humsafar kavita

 

Rizwan Ahmed 17/09/21

اب خطاؤں کو درگذر کیجیے

پھر سے ہمیں اپنا ہمسفر کیجیے

کہاں تک چلیں گے ہم تنہا

آئے آسان اپنا سفر کیجئے

کیجیے نہ بس ہم کو حوالے ہجر کے

چاہے اب ہم پر جتنا جبر کیجیے

گھر ہمارا ہمیں چاہیے زلفوں کے سائے مے

ہم کو خدارا نہ یوں دربدر کیجئے

آئینے پر تو ہے ازل سے مہرباں حسن

آپ تو رضوان احسان اب ادھر کیجئے

 اب خطاؤں کو درگذر کیجیے

پھر سے ہمیں اپنا ہمسفر کیجیے


अब खताओं को दर गुज़र कीजिये 

फिर से हमें अपना हमसफर कीजिये 

कहाँ तक चलेंगे हम तनहा 

आइये आसान अपना सफर कीजिये 

कीजिये ना बस हमको हवाले हिज्र के 

चाहे अब हम पर जितना जबर कीजिये 

घर हमारा हमें चाहिए ज़ुल्फ़ों के साये में 

हमको खुदारा ना यूं दर बदर कीजिये 

आईने पर तो है अज़्ल से मेहरबान हुस्न 

आप तो रिज़वान अहसान अब इधर कीजिये 

अब खताओं को दर गुज़र कीजिये 

फिर से हमें अपना हमसफर कीजिये 



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