अनम हो लुबना हो सादिया चाहे ज़ैनब हो या घर का कोई भी मेम्बर हो वो सब लोग फैज़ान के लिए हर क़ुरबानी देने को तैयार थे और क़ुरबानी दे भी रहे थे, वो लोग फैज़ान के लिए हर परेशानी उठा रहे थे अपनी खुद की परेशानियों को अपने सीने में दफ़न किये बैठे थे अपने हर अरमान दबाये बैठे थे सबकी शादियों की उम्र बहुत पहले हो चुकी थी, हर लड़की लड़के की तमन्ना होती है उसकी शादी हो वक़्त पर हो अच्छे घर में हो, लेकिन फिर भी अपनी हर तमन्ना भुला कर ये लोग अपने भाई के लिए सिर्फ क़ुरबानी पे क़ुरबानी दिए जा रहे थे, लेकिन इन सब के पास क़ुर्बानी का सिर्फ एक ही बकरा था और उस बकरे का नाम था सैफ,
इधर इन लोगों का टॉर्चर सैफ सह ना सका और उसको हार्ट अटैक आ गया बड़ा वाला, दिल में तो पहले भी उसके तकलीफ हुई थे एक दो बार; लेकिन उस दिन सैफ मौत के मुँह तक पहंच गया,
सेक्टर 142 नोएडा Advant IT Park बिल्डिंग के सामने चाय की दुकान पर बैठा हुवा सैफ अपनी सोचों में गुम था
घर से अपनी बीवी से लड़ कर आया था, Advant IT Park बिल्डिंग के ग्राउंड फ्लोर पर KFC रेस्टॉरेंट बन रहा जिसका प्रोजेक्ट मैनेजर था सैफ,
सैफ घर से झगड़ा कर के आया था, साइट पर आते ही 10 दिन में साइट कम्पलीट करने की चेतावनी मिली थी जब के 20 दिन से कम का काम किसी भी सूरत में साइट पर नहीं था ऊपर से उसके सामने ये चैलेंज था के काम सिर्फ रात को 8 बजे के बाद से लेकर सुबह 6 बजे तक ही हो सकता है, दिन में किसी तरह का कोई काम साइट पर नहीं हो सकता,
वो बस इन्ही सब परेशानियों की सोच में गुम चाय की दुकान पर बैठा था के तभी उसके मोबाइल की रिंगटोन ने उसकी सोच में खलल डाल दी, डिस्प्ले पर एक अनजान नम्बर दिखाई दे रहा था,
सैफ ने फ़ोन रिसीव किया दूसरी तरफ से किसी लड़की की आवाज़ थी
सैफ ने कहा दूसरी तरफ से उस लड़की ने शरारती अंदाज़ में कहा पहचानो तो मान जाऊं सैफ सोच में पड़ गया कौन हो सकती है क्योंकि कई लड़कियों से उसकी बातें होतीं थी मगर सबके नंबर सेव किये हुवे थे उसने अपने मोबाइल की फ़ोनबुक में मगर ये नम्बर सेव नहीं था, सैफ की समझ में नहीं आया बोला बताओ आप कौन बोल रही हो?
अनम बोल रही हूँ दूसरी तरफ मौजूद लड़की ने कहा
अनम कहते हुवे सैफ सोच में पड़ गया कौन अनम? फिर उस लड़की ने बताया कौन अनम तो सैफ को और ज्यादा हैरत हुई इस लड़की ने मुझे फ़ोन क्यों किया?
अनम सैफ ही की गली में रहने वाली एक लड़की थी ये लोग सैफ के रिश्तेदार भी थे और पडोसी भी थे लेकिन इनका मिलना जुलना कोई ख़ास नहीं था महीने दो महीने में कभी कभी आते जाते हुवे बात हो जाती थी, सैफ कभी कभी उनके अब्बा के पास उनके लकड़ी के कारखाने में जो के गली में ही उनके घर में बाहर की तरफ बना हुवा था बैठ जाता था, घर के अंदर भी चला जाता था मगर कई महीनो में एक बार,
और दूसरी बात ये थी के दोनों परिवारों के सम्बन्ध बिलकुल भी अच्छे नहीं थे बस सैफ ही उनसे कभी कभी बात कर लेता था, जब ऐसे घर से किसी लड़की का फ़ोन सैफ के पास आया तो उसका चौकना लाज़मी था,
हाँ अनम के भाई फैज़ान से तो सैफ की बातें होती रहती थीं, घर पर भी और फ़ोन पर भी लेकिन उनके घर की किसी लड़की से पहली बार सैफ की बात हुई थी,
हाँ अनम कैसी हो कहते हुवे सैफ मुस्कुराया उधर से भी हंसी के साथ आवाज़ आई आप तो हमें बिलकुल याद नहीं करते सोचा हम ही याद कर लें,
ये बात सैफ को बहुत रोमांचित कर रही थी क्योंकि सैफ असल में उनके परिवार के खुद ही करीब रहना चाहता था और वो लोग भी सैफ से बहुत अच्छे से पेश आते थे जब भी सैफ उनके घर जाता था,
मेरे पास आप लोगों का नंबर ही नहीं था मैं कैसे आपको याद करता सैफ कहने लगा, और घर पे सब लोग कैसे हैं आप कैसी हो सैफ ने पुछा। बस अल्लाह का शुक्र है उधर से अनम बोली, आप बताओ आप कैसे हो, अल्हम्दुलिल्लाह मैं भी ठीक हूँ सैफ ने कहा,
अनम कहने लगी सैफ शाम को हमारे घर आना आपके लिए मैंने दही भल्ले बनाये हैं अपने हाथ से, ये सुनकर सैफ बहुत रोमांचित हुवा कहने लगा इंशा अल्लाह मैं ज़रूर आऊंगा कह कर सैफ मन ही मन मुस्कुराया,
सारा दिन सैफ की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था बस अब तो वो शाम होने का इंतज़ार कर रहा था ,
सारा दिन गुज़र गया सैफ का ये सोचते हुवे और शायद सोचने से ज्यादा खुश होते हुवे के मेरे लिए दही भल्ले बनायें हैं अनम ने,
अनम अपने घर की सबसे छोटी लड़की है अनम से बड़ी पांच बहने और हैं और तीन भाई वो भी उससे बड़े हैं, शादी सिर्फ एक भाई और एक बहन की हुई है,
दरअसल वो लोग उस वक़्त बहुत परेशानी से गुज़र रहे थे , एक भाई जिसकी शादी हुई है ये लोग उसकी बीवी से बहुत परेशान हैं वो घर छोड़ कर चली गई थी और इनके पूरे परिवार के ऊपर पुलिस केस किया हुवा था जिसकी वजह से इन लोगों को बहुत ही ज्यादा परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, यहाँ तक के तीन लड़कियां और उनके माँ बाप दो बड़े भाइयों को जेल तक काटनी पड़ी, हालांकि सैफ के पापा और सैफ के चाचाओं और पड़ोसियों ने उन सब की जमानतें मिल कर कराईं, लेकिन इतना होने के बावजूद भी सैफ के घर वालों से उन के सम्बन्ध अच्छे नहीं थे, लेकिन इसमें ज़रा भी शक नहीं था के वो लोग सैफ के साथ बहुत अच्छे से पेश आते थे, सैफ को उनके बर्ताव से बिलकुल ख़ास परिवार जैसी फीलिंग आती थी,
और इस सच से भी बिलकुल मुँह नहीं मोड़ा जा सकता था के सैफ किसी भी क़ीमत पर खुद उनके परिवार के करीब रहना चाहता था, लेकिन मज़बूरी ये थी के उनका परिवार ज्यादा लड़कियों का परिवार था सब लड़कियां कुंवारी थीं, इसी वजह से सैफ उनके घर जाता हुवा हिचकिचाता था, लेकिन किसी भी बहाने ही सही सैफ को उनके घर जाना अच्छा लगता था,
आइये थोड़ा पीछे चलते हैं बात को ठीक से समझने के लिए तक़रीबन सन 1994 या 1995 में अनम और उसका परिवार मेरठ से दिल्ली आये थे रहने के लिए उस वक़्त सैफ कुंवारा था जब इसने पहली बार अनम की बड़ी बहन मनाहल यानी (रुक) को देखा था, यहाँ मैं एक बात क्लियर कर दूँ ये जो भी नाम मैं लिख रहा हूँ ये सब नाम काल्पनिक हैं जो के सैफ ने ही इन सब को दिए थे क्योंकि जब मैं ये कहानी लिख रहा हूँ तो इन सब बातों को तकरीबन 7 साल होने जा रहें तो सैफ को भी अब ये याद नहीं के किस को किया नाम दिया था सिवाए 3 नामो के और सैफ का ये सैफ नाम लुबना ने दिया था जो के ज्यादातर सैफ अब इसी नाम को यूज़ करता है उसकी ट्विटर आईडी भी (R सैफ) नाम से है जिस पर वो बहुत पॉपुलर है,
इस इस बात को कई साल गुज़र चुके हैं, हो सकता है नामों में कुछ इधर उधर हो जाये क्योंकि सब नाम काल्पनिक हैं
आज जब मैं ये कहानी लिख रहा हूँ 01-10-2021 तारिख है,
अनम के परिवार को दिल्ली आये हुवे तक़रीबन 26 या 27 साल हो गए हैं सैफ उस वक़्त इनकी गली में नहीं रहता था क्योंकि ये लोग आपस में रिश्तेदार थे इस लिए सैफ इनके घर कभी कभी आ जाता था, इस बात में कोई शक नहीं था के सैफ सिर्फ मनाहल (रुक) के लिए इनके घर आता था, अंदर ही अंदर सैफ मनाहल (रुक) को चाहता था शादी करना चाहता था लेकिन इसके पीछे कई बड़ी बड़ी रुकावटें थीं, सबसे पहली रूकावट मनाहल (रुक) से बड़ी 3 बहने और थीं जब तक उनकी शादी नहीं हो जाती तब तक मनाहल की शादी मुमकिन नहीं थी, दूसरी रूकावट ये थी के सैफ के घर के बड़े यानी उसके वालिद और चाचा बड़े सख्त मिज़ाज लोग थे सैफ चाह कर भी अपने दिल की बात उनसे नहीं कह सकता था, एक बार को सैफ के वालिद मान भी जाते तो वो अपने भाइयों यानी सैफ के चाचाओं की सलाह के बगैर कोई कदम नहीं उठाते थे और सैफ के चाचा इस रिश्ते के लिए कभी हाँ नहीं करते,
और अगर सैफ के वालिद और सैफ के चाचा भी मान जाते तो उसके एक आगे और रूकावट थी जो के सबसे बड़ी रूकावट थी वो रूकावट ये थे के अनम के वालिद साहब सऊदी में काफी वक़्त गुज़ार कर आये हुवे थे माशा अल्लाह अच्छा खाँसा पैसा जमा किया हुवा था उन्होंने इसलिए उनकी नज़र में सैफ का परिवार गरीब परिवारों की गिनती में आता था, और उस वक़्त उनके मिज़ाजों के अनुसार वो किसी भी क़ीमत पर एक गरीब परिवार में अपनी लड़की नहीं ब्याहते,
लेकिन उनके सऊदी जाने से पहले के उनके दिन बहुत तरस खाने वाले थे अल्लाह किसी को ऐसे दिन ना दिखाए जैसे उनके दिन थे, अनम के पापा को लकवा मार गया था अनम की अम्मी ने उनकी बहुत खिदमत की थी, छोटे छोटे बच्चे घर में बहुत सारे थे, सैफ के गाँव से सैफ के दादा के यहाँ से इनके लिए गेहूं और खाने पीने के गुड़ शक्कर वगैरा आते थे, लेकिन जब अल्लाह किसी को बुरे दिनों से निकाल कर थोड़ा अच्छा वक़्त देता है तो ज्यादातर लोग अपने बुरे दिनों को भूल जाते हैं
हालांकि सैफ का परिवार इतना गरीब भी नहीं था के उनके घर में, कोई रिश्ता ना आये और उस वक़्त सैफ के परिवार के पास जो चीज़ थी उस चीज़ के सामने उस दौर में रुपयों पैसों की कोई औक़ात नहीं थी, और वो चीज़ थी उनका खानदानी होना उस दौर में सैफ का परिवार बहुत इज़्ज़तदार परिवार कहलाता था जो के उनको विरासत में मिला था सैफ के दादा की वजह से ये लोग ब्रादर में बहुत सम्मान भरी नज़रों से देखे जाते थे, रही बात गरीबी की तो ये बता दूँ के वो लोग उस वक़्त भी एक मिडिल क्लास फैमिली की तरह ठीक ठाक खाते पीते घर से थे,
खैर बाहरहाल ये टॉपिक दूसरा है इस टॉपिक पर अलग से लिखूंगा वरना ये वाक़िया बहुत लम्बा हो जाएगा,
सैफ शाम को घर आया और अपनी बाइक घर पर खड़ी कर के अपना बैग वगैरह घर रख के ख़ुशी ख़ुशी उनके घर गया और दरवाज़ा बजाया,
इस वक़्त सैफ के ये तो याद नहीं के दरवाज़ा किसने खोला था हाँ मगर ये बहुत अच्छी तरह याद है के उस दिन सैफ का वेलकम अनम के घर में बिलकुल अलग अंदाज़ से हुवा था सैफ को देख कर उनके घर का हर मेम्बर इस से खुश था जिस तरह से किसी ख़ास मेहमान को देख सब खुश होते हैं,किसी ख़ास मेहमान का इंतज़ार कर रहे थे बिलकुल ऐसा माहौल था उनके घर का,
दुआ सलाम हुई उठना बैठना हुवा खूब बातें हुईं किया किया बात हुई ये सैफ को याद नहीं, लेकिन इज़्ज़त बहुत ही ज्यादा हुई ये उसको बहुत अच्छे से याद है, फिर अनम ने खुद अपने हाथ से दस्तरखान लगाया और दही भल्ले परोसे, दही भले वाकई में बहुत टेस्टी बनाये थे जिसने भी बनाये थे, खैर बाहरहाल दो तीन घंटे हँसते बोलते कब गुज़र गए सैफ का पता ही ना चला, दुआ सलाम करके सैफ उठकर चलने लगा मगर सच बात तो ये है के सैफ का दिल चाह रहा था के उनकी बातें कभी खत्म ना हों और सैफ को कभी वहां से जाना ना पड़े, क्योंकि ये दुनिया है और दुनिया के उसूल बहुत सख्त होते हैं आपको हर वो काम करना पड़ता है जिसको आपका मन ना चाहे,
लेकिन सैफ ये ठान चूका था अब चाहे जो हो जाए वो इनकी मदद ज़रूर करेगा, लेकिन इस दौरान सैफ की और अनम की बातें मैसेज के ज़रिये बहुत ज्यादा होने लगी थीं, सैफ ने अनम से दोस्ती सिर्फ मनाहल की वजह से की थी, क्योंकि अब मनाहल ने बिलकुल मना कर दिया था तो सैफ अनम से बातें कम करना चाहता था, लेकिन अनम अब बहुत ज्यादा सैफ को मैसेज करने लगी थी सैफ थोड़ा अपने आपको अनकंफ़र्टेबल महसूस करने लगा था, वो चाहता था के वो अनम से अब जयादा बात ना करे उसके लिए उसने एक तरीका ढूंढा ताके अनम खुद ही उससे दूर हो जाये,
ये बातें फिर से हुईं
muje pata tha aap mazak kar rahe the main bhi mazak kar rahi thi
कहिये तो आपको हमसे किया चाहिए बस अदा ही अदा या वफ़ा चाहिए
एक चुटकी में दिल तोड़ सकते हैं दिल जो टूटा हो तो जोड़ सकते हैं,
सैफ को मनाली गए हुवे एक डेढ़ महीना हो गया होगा इधर फैज़ान पर पुलिस का और जमानतियों को दबाव बढ़ता जा रहा था सैफ की बहने बार बार फ़ोन कर रहीं थीं भैया हमारे भैया को जल्दी बुला लो, अब सैफ की समझ में ये नहीं आ रहा था के फैज़ान को बुलाऊँ तो उससे काम किया करवाऊंगा लकड़ी का थोड़ा बहुत काम था जो सैफ ने अपने भाई को ठेके में दिया हुवा था जो के खत्म हो चूका था, खैर सैफ ने छोटे मोटे काम के बहाने फैज़ान को मनाली एक और कारीगर के साथ बुला लिया, सैफ ने अपने दुसरे वाले छोटे भाई को भी बुला लिया था, क्योंकि वो भी काम से परेशांन था फैज़ान एक कारीगर के साथ मनाली पहुँच गया था साथ में सैफ का छोटा भाई भी मनाली पहुंच गया था,
इतने भी वफादार ना बनिये कीलोग आपको अपना गुलाम समझने लगे,
सैफ इलाहबाद पहुंचा वकील से मिला उसे लग रहा था वकील उसका बेवक़ूफ़ बना रहा है उसने सिर्फ उसको अपनी फीस लेने के लिए बुलाया है, ना जाने उसने सैफ को किया किया समझाया ये करना है वो करना है वगैरा वगैरा अपनी फीस ली और वापस मेरठ वाले वकील के पास जाने की सलाह दे दी, सैफ फीस दे कर वहां से उठ कर बाहर आ गया,यहाँ मैं एक बात एक और लिखना चाहूंगा सैफ के बाप दादाओं ने भी कभी कोर्ट कचहरी का मुँह नहीं देखा होगा सैफ की तो बात ही दूर है मगर वो बेचारा उन लोगों की ख़ुशी के लिए सबकुछ कर रहा था यहाँ तक के बहुत पहले वो कोर्ट में झूंठी गवाही भी दे चूका था ना चाहते हुवे भी जब तो सैफ की और अनम के घरवालों की इतनी बातचीत भी नहीं थी,सैफ ने कभी अपने लिए अपनी कंपनी से कोई छुट्टी नहीं मांगी मगर इन सब के लिए वो बार बार छुट्टी लेकर दिल्ली आता था मनाली से कभी कड़कड़डूमा कोर्ट जाना है कभी मेरठ जाना है कभी इलाहबाद जाना है,इधर सैफ की एक चाची ने भी उनसे ज़मानत वापस लेने की धमकी दे डाली उसको दस हज़ार रूपये देने के लिए स्पेशल मनाली से दिल्ली आना पड़ा,सैफ ने कभी किसी चीज़ से मुँह नहीं मोड़ा जहाँ पैसा खर्च करना है पैसा खर्च किया जहाँ भागदौड़ करनी भागदौड़ की किसी के आगे हाथ जोड़ने हैं हाथ जोड़े किसी को धमकाना है तो धमकाया,यहाँ तक के जब ज़रूरत पड़ती वो मनाली से अपने ताऊ के लड़के को मेरठ फ़ोन करता के भैया ज़रा वकील के पास चले जाओ उससे बात करो वो किया चाहता है और वो वकील हरामजादा इतना सुव्वर था के सिर्फ पैसे ऐठने के लिए उनको बुलाता था, और सैफ के ताऊ का लड़का भी बेचारा उसकी एक फोन कॉल पर वकील के पास चला जाता था और वकील जो पैसे मांगता दे आता था उसने कभी ना नहीं कहा, ये सब कुछ सैफ ने एक परिवार की मुस्कान वापस लाने के लिए कियाएक बात बताऊँ अगर किसी के पास बहुत ज्यादा पैसा पावर है और वो किसी की मदद करता है तो कोई बड़ी बात नहीं बड़ी बात ये है के किसी के पास उतना ही पैसा हो जिससे या तो वो अपना घर ठीक से चला ले या किसी की मदद कर दे और उसके बावजूद वो किसी की मदद कर रहा है तो ऐसे इंसान का कभी दिल ना दुखाना कियोंके उसका जीना मरना सिर्फ और सिर्फ तुम्हारे लिए हो रहा है,
एक बार तो सैफ ने अपने एक दोस्त को फ़ोन करके इनके घर पैसे पहुंचयाये
जबकि सैफ की ज़िन्दगी उस वक़्त खुद ही ऐसे इम्तिहानों से गुज़र रही थी के उसे खुद ही किसी का सहारा चाहिए था, जब के सैफ खुद ही बेसहारा था इतने बड़े जहाँ में एक दम तने तनहा था एक इंसान ऐसा नहीं था उसकी अम्मी को छोड़ कर जो उसके आंसू पोंछे, लेकिन सैफ अपनी अम्मी के साथ अपनी कोई परेशानी शेयर नहीं करता था क्योंकि उसकी अम्मी को खुद ही कई ज़ख्म पहले से लगे हुवे थे शोहर छोड़ कर चले गए दुनिया से जवान बेटा चला गया मकान टूट गया, अब अगर सैफ भी उन्हें अपनी परेशानियों का भागीदार बनाता तो वो बिलकुल टूट जातीं इसलिए सैफ उनके सामने अपनी कोई परेशानी नहीं बताता था हालांकि माँ से औलाद का कोई ग़म नहीं छुपता लेकिन वो बेचारी भी किया कर सकतीं थीं, कुल मिला कर सच यही था के एक इंसान सैफ के आंसू पोंछने वाला नहीं था, इसलिए सैफ को लगा के मैं अनम के परिवार के आंसू पोछूँगा उनका परिवार सैफ के आंसू साफ़ करेगा, लेकिन होनी को कुछ और ही मंज़ूर था, या यूं कहिये के सैफ की किस्मत में कोई ख़ुशी थी ही नहीं,तुम बेसहारा हो तो किसी का सहारा बनो तुमको अपने आप ही सहारा मिल जायेगासैफ कोर्ट से बाहर निकला और ऑटो पकड़ा वापस स्टेशन आया, गर्मी अल्लाह की पनाह थी गर्मी से इस क़दर गर्मी पड़ रही थी तौबा तौबा, स्टेशन के बाहर होटल पर बैठ कर खाना खाया, अनम के घर फ़ोन किया बातों बातों में ये बात होने लगी के कल हम डॉक्टर के जायेंगे, सादिया और अनम, सैफ कहने लगा तो एक काम करना लुबना को भी साथ ले लेना हम दोनों थोड़ी सी बातें कर लेंगे, जिसका ताना सैफ को तुरंत ही मिल गया के इलाहबाद जाने के बदले में सैफ ने ये शर्त रखी है, जब के अल्लाह गवाह है ऐसी कोई बात नहीं थी, बस ये था के जिस लड़की के साथ निकाह करना है उससे एक बार फेस टू फेस बातें तो हो जाएँ,लेकिन जब बुराईआनी होती है तो आकर ही रहती है,. डॉक्टर के यहाँ से वापस आते हुवे सैफ और लुबना बातों में इतने मशगूल हो गए के पीछे आती हुई अनम और सादिया बहुत पीछे रह गईं और थोड़ी देर के लिए बिछड़ गईं, उसकी वजह ये रही के सैफ घबराया हुवा था इस बात से कहीं कोई सैफ के साथ उन लोगों को देख ना ले क्योंकि सैफ को उनकी इज़त की परवाह अपनी जान से भी ज्यादा थी, इस बात का भी अलग ही मतलब निकाला गया के सैफ ने ये जानबूझ कर किया है जबकि लुबना खुद इस बात की गवाह थी के उन्होंने ये जानबूझ कर नहीं किया बस हो गया था,जैसे तैसे करके सैफ इलाहबाद से दिल्ली पहुंचा क्योंकि सैफ की दिल्ली से इलाहबाद की टिकट तो बुक थी लेकिन वापसी की टिकट नहीं थी अल्लाह गवाह है सैफ जब से नौकरी पर लगा था कभी बिना शीट बुक हुई ट्रैन में नहीं बैठा क्योंकि अगर ट्रैन में पहले ही से शीट बुक ना हो तो सफर नहीं अजाब बन जाता है, लेकिन सैफ नै हर वो काम के लिए किया जो वो अपने लिए कभी ना करता,अब हमे सबको इस बात का पूरा यकीन हो चूका था के कोर्ट कचहरी से हमारे पक्ष में कोई फैसला होने वाला नहीं था वकील सिर्फ पैसे ऐठ रहा था, तो फैसला ये हुवा के इन लोगों से फैसला किया जाये, उधर पुलिस का और जमानियों का दबाओ हमारे ऊपर बढ़ता जा रहा था के फैज़ान को पेश करो सब जानते थे के फैज़ान सैफ के पास मनाली में है,तो फैसला ये हुवा के ये लोग जो भी मांग रहे हैं इसको दो और इनसे अपनी जान छुड़ाओ,पांच या साढ़े पांच लाख रूपये उन लोगों ने मांगे,अब आगे समस्या ये थी के इतना पैसा कहाँ से लाया जाये, ना तो इतना पैसा अनम के घरवालों पर ना ही सैफ के पास था तो फैसला ये हुवा के घर का थोड़ा हिस्सा बेचा जाये कारखाने वाला हिस्सा, जो 20 या 22 गज बन रहा था, हमने वो हिस्सा नापा, नापने में थोड़ी गलती हो गई हमारे हिसाब से एक या दो गज़ ज्यादा नप गया, जितना हमने लोगों को बताया था के इतना बेचना है पैसे लेते वक़्त जब खरीदने वाले लोगों ने वो हिस्सा नापा तो एक या दो वो जगह कम निकली, लिहाज़ा जो कीमत लगाई गई थी उस हिस्से की उसके हिसाब से खरीदने वालों ने एक या दो गज़ ज़मीन के पैसे कम कर दिए, बिकवाने वाला सैफ का एक चाचा था जो के प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता था उसने अपना कमीशन ले लिया, जो के कोई भी होता तो लेता,पैसे देने के वक़्त जो हंगामा घर में उस वक़्त हुवा यकीन करो अगर सैफ के पास उतने पैसे होते जितना एडवांस लिया गया था तो सैफ उस वक़्त ज़मीन बिलकुल ना बिकने देता चाहे सैफ को अपनी जेब से एडवांस वापस करना पड़ता क्योंकि जो एडवांस आया था उसके पैसे खर्च हो चुके थे,और फिर एक कहानी और भी थी अगर जैसे तैसे पैसों का इंतज़ाम कर भी लेता सैफ तो प्रॉपर्टी बेचने के एक उसूल है अगर हम खुद बयाना वापस करते हैं तो डबल वापस करना पड़ता है और खरीदने वाला खुद वापस मांगता है तो उसको आधा मिलता है,अब इतने पैसे तो सैफ भी नहीं ला सकता था शायद दो लाख का बयाना आया हुवा था जिसका डबल चार लाख वापस करना पड़ता, अगर सैफ के बस में ये होता तो उसी दिन सैफ बयाना अपने पास दे कर उनकी ज़िन्दगी से उसी वक़्त निकल जाता हालांकि सैफ को मकान बिकवाने के लिए लोगों की खुशमंद करनी बड़ी थी मिन्नतें करनी पड़ी थीं क्योंकि ज़रूरत के वक़्त ना कोई चीज़ आसानी से बिकती है ना कोई चीज़ आसानी से मिलती है,और वैसे भी उस वक़्त प्रॉपर्टी की हालत बहुत खराब थी लोग ओने पौने में बेच रहे थे ओने पौने में खरीदी जा रही थी,कचहरी में लिखाई के पैसे लगते हैं ये बात सब जानते हैं ना तो वो पैसे खरीदने वाला देने को तैयार इधर अब्बा जी ने भी साफ़ मना कर दिया के मैं पैसे नहीं दूंगा, सैफ अपनी जेब से लिखाई के पैसे निकाल कर दे रहा है, सैफ पर किया गुज़र रही है इस बात से किसी को मतलब नहीं बस सब लोग अपनी अपनी ज़िद पर अड़े हुवे हैं, यहाँ तक बाद में भी किसी ने ये नहीं पुछा के तेरे कितने पैसे खर्च हुवे हैं, कोई ये तक सोचने को तैयार नहीं के सैफ का कुसूर किया है,परखा गया मुझे बहुत
लेकिन समझा नहीं गयाउस वक़्त सैफ ने खुद को कितना बेबस महसूस किया था ये सैफ का दिल ही जानता था, सैफ को लगने लगा था कहीं उससे कोई गलती तो नहीं हो रही इन सबका साथ दे कर,सैफ दिलो जान से उनकी मदद में लगा हुवा था, मगर कभी कभी ऐसा वक़्त आ जाता था जब सैफ को ये लगता था के तू इनकी ज़िन्दगी से निकल जा, लेकिन फिर सैफ की आँखों के आगे उन सब के मायूस चेहरे घूमने लगते थे,अब सैफ ने ये सोच लिया था के जो होगा देखा जायेगा तूने जो ज़िम्मेदारी उठाई है उसको पूरा किये बगैर कदम वापस नहीं लेने, और सच्चाई यही थी के उस सैफ के आलावा अगर कोई उनका अपना था तो सिर्फ अल्लाह ही था, जो के तमाम जहान का है,इधर सैफ और अनम की नोकझोंक लड़ाई का रूप लेती जा रही थी,
नोकझोंक इतनी बढ़ गई थी के सैफ चिड़चिड़ा होता जा रहा था सैफ की समझ में ये नहीं आ रहा था के वो करे तो किया करे अगर इनको छोड़ कर चला जाता है तो ये अकेले रह जायेंगे, अब ये बात सैफ का जूनून बन चुकी थी के किसी भी तरह इनको इस मुसीबत से बहार निकालना है चाहे मैं बर्बाद ही क्यों ना हो जाऊं अब कोई परवाह नहीं, जबकि अनम को ये लगने लगा था के वो सैफ पर अहसान कर रही है, अल्लाह की कसम सैफ के दिमाग में जो निकाह का भूत था वो पूरी तरह उत्तर चूका था, अब तो बस किसी तरह इनका मसला हल हो और सैफ अपने रस्ते निकले,धीरे धीरे वक़्त गुज़र रहा था इधर फैज़ान की ससुराल वालों के मुँह पर पैसे मार कर उन से जान छुड़ा ली गई थी, दो जगह जा कर उनको पैसे दिए गए थे पहली क़िस्त मेरठ के कोर्ट में जा कर अदा की गई थी जहाँ सैफ के साथ सादिया भी गई थी और सैफ के मामू मामी भी साथ गए थे, वो लोग फैज़ान की ससुराल वालों के साथ गाडी में बैठ कर गए थे, सैफ और सादिया बाइक पर मेरठ गए थे, वहां पैसे देने के बाद सैफ के मामू मामी जो सगे मामू मामी नहीं थे रिश्ते में लगते थे, वो लोग फैज़ान की ससुराल वालों के साथ उनके गाँव तक गए थे ये कह कर के सही सलामत पैसे पहुंचाने हैं, जो के सैफ को बिलकुल अच्छा नहीं लगा था, लेकिन हर इंसान अपनी मर्ज़ी का मालिक है,हालांकि इन लोगों का साथ देने में सैफ के घरवाले बिलकुल खुश नहीं थे रोज़ाना सैफ की और सैफ की बीवी की लड़ाई होती थी के तुम उनके यहाँ किया करते हो हर वक़्त किया मतलब है तुम्हारा उनसे, मोहल्ले का कोई ना कोई आदमी सैफ के घर शिकायत करता रहता था के सैफ हर वक़्त अनम के घर में रहता है, सैफ ये बात भी जानता था के सैफ की अम्मी भी तेरे इनके साथ रहने से खुश नहीं है लेकिन वो बेचारी कहती कुछ नहीं थीं सैफ से,यहाँ तक के सैफ के सामने एक दिन ऐसा इम्तिहान आ गया था जो शायद सैफ ने कभी सोचा तक ना होगा,कोर्ट जाना था अनम की अम्मी को लेकर तारिख पर उसी दिन सैफ की अम्मी की आँख के ओप्रशन की तारिख थी, अब सैफ उलझन में फंस गया करे तो किया करे बहुत सोचने के बाद उसने अम्मी को समझाया के अम्मी ओप्रशन की तारिख आगे की ले लेते हैं आज मुझे बहुत ज़रूरी काम है, क्योंकि इनकी कोर्ट की तारिख आगे बढ़ने का मतलब था इनका और मुसीबतों में घिरना,.उस दिन सैफ अपनी अम्मी को ना ले जाकर उनके साथ कोर्ट गया सोचों सैफ पर किया गुज़री होगी इस बात को लेकर, सैफ का छोडो सैफ की अम्मी का कितना दिल दुखा होगा उस दिन भले ही उन्होंने अहसास ना होने दिया हो,खैर बाहरहाल फैज़ान की ससुराल वालों से जान छूट चुकी थी अब धीरे धीरे उनकी ज़िन्दगी सामान्य होने लगी थी, जैसे जैसे उनकी ज़िन्दगी सामान्य हो रही थी वैसे वैसे अनम और सैफ की लड़ाई दिन पे दिन बढ़ती जा रही थी, क्योंकि अनम को तो शुरुवात से ही इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था के फैज़ान की बीवी का मसला हल हो या ना हो, बस सैफ मेरे आलावा किसी और से बात ना करे, सैफ सिर्फ और सिर्फ उसी का बन कर रहे, बाकी लोग सैफ के हर तरह से साथ थे, उनकी बातों से लगता था के अब वो सैफ का अहसान मान रहे हैं, लेकिन सैफ के भी दिल में कहीं ना कहीं अनम धीरे धीरे अनम घर बना रही थी बीवी ना सही लेकिन एक दोस्त के नाते सैफ अनम को बहुत चाहता था, मगर अनम दिन पे दिन ज़िद्दी होती जा रही थी दोनों का झगड़ा बढ़ता ही जा रहा था इस वजह से सैफ बहुत ज्यादा अपसेट रहने लगा था वो अनम पर बहुत ज्यादा चिल्लाने लगा था यहाँ तक के अब वो अपने घरवालों पर भी चिल्लाता रहता था उसके स्वभाव में बहुत ज्यादा तबदीली आती जा रही थी, लेकिन दूसरी ओर बाकि घरवालों की नज़र में सैफ की बहुत ज्यादा इज़्ज़त हो गई थी अब हालात ये बन चुके थे के एक दिन भी अगर सैफ अनम के घर ना जाये तो ना तो सैफ को चैन आता था ना ही अनम के घरवालों को चैन आता था, ज्यादातर अनम और सैफ लैपटॉप पर काम करते रहते थे, बसअनम और सैफ की लड़ाई को अगर एक तरफ रख दें तो सबकुछ ठीक चल रहा था, सैफ को वो लोग बिलकुल घर दामाद या बेटे की तरह चाहते थे, यहाँ तक के अनम की अम्मी और अब्बा जी भी सैफ को एक दम औलाद की तरह समझते थे, अगर किसी दिन सैफ घर नहीं आता था तो अनम की अम्मी और अब्बा जी भी फ़ोन कर के पूछने को कहते के पता करो आज सैफ क्यों नहीं आया, वो लम्हे ऐसे लम्हे थे के जिनकी कोई कीमत नहीं होती ऐसे लम्हो को बेशकीमती कहा जाता है, जो ज़िन्दगी भर की यादें बन जाते हैं,एक बार फिर से थोड़ा पीछे चलते हैं सैफ का काम मनाली में ख़त्म हो चूका था उसे वहां से पैकअप करके वापस आना था, लेकिन फैज़ान के पीछे पुलिस का सिकंजा कसता ही जा रहा था वो किसी भी कीमत पर घर नहीं आ सकता था, लेकिन मनाली में जब काम ही नहीं बचा तो वो वहां भी नहीं रह सकता था,इधर फैज़ान की अम्मी बहुत परेशान थीं के अब किया होगा उन्होंने सैफ को फ़ोन किया के भैया तू किसी भी तरह से उसे वहां रोक ले वो अपना खाना पीना खुद के पैसों से कर लेगा, जब के वो ये नहीं समझ रही थीं के खाना पीना तो खुद के पैसों से कर लेगा मगर रहेगा कहाँ, क्योंकि जिस फ्लैट में वो लोग रहते थे उसका किराया कंपनी देती थी जिसे खाली कर के आना था, सैफ की समझ में कुछ नहीं आ रहा था के किया करा जाए, फिर सैफ ने एक दूसरी कंपनी के मैनेजर से बात की जिनको आगे का काम वहां मिल गया था, के भाई तुम फैज़ान को अपने पास रख लो ये समझ लेना के एक लेबर ज्यादा काम कर रही है तुम्हारे पास भले ही कम पैसे दे देना लेकिन इनको जब तक मैं ना कहूं दिल्ली नहीं भेजना, और वो मान गया उसने फैज़ान को अपने साथ अपने ही फ्लैट में रखा, इस तरह से फैज़ान का वहां रुकने का इंतज़ाम हो गया, लेकिन यहाँ भी सैफ के ऊपर बुराई आई के वो खाना टाइम पर नहीं खिलाता,यहाँ पर सरासर फैज़ान की गलती है वो मर्द है घर का बड़ा है छोटी छोटी बातें घर पे नहीं बतानी चाहिए खासतौर पर माँ को तो पता भी नहीं लगना चाहिए के उसकी औलाद परेशान है,जब सबकुछ सामान्य हो गया था तो अब सैफ भी मनाली का काम खत्म करके दिल्ली आ गया था नॉएडा में साइट चल रही थी रोज़ाना रात को सैफ साइट से वापस आने के बाद अनम के घर एक डेढ़ घंटे के लिए जाता था आंधी आ जाये तूफान आ जाये लेकिन अब इनका मिलना बदस्तूर होता था, अब ज़िक्र लुबना के और सैफ के निकाह का चलने लगा के चलो इस काम को निपटा लेते हैं, सैफ ने बार बार इनसे पुछा के घर वाले मान भी जायेंगे या नहीं, सादिया ने सैफ को सलाह दी के तुम कहीं से चीनी पढ़वा लाओ, जबकि सैफ ने ये काम ज़िन्दगी में कभी नहीं किया, अल्लाह गवाह सैफ आज तक कोई भी किसी भी तरह का काम करवाने मुल्ला मौलवी के पास नहीं गया, भला चीनी पढ़वा कर कहाँ से लाता, चलो देखेंगे आगे चल कर किया होता है, अब बात सिर्फ निकाह की हो रही थीं सैफ ने बोल दिया के ये तो चुटकियों का काम है, बोल तो दिया लेकिन जब इस काम के लिए निकला तो सैफ के दांत खट्टे हो गए, किस मौलवी से बात करे सब तो सैफ को जानते हैं, हाँ ये सच है के ये चुटकियों का काम था लेकिन अगर किसी और का निकाह करवाना होता तब,अपने लिए सैफ किस्से करे उसकी हिम्मत ही नहीं हो रही थी इसी कश्मकश में कई दिन निकल गए, और फिर सैफ आज भी इस बात से डर रहा था के कहीं बदले वाली बात ना आ जाये के सैफ ने हमारी मदद के बदले में ये काम किया है, कुल मिला कर सैफ जानबूझ कर भी इग्नोर कर रहा था निकाह की बात को, इस बात को लेकर एक दिन लुबना और सैफ की फ़ोन बहुत लड़ाई हुई लुबना ने गुस्से में कह दिया के अब कोई ज़रूरत नहीं है निकाह की, सैफ ने भी गुस्से में बोल दिया के हाँ अब ज़रूरत भी क्यों होगी सारा काम जो निपट गया, फिर थोड़ी देर बाद लुबना का फ़ोन आया के जल्दी से मौलवी को ढून्ढ लो,फ़ोन से याद आया के जब मनाली में साइट चल रही थी सैफ दिल्ली में ही था फैज़ान का फ़ोन सैफ के पास आया के जब अबकी बार मनाली आओ तो मेरे लिए एक फ़ोन ले कर आना, ठीक है ले आऊंगा सैफ ने बोलै, सैफ मार्किट जा कर साढ़े नौ हज़ार का एक फ़ोन फैज़ान के लिए लेकर आया और लाकर उनके घर पे रख दिया, के जब मैं मनाली जाऊंगा तो ले जाऊंगा, उससे पहले सैफ के पास Asus का एक फ़ोन था जिसके लिए ज़ैनब अक्सर कहा करती थी के अब्बू जी जब आप नया फ़ोन लाओ तो ये फ़ोन मुझे दे देना,
ठीक है बेटा सैफ ने ज़ैनब से वादा कर दिया, फिर सैफ नया फ़ोन ले आया,अब सैफ के सामने एक नया इम्तिहान आ कर खड़ा हो गया सैफ का बेटा भी उस फ़ोन को मांगने लगा जिस फ़ोन को ज़ैनब ने माँगा था, क्योंकि वो फ़ोन था बहुत लाजवाब, हालांकि ज़ैनब ने भी कहा था के अब्बू जी ये फ़ोन आप अपने बेटे को दे दो, लेकिन सैफ ने वो फ़ोन ज़ैनब को ही दिया, लुबना से बात करने में परेशानी होती थी इस लिए लुबना को भी एक पुराना नोकिआ का फ़ोन ला कर दे दिया, जो के सैफ के घर का फ़ोन था,
फिर से झगड़ा हुवा पहले इसलिए झगड़ा हुवा के पैसों का क्यों पुछा, दोबारा इसलिए झगड़ा हुवा के पैसों का क्यों नहीं पुछा, पढ़ने वाले साथियों इंसाफ करना सैफ किस मुसीबत में फंस चूका था अब तुम देखते रहना आगे आगे सैफ के साथ किया किया होने वाला है, सब लिखूंगा आज मैं कुछ नहीं छुपाऊंगा फैसला पढ़ने वाले साथी करेंगे के सैफ कहाँ कहाँ गलत था,
इन्ही लड़ाइयों के चलते ही अनम ने मनाहल को निकाह वाली बात बताई थी गुस्से में, किया ही मनहूस दिन था जब अनम की और सैफ की वो लड़ाई हुई थी, जाने अनम ने उस रोज़ सैफ से किया किया कह डाला था, जो गुस्से में सैफ के मुँह से ये निकल गया के तुम क्यों मुझे नोच नोच कर खा रही हो,
कई बार इंसान कहना कुछ चाहता है निकल उसके मुँह से कुछ और जाता है ऐसा ही कुछ सैफ के मुँह से उस दिन गुस्से में निकला था नोच नोच कर खाना या लूट लूट कर खाना, उस दिन ये बात अनम की अम्मी तक पहुँच गई थी, मगर शाबाश अनम की अम्मी को भी,रात को जब सैफ अनम के घर पहुंचा तो सब पहले ही तैयार थे सैफ पर चढ़ाई करने को , किस क़दर चालाकी से पूरे घर ने उस वक़्त काम लिया, क्योंकि सैफ कभी कभी उनके घर में अपने पैसों से खाना बनवा देता था, तो अनम की अम्मी ने सैफ से कहा के हमने कभी तुमसे ये तो नहीं कहा के खाना बनवाओ तुम तो अपनी मर्ज़ी से खाना बनवाते थे कितने पैसे लगा दिए होंगे तुमने अब तक खाने में, तुम वो पैसे हमसे ले लो,जबकि सैफ उन लोगों पर अपनी औकात से ज्यादा पैसे खर्च कर चूका था अपना और अपने परिवार का पेट काट काट कर एक एक पैसे का हिसाब सैफ के पास है,लेकिन आप दिमाग़ देखिये उन लोगों का के गुस्से में पैसे लौटाने चाहे भी तो सिर्फ खाने के, जो के कोई बेगैरत ही होता जो खाने के पैसे वापस मांगता, अगर गुस्सा ही था तो ये पूछना था उनको सैफ से के भैया तेरे अब तक कितने पैसे खर्च हो गए, हमें हसाब बता दे जैसे ही पैसे आएंगे हमारे पास हम तुझे दे देंगे,जब के सैफ ने सादिया से खुद कहा था जब उनके मकान के पैसे उनको मिल चुके थे, के सादिया आप लोग अब मुझे मेरे पैसे दे दो मेरा हाथ बहुत टाइट है अब तो आपके पास पैसे भी हैं, नहीं भैया अभी नहीं जब मैं बताउंगी तब पैसे माँगना ऐसे बात खराब हो जाएगी सादिया ने जवाब दिया,
सैफ को लगा के सादिया इस लिए अभी पैसे मांगने को मना कर रही है ताके वो इन सब बातों का हवाला दे कर अपनी अम्मी और अपने भाई को सैफ और लुबना के निकाह के बारे में बता सके और दोनों को साथ में रहने की मंज़ूरी ले सके, लेकिन सैफ ये नहीं जानता था के इसके पीछे कितनी खतरनाक प्लानिंग चल रही है,फिर एक दिन आया और इन लोगों ने अपनी बहन आयेजा (गुल) को भी ये बात बता दी, सैफ को ये याद नहीं है, के आयेजा को क्यों बताना पड़ा, उन्होंने सैफ को फ़ोन पर ये बात बताई के हमें आयेजा को ये बात बतानी पड़ गई, सैफ थोड़ा परेशान हुवा के अब आयेजा से नज़रे कैसे मिलाएगा, सादिया ने या लुबना ने उसको तसल्ली दी के हमने उसे समझा दिया है वो आपसे फ़ोन पर बात करेगी,हेलो: मैं आयेजा बोल रही हूँ अगले दिन आयेजा का फ़ोन सैफ के पास आया, अस्सालमु अलैकुम सैफ ने सलाम किया, वालैकुम अस्सलाम आयेजा ने सलाम का जवाब दिया,भइया हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी आप हमारे साथ इतना बड़ा धोखा करोगे हमारी पीठ में खंजर घोंपोगे और ना जाने सैफ को आयेजा ने किया किया कहा, सैफ की आँखों में आंसू आ गए आवाज़ भर्रा गई आयेजा से बात करते हुवे, कहने लगा मैंने तो साफ़ कह दिया था के कोई ज़बरदस्ती नहीं है अगर निकाह नहीं भी होगा तो मैं इसी तरह आपके साथ रहूँगा आपका हर हाल मैं साथ दूंगा, जो भी जवाब उस वक़्त सैफ को सूझा उसने वो जवाब दिया, लेकिन हकीकत तो ये थी जिस तरह की बातें आयेजा ने सैफ से कीं उसके बाद सैफ को कोई जवाब ही नहीं सूझ रहा था,फिर आयेजा थोड़ा ठंडे होते हुवे बात करने लगी, कहने लगी हमारी अम्मी को पैसे दो ताके हमारा निकाह हो सके, सैफ बोला हाँ इंशा अल्लाह मैं जल्दी ही डेढ़ दो लाख रूपये दूंगा, आयेजा चौंकते हुवे बोली हैं डेढ़ दो लाख में किया होगा, कम से कम चार पांच लाख रूपये तो होने चाहिएं,सैफ सकपकाया सैफ की समझ में अब आने लगा के तेरा सिर्फ और सिर्फ इस्तेमाल हो रहा है और यहाँ तेरा कोई हमदर्द नहीं तेरे ज़रिये सब लोग अपनी मुश्किलों को हल करना चाहते हैं,क्योंकि एक बार सादिया ने भी बातों बातों में सैफ से कह दिया था के हम चाहते तो हम आपसे कहते के हमारे भैया के केस के सारे पैसे आप खर्च करो, झटके झटके पर झटके लग रहे थे सैफ को लेकिन अभी असली झटके लगने बाकी हैं ये तो सिर्फ छोटे झटके हैं,ठीक है इंशा अल्लाह देखते हैं वक़्त आने पर किया होता है सैफ ने आयेजा से कहा वक़्त आने दो कितने पैसों तक का इंतज़ाम होता है अल्लाह मालिक है, सैफ ने किसी तरह उसको भी समझाया और खुद को भी समझाया,इधर एक बार झगड़े में अनम सैफ को चैलेन्ज कर चुकी थी के मैं तुम्हे और लुबना को किसी भी क़ीमत पर एक नहीं होने दूंगी, यहाँ तक के उसने सैफ को अहसान फरामोश तक कह डाला, सैफ की ये समझ में नहीं आ रहा था के अहसान वो उन पर कर रहा है या वो लोग सैफ पर अहसान कर रहे हैं, सोचो उससे शख्स के ऊपर उस वक़्त किया गुज़री होगी जो शख्स अपना जीना मरना सिर्फ उन्ही लोगों के लिए कर चूका था, यहाँ तक के वो ये भी भूल गया था के इन लोगों के आलावा उसका अपना एक परिवार भी है,आप खुद अंदाज़ा लगाओ जो इंसान किसी पर अहसान कर रहा हो और उसका अहसान मानने के बजाये वो लोग उसी को अहसान फरामोश कहने लगें,और ऐसा भी नहीं के सैफ बुज़दिल इंसान हो भीगी बिल्ली हो, वो तो वक़्त पड़ने पर किसी से भी भिड़ने की ताक़त रखता है, उस फौजी को सैफ ने उनके घर से धक्के मार कर निकाल दिया था जो अपने आपको बदमाश कहता था और इनकी ज़िंदगी हराम किये हुवे था,सैफ अल्लाह के आलावा किसी से नहीं डरता था, किया सैफ उनको सबक़ नहीं सिखा सकता जब वो लोग सैफ के साथ खेल रहे थे, लेकिन नहीं सैफ सबकुछ जानते बूझते भी सब्र किये जा रहा था अब सैफ के मन में ये बात भी आती थी के चलो कोई बात नहीं ये अजर ना देंगे अल्लाह तो देगा अल्लाह सब देख रहा है,सैफ को बहुत गुस्सा आया इतना गुस्सा आया अहसान फरामोश वाली बात सुन के अगर उस वक़्त अनम उसके सामने होती तो कहीं सैफ उस पर हाथ ना उठा देता, लेकिन गुस्से में सैफ उसको गाली देना चाहता था लेकिन सब्र करते हुवे सैफ ने उसको साली कह डाला क्योंकि वो सच में साली ही तो लगती थी,बात लुबना तक पहुंची, हेलो अस्सलामु अलैकुम लुबना ने सैफ को फ़ोन किया, वालैकुम अस्सलाम कैसी हो लुबना सैफ ने जवाब दिया, आपने अनम को गाली दी थी? लुबना बिना खैरियत बताए सैफ से पुछा, हाँ साली तेरा मुँह तोड़ दूंगा कहा था, तो किया आपको अनम ने ये नहीं बताया के मैंने साली क्यों कहा, सैफ ने पुछा, लेकिन उसको इस बात से कोई मतलब नहीं था के अनम ने सैफ को किया कहा किया नहीं कहा, उसको तो बस इस बात से मतलब था के सैफ ने गाली क्यों दी क्योंकि पानी ढलान की तरफ बहना शुरू हो गया था,सैफ लगता भी किया था लुबना का वो तो सिर्फ मोहरा था सिर्फ निकाह के कागज़ पर ही तो वो शोहर था दिल से तो वो लुबना का कुछ भी नहीं था सिर्फ ज़रूरत पूरी करने की मशीन था,कोशिस करो के सबकुछ टूट जाये मगर वो भरोसा कभी ना टूटे
जो किसी अपने ने आप पर किया हो,
लकिन सैफ का भरोसा धीरे धीरे कर के ये लोग तोड़ रहे थे, आयेजा से बात होने के बाद सैफ ने लुबना से बात की,हेलो, अस्सलामु अलैकुम लुबना ने सलाम किया, वालैकुम अस्सलाम जवाब देते हुवे सैफ बोला कैसी हो, अल्लाह का शुक्र है लुबना ने जवाब दिया, किया मैंने आपसे से साफ़ साफ़ नहीं कहा था के आप पर कोई ज़ोर ज़बरदस्ती नहीं आप मुझसे निकाह नहीं भी करोगी तो भी मैं आप लोगों का साथ दूंगा,कहा था लुबना ने जवाब दिया, सैफ रुआंसे अल्फ़ाज़ों में बोला फिर ये सब मेरे साथ किया हो रहा है, जिसके जो जी में आ रहा है वो मुझे बोल रहा है,जबकि आपने कहा था के हम सब सम्भाल लेंगे तो फिर ये सब क्यों हो रहा है मेरे साथ, क्यों आपने मुझसे निकाह किया बोलो जब मैं बार बार कह रहा था के निकाह की ज़रूरत नहीं है मैं आपका साथ इसी तरह देता रहूंगा,मैं डर गई थी कहीं आप हमारा साथ ना छोड़ दो इसलिए निकाह करना ज़रूरी था मैंने अपने भइया की ख़ुशी की खातिर आपसे निकाह किया उधर से लुबना कह रही थी, ये सुनते ही सैफ पर मानो आसमान से बिजली गिर गई हो,सैफ को अब तक लग रहा था लुबना उससे प्यार करती है इसलिए मनाहल को साइड में करके खुद सैफ से निकाह किया,लेकिन अब सैफ की समझ में आया क्यों उन्होंने सैफ से मनाहल का निकाह नहीं होने दिया, क्योंकि मनाहल सैफ को पसंद करती थी वो भी सैफ से निकाह करना चाहती थी सैफ ही की तरह, इन लोगों को इस बात का डर था अगर सैफ और मनाहल का निकाह हो गया तो फिर मनाहल सैफ की हो जाएगी सैफ से कभी धोखा नहीं करेगी हो सकता है सैफ के साथ उसकी बीवी बन कर घर छोड़ कर चली भी जाए,अगर वो सैफ के साथ चली गई तो हमारा किया होगा, इसी लिए इन्होने ये प्लानिंग की, मनाहल को एक तरफ किया लुबना ने और खुद कमान सम्भाली,लुबना की ये बातें सुनकर सैफ को लग रहा था के ज़मीन फ़टे और वो उसमें दफन हो जाये,एक बार फिर थोड़ा पीछे चलना होगा, बात नोटबंदी के वक़्त की है, नोटबंदी हुई और हर घर नए नोटों के लिए परेशान था, कोई किसी के काम आने को तैयार नहीं था, क़यामत के दिन की तरह नफ्सा नफ़्सी का आलम हो गया था हर शख्स को अपनी ही पड़ी हुई थी,उस वक़्त भी सैफ सिर्फ उन्ही के बारे में सोच रहा था उनके घर में सैफ ने नए नोटों की कभी कमी ना आने दी, एक बार को भले ही सैफ के घर में नए नोट ना हों लेकिन अनम के घर में कभी किल्ल्त ना होने दी, डेढ़ दो साल उनके घर का सगा और ज़िम्मेदार और इनके हिसाब से घर का सबसे समझदार बेटा फैज़ान दिल्ली से बाहर मनाली में रहा,आठ नौ महीने पुलिस से बचने के लिए और बाद में आठ नौ महीने पैसे कमाने के लिए वो मनाली में रहा, जब तक फैज़ान मनाली में रहा तब तक सैफ उनके घर का सगा बेटा बन कर रहा, कभी सैफ ने उनको ये कमी महसूस ना होने दिया के सैफ उस घर का सगा बेटा नहीं है,यहाँ तक के नए नोट तलाश करने के लिए वो एक बार लुबना और मनाहल को लेकर कनाट पैलेस गया एक बार लुबना को अकेले लेकर आर के पुरम गया, सुबह से शाम तक वो दोनों अकेले साथ रहे खुद फैज़ान ने लुबना को सैफ के साथ भेजा,अब इसे भरोसा कहें या ज़रूरत कहें फैसला आप पढ़ने वाले करें, लुबना सुबह से शाम तक सैफ के साथ अकेले रही,अल्लाह गवाह है मियां बीवी होने के बावजूद सैफ कितनी हिफाज़त से उसको साथ लेकर गया और कितनी हिफाज़त से साथ वापस लेकर आया, बस रास्ते में इंडिया गेट पर मस्जिद में उन्होंने नमाज़ पढ़ने के लिए अपनी गाडी रोकी इसके आलावा बैंक में गाडी रोकने के आलावा सैफ ने कहीं गाडी तक नहीं रोकी एक क़ीमती अमानत की तरह वो लुबना को लेकर गया एक कीमती अमानत की ही तरह उसको वापस लेकर आया,नोटबंदी जैसे अफरा तफरी के माहौल में भी सैफ ने उनको अकेला नहीं छोड़ा भले ही अपने अकाउंट से पैसे निकाल निकाल कर उनको देने पड़े हों,इस दौरान फैज़ान ने मनाली में सैफ के साथ दो बहुत ही टुच्ची हरकतें की,सैफ ने मनाली के लिए कुछ टाइलें आर्डर की वो आर्डर गलत हो गया, सैफ ने ये बात सिर्फ अनम की बहनों को बताई इसके आलावा किसी को भी ये बात पता नहीं थी क्योंकि सैफ चाहता था किसी को बिना पता लगे इस मसले को हल कर लूँ, लेकिन ये बात सैफ की कंपनी के मालिक तक पहुँच गई अब आप पढ़ने वाले फैसला करें के ये बात कैसे कंपनी के मालिक तक पहुंची होगी,एक बार उन्होंने सैफ से कहा के मनाली से हमारे लिए देसी घी लेकर आना, सैफ ने फैज़ान से कहा के चार किलो देसी घी की किसी से बात कर लो दो किलो अपने घर के लिए दो किलो मेरे घर के लिए कोई तीनसौ साढ़े तीनसौ रूपये किलो देसी घी का रेट था उस वक़्त मनाली में,
फैज़ान किसी जानने वाले से चार किलो घी ले आया, सैफ ने पुछा पैसे दे दिए या नहीं, फैज़ान ने जवाब दिया के हाँ अपने घी के पैसे दे आया, और मेरे घी के पैसे? सैफ ने पुछा, फैज़ान बोला नहीं तुम्हारे घी के पैसे नहीं दे कर आया, सैफ मुस्कुराया उसको पहले ही मालूम था के ऐसा ही होगा, सैफ ने उसको उसके घी के पैसे भी दिए हुए अपने घी के पैसे भी दिए और कहा के अगर तुम्हारे पास पैसे नहीं थे तो मुझसे लेकर जाते, ये तुमने अच्छा नहीं किया के सिर्फ अपने घी के पैसे दे कर आए हो, सैफ के इतना करने के बावजूद भी ये लोग ऐसे थे,फिर एक दिन ऐसा आया जिसने सैफ की ज़िन्दगी को पूरी तरह बर्बाद करके रख दिया सैफ अपनी सात पुस्तों से कह कर मरेगा, के कभी किसी के बीच में इस तरह मत फंसना अगर किसी की मदद करनी हो और तुम्हारे पास फ़ालतू पैसा पड़ा हो तो सिर्फ अल्लाह की रज़ा के लिए उनकी पैसों से मदद कर देना लेकिन कभी उनसे वफ़ा की भलाई की उम्मीद मत लगाना खास तौर से उनपर तो कभी भरोसा मत करना जो तुम्हारे माँ बाप से तो नफरत करते हों और तुमसे मोहब्बत की बातें करते हों, ऐसे लोग तुमसे कभी मोहब्बत नहीं कर सकते वो सिर्फ तुम्हे अपनी ज़रूरतों के लिए इस्तेमाल करेंगे, ज़रूरत पूरी होते ही आपको दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फैक देंगे, जो लोग तुम्हारे माँ बाप से खुश नहीं उन्हें तुमसे भला किया मतलब, उनका सीधा सीधा मतलब अपना उल्लू सीधा करना होता है,सैफ और लुबना की फ़ोन पर बातें हो रही थीं, अस्सलामु अलैकुम, वालैकुम अस्सलाम दुआ सलाम राज़ी ख़ुशी पूछी जाने के बाद सैफ ने लुबना को बताया के यार मेरी बीवी प्रेग्नेंट है, बस ये अल्फ़ाज़ सैफ की ज़िन्दगी को जहन्नुम बना गए,ऐसा कैसे हो सकता है तुम तो ये कह रहे थे के मैं अपनी बीवी के साथ नहीं सोता उससे मेरे बिलकुल भी अच्छे ताल्लुकात नहीं हैं मैं उससे बात नहीं करता, तुमने मेरे साथ विश्वासघात किया है तुमने मुझसे झूंठ कहा है अब मैं तुम्हारे पास कभी नहीं आउंगी, और ना जाने सैफ की कोई बात सुने बिना लुबना कहती चली गई मानो वो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी,सैफ उस वक़्त नोएडा की मस्जिद में था नमाज़ के लिए गया था वो अक्सर आधा पोना घंटा पहले मस्जिद में पहुंच जाता था,उस वक़्त सैफ मस्जिद ही में था जब सैफ और लुबना की ये सब बातें चल रही थीं,लुबना के ये सब अल्फ़ाज़ सुन कर सैफ को लग रहा था के धरती फट जाये और वो उसमें समा जाए, सैफ ने जो भी बातें लुबना से कहीं थीं वो सच थीं, सैफ अपनी बीवी से बात नहीं करता सच था क्योंकि वो अपने दिल की कोई बात उससे नहीं करता था अपनी ख़ुशी अपनी परेशानी उसके साथ शेयर नहीं करता था, लेकिन वो मियां बीवी थे एक छत के नीचे रहते थे घर ग्रहस्ती की बातें तो करनी ही पड़ती थीं,सैफ और उसकी बीवी के अच्छे तालुक नहीं थे ये सच था, ऐसे ताल्लुकों का किया अचार डाला जाए जो सिर्फ मतलब के लिए होते थे मज़बूरी में होते थे,सैफ उसके साथ नहीं सोता सच था वो अलग कमरे में सोता था बीवी बच्चों के साथ अलग कमरे में सोती थी, लेकिन अगर दोनों की नफ़्सानी ख्वाहिशात जाग जाएँ तो ये सब होता था क्योंकि निकाह होने के बाद हमबिस्तरी हलाल है, सैफ ना भी चाहता था तब भी उसकी बीवी कभी कभी उसके बिस्तर में आ जाती थी, ये बात सिर्फ शादी शुदा इंसान ही समझ सकता है कुंवारा या कुवारी कभी इस बात को नहीं समझ सकते,जैसे अपनी बीवी से नफरत करते करते फैज़ान ने तीन बेटियां पैदा कर दिन जिसमें दो नाजायज़ हैं एक जायज़ है, सैफ के नहीं ये उन्ही लोगों के अल्फ़ाज़ हैं,फैज़ान की तीन बेटियां हैं और निकाह के कुछ दिनों बाद ही उन लोगों में अनबन हो गई थी मामला तलाक़ तक जा पहुंचा था फिर भी तीन बेटियां पैदा हुईं, जिसमे से सबसे बड़ी बेटी नाजायज़ है सबसे छोटी बेटी नाजायज़ है, बीच वाली बेटी जायज़ है इनके कहे अनुसार,अब बात तो फैज़ान ही ठीक से समझ सकता है ना के, नफरत करते करते तीन बेटियां कैसे हो गईं, क्योंकि शादीशुदा लोगों के मामले अलग ही होते हैं, ये कुंवारा कभी नहीं समझ सकता, हाँ ये बात इनकी बड़ी बहन भी अच्छी तरह समझ सकती है, लेकिन उस बेचारी के कोई औलाद नहीं,
खैर ये किसी तरह हो गया सैफ की बीवी प्रेग्नेंट हो गई, दोनों में से किसी को भी ये बच्चा नहीं चाहिए था, सैफ चाहता तो ये बात लुबना को कभी ना बताता और लुबना को ये बात कभी ना पता चलती लेकिन क्योंकि सैफ ने उसको बच्चा गिराने की ऐसी दवा खिलाई थी जो के तीन से चार महीने तक की प्रेग्नेंसी गिरा देती है, लेकिन सैफ अपने रिश्ते को सच्चाई की बुनियाद पर रखना चाहता था इसलिए लुबना से घर की कोई बात ना छिपाता था, लेकिन लेकिन उस बेवक़ूफ़ को ये नहीं पता था के झूंठ बोलो या सच जिनका आपसे मतलब निकल चूका है जिनको अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं है जो आपको अब छोड़ना ही चाहते हैं , उन पर कोई फर्क नहीं पड़ता,इंसान की सबसे बड़ी कमज़ोरी जिस्मानी ख्वाहिशात होती है चाहे कितना बड़ा आलिम हो मुल्लाजी हो मौलवी हो बीवी से बने या ना बने मगर जब बात जिस्मानी ख्वाहिश की आती है तो वो हथियार डाल ही देता है, हाँ बस रिश्ता हलाल होना चाहिए, लोग तो हराम भी नहीं देखते,ऐसा लग रहा था मानो वो लोग ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे,कुछ इस तरह खूबसूरत रिश्ते टूट जाया करते हैं
दिल भर जाता है तो लोग रूठ जाया___करते हैंऐसा लग रहा था मानो वो लोग ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थे,सैफ लुबना को समझाता रहा उसके आगे गिड़गिड़ाता रहा उसको यकीन दिलाता रहा के मुझे इस बच्चे की ख्वाहिश नहीं है लेकिब लुबना उसकी एक बात सुनने को तैयार नहीं थी, तुम झूठे हो दगाबाज़ हो धोका दिया है तुमने मुझे बस ऐसे ही अल्फ़ाज़ों से लुबना सैफ को नवाज़ती रही, उसके कहने के मतलब ये था के तुमने अपनी बीवी के साथ हमबिस्तरी क्यों की जब मुझसे निकाह कर चुके हो, अब कोई उससे ये पूछे के तुम सैफ को हाथ लगाने नहीं देती खुद सैफ को छूती नहीं, जब सैफ के अरमान जागेंगे और बीवी उसके पास है तो ये तो होना ही है,
अब लुबना सैफ से बात बात पर झगड़ा करने लगी, और एक बार तो झगड़ा इतना बढ़ गया के सैफ मोटोरोला का 18 हज़ार कीमत वाला एक फ़ोन लाया था फ़ोन लाये हुवे ठीक से एक हफ्ता भी नहीं गुज़रा था के लुबना से बात करते हुवे लुबना ने सैफ को इतना गुस्सा दिला दिया के सैफ ने फ़ोन पटक दिया और फ़ोन किसी काबिल ना रहा आज भी सैफ के घर कबाड़ में वो फ़ोन पड़ा होगा, बड़ी चाहतों से सैफ ने वो फ़ोन खरीदा था,
सैफ ने सबकुछ कहा था उससे बीवी से बनती नहीं है बीवी से झगड़ा रहता है बीवी के पास सोता नहीं है लेकिन ये बात सैफ ने कभी नहीं कही उससे के वो बीवी के साथ जिस्मानी ताल्लुक नहीं बनाता, अगर जिस्मानी ताल्लुक ना बनाता होता तो सैफ के तीन बच्चे कहाँ से आ गये, किया लुबना में इतनी भी अक़्ल नहीं थी, नहीं ऐसी बात थी ही नहीं क्योंकि लुबना को लग रहा था के सैफ उसे दीन पर चलाएगा बुर्का पहनायेगा नमाज़ पढ़ने को कहेगा फिल्म दिखाने नहीं ले जायेगा, पार्क में नहीं घुमायेगा, आइसक्रीम खिलाने नहीं ले जायेगा वक़्त से पहले बुढ़िया बना कर रखेगा, ये सब बातें लुबना के दिमाग़ में थीं,
तभी तो वो लोग सैफ को मस्जिद में ले गए थे, सादिया और लुबना सैफ से एक दिन बोले थोड़ा टाइम निकालो किसी दिन किसी मस्जिद में चलेंगे कुछ बात करनी है, सैफ हैरत में पद गया ऐसी कौनसी बात है जो सिर्फ मस्जिद में ही होगी घर पे या कहीं और नहीं, ठीक है चलेंगे सैफ ने हाँ कही,
सैफ इतना तो समझ चूका था के शायद मस्जिद में उसे इस लिए चलने को कह रहे हैं के मस्जिद में झूठ नहीं बोलै जाते, शायद वो यही नहीं जानते जिसने झूठ बोलना होता है वो मस्जिद में भी झूठ बोलेगा और जो झूठ से बचता है उसके लिए हर जगह मस्जिद है,
सैफ कभी जानबूझ कर झूठ नहीं बोलता गाहे बगाहे कभी गलती से काम वाम के चक्कर में झुठ निकल जाए या किसी की भलाई के लिए झुठ निकल जाए मुँह से तो वो बात अलग है,
लेकिन इन लोगों के साथ एक समस्या ये थी अगर इन्हे किसी बात पर यकीन नहीं करना तो फिर करना ही नहीं है चाहे आसमान से अल्लाह फरिश्ता ही इनके बीच में उतार दे,
अगर एक बार इनके दिमाग़ में कोई बात घर कर गई तो दुनिया में कोई ऐसी ताक़त नहीं जो उस बात को बदल दे, अगर इनसे कोई गलती हो जाए और ये बात इनकी समझ में आ जाये के हाँ ये हमारी गलती है, तो अब ये बात किसी पर ज़ाहिर नहीं करेंगे के हम से गलती हुई, अब पता है किया करेंगे, अब पूरा घर बैठ कर मशवरा करेगा के हमसे ये गलती हुई लेकिन जिसके लिए गलती हुई उसको पता नहीं चलने देना के ये हमारी गलती है,
मशवरे में ये तय होगा के जैसे ही ये आता है इस पर तोहमत लगाना शुरू कर दो कोई भी तोहमत लगाओ इतनी तोहमत लगाओ के ये इंसान हमारी गलती के बारे में बात करना भूल जाये बस अपने बचाओ में लगा रहे, ,
और मज़े की बात तो ये है के आपस में इनकी चाहे कितनी लड़ाई हो कितनी नाइत्तफाकी हो मगर जब सैफ को बुरा साबित करने बात आती थी तो पूरा घर एक हो जाता था,
एक बार अनम अपने अब्बा के साथ बदतमीज़ी कर रही थी, सैफ को ये बात अच्छी नहीं लगी सैफ कहने लगा के ये बात याद रखना सिर्फ माँ के पैरों तले जन्नत नहीं होती बाप भी जन्नत का दरवाज़ा होता है, ये बात इनको इतनी बुरी लगी के पूरा घर सैफ के खिलाफ हो गया, पूरा घर मिलकर अनम की पैरवी करने लगा यहाँ तक के इतनी पैरवी की के पूरा घर अपने अब्बा जी को गलत साबित करने लगा, मनाहल रोते रोते कहने लगी तुम्हे नहीं पता हमारे अब्बा कैसे हैं कितने ज़ालिम हैं इन्होने हमारे भैया सबसे बड़े भइया को इतना मारा है इतना मारा है के उनका दिमाग़ चल गया, हमारे भैया हमेशा ऐसे नहीं थे, ये तो हमारे अब्बा की वजह से ऐसे हो गए हैं, इन्हे ये नहीं पता के ऐसे भइया का किया अचार डालना है जो घर का मर्द होने के बावजूद बल्कि सबसे बड़ा होने के बावजूद घर की ताक़त बनने की बजाये घर की कमज़ोरी बना हुवा है,
भाई तो बाप की तरह होता है, एक वो सबसे छोटा भइया है जिसे आजतक ये लोग बच्चा समझते हैं जबकि उस सबसे छोटे बच्चे की उम्र आज कम से कम, अगर वो दस साल का भी था जब ये लोग दिल्ली आये थे तो आप पढ़ने वाले हिसाब लगा लो के कितनी उम्र इस वक़्त उसकी हो रही होगी, आज 27 साल के करीब इन्हे दिल्ली आये हुवे हो गए 37 साल कम से कम उसकी उम्र है 37 साल के आदमी की शादी अगर टाइम पर हो जाये तो 16 17 साल के बच्चे होते हैं,
लेकिन वो आज भी इनकी नज़र में बच्चा है, इन्हे बर्बाद करने के लिए बाहर से कोई नहीं आया बस आपस ही में इन्होने खुद को बर्बाद कर लिया है,
खैर ये तीनो लोग मस्जिद गए, लुबना सादिया और सैफ, मस्जिद में इनकी बातें हुईं, ना जाने इनके दिमाग़ में किया चलने लगा था अपने भैया का केस ख़त्म होते ही,लुबना कहने लगीं के आपने मुझसे निकाह क्यों किया, सैफ ने वही बातें बातें जो हमेशा उनको बताता चला आया था, हालांकि असली बात सैफ ने उन्हें अभी भी नहीं बताई कहीं उनके दिल पर ज़ोर ना पड़े लेकिन झूठ एक नहीं बोलै सैफ ने उनसे, क्योंकि जो सैफ ने उन्हें बताया ये भी सच था, सैफ ने उनसे नहीं बताया के असल में तो ये सब तुम्हारा प्लान था मनाहल को एक साइड करके मेरी ज़िन्दगी को जहन्नुम बनाने कादरअसल ये पहले जिस मस्जिद में जा कर बैठे थे तो वहां लोगों ने इनको बैठने नहीं दिया किनके मस्जिद में औरतों का जाना मना है,ये लोग दूसरी मस्जिद में गए वहां पर ज़ुहर की नमाज़ पढ़ी और बाद में ये लोग बैठे,अब लुबना और सादिया अपने असली मक़सद पर आये,इन्होने सैफ से कहा के लुबना दीन पर नहीं चल सकती आपने तो सबकुछ देख लिया अभी लुबना ने कुछ भी नहीं देखा,पता नहीं दीन पर ना चल कर वो किया किया देखना चाहती थो जो दीन पर चल कर नहीं देख सकती थी, उसके बाद इन्होने सैफ के ऊपर अचानक आसमान गिरा दिया, दोनों कहने लगीं आप तलाक़ दे दो,टप टप टप सैफ की आँखों से ये बात सुनते ही आंसू चलने लगे, सैफ को लगा के तेरा इस दुनिया में कोई हमदर्द नहीं कोई चाहने वाला नहीं, ये लोग बस तुझे इस्तेमाल कर रहे थे अब इन्हे तेरी ज़रूरत नहीं,किताबों की अहमियत अपनी जगह साहबसबक़ वही याद रहता है जो वक़्त और लोगसिखा देते हैं,#सैफउस घर में शायद सैफ से सच्ची मोहब्बत करने वाली दो लड़कियां ही थीं अनम और मनाहल, लेकिन अनम अपने आलावा किसी और की सुनने को तैयार नहीं होती थी जो उसने कर दिया सही है पत्थर की लकीर है, मनाहल के साथ घर में सौतेला वियहवार होता था और वैसे भी लुबना ने उन दोनों के बीच में एक बहुत गहरी खाई खोद दी थी जो शायद ज़िन्दगी भर ना भर पाए,अब तक सैफ को लग रहा था के किस्मत ने उसे इनके क़रीब आने का मौका दिया है, लेकिन सैफ गलत था ये मौका क़िसमत ने उसे नहीं दिया था ये पूरी प्लानिंग से हुवा था, इसमें अनम का पूरा परिवार शामिल था, हर बात इनकी पहले से तय थी हर क़दम इनका उठाया हुवा सोचा समझा क़दम था, ऐसा लगता है ये सैफ की मज़बूरी जानते थे सैफ की हर कमज़ोरी से वाकिफ थे, इसलिए इनके घर से सैफ को दूसरी शादी करने की सलाह मिलती थी, ये सैफ के लिए बिछाया हुवा एक खूबसूरत जाल था,ये अच्छी तरह जानते थे सैफ के साथ कब किया करना है,इन्होने सैफ को मस्जिद में बिठा कर तलाक़ लेने की बहुत कोशिस कीं लेकिन सैफ ने साफ़ अल्फ़ाज़ों में मना कर दिया के मैं तलाक़ नहीं दूंगा, वक़्त आने दो देखते हैं किया होता है, वक़्त पर जो बेहतर होगा वो करेंगे,फिर कुछ दिन गुज़रे लुबना ने सैफ को अपने घर बुलाया और फिर वही बात दोहराई, साथ में सादिया ने एक नई बात और जोड़ी, सादिया ने फिर पुछा आपने हमारे घर में निकाह क्यों किया, सैफ ने फिर से उनका दिल बहलाने के लिए वही बात दोहराई के ताके लोगों का मुँह बंद हो जाए, हालांकि सैफ अब पूरी तरह समझ चूका था निकाह करना सैफ की सिर्फ ख्वाहिश थी लेकिन अनम के परिवार की चाल थी, लेकिन अब ये लोग क्यों पीछे हट रहें हैं आगे इसकी वजह भी लिखूंगा,सादिया कहने लगी के तुम झूठ बोल रहे हो किया तुम मुझसे निकाह कर लेते अगर मैं कहती, सैफ ने कहा आप कहती तो आपसे निकाह कर लेता सिर्फ उसका दिल बहलाने के लिए, हालांकि दोनों जानते थे सादिया सैफ से बहुत बड़ी है लेकिन अगर बात आती तो सैफ ये भी कर लेता,इन्होने अपने घर में सैफ को बिठा कर उस दिन इतना टॉर्चर किया के सैफ की उन्ही के घर तबियत ख़राब हो गई सैफ को ठंडे पसीने आने लगे हर बात खुल कर और बुलंद आवाज़ में हो रही थी ऐसा लगता था के उन्हें किसी का डर नहीं था, और मज़े की बात देखो इतनी देर चीख चिल्लाहट के साथ बात हुई सैफ की तबियत खराब हुई काफी देर ये लोग सैफ की देखभाल में लगे रहे लेकिन ना तो इनकी अम्मी ऊपर से उतर कर आई ना अब्बा जी और ना कोई सा भाई,. पढ़ने वाले समझ रहे होंगे के किया कहानी थी, क्योंकि घर का हर बंदा हर बात जानता था और ये सब जो हो रहा था या अब तक जो भी हुवा था वो पूरे घर की सहमति से ही हुवा था,आज जब सैफ ये कहानी लिख रहा है उसकी आँखे आगे गुज़रा हुवा हर मंज़र एक दम ताज़ा सा लग रहा है, वो देख रहा है किस तरह उसके घर में जाते ही पूरा परिवार खिल उठता था, वो देख रहा है के किस तरह सैफ के पहुँचते ही उसके लिए पानी आता था, वो देख रहा है थोड़ी देर बैठने के बाद ही कभी कोई सी बहन कभी कोई सी बहन चाय लेकर आती थी, वो देख रहा है के कैसे उसका वेलकम उस घर में दामाद की तरह होता था, वो देख रहा है, वो देख रहा के किस तरह सैफ के जिस मेम्बर से भी नाराज़ हो जाता था वही मेम्बर अपनी गलती मान कर सैफ को हर हाल में मनाता था सिवाए अनम के, चाहे उनकी ही क्यों ना हो वो कहती थीं जब भी सैफ नाराज़ हो जाता था के तू मेरे फैज़ान की तरह है, ऐसे हमसे नाराज़ ना हुवा कर अगर मुझसे कोई गलती हो गई है तो भुला दे, माफ़ कर दे, और सैफ मान जाता थावो देख रहा है के अगर एक दिन भी सैफ उनके घर नहीं जाता था तो पूरा घर परेशान हो जाता था, वो देख रहा है के कैसे सादिया से एक बार फ़ोन पर उससे कहा जब वो एक रात उनके घर नहीं गया के आप कल क्यों नहीं आये जब सैफ ने कहा के मेरी बीवी से मेरा झगड़ा हुवा था मैं इसकी वजह से नहीं आया तो सादिया ने ये कहा था के ऐसे अगर आप अपनी बीवी से डरोगे तो वो तो आपको हमसे मिलने ही नहीं देगी, वो तो चाहती ही यहीहै,आप उससे डर कर हमसे मिलना मत छोड़ो , वो दे देख रहा है के कैसे उसकी गाडी का होरन सुनते ही कोई ना कोई सी लड़की तुरंत उसको देखने के लिए अपने छज्जे पर आती थी कोई आये ना आये लेकिन ज़ैनब तो हर हाल में आती थी,वो देख रहा है के जब सैफ का सुबह को साइट पर जाने का टाइम होता था तो दो तीन लड़की उसको देखने के लिए छज्जे पर खड़ी रहतीं थी, वो बात अलग है के आज अगर गलती से कोई छज्जे पर खड़ी हो और सैफ को निकलता बड़ता देख लें तो तुरंत घर के अंदर चली जाती है,उन्होंने पहले धीरे धीरे सैफ को मैसेज करना कम किये उसके बाद धीरे धीरे फ़ोन पर बातें करना कम कर दीं , फिर तलाक़ लेने के लिए ज़ोर लगाना शुरू किया, यहाँ तक के धीरे धीरे सैफ के घर में आने के बाद उनका रवैया बदलना शुरू हुवा पहले जो चाय दस मिनट में आ जाती थी फिर वही चाय आधा घंटा एक घंटे में आने लगी, पहले बिना नागा किये सैफ के लिए चाय आती थी बाद में कभी कभी चाय आती ही नहीं थी ये सब होने लगा, पहले सैफ को कभी भी पानी मांगने की ज़रूरत नहीं पड़ी अब बाद में सैफ को मुँह से पानी मांगना पड़ने लगा,
वक़्त मौसम और लोग सब की एक ही फितरत होती हैकौन कब कहाँ बदल जाए मालूम नहीं पड़ता#सैफये सब क्यों हुवा ये जानने के लिए एक बार फिर से हम थोड़ा पीछे चलेंगे,मनाली की साइट फिर से ख़त्म हो गई कहने का मतलब है मनाली का दूसरा वाला काम भी ख़त्म हो गया इसलिए वहां से पैकअप करके सब लोग दिल्ली आ गये, फैज़ान भी दिल्ली आ गया अब फैज़ान को कहाँ काम पर लगाया जाए ये मसला सैफ के सामने मुँह फाड़े खड़ा था क्योंकि सैफ की कंपनी के मालिक फैज़ान को पहले ही मना कर चुके थे वो तो सैफ ने किसी तरह चालाकी और खुशामंद दरामंद से रखवा लिया था, लेकिन अब बार समस्या ये थी के नोएडा का काम लगभग खत्म पे चल रहा था और दूसरी नई साइट थी नहीं, और सबसे बड़ी बात ये थी के वो फैज़ान को काम पर रखना ही नहीं चाहते थे क्योंकि अब मैं इसकी खुल कर वजह लिखूंगा, नॉर्मली साइट पर काम कराने वाले सुपरवाइज़र दस से बारह हज़ार की तन्खवाह पर मिल जाते हैं, लेकिन वो फुल ग्रेजुवेट होते हैं डिग्री लिए हुवे होते हैं साइट की पूरी टैक्नीक से वाकिफ होते हैं मेल पढ़ते हैं मेल लिखते हैं सब काम समझते हैं कहने का मतलब ये है पूरी तरह पढ़े लिखे होते हैं,फैज़ान को भी ये लोग बारह हज़ार रूपये देते थे लेकिन फैज़ान वाह्टसप भी ठीक से चलाना नहीं जानता था इंग्लिश के आसपास नहीं था लकड़ी के काम को छोड़ कर सिविल के काम का ज़रा भी तजुर्बा नहीं था, इसके बावजूद भी उन्होंने सिर्फ सैफ की खातिर उसको काम पर रखा हुवा था, ये सिर्फ सैफ की इज़्ज़त की खातिर था सैफ की ख़ुशी की खातिर था, लेकिन कोई किसी की खातिर कब तक उस काम को करे जिससे वो खुश भी ना हो और उस काम में उसे नुकसान भी हो,उन्होंने सैफ से साफ साफ अल्फ़ाज़ों में बोल दिया के आप फैज़ान को बोलो के अपने लिए कहीं और नौकरी का बंदोबस्त कर ले, सैफ के पैरों तले से ज़मीन खिसक गई उनकी ये बात सुनते ही क्योंकि सैफ जानता है अगर अब अनम के परिवार का और उसका जो भी थोड़ा बहुत ताल्लुक या रिश्ता बचा हुवा है सिर्फ फैज़ान की नौकरी की वजह से बचा हुवा है वरना इस रिश्ते में अब कुछ नहीं बचा था, सैफ ने उनको समझाने की कोशिस की लेकिन कोई फायदा नहीं हुवा, ज्यादा ज़ोर सैफ इसलिए नहीं दे पाया क्योंकि सैफ के बॉस को पहले ही से शक हो चूका था के सैफ के फैज़ान की किसी बहन से कोई ताल्लुक है, क्योंकि वो अक्सर सैफ से कहते रहते थे सैफ आप उन लोगों से थोड़ी दूरी बना कर रखो,इस मौके पर सैफ पूरी तरह अपने आपको बेबस महूसस कर रहा था क्योंकि सैफ अनम के परिवार से चार पांच सालों तक बहुत करीब रहा था वो उनके घर के हर मेम्बर की आदत से अच्छी तरह वाकिफ हो चूका था वो जानता था अब आगे किया होने वाला है,वो जानता था इस बात का साइड इफ्फेक्ट किया निकलेगा वो लाख यकीन दिलाएगा के उसकी नौकरी हटवाने में मेरा कोई हाथ नहीं लेकिन वो अपने आप को कभी बेकुसूर साबित नहीं कर पायेगा,सैफ ने अपने बॉस से कहा मैं फैज़ान से नहीं मना कर पाउँगा आप खुद ही उसको मना कर दो, उन्होंने अपने साले से फैज़ान को मना करने के लिए कहा,हालांकि सैफ जानता था के इससे कुछ बदलने वाला नहीं मूसल तेरे ही सर पे पड़ेगा इसी लिए सैफ जानबूझ कर उनके सामने अनजान बना जब रात को वो उनके घर गया, जैसे सैफ को फैज़ान की नौकरी के बारे में कुछ पता नहीं है,लेकिन उस रात सैफ के साथ जो अनम के घर में हुवा उसका तो तसव्वुर भी सैफ ने नहीं किया था,मेहनत से उठा हूं, मेहनत का दर्द जानता हूं,आसमां से ज्यादा जमीन की कद्र जानता हूं,लचीला पेड़ था, जो झेल गया आंधियां , मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूं#सैफसैफ उस रोज रात को रोजाना की तरह उनके घर पहुंचा हालंकि सैफ का उस दिन उनके घर जाने मन नहीं था लेकिन नहीं जाता तो ना जाने किया किया समझा जाता, और जाने के बाद किया होगा सैफ ये भी जानता था, लेकिन ऐसा होगा जो हुवा, ये सैफ नहीं जानता था,घर पंहुचा रोजाना की तरह दुआ सलाम हुई, अब जो फैज़ान की अम्मी ने सैफ के सामने उन लोगों को बद्दुआ देना शुरू की अल्लाह की पनाह है, सैफ को बताया गया के ऐसे ऐसे उनका मैसेज आया है उन्होंने कहीं और काम ढूंढ़ने के लिए बोला है, सैफ सबकुछ जानते हुवे अनजान बनने की कोशिश करता रहा हालाँकि सैफ जानता था के अगर वाकई में भी उसे इस बात का पता ना होता के उन्होंने फैज़ान से काम को मना कर दिया है वो तब भी सैफ का यकीन करने वाले नहीं थे, इतना तो सैफ उन लोगों के बीच रह कर उनको समझ चूका था, लेकिन बात उससे भी आगे निकल गई थी उन्होंने ये अंदाज़ा लगा रखा था के फैज़ान को काम से निकलवाने में सैफ का हाथ है, ये बात उन्ही के घर की एक लड़की ने सैफ को बताई थी बाद में,फैज़ान की अम्मी बद्दुआ देती रहीं लगातार, सैफ को लग रहा था जैसे ये बद्दुआएं तुझे दी जा रहीं हैं क्योंकि सैफ के बॉस तो वहां बैठ कर सुन नहीं रहे थे,वो कहती जा रहीं थी के एक मेरे बच्चे के काम करने से उनपर फर्क पड़ रहा था औरों के काम करने से कोई फर्क नहीं पड़ा, सैफ की जब बर्दास्त से बाहर उनके ताने होने लगें तो सैफ को गुस्सा आ गया क्योंकि सैफ पहले ही बहुत गुस्से वाला हो चूका था, इन लोगों ने सैफ को इतना सताया हुवा था के अब सैफ से ज़रा बात बर्दास्त नहीं होती थी उसको ज़रा ज़रा सी बातों पर गुस्सा आने लगा था,यहाँ तक के इसका इफेक्ट सैफ के दिल पर होने लगा था, जिसकी वजह से सैफ मौत के मुँह से लौट कर आ चूका है, ये किस्सा भी आगे आएगा,बड़ा हूँ मगर फिर से बच्चा होना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँकभी इसके लिए जिया कभी उसके लिए जियायाद नहीं मुझे मैं कब अपने लिए जियाबुरा ना मानों मैं थोड़ा सा अपने लिए जीना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँमाना के दूसरों के लिए जीने वालों को जन्नत मिलेगीयहाँ ना खिल सकी जो अरमानों की कली वो क़यामत में खिलेगीबताओ किया है बुरा जो थोड़ी सी जन्नत दुनिया में चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँथा शरारती ज्यादा प्यार माँ बाप का बचपन में पा ना सकाथोड़ी ग़ुरबत भी थी इसलिए ज्यादा मुस्कुरा ना सकामुझे रुलाने वालों मैं भी अब खूब हंसना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँमैं जानता हूँ मैं बात बात पे रो देता हूँइसी रोने की वजह से अपनी कदर खो देता हूँलेकिन मैं कब किसी और को रुलाना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँहूँ दिल का सच्चा इसी लिए चुटकिओं में दिल भर आता हैज़ुल्म सह लेता है ये दिल ज़ुल्म मगर नहीं कर पाता हैअब अपने आपको ज़ुल्मों से बचाना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँझूठे ही सही मगर वो सच्चों से अच्छे दिन थेथोड़े ही थे मगर ज्यादा से नहीं ज़रा कम थेउन्ही झूठे दिनों में फिर से लौट जाना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँसुनते ही मेरी गाडी के होरन को वो सब दौड़े आते थेमतलब ही के लिए सही मुझे देख कर सब मुस्कराते थेउसी मतलबी दुनिया में फिर जाना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँबड़ा हूँ मगर फिर से बच्चा होना चाहता हूँमैं किसी के सीने से लग के रोना चाहता हूँ#सैफसैफ कहने लगा के आप तो सीधा सीधा मुझे कह रही हैं ऐसा लग रहा है आप ये कहना चाहती हैं के फैज़ान को ही क्यों निकाला मुझे भी क्यों ना निकला आपके हिसाब से मुझे भी निकाल देना चाहिए था नौकरी से आपको सब्र आ जाता, वो मुँह बिगाड़ कर कहने लगीं के मैं तुझे क्यों कहूँगी, अगर उनके दिल में सैफ की तरफ से बुरी सोच नहीं थी तो तुरंत कहतीं के नहीं बेटा मैं तुझे क्यों कहूँगी, लेकिन उन्होंने एक बार भी सैफ को तसल्ली दिलाने जैसे कोई बात नहीं की, उनको तो बस इस बात का गुस्सा था के सैफ को कियों नहीं निकाला क्योंकि कोई और तो सुनने वाला था नहीं वहां,वो सबकुछ भूल कर उस रात बात कर रहीं थीं वो भूल चुकीं थी के मैं सैफ से कहती थीं के तू मेरे बेटे जैसा है, वो भूल चुकी थीं के सैफ ने हमारे लिए किया नहीं किया,उनको तो ये तक नहीं पता था के तुम लोगों की वजह से सैफ के परिवार वालों ने सैफ के साथ किया किया हंगामा किया हुवा है सैफ की बीवी ने कैसे उसकी ज़िंदगी अज़ाब की हुई है,जब तक सबकुछ ठीक रहता था तब तक इनके मन माफिक बातें होती रहती थीं चाहे सही हो चाहे गलत, जैसे ही ऐसी कोई बात होती थी जो इनके मन को माफिक नहीं आती थी सब कुछ बदल जाता था चाहे वो बात क़ुरान-ओ-हदीस के मुताबिक़ सही ही क्यों ना हो,मोहब्बत थी तो हार मान ली
ज़िद होती तो बर्बाद कर देता#सैफ,www.lekhta.comये लोग ये भूल गए थे के सैफ भले ही कंपनी मालिक के कितना ही क़रीब क्यों ना था लेकिन था तो एक स्टाफ ही, आजकल खून के रिश्ते बिना फायदे के एक दुसरे के काम नहीं आते उनका रिश्ता तो फिर भी नौकर और मालिक का था, सैफ की कम्पनी के मालिक क्यों सैफ को इतना चाहते थे यहाँ ये बात लिखना भी ज़रूरी है,सैफ जॉब के लिए परेशान था धीरे धीरे जो पैसे सैफ के पास थे वो खत्म होने लगे थे क्योंकि सैफ उस वक़्त किराये के मकान में रहता था उसका था, कई जगह इंटरवियु देकर आ चूका था कहीं बात नहीं बन रही थी,सैफ इंटरनेट पर जॉब तलाश कर रहा था, तभी एक हैदराबाद की कंपनी पर उसकी नज़र पड़ी, उसने तुरंत अपना रिज्यूम उस कंपनी को मेल कर दिया, थोड़ी देर बाद ही कंपनी के मालिक का सैफ के पास फ़ोन आया, बातचीत हुई उन्होंने कहा ,मैं आपको शाम तक बताता हूँ,शाम को दोबारा बात हुई उन्होंने सैफ से पुछा आपको हमारा नंबर कहाँ से मिला सैफ ने जवाब दिया के इंटरनेट से आपका नंबर मिला,ठीक है वो बोले सेलरी वगैरह की बात तय हुई आप 1 अप्रेल से ज्वाइन कर सकते 1 अप्रैल 2014 से मनाली में हमारी साइट चल रही है, आप हमारी मनाली साइट के इंचार्ज हो,ये सारी बातें सैफ ने अनम के घर पर बताईं फैज़ान भी था, सब लोग बहुत खुश हुवे चलो अच्छा है नौकरी लग गई सब कहने लगे, दो दिन बाद सैफ को मनाली जाना था, 31 मार्च को सैफ मनाली के लिए निकल गया, ये सब जितना आसान दिख रहा था उतना आसान भी नहीं था, क्योंकि सैफ पहली बार मनाली जा रहा था वो गलत बस में बैठ गया, नॉर्मली शाम को बस में बैठो तो अगले दिन सुबह सुबह बस मनाली उतार देती है, लेकिन सैफ जिस बस में बैठा था वो सरकारी बस थी, उसने सैफ को अगले दिन सुबह सुबह नहीं शाम को पांच बजे के आसपास मनाली उतारा, उधर सैफ के बॉस सैफ का इंतज़ार बेसब्री से कर रहे हैं,सैफ मनाली पहुंचा ठण्ड के मारे बुरा हाल अप्रैल के महीने में दिल्ली में पसीने टपकते हैं, वहां ठंड होगी ये तो सैफ को मालूम था मगर इतनी ठंड होगी ये सैफ ने नहीं सोचा था उसकी बीवी ने भी नहीं सोचा होगा इसीलिए वो सैफ के बैग में जैकेट रखना भूल गई हालंकि सैफ ने बोला भी था के जैकेट ज़रूर रख देना,बॉस सैफ का अपने होटल के बाहर ही रोड पर इंतज़ार कर रहे थे दुआ सलाम हुई हाथ मिलाया दोनों होटल के रूम में चले गए, उस वक़्त क्योंकि नई नई साइट शुरू हुई थी फ्लैट नहीं लिया था होटल ही में रह रहे थे वो लोग,खाना वगैरह से नमाज़ वगैरा से ये लोग फारिग हुवे और बातों का दौर शुरू हो गया, सैफ के बॉस को बातें करनी की बहुत आदत थी, उन्होंने सैफ को साइट के बारे में भी समझाया उसके बाद ये लोग सो गए सुबह सैफ फजिर के टाइम उठा अज़ान दे कर नमाज़ पढ़ने खड़ा हो गया रूम ही मेंअज़ान की आवाज़ से सैफ के बॉस की आँख खुल गई, जैसे ही सैफ ने सलाम फेरा नमाज़ से फारिग हुवा सैफ के बॉस बोल उठे आज मेरी तबियत खुश हो गई आपकी अज़ान की आवाज़ से अब मुझे साइट की कोई चिंता नहीं है,दरअसल ये लोग हैदराबाद के रहने वाले थे पहली बार दिल्ली और मनाली की तरफ काम करने आये थे नया नया काम था इन लोगों का पहले छोटे छोटे काम करते थे बैंक के एटीएम के छोटे छोटे केबिन बनाते थे, इतनी बड़ी साइट पहली बार पकड़ी थी, साफ़ साफ़ अल्फ़ाज़ों में लिखूं तो ये लोग डर रहे थे के यहाँ पर किस तरह हम काम कर पाएंगे सैफ ने पहुंच कर इनकी हिम्मत बधाई इनको हिम्मत दिलाई के आप बेफिक्र रहो अल्लाह सब ठीक करेगा मुझे अल्हम्दुलिल्लाह इससे भी बड़ी बड़ी साइट्स का तजुर्बा है,दो तीन दिन में सैफ ने पूरी साईट अपने अंडर में कर ली सैफ के बॉस बेफ़िक्र हो कर वापस हैदराबाद चले गए, बहुत जल्दी सैफ हैदराबाद तक हैदराबाद वालों में उन लोगों में भी मशहूर हो गया जिन लोगों ने सैफ को देखा भी नहीं था बिना देखे सैफ के बॉस का हर मिलने हर रिश्तेदार सैफ को जानता था, सैफ के बॉस ने सैफ की इतनी तारीफें की के गोया नौज़बिललाह उन्होंने सैफ जैसा कोई लड़का देखा ही ना हो, लड़का इसलिए लिख रहा हूँ उस वक़्त सैफ लड़का ही दीखता था वो तो अब इतना सताया जाने के बाद वो आदमी लगने लगा,और हुवा भी कुछ ऐसा ही था मानो उनका अच्छा नसीब सिर्फ सैफ के उनकी ज़िन्दगी में आने कर था, सैफ और सैफ के बॉस का साथ 6 साल रहा 6 सालों में सैफ ने अपने बॉस को इतना पैसा कमा कर दिया के उनका कराये का फ्लैट था आज अपना फ्लैट है सैफ से पहले हैदराबाद में किराये का एक छोटा सा ऑफिस था आजअल्हम्दुलिल्लाह साठ सत्तर गज़ में चार या पांच मंज़िला अपना खुद का ऑफिस है, और ये बात सैफ से खुद उसके बॉस ने कही थी के सैफ आप मेरा स्टाफ नहीं हो, आप मेरा मुक़द्दर हो आप मेरे लिए मेरे सगे भाई से बढ़कर हो, मगर मुँह बोले रिश्ते की कोई औकात नहीं होती, ये बात सैफ से ज्यादा भला कौन जान सकता है, सैफ अपने बॉस और अपने बारे में पूरी डिटेल लिखने बैठ जाए तो ये एक अलग कहानी बन जाएगी और बहुत लम्बी क्योंकि खून का रिश्ता वहां भी मुँह बोले रिश्ते पर भारी पड़ चूका था, खैर ये सब लिखने का मकसद ये बताना था के सैफ के बॉस सैफ की इतनी ज्यादा इज़्ज़त क्यों करते थे क्योंकि सैफ ने खुद को साबित कर के दिखाया था,इज़्ज़त किया अगर मैं लिखूं के उस दौरान सैफ अल्लाह माफ़ करे हैदराबाद वालों में भी और अनम के घर वालों में भी पूजा जाता था तो ये कुछ गलत ना होगा,लेकिन दोनों ने ही काम पूरा होते ही सैफ को वो सबक़ सिखाया के इसका फैसला सिर्फ क़यामत में ही अल्लाह के सामने होगा,उन्होंने सैफ से फैज़ान के काम के लिए मना कर दिया ये बात फैज़ान को बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी और ये बात वो भी अच्छी तरह जानते थे के सैफ को बिलकुल अच्छा नहीं लगा के फैज़ान अब हमारी कम्पनी में काम नहीं करेगा,हालांकि सैफ और उनका सेलरी के आलावा प्रॉफिट में हिस्सा भी तय था सैफ कंपनी में बिलकुल एक मालिक की तरह ही रहता था, लेकिन फैज़ान के काम को मना होने के बाद सैफ अपने बॉस से उखड़ा उखड़ा रहने लगा, लेकिन अनम के घरवाले अपने दिल में ये लिए बैठे थे के सैफ ने फैज़ान को काम से निकलवाया, ग़लतफ़हमी का कोई इलाज नहीं होता लेकिन कोई समझना चाहे तो गलफहमी भी दूर हो जाती है, लेकिन अनम के परिवार की ग़लतफ़हमी का कोई भी इलाज नहीं है,सैफ के दिल और दिमाग पर बोझ बढ़ता जा रहा था सैफ की समझ में नहीं आरहा था के किया करूँ किया ना करूँ अनम और उसका परिवार सैफ से दूरी बढ़ाता जा रहा था, सैफ अपनी गलती ढूंढने की कोशिस कर रहा था, सैफ का दिल ये सोच सोच कर लगातार दुःख रहा था के किसी का प्यार पाने के लिए जो कुछ भी मैंने किया है, अगर ये काफी नहीं है तो दुनिया में प्यार होता ही नहीं है, क्योंकि अगर प्यार होता तो सैफ वो सबकुछ कर चूका था जिससे किसी का प्यार पाया जा सके लेकिन उस प्यार का किया करे जो सिर्फ मतलबों पर टिका हुवा था उनके लिए तो सैफ जान भी देता तो वो प्यार नहीं मतलब ही रहता उल्टा तोहमत लगाई जाती के हमारे लिए नहीं मरा खुद की गलतियों से मराजैसे सैफ के बच्चे के लिए कह दिया गया था के वो तुम्हारे झूठ बोलने की वजह से मरा ऐसे ही सैफ के मरने के बाद कह दिया जाता अपनी ही गलतियों से मरा है ये तो था ही इसी काबिल इसका मरना ही ठीक है,सैफ और सैफ के बॉस के बीच में फैज़ान की वजह से दूरियां बढ़ने लगी थीं सैफ अब अपने बॉस की ज़रा ज़रा सी बातों का बुरा मानने लगा था, एक दिन भोपाल में सैफ को उसके बॉस फ्लैट में लेकर बैठे के सैफ आप मुझे साफ़ साफ़ बताओ मामला किया है, मैं आपके बर्ताव में में बहुत बदलाव देख रहा हूँ, अब सैफ उनसे ये कैसे कहे के आपकी वजह से मुझसे मेरे वो लोग मुझसे नाराज़ हो गएँ जिनके लिए मैंने अपना सबकुछ दाओ पर लगा दिया है, सैफ ने उन्हें इधर की उधर की बातें बता दिन और बात को घुमा कर बात खत्म कर दी, जब भोपाल में सैफ उस वक़्त बादशाहो वाली ज़िंदगी जी रहा था, वो भोपाल के एक नवाब की साइट तैयार कर रहे थे उस नवाब की साइट जिससे मिलने के लिए भोपाल के मुख्यमंत्री को भी अपॉइंटमेंट लेनी पड़ती थी सैफ डायरेक्ट उनसे मिलने उनके बंगले पर जाता था उन्होंने सैफ को सैफ को और सैफ के बॉस को एक BMW कार दे रखी थी इस्तेमाल करने के लिए जिसको सिर्फ सैफ या सैफ के बॉस का भाई या खुद बॉस ही चलाते थे, इतना सबकुछ वहां सैफ के लिए था लेकिन सैफ के दिमाग में तो अनम का परिवार घुस कर बैठा हुवा था जो उसको कुछ करने ही नहीं दे रहा था,यहाँ से हम थोड़ा सा और पीछे चलेंगे सैफ के मौत के मुँह में जाने की तरफ, सैफ रात दिन अब इन्ही लोगों के बारे में सोचता रहता था के ये लोग मेरे बारे में ऐसा कैसा सोच सकते हैं, कोई कैसे उस बंदे को गलत समझ सकता है जो बंदा दुआओं में उन लोगों के लिए रो रो कर खैर माँगा करता है, वो कैसे उसके बारे में ये सोच सकते हैं के सैफ ने उनके भाई को काम से निकलवाया है, जब के सैफ ने अपनी नौकरी दाओ पर लगा कर उसको नौकरी पर रखवाया, ये सब गलत फहमी है या ये लोग जानबूझ कर ऐसा कर रहे हैं, जब धीरे धीरे ये लोग सैफ से दूर हो गए तो एक दिन ऐसा आया जिसने सैफ को ये यकीन दिला दिया के ये जो भी कुछ तेरे साथ हो रहा है या अबसे पहले जो भी हो चूका है ये सब पूरी प्लानिंग से हुवा है, हम इस इस तरह सैफ को अपने जाल में फंसायेंगे वरना कौन इतना नज़दीक जाता है किसी के और इतना नज़दीक जा कर कौन इस तरह दूध में से मक्खी की तरह किसी को निकाल कर फैंकता है, ये सब बातें सैफ को जीने नहीं दे रहीं थीं, फिर एक दिन सैफ रोज़ाना की तरह उनके घर गया और लुबना सैफ को देख कर छुप गई वो दिन सैफ का उनके घर जाने का आखरी दिन था, उसके बाद ना सैफ उनके घर गया ना उन्होंने सैफ को कभी बुलाया, जैसे पहले एक दिन भी सैफ के बगैर उनको चैन ना आता था, जिसके बाद सैफ की भोपाल वाली साइट शुरू हुई थोड़े दिनों लुबना ने कसम देकर सैफ से पुछा आपको बताना पड़ेगा सैफ आप कहाँ हो, क्योंकि पहले तो गली में आता जाता सैफ दीखता था भोपाल जाने के बाद कैसे दिखेगा,
सैफ के भोपाल जाने के बाद लुबना और अनम धीरे धीरे फिर से सैफ से बातें करने लगीं थीं लेकिन सादिया नहीं चाहती थी के इनमे से कोई भी सैफ बातें करें, लुबना ने एक दिन सैफ को ख़ुशी ख़ुशी बताया के सैफ मैंने एक नया फ़ोन लिया है बड़ा वाला सैमसंग का सैफ ये बात सुनकर बहुत खुश हुवा, लेकिन सादिया ने धीरे धीरे उनको कस्मे दे दे कर लुबना और सैफ की यहाँ तक के अनम की भी सैफ से बातें बंद करा दीं,
फिर एक दिन वो मनहूस दिन आया उस वक़्त सैफ दिल्ली में ही आया हुवा था क्योंकि नॉएडा का काम पूरी तरह ख़त्म नहीं हुवा था और सैफ भोपाल की साइट भी और नोएडा की साइट भी दोनों को देख रहा था हालंकि उस वक़्त भोपाल में बीस से पच्चीस इंजीनियर थे काम देखने वाले लेकिन फिर भी सैफ को आठ दस दिन में दो तीन दिन के लिए भोपाल जाना ही पड़ता था,
सैफ को इमरजेंसी में सैफ के घर वाले हॉस्पिटल लेकर गए जब डॉक्टरों ने सैफ के चेकअप किये तो तुरंत सीनियर डॉक्टर ने कहा सोचना बंद कर दो वरना जान नहीं बचेगी, नसों में मामूली सी ब्लॉकेज थी बीपी बहुत ज्यादा है था डॉक्टरों ने बोला के अगर और ज्यादा टेंशन ली तो लकवा मार सकता है, शुगर भी बढ़ा हुवा निकला डॉक्टर बोला घर में और किस किस को शुगर है , किसी को नहीं सैफ के घरवाले बोले इसको किस बात की चिंता है जो इसने अपना ये हाल कर लिया है, घर में किसी को शुगर नहीं इसको शुगर है, सैफ की घरवाली को डॉक्टर ने डांटा इस पर ज्यादा दबाओ बनाती होगी तुम और ज्यादा दबाओ बनाया तो ये मर जायेगा, डॉक्टरों को किया पता शुगर की शुरवात तो बहुत पहले ही सैफ को हो चुकी थी सैफ ने शुगर बाकायदा खरीदी है और वो भी फ्री में नहीं दौलत और अपनी जान दी है कुछ लोगों को इस शुगर के बदले,
खैर ओप्रशन हुवा ठीक ठाक और एक छल्ला डला उसी से बात बन गई, ओप्रशन से तो सैफ बच गया लेकिन उसे किया पता था आगे उसके साथ और किया होने वाला है,
वो लोग ऐसा रंग बदलने वाले हैं जिसके आगे गिरगिट भी शरमा जाये ये सैफ को नहीं पता था
रंगों में वो रंग कहाँ
जो रंग लोग बदलते हैं
वो लोग जो सैफ को अगर जुकाम भी हो जाये तो हर घंटे सैफ का हाल पूछते थे, उसको दवाई बताते थे दवाई खाने का तरीका बताते थे, सैफ अगर उनके घर पर बैठा है और तबियत ख़राब है खुद दवाई मंगाते थे और खिलाते थे, पानी से बताई तो पानी से दूध से बताई तो दूध से चाय से बताई तो चाय से डॉक्टर ने जिस चीज़ से दवाई खाना बताई उसी चीज़ से खिलाते थे, सैफ मनाली जाता था पल पल का पूछते थे कहाँ तक पहुंचे कहाँ तक पहुंचे खाना खाया या नहीं खाया सुबह उठते ही कहाँ तक पहुंचे कॉम्पिटिशन करके पूछते थे आपस में ज़ैनब अलग लुबना अलग अनम अलग बीच बीच में सादिया भी पूछती थी हालांकि उसपे मोबाइल नहीं था और जब मोबाइल लिया तो चलाना नहीं आता था, लेकिन फिर भी पूछती थी,
अनम ज़ैनब लुबना का तो आपस में इतना कॉम्पिटिशन रहता था के पूछो मत कौन ज्यादा बात करेगी सैफ से कौन पहले गुड मॉर्निग का मैसेज भेजेगी कौन पहले खैरियत पूछेगी सैफ अकेला चाहने वाले बेशुमार, फिर सैफ अकेला नफरत करने वाले बेशुमार, और हाँ एक बात ऐसा भी वक़्त था जब सैफ अकेला था और उससे नाराज़ होने वाले बेशुमार, सैफ को मनाता था सबको खुश रखने की कोशिस करता था तनहा अकेला, उनकी मुसीबत में भी तनहा, और आज भी तनहा,
एक बार की बात है सैफ कहने लगे मेरी पसंद बहुत अच्छी होती हर मामले में, सादिया बोली लेडिस शूट में नहीं होगी, सैफ ने कहा मेरी हर मामले में पसंद अच्छी है मेरी पसंद सबको पसंद आती है मैं तुम्हारे लिए अपनी पसंद का एक शूट ऑनलाइन आर्डर करूँगा तब देखना मेरी पसंद कैसी है, वो बोली ठीक है, सैफ को ऑनलाइन एक शूट डिज़ाइन में बहुत पसंद आया क्योंकि ऑनलाइन आप सिर्फ कपडे कलर और डिज़ाइन ही देख सकते हो कपडा पता नहीं कैसे होगा, सैफ ने वो शूट आर्डर कर दिया सादिया के लिए शूट घर पहुंच गया उनके, शूट की कीमत कम थी जब सादिया ने कीमत देखी शूट की तो सैफ से फ़ोन पर बहुत ही ज्यादा लड़ी, अच्छा नहीं लगा तो नहीं लगा इसमें लड़ने वाली किया बात थी बोल देती मुझे और महंगा चाहिए, लेकिन खैर, छोडो,
सैफ के साथ इस तरह के सम्बन्ध थे सबके और अब?
काश इंसान को भी नोट की तरह होते
रौशनी की तरफ करके देख लेते
असली है या नकली
#सैफ
अब तो सैफ मौत के मुँह से निकल कर आया था सोचो अब कितना पुछा होगा किस कदर पुछा होगा घर में मातम छा गया होगा उनके, सैफ के गम में वो सब लोग रो रहे होंगे, यही सोच रहे हो ना पढ़ने वालों?
नहीं ऐसा कुछ नहीं हुवा है बिलकुल इसका उल्टा हुवा था जो भी हुवा था सैफ के मौत के मुँह निकल आने के बाद,
सैफ अस्पताल से घर आ गया, फैज़ान और उसके अब्बा जी देखने आये, उस वक़्त अनम लुबना ज़ैनब से बहुत कम बातें हो रहीं थीं, कम हो रही थीं लेकिन बातें होती थीं, एक दो दिन के बाद अनम ने मैसेज किया अब कैसी तबियत है आपकी, सैफ का दिल दुख हुवा था वो पूछ बैठा के आपको पता तो होगा के मेरी ये तबियत क्यों खराब हुई है, आज तीन साल से ज्यादा हो गएँ हैं आज तक अनम ने उस मैसेज का जवाब नहीं दिया, वो मैसेज उनके घर की किसी भी लड़की का सैफ के मोबाइल पर आखरी मैसेज था वो जो अनम ने पुछा था के अब कैसी तबियत है, उसके बाद सैफ ने सैकड़ों मैसेज सब को किये अनम को किये लुबना को किये लुबना जो अल्लाह की नज़र में और दुनिया में कुछ लोगों की नज़र ही में सही पर है तो सैफ की बीवी ही,उसने भी कोई जवाब नहीं दिया, यहाँ तक ज़ैनब जिसे सैफ बेटी कहता था, वो सैफ को अब्बू जी कहती थी बाप और बेटी का रिश्ता था दोनों का उस तक ने आज तक सैफ के किसी मैसेज का जवाब नहीं दिया,
जो भी मेरी इस पोस्ट को पढ़ रहा है कमेंट बॉक्स में कमेंट करके बताये किया वजह हो सकती है, के एक साथ सब लोगों ने सैफ से बातें करनी एक दम बंद कर दीं जब के इस वक़्त सैफ को उन लोगों की बहुत ही ज्यादा ज़रूरत थी उनको चाहिए था के अच्छी अच्छी बातें करके सैफ का दिल बहलायें चार पांच साल सैफ का अपने झूठों से सबने मिलकर सैफ को बेवक़ूफ़ बनाया और थोड़ा बेवकूफ बना लेते,
वैसे सैफ को इस वजह का पता है, सैफ उनके अचानक से बातें करना बंद कर देने की वजह जानता है,
सैफ जानता है के उन्होंने सैफ से बातें करना बंद क्यों की क्योंकि अब सैफ कई दिन तक बिस्तर पर पड़ा रहेगा हो सकता सैफ मर ही जाये क्योंकि उन्होंने दो बार सैफ की हालत देखली थी अब तीसरा अटैक सैफ को आ चूका है तीन अटैक में आदमी अक्सर मर जाता है,
इस लिए वो सब डर गए थे के सैफ के मरने के बाद सैफ का मोबाइल सैफ के घरवालों के हाथ में रहेगा, और वो लोग हमारे भेजे हुवे मैसेज पढ़ लेंगे, और उन्हें पता चल जायेगा के सैफ हमारी वजह से मरा है,
सोच देखो आप सब इनकी कितनी दूर तक चली गई कितना दूर का सोच सकते हैं ये लोग,
यहाँ तक के सैफ ने सबको फ़ोन करना शुरू कर दिया लेकिन मज़ाल है जो किसी ने भी सैफ का फ़ोन उठाया हो,
धीरे धीरे वो दिन भी आ गए जब एक एक कर के घर के सदस्यों ने सैफ के नंबर को ब्लैक लिस्ट में डाल दिया, या अपने नंबर बदल डाले लुबना ने तो नंबर ही बदल डाला सैफ की बीवी लुबना ने अपना नंबर बदल दिया हां हां नंबर बदल दिया,
अब सैफ ने भी उनको मैसेज करना बंद कर दिया
एक दिन सैफ बहुत गुस्से में था, उसने फैज़ान को फ़ोन किया और कहा के मेरा हिसाब करो मेरा जो भी पैसा तुम पर निकल रहा है मुझे वापस करो, फैज़ान ने बात हंस कर टला दी और कहा के पहले ठीक हो जा हिसाब आराम से कर लेंगे,
दिन गुज़रने लगे सैफ की तबियत अब ठीक होने लगी बीस पच्चीस दिन गुज़रते ही सैफ भोपाल चला गया अकेला जब के डॉक्टर ने सैफ को दो महीने बेड रेस्ट करने को बोला था, लेकिन सैफ बीस पच्चीस दिनों में ही भोपाल चला गया, वो दिल्ली में रहना ही नहीं चाहता था ऐसा लगता दिल्ली उसे फाड़ खाने को आ रही है,
फिर एक दिन सैफ ने गुस्से में फैज़ान को घर से आवाज़ मारी उनकी सबसे बड़ी बहन उतर कर आई बोली किया बात है, सैफ बोलै फैज़ान को बुलाओ मुझे हिसाब करना है , कहने लगी गुस्सा मत करो कोई बात नहीं फैज़ान है नहीं अभी आ जायेगा तो हिसाब कर लेना देख लेंगे किसका किसकी तरफ निकलेगा,
सैफ का दिमाग़ घुम गया वो सोचने लगा के इनका भी निकल सकता है मेरी तरफ कमाल है, जब के अनम की बड़ी बहन और उसके पति ने खुद ही सैफ से उधार पैसे ले रखे हैं जो के अनम के परिवार को दिए गए और पैसों से बिलकुल अलग हैं,
फिर कुछ दिन गुज़रे सैफ ने फिर आवाज़ मारी फैज़ान को, अब सैफ इनकी देहलीज़ पर क़दम नहीं रखता है,
और दरअसल सैफ को पैसों की भी परवाह नहीं थी वो तो ये सब इसलिए कर रहा था के वो लोग कहें के चलो जो हुवा सो हुवा गीले शिकवे माफ़ करो और फिर से ऐसे ही रहते हैं जैसे पहले रहते थे,
ये बातें सोच सोच कर सैफ के दिमाग पर और बोझ बढ़ता जा रहा था ना कोई अब सैफ से बात करने को तैयार था और नाही सैफ के किसी मैसेज का कोई जवाब दे रहा था, फिर एक दिन सैफ को गुस्सा आया और फिर उसने घर के बाहर खड़े हो कर फैज़ान को आवाज़ मारी वो चाहता था के फैज़ान कहे चलो आराम से घर में बैठ कर बातें करते हैं और सारी ग़लतफ़हमी दूर करते हैं, लेकिन वहां तो कुछ और खिचड़ी पक कर तैयार थी, फैज़ान फिर से बाहर नहीं आया और नाही सादिया बाहर आई उन्होंने अपने अब्बा को बाहर भेजा जिन्होंने सैफ के सर पर आसमान गिरा दिया,
हाँ किया बात है अब्बा सैफ से बोले, फैज़ान को बुलाओ सैफ ने कहा मुझे हिसाब करना है मुझे मेरे पैसे चाहिए,
जा चला जा यहाँ से कभी हिसाब करवाऊं तूने हमारे मकान के पैसे कम करवा दिए अब्बा जी आपे दे बाहर हो कर कहते चले जा रहे थे वो ऐसी ऐसी बातें सैफ से कह रहे थे के उनकी हर बात सैफ को ऐसे महसूस हो रही थी मानो तारकोल पिघला कर कोई सैफ के कानों में डाल रहा था, सैफ का सारा शरीर गुस्से की ज्यादती के कारण कांपने लगा था, तभी मनाहल आकर खड़ी हो गई और अपने जीने पर से ही चुपके से इशारों से हाथ जोड़ने वाले अंदाज़ में कहने लगी आप चले जाओ प्लीज सैफ ने अपने गुस्से पर बड़ी मुश्किल से कंट्रोल किया और वहां से चला आया, और फिर उसके बाद सैफ नै उनसे किसी तरह का कोई कोन्टेकट करने की कोशिश नहीं की,
ये वही अब्बा जी थे जो सैफ के एक बार उनसे नाराज़ होने पर सैफ की ठोड़ी में हाथ डाल डाल कर सैफ को मना रहे थे रो रो कर मना रहे थे तू मेरे फैज़ान जैसा है मुझसे जो गलती हुई मुझे माफ़ कर दे और सैफ ने भी उनकी गलती तुरंत भुला दी थी और सब बातें ख़त्म कर दीं थीं, गलती किया की थी उन्होंने ये सैफ को अब याद नहीं रहा लेकिन जैसा के मैं पीछे लिख चूका हूँ सैफ के किसी भी बात पर किसी से भी नाराज़ होने पर पूरा घर सैफ की खुशामंद करता था,
दरअसल हुवा किया था ये भी लिखता चलूँ जैसा के मैं ऊपर भी लिख चूका हूँ फैज़ान का केस खतम करने के लिए पैसों की ज़रूरत थी जो इनके मकान का एक छोटा सा हिस्सा बेच कर पैसे इकठ्ठा किये गए हमने आइडिआ लगाया था के ये कारखाने वाला हिस्सा 22 या 23 गज़ है जब ग्राहक आये तो हमने उनको बताया के इतना गज़ है ये एरिया, लेकिन नापने पर वो हिस्सा एक या दो गज़ कम निकला उतने से जितना हमने लोगों को बताया, उसी हिसाब से पैसे देते वक़्त उतने पैसे कम कर दिए गए एक या दो गज़ के, हंगामा हुवा खूब हुवा लेकिन उस वक़्त सैफ को किसी ने कुछ नहीं कहा हालंकि के सैफ की आँखों में आंसू आगये थे उस वक़्त उसको लगने लगा था के तुझे ही ज़िम्मेदार ठहराया जायेगा इन सब बातों का लेकिन अनम के घरवालों ने सैफ को तसल्ली दी के तू क्यों परेशान होता है इसमें तेरी कोई गलती नहीं,
लेकिन अब इतने सालों बाद इन लोगों ने ये बात कही के तू ही इन सब बातों का ज़िम्मेदार है सैफ के चाचा ने जो कमीशन लिया उसका भी ज़िम्मेदार सैफ को ठहराया गया यानी अब हर बुरे का ज़िम्मेदार सैफ है उनके कहने के मुताबिक़,
अगर ऐसी कोई भी बात थी तो इन लोगों को उसी वक़्त सैफ को बताना चाहिए था के ये जो भी पैसे कम हो रहे हैं और ये जो तेरा चाचा कमीशन ले रहा हम ये पैसे तेरे पैसों में से काटेंगे,
सैफ उसी वक़्त उनका हिसाब फाइनल कर देता, लेकिन इन लोगों का डर था के अगर हमने अभी सैफ से कुछ कहा तो ये हमारी ज़िन्दगी से चला जाएगा क्योंकि अभी सैफ का काम पूरा नहीं हुवा था इसलिए अभी सैफ को उलझा कर रखना था,
इस पूरी कहानी को पढ़ने के बाद आप लोग एक बार ये ज़रूर सोचना के चक्की के पाटों में खूब ही पीसे जाने के बाद सैफ ने कुछ पाया भी था सिवाए खोने के?
सादिया अक्सर कहती थी जो आप हमारे लिए कर रहे हो ये काम असल में हमारे सगे बहनोई का था,
सैफ ने अपनी तमाम परेशानी तमाम उलझने भुला कर इनके लिए जो भी करा, किया इतना वो आसान था उस इंसान के लिए जिसके ऊपर पहले ही नहीं ये बिलकुल भी आसान नहीं था, सैफ पर पहले ही से अपने परिवार की तरफ से मुसीबतों को पहाड़ टूटा हुवा था उसके वालिद का इंतक़ाल हो चूका था उसके छोटे भाई का इंतक़ाल हो चूका था और छोटा भाई भी ऐसा जो पूरा घर संभालता था जिसने अपने जीते जी अपने पूरे घर को वालिद की कमी का अहसास नहीं होने दिया था, सैफ को तो अपनी बीवी से ही फुर्सत नहीं मिलती थी, अब जबकि उसका वो भाई भी दुनिया से चला गया था मकान टूट चूका था परिवार तिनको की तरह बिखरा हुवा था घर में अब सैफ के आलावा कोई ऐसा नहीं बचा था जो परिवार को संभाल ले, एक भाई जो सबसे छोटा था उसके बस का खुद को संभालना नहीं था एक भाई जो हमेशा अपने आप में मस्त रहता था वो भी घर को सहारा नहीं लगा सकता था हाँ वो अपने बीवी बच्चों को ठीक से देख रहा था, एक भाई नशे का आदि हो चूका था, और सैफ की आदत ऐसी थी के वो तो फिल्मों में भी कोई जज़्बाती सीन देख ले तो रो पड़ता था अब आप सोचो के ये सब तो उसके सामने हकीकत में था, सैफ का दिल अल्लाह ने इतना कमज़ोर बनाया था ले वो ज़रा सी किसी की परेशानी देख ले तो उसकी आँखे भर आती हैं, और उसका खुद का परिवार बर्बादी की लकीर पर खड़ा था, सोचो सैफ के दिल की किया हालत होगी उस वक़्त उन्ही हालतों में घिरे होने के बावजूद सैफ अनम के परिवार की हर परेशानी से तने तन्हा लड़ रहा था, क्या इन लोगों को सैफ के साथ ऐसा करना चाहिए था किया इन लोगों को सैफ को इस तरह दूध में से मक्खी की तरह निकाल कर फैकना चाहिए था, इस कहानी को लिखते वक़्त सैफ ना जाने कितनी बार रोया होगा,
सैफ का मकान अब बन कर तैयार हो चूका था. मकान बन कर तैयार हो चूका था, जिसने सैफ की ज़िन्दगी में वो तबाही मचाई जिसका तसव्वुर करना मुमकिन नहीं ये इसकी कहानी अलग से लिखी जाएगी के कैसे सैफ का मकान बनने से लोगों के असली चेहरे सामने आये,
हल्की झलक लिख रहा हूँ, सादिया ने सैफ के मकान बनने से कैसे अपने दुखों का इज़हार किया लगता है वो भी नहीं चाहती थी के सैफ का मकान बने इसलिए वो सैफ के रेत बदरपुर ईंटों की ट्रॉली को अपने घर के आगे से निकलने नहीं देती थी,
सैफ की बीवी वापस अपने मकान में आ गई थी अब इनको लगा के ये सैफ को हमारे घर आता जाता देखेगी तो हंगामा करेगी क्योंकि हकीकत में सैफ की बीवी बहुत ज़ालिम किस्म की औरत थी और किसी हद तक उनका ये सोचना सही था लेकिन उसका तरीक़ा कुछ और भी हो सकता था,'
जब जुदा ही होना था तो कोई अच्छा सा खुशनुमा तरीक़ा ढूढ़ते यूं इस तरह जुदा होना तो अच्छा नहीं था ना,
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा।।।
लेकिन इस अफ़साने को बहुत ही बदसूरत मोड़ दिया गया,
अब सैफ और अनम की किसी तरह की कोई बातें नहीं होती हैं और ना ही अनम के घर के बाकी लोग सैफ से बातें करते हैं, वो सैफ जिसे अनम के अब्बा जी मनाली जाते वक़्त ऑटो में बैठाने जाते थे सैफ का मुँह चूमते थे, आज वो सैफ के सलाम तक का जवाब नहीं देते हैं.
दिन गुज़रते गए महीने गुज़रे साल गुज़रे लेकिन सैफ का जख्म आज भी हरा है, अभी कुछ दिन पहले अचानक सैफ को खबर मिली के अनम की अम्मी का इंतक़ाल हो गया है सैफ को सदमा सा लगा तुरंत सबकुछ भुला कर सैफ उनके घर गया जहाँ जीने पर चढ़ते वक़्त सादिया नज़र आई, सैफ को देखते ही वो सैफ को लिपट कर रोने लगी,
सैफ ऊपर गया अम्मी के चेहरे को देखा बहुत कोशिस की लेकिन अपना दिल भर आने से खुद को ना रोक सका हालांकि उन्होंने शायद सैफ को सैफ के अपनी ज़िन्दगी से चले जाने के बाद हमेशा बुराइयों में याद किया होगा लेकिन सैफ का दिल बहुत बुरा दिल है सबकुछ भुला देता है,
सैफ ने एक दामाद होने का पूरा फ़र्ज़ निभाया खुद ऊपर से उनके जनाज़े को निचे लिवा कर लाया सबसे पहले जनाज़े को कन्धा दिया,
उस दिन उनके सबसे छोटे बेटे के हालात देखे अल्लाह माफ़ करे कोई कैसे इतनी गफलतों में ज़िंदगी गुज़ार सकता है उसको जनाज़े को कन्धा देना नहीं आरहा था कभी उल्टा कन्धा कभी सीधा कन्धा कभी कहीं से पकड़ना कभी कैसे पकड़ना ऐसा लगता था मानो उसने आज से पहले किसी जनाज़े को कन्धा ही नहीं दिया था, कब्रिस्तान पहुंचे जनाज़े की नमाज़ हुई पहली बार सैफ किसी कब्र में उतरा एक तरफ बड़ा दामाद एक तरफ सैफ दोनों कबर में उतरे, सैफ अपने वालिद की कब्र में नहीं उतरा अपने भाई की कब्र में नहीं उतरा अपने दादा दादी की कब्र में नहीं उतरा असल बात ये है सैफ पहली बार किसी की कब्र में नीचे उतरा था,
सैफ ने एक दामाद होने का एक बेटा होने का फ़र्ज़ पूरा किया,
लेकिन ये लोग दिलों में तास्सुब रखने की बुरी आदत को अभी भी ना बदल पाए,
जनाज़ा दफ़न करके सबलोग घर आगये सैफ भी घर आ गया बेशर्म बनके जनाज़े का खाना सबको खिलाया और खुद भी खाया, फिर अपने घर आ गया
रात को वापस इनके घर चला गया नीचे हॉल में मेहमानो में जाकर बैठ गया, सादिया से कहा के घबराना मत मैं आज भी पहले की तरह तुम्हारे साथ हूँ, सादिया ने तंज भरे अंदाज़ में कहा जिसका कोई नहीं होता उसका अल्लाह होता है, काश अल्लाह को साथ लेने की कोशिस सच में ही तुमने की होती सैफ ने खामोश रहते हुवे मन में कहा, अल्लाह को साथ लेने वाले मन में ज़िन्दगी भर की नफरत नहीं पाला करते किसी के लिए, सारी दुनिया तुम्हारी नज़रों में बुरी है,
खैर सैफ वहीँ कुर्सी पर बैठ गया उनका सबसे छोटा वाला भाई सबको पानी पिला रहा था सबको पानी पिलाया पूछ पूछ कर पानी पिलाया फैज़ान बोल रहा था इनको भी दो इनको भी दो पानी सबके लिए बोला पर सैफ के लिए उसके मुँह से एक बोल ना निकला के तू भी पियेगा पानी बस इतना ही पूछ लेता,
पानी ही तो था पूछ ही लेता माना के सैफ उनका दुश्मन था लेकिन पानी को तो दुश्मन से भी पूछ लिया जाता है,
अब आप सब पढ़ने वाले लोग बताओ ऐसे लोगों के साथ किया करना चाहिए ?????? ये बात सबको पता चलना चाहिए ना ????
अभी इस कहानी में बहुत कुछ लिखा जाना बाकी है, हालांकि सैफ ने इस कहानी को लिखने का कई बार मन बनाया था लेकिन हर बार ये सोच कर जाने दिया के चलो छोड़ो हो सकता है इन्हे खुद ही अपनी गलती का अहसास हो जाये और खुद ही सैफ से बातें करके दिल साफ करलें, लेकिन अनम की अम्मी के इंतक़ाल के बाद भी जब इनके रवैये में कोई फर्क नहीं आया यहाँ तक के सैफ ने अनम को दो तीन मैसेज भी किये सैफ ने खुद कहा के चलो पिछली सब बातें भुला देते हैं, लेकिन अनम ने भी कोई जवाब नहीं दिया और लुबना ने तो सैफ को शक्ल तक नहीं दिखाई अपनी अम्मी के इंतक़ाल के बाद, इसलिए अब सैफ ने मन बनाया के सबकुछ लिखूंगा एक कहानी के ज़रिये, ताके सैफ अगर मर भी जाए तो भी लोगों को सच पता होना चाहिए,
अभी ये कहानी खत्म नहीं हुई बहुत से सुधार करने बाकी हैं अभी इसमें बहुत कुछ लिखने से छूट गया है वो लिखना बाकी है, इनके द्वारा ठोकर खाने के बाद सैफ फैज़ान की बीवी से भी मिला था, क्योंकि इतना सबकुछ इनके साथ रह कर देखा इनकी आदत को सैफ ने समझा उसके सैफ को यकीन नहीं रहा के अकेली ज़ैनब की अम्मी कुसूरवार होगी इन सब मामलों में, हालंकि सैफ ने ये बात एक दो बार ज़ैनब से भी कही थी के ज़ैनब मुझे अब यकीन नहीं है के तेरी अम्मी अकेली की सब गलतियां हैं, शायद ये बातें ज़ैनब ने सादिया को बताई होगी और सादिया ने ज़ैनब को भी सैफ से बातें करने के लिए मना कर दिया होगा, हालंकि ज़ैनब उनके रंग में पूरी तरह से ढल चुकी है वो भी अपनी अम्मी को बुरा कहती हैं वो भी यही कहती के मेरी बड़ी बहन और मेरी छोटी बहन दोनों नाजायज़ हैं,
लेकिन एक बात जो बहुत महत्वपूर्ण है इस कहानी में वो अभी इसी लेख में लिखना ज़रूरी है,
अनम हो लुबना हो सादिया चाहे ज़ैनब हो या घर का कोई भी मेम्बर हो वो सब लोग फैज़ान के लिए हर क़ुरबानी देने को तैयार थे और क़ुरबानी दे भी रहे थे, वो लोग फैज़ान के लिए हर परेशानी उठा रहे थे अपनी खुद की परेशानियों को अपने सीने में दफ़न किये बैठे थे अपने हर अरमान दबाये बैठे थे सबकी शादियों की उम्र बहुत पहले हो चुकी थी, हर लड़की लड़के की तमन्ना होती है उसकी शादी हो वक़्त पर हो अच्छे घर में हो, लेकिन फिर भी अपनी हर तमन्ना भुला कर ये लोग अपने भाई के लिए सिर्फ क़ुरबानी पे क़ुरबानी दिए जा रहे थे, लेकिन इन सब के पास क़ुर्बानी का सिर्फ एक ही बकरा था और उस बकरे का नाम था सैफ,
Thanks For Reading.....
0 Comments