़ाल के बाद भी जब इनके रवैये में कोई फर्क नहीं आया यहाँ तक के सैफ ने अनम को दो तीन मैसेज भी किये सैफ ने खुद कहा के चलो पिछली सब बातें भुला देते हैं, लेकिन अनम ने भी कोई जवाब नहीं दिया और लुबना ने तो सैफ को शक्ल तक नहीं दिखाई अपनी अम्मी के इंतक़ाल के बाद, इसलिए अब सैफ ने मन बनाया के सबकुछ लिखूंगा एक कहानी के ज़रिये, ताके सैफ अगर मर भी जाए तो भी लोगों को सच पता होना चाहिए,   

अभी ये कहानी खत्म नहीं हुई बहुत से सुधार करने बाकी हैं अभी इसमें बहुत कुछ लिखने से छूट गया है वो लिखना बाकी है, इनके द्वारा ठोकर खाने के बाद सैफ फैज़ान की बीवी से भी मिला था, क्योंकि इतना सबकुछ इनके साथ रह कर देखा इनकी आदत को सैफ ने समझा उसके सैफ को यकीन नहीं रहा के अकेली ज़ैनब की अम्मी कुसूरवार होगी इन सब मामलों में, हालंकि सैफ ने ये बात एक दो बार ज़ैनब से भी कही थी के ज़ैनब मुझे अब यकीन नहीं है के तेरी अम्मी अकेली की सब गलतियां हैं, शायद ये बातें ज़ैनब ने सादिया को बताई होगी और सादिया ने ज़ैनब को भी सैफ से बातें करने के लिए मना कर दिया होगा,  हालंकि ज़ैनब उनके रंग में पूरी तरह से ढल चुकी है वो भी अपनी अम्मी को बुरा कहती हैं वो भी यही कहती के मेरी बड़ी बहन और मेरी छोटी बहन दोनों नाजायज़ हैं,    

लेकिन एक बात जो बहुत महत्वपूर्ण है इस कहानी में वो अभी इसी लेख में लिखना ज़रूरी है, 

अनम हो लुबना हो सादिया चाहे ज़ैनब हो या घर का कोई भी मेम्बर हो वो सब लोग फैज़ान के लिए हर क़ुरबानी देने को तैयार थे और क़ुरबानी दे भी रहे थे, वो लोग फैज़ान के लिए हर परेशानी उठा रहे थे अपनी खुद की परेशानियों को अपने सीने में दफ़न किये बैठे थे अपने हर अरमान दबाये बैठे थे सबकी शादियों की उम्र बहुत पहले हो चुकी थी, हर लड़की लड़के की तमन्ना होती है उसकी शादी हो वक़्त पर हो अच्छे घर में हो, लेकिन फिर भी अपनी हर तमन्ना भुला कर ये लोग अपने भाई के लिए सिर्फ क़ुरबानी पे क़ुरबानी दिए जा रहे थे, लेकिन इन सब के पास क़ुर्बानी का सिर्फ एक ही बकरा था और उस बकरे का नाम था सैफ,  

Thanks For Reading.....

 

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