Hazrat Umar R A ke Waqiyat

हज़रत उमर वहीँ थोड़ा उनसे हट कर बैठ गए, और थोड़ी देर बैठ कर चल दिए फरमाने लगे के मै  इसलिए इनके पास थोड़ी देर बैठा क्योंकि मैंने इनको रोते हुवे देखा था तो मेरा जी चाहा के इनको हँसते हुवे भी देख लूँ,

Rizwan Ahmed 02-Oct-2020 


मै आपका दोस्त रिज़वान अहमद आज आजसे सहाबा इकराम रज़िअल्लाहु अन्हो के वाक़ियात की एक सीरीज़ शुरू करने जा रहा हूँ ताकि हमारे साथ साथ हमारे गैर मुस्लिम भाइयों को भी सहाबाओं के बारे में पता चले इस्लाम की जानकारी प्राप्त हो इस्लाम जिसको मीडिया ने एक अलग रूप से हमेशा दिखाया है मुझे आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा कमेंट बॉक्स में मुझे अपनी कीमती राये ज़रूर दें,


हज़रत उमर रज़िअल्लाहु अन्हो बाज़ वक़्त अपने हाथ में तिनका लेते और फरमाते काश में ये तिनका होता कभी फरमाते काश मुझे मेरी माँ ने मुझे जना (पैदा) ही नो होता, 

एक मर्तबा वो किसी काम में मशरूफ थे एक शख्स आया और बोलै फलां सख्श ने मुझपर ज़ुल्म किया है उस से मेरा बदला दिलवा दीजिये, आपने उसको एक दुर्रा मार दिया और कहा के जब मै इस काम के लिए बैठता हूँ तो आते नहीं हो और जब मै  दुसरे कामों में मशरूफ होता हूँ तो आकर कहते हो मेरा बदला दिलवा दो,

वह शख्स चला गया तो आपने आदमी भेज कर उसको बुलवाया, और दुर्रा उसको देकर उससे कहा के अपना बदला ले लो, उस शख्स ने कहा के मैंने अल्लाह के वास्ते आपको माफ़ कर दिया,     

हज़रत उम्र घर तशरीफ़ लाये और आकर दो रकअत नमाज़ पढ़ी उसके बाद अपने आप से कहने लगे के ऐ उमर तू कमीना था अल्लाह ने तुझे ऊंचा किया, तू गुमराह था अल्लाह ने तुझे हिदायत दी, ज़लील था अल्लाह ने तुझे इज़्ज़त बख्शी, फिर लोगों का बादशाह बनाया,  और जब तुझसे एक शख्स ने आकर कहा के मेरा बदला दिलवा दो तो तू उसको मारता है,  कल क़यामत के दिन तू अल्लाह को क्या जवाब देगा और बहुत देर तक इसी तरह अपने आपको मलामत करते रहे,

आपके गुलाम हज़रत असलम कहते हैं के मै एक दफा हज़रत उमर रज़िअल्लाह अन्हो के साथ हुर्रा की तरफ जा रहा था, एक जगह जंगल में आग जलती हुई नज़र आई, हज़रत उमर फरमाने लगे शायद कोई काफिला ठहरा हुवा है जो रात हो जाने की वजह से शहर में नहीं गया यही जंगल में ठहर गया, चलो इनकी खबर लेते हैं इनकी हिफाज़त का इंतज़ाम करते हैं, 

जब वो वहां पहुंचे तो देखा एक औरत है जिसके साथ कुछ बच्चे हैं जो रो रहे हैं और चिल्ला रहे हैं, एक देगची चूल्हे पर रखी हुई है जिसमे पानी भरा हुवा है जिसके नीचे आग जल रही है , 

उन्होंने सलाम किया और इजाज़त मांग कर उसके करीब गए, और पुछा बच्चे क्यों रो रहे हैं इस देगची में किया है, औरत ने कहा पानी भर कर बच्चो को बहलाने के वास्ते रख दी है, और कहा बच्चे भूख से लाचार होकर रो रहे हैं, ज़रा इनको तसल्ली हो जाये और ये सो जाएँ, और कहने लगी अमीरुल मोमिनीन उमर रज़ि०  का और मेरा अल्लाह ही के यहाँ फैसला होगा वो मेरी इस तंगी की खबर नहीं लेते और कहते हुवे रोने लगी, 

हज़रत उमर राज़ी० कहने लगे भला उमर राज़ी० को तेरे हाल की किया खबर है, वो औरत कहने लगी हमारे अमीर बने हैं और हमारे हाल की खबर भी नहीं रखते,  

असलम कहते हैं हज़रत उमर रज़ी० मुझे लेकर वापस आये और एक बोरी में बैतूल माल (सरकारी खज़ाना) से कुछ आटा और खजूरें कपडे और और चर्बी के साथ कुछ दिरहम लिए यहाँ तक के उस बोरी को खूब भर लिया, और फ़रमाया के इसे मेरी कमर पे रखवाओ मैंने अर्ज किया के मै ले चलूँ ,आपने फ़रमाया नहीं मेरी कमर पे रख दे दो तीन मर्तबा जब मैंने और इसरार किया तो कहने लगे के कल क़यामत के दिन भी मेरा बोझ तू ही उठाएगा, इसको मै ही उठाऊंगा मुझसे ही इसका सवाल होगा, मैंने मज़बूर होकर बोरी को आपकी कमर पर रख दिया, आप निहायत तेजी के साथ उसक औरत के पास तशरीफ़ ले गए, मै भी साथ था, वहां पहुंच कर उस देगची में आटा कुछ चर्बी और खजूरे डालीं और उसको चलाना शुरू किया और चूल्हे में खुद ही फूंक मारना शुरू कर दिया, 

असलम रज़ी० कहते हैं आपकी गुंजान दाढ़ी से धुँवा निकलते हुवे मै देख रहा था, हत्ताकि देगची में हरीरा जैसा कुछ तैयार होगया। उसके बाद अपने हाथों मुबारक से निकाल कर उन बच्चों को खिलाया वो पेट भर कर खेलने में लग गए, और बाकी जो बचा था वह दुसरे वक्तों के लिए उनके हवाले कर दिया, वह औरत खुश होकर कहने लगी अल्लाह तुमको जज़ा-ए-खैर (खूबसूरत बदला) दे,  उमर की जगह तुमको खलीफा होना चाहिए था तुम थे इसके मुस्तहिक़ (हक़दार )  हज़रत उमर रज़ी० ने उसको तसल्ली दी और फ़रमाया जब तुम उनके पास आओगी तो मुझको भी वहीँ पाओगी,

हज़रत उमर वहीँ थोड़ा उनसे हट कर बैठ गए, और थोड़ी देर बैठ कर चल दिए फरमाने लगे के मै  इसलिए इनके पास थोड़ी देर बैठा क्योंकि मैंने इनको रोते हुवे देखा था तो मेरा जी चाहा के इनको हँसते हुवे भी देख लूँ,

सुबह की नमाज़ में अक्सर सूरे: कहफ़ ताहा जैसी बड़ी बड़ी सूरतें पढ़ते और रोते की कई कई सफों तक रोने की आवाज़ जाती,

एक दफा सुबह की नमाज़ में सूरे:युसूफ पढ़ रहे थे।,

इन्नमा अशकू बस्सी व् हुज़्नी  इल्लल्लाहि 

पर पहुंचे तो रोते रोते आवाज़ ना निकली , तहाज्जुद की नमाज़ में बाज़ मर्तबा रोते रोते गिर जाते और बीमार हो जाते,

 यहाँ अल्लाह का खौफ ऐसी हस्ती पर था जिसके नाम से उस वक़्त बड़े बड़े नामचीन बादशाह डरते थे और खौफ से  कांपते थे,

आज ज़रा किसी को थोड़ी सी पावर मिल जाये फिर वो आदमी को आदमी नहीं समझता अपनी आँखों से आज ज़रा ज़रा से ओहदेदारों को हम देखते हैं के किस कदर ज़ुल्म और ज्यादती करते हैं, 

Thanks For Reading.....

 

                    


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