Badshah Ho To Aisa

अरे पूछो उस बाप के दिल से जो सब कुछ कर सकता हो लेकिन हराम हलाल की फ़िक्र में मुट्ठी बंद कर ले,  दूसरों के बच्चे आला से आला लिबास पहने हुवे और अपने बच्चों की तरफ देखा तो आँखे डबडबा गईं आँखों में आंसू छलक आये,

Rizwan Ahmed 09-Oct-2020



सुलेमान-बिन-अब्दुल-मालिक बनु उमय्या का सबसे हसीन बादशाह सबसे हसीन 42 साल की उम्र, उसकी मइयत को क़ब्र के करीब किया गया, तो वो हिलने लगा ज़बरदस्त तरीके से हिलने लगा, तो उसके बेटे चिल्लाने लगे हमारे अब्बा ज़िंदा हैं वैसे ही बेहोश हो गए हैं हमारे अब्बा ज़िंदा हैं,  तो हज़रत उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहमतुल्लाह अलैहि फरमाने लगे अरे भतीजों ज़िंदा नहीं कब्र का अज़ाब पहले ही शुरू हो गया है, छुपाओ इसको जल्दी छुपाओ कब्र में उतारो, 

उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo जिस तख़्त पर बैठे उस पर सुलेमान था उस पर वलीद था उस पर अब्दुल मलिक था, इन तीनो ने अपने मन को राज़ी किया, उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo ने अल्लाह को राज़ी किया,

जब उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo का आखरी वक़्त आया तो उन्होंने रज़ा-बिन-हैवा से फ़रमाया के मैंने अब्दुल मलिक-बिन-मरवान जो उनके ससुर थे इनकी बेटी फातिमा से इनकी शादी हुई थी, फ़रमाया जब मैंने उसको कबर में उतरा तो उसका चेहरा क़िब्ले से हट चूका था रंग काला स्याह पड़ गया था, अब्दुल मलिक-बिन-मरवान गोरा चिट्टा सख्स था चेहरा एक दम सुर्ख सफ़ेद था कबर में उतारते वक़्त रंग काला, 

फिर मैंने वलीद को कब्र में उतारा उसका बेटा दस साल हुकूमत की इसने इक्कीस साल हुकूमत की वलीद-बिनअब्दुल मालिक, मैंने उसका कफ़न खोल कर देखा उसका भी रंग काला पड़ चूका था क़िबला की तरफ से चेहरा फिर चूका था, 

फिर बोले मैंने सुलेमान को कब्र में उतारा, इसका किस्सा ऊपर मै पहले ही लिख चूका हूँ 

उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo फिर बोले अब मै जा रहा हूँ, ऊपर लिखे गए तीनो ने हुकूमत की इबादत करी और उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo ने अल्लाह की इबादत की, 

उन्होंने एक बड़ा अजीब-ओ-गरीब खुत्बा दिया बोले ऐ लोगो जब मुझे बचपन में शेर-ओ-शायरी का शौक लगा तो मै शायर बन गया थोड़ी सी उठान मिली बड़ा हुआ तो मुझे इल्म का शौक हुवा मैंने इल्म हासिल किया, जवान हुवा तो फातिमा-बिन्ते-अब्दुल मलिक से इश्क़ हुवा तो मैंने उससे शादी की,

अब अल्लाह ने मुझे हुकूमत दे दी है अब तुम देखोगे मै कैसे अल्लाह को राज़ी करूँगा, हमारे हुक्मरान नेता मंत्री तो वोट से आते हैं चार पांच साल हुकूमत की और फिर चले जाते हैं, और उनकी विरासत में हुकूमत आ रही और तीन तीन बर्रे-आज़म पे हुकूमत है, 

नोट: पूरी दुनिया सात बर्रे आज़म में बाटी गई है,     

और ऐसा दबदबा है बनु उमय्या का कोई उनके सामने सर नहीं उठा सकता, और उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo की हुकूमत के दौरान तीन बर्रे आज़म में कोई खैरात (दान) लेने वाला ना बचा कोई ज़ालिम ना बचा कोई मज़लूम ना बचे कोई मांगने वाला ना बचा भेड़िया बकरी ने एक साथ एक तालाब पे पानी पिया,

लेकिन ये खुद कैसे रहे, घर आये बीवी से बोले फातिमा बड़ी खुशियों भरे दिन अब तक गुज़रे हैं  अब आगे इम्तहान है मै तेरा हक़ अदा नहीं कर सकता लिहाजा मुझ पर अपने सारे हक़ माफ़ कर दे, या तो तलाक़ ले ले और अगर मेरा साथ देना है तो मुझपर अपने हक़ माफ़ करदे,

फातिमा-बिन्ते-अब्दुल मलिक एक ऐसी औरत के उस जैसी सियासी ऐतबार से कोई औरत धरती पे पैदा ही नहीं हुई, सात ऐतबार से  शहज़ादी थीं उनके दादा बादशाह बाप बादशाह एक भाई बादशाह दूसरा भाई बादशाह तीसरा भाई बादशाह मतलब उनके घर के सात लोग बादशाह थे, और वो खुद कितनी खूबसूरत थीं सुब्हान अल्लाह लिखना ही उनकी खूबसूरती बयां कर सकता है,  

कहने लगीं उमर मैंने सुख भरे दिन आपके साथ गुज़ारे हैं तो दुःख भरे दिन भी आपके साथ ही गुज़ारूंगी मैंने अपने सारे हक़ माफ़ किये,   

फिर उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo की रातें और दिन कैसे गुज़रे आओ मै आपको बताता हूँ, 

फातिमा-बिन्ते-अब्दुल मलिक फरमाती हैं दो साल दो महीने में वो मेरे बिस्तर पर मेरे साथ नहीं लेटे, आगे फरमाती हैं मुसल्ले पे बैठते रोते रोते वहीँ सो जाते, अपनी हकूमत को अल्लाह की रजा के लिए इस्तेमाल किया, 

कैसे इस्तेमाल किया, बीवी का सारा ज़ेवर बैतुलमाल (सरकारी खज़ाना) में डाल दिया अपना जो कुछ था सब बैतुलमाल में दाल दिया तन्खवाह पर आगये,

ईद का मौका आया बच्चे माँ से कहने लगे माँ हमें ईद के नए कपडे बनाने हैं, बारह बच्चे थे बेटी बेटे मिला कर बारह बच्चे थे, हमें कपडे लेकर दो ईद आरही है हर कोई अपने बच्चों के लिए कपडे ले रहा हमें भी कपडे चाहिए,

तीन बर्रे आज़म के बादशाह के बच्चे कपड़ों की ज़िद कर रहे हैं खज़ाना लबालब भरा हुवा हुवा गेहूं या चावल से नहीं सोने चांदी हीरे जवाहरात से भरा हुवा है,  कपडे तो दिलवा दो अब्बा से कह कर बोली मै तुम्हारे अब्बा से बात करुँगी, 

अब्बा तशरीफ़ लाये ख़ज़ाने लबालब भरे हुवे हैं, बोली अमीरुल मोमिनीन बच्चे कपड़े मांग रहे हैं, फातिमा मेरे पास तो पैसे ही नहीं हैं कपडे कहाँ से लाकर दूँ, हाय हाय कैसे लिखूं आगे कहाँ से लिखने की ताक़त लाऊँ,  सरकारी ख़ज़ाना भरा पड़ा है और ख़ज़ानों का मालिक अपनी बीवी से कह रहा है अपने खुद के बच्चों के लिए कपडे कहाँ से लाऊँ मेरे पास तो पैसे ही नहीं हैं, 

क्योंकि वो जानते थे ये खज़ाना अवाम की अमानत है कोई मेरी जाति जायदाद तो नहीं जबकि अपनी करोडो की दौलत भी सरकारी ख़ज़ाने में ही जमा करवा चुके हैं, खलीफा बनने से पहले जब शहज़ादे थे गवर्नर थे तो अपने खुद के पहनने के जाति कपडे ऊंटों पर लद कर चला करते थे, और खलीफा बनने के बाद अल्लाह को राज़ी करने की होड़ देखो किस कदर तक़वा, 

फातिमा कहने लगीं तो बच्चो का किया करूँ, बोले मुझे भी पता नहीं बच्चों का किया करना है, इससे पहले तीन हुक्मरानो ने लूट मार के बाजार गर्म किये ज़ुल्म-ओ-सितम के पहाड़ तोड़े,

और आज उसी ख़ज़ाने पर एक ऐसा शख्श बैठा ही जिसका मक़सद सिर्फ़ अल्लाह को राज़ी करना है,  तो फातिमा कहने लगीं आप ऐसा करें अगले महीने की तन्खवाह एडवांस ले लें उससे बच्चो के कपडे बन जायेंगे, और घर का खर्चा मै कुछ भी सिलाई बुनाई करके चला लुंगी मै अगले महीने आपसे कुछ नहीं मांगूंगी,

दोस्तों मै हाथ जोड़ कर गुज़ारिश करता हूँ अपनी तारिख पढ़ा करो उसपे अमल करने की कोशिस किया करो सिर्फ ट्विटर फेसबुक ही को दुनिया ना समझ कर बैठ जाओ और भी दुःख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा राहतें और भी वस्ल की राहत के सिवा, 

उन्होंने अपने वज़ीर-ए-खज़ाना मुज़ाहिम को बुलाया जो उनका गुलाम ही था, बोले मुज़ाहिम हमें बच्चों के कपडे बनाने है हमें एक महीने की तन्खवाह एडवांस दे दो, वो कहने लगे अमीरुल मोमिनीन आप मुझे लिख कर दे दें के अगले महीने तक आप ज़िंदा रहोगे मै आपको एडवांस दे देता हूँ,

उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo सर झुकाये उठे वापस घर गए बोले फातिमा बच्चो से कह दो तुम्हारा बाप तुम्हारे लिए कपडे नहीं बना सकता,

ईद का दिन आगया उस वक़्त खलीफा-ए-वक़्त ही नमाज़ पढ़ाया करते थे, बनु उमैय्या का खानदान मिलने के लिए आरहा है, सारे सरदार सरदारों के बेटे एक से एक उम्दा तरीन कपडे पहने हुवे मिलने आ रहे हैं थोड़ी देर बाद देखा तो उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo के बच्चे भी मिलने आ रहे हैं , बाकी बच्चों के तन पर एक से एक आलिशान लिबास और उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo के बच्चों के जिस्म पर पुराने पेवंद लगे हुवे कपडे,  उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo की अपने बच्चों को देख आँखों में आंसू आ गये लेकिन अल्लाह को राज़ी करना कोई आसान काम तो नहीं हर शय कुर्बान करनी पड़ती है, हम किया जाने अल्लाह को राज़ी किस तरह किया जाता है क़ुरबानी किस चीज़ का नाम है हमारे ऊपर तो ज़रा सी परेशानी आजाये बुरे से बुरा काम करने को तुरंत तैयार हो जाते हैं भूल जाते हैं हराम हलाल किया होता है,    

अरे पूछो उस बाप के दिल से जो सब कुछ कर सकता हो लेकिन हराम हलाल की फ़िक्र में मुट्ठी बंद कर ले,  दूसरों के बच्चे आला से आला लिबास पहने हुवे और अपने बच्चों की तरफ देखा तो आँखे डबडबा गईं आँखों में आंसू छलक आये,

कहने लगे मेरे बच्चों आज तुम्हे अपने बाप से गिला तो होगा सोचते होंगे हमारे बाप ने कपडे ही ना लेकर दिए, उनका एक बेटा जिसका नाम अब्दुल मलिक था वो उनसे भी चार हाथ आगे था , कहने लगे अब्बा जान आपको मुबारक हो आपने कौमी ख़ज़ाने सरकारी खज़ाने में बददियान्ति नहीं की है आपको मुबारक हो,

आज हमारा सर फख्र से बुलंद है ऊंचा है हम शर्मिंदा नहीं हैं, इंसानो को कपड़ो पे नहीं तोला जाता, आज हमारे देश का मालदार इतना फ़कीर इतना छोटा हो गया है, वो अपनी पहचान करवाने के पचास पचास लाख की घडी पहनता है लाख लाख का जूता पहनता है, आज की मैडम इतनी छोटी हो गई है वो अपने को बड़ा दिखाने के लिए दो दो लाख का हैंड बैग हाथ में लेकर चलती है, 

घर में तशरीफ़ लाये कहने लगे फातिमा कुछ पैसे हैं मेरा अंगूर खाने को जी चाहता है, फातिमा रोने लगीं कहने लगीं अमीरुल मोमिनीन खज़ाना तो भरा पड़ा है किया तुम्हारा इतना भी हक़ नहीं एक दिरहम लेकर अंगूर खरीद लो, तो तड़प उठे कहने लगे फातिमा मै जहन्नुम बर्दास्त नहीं कर सकता,

एक रात आप घर तशरीफ़ लाये तो बेटी मुँह पे कपडा रख आपसे बात कर रही है, आपने पुछा किया बात है मुँह पे कपडा क्यों रखा हुवा तो बच्ची घर के अंदर चली गई खादिमा से पुछा किया बात है कहने लगी अमीरुल मोमिनीन आपने तो अपना घर ही बर्बाद कर दिया आज आपकी बच्चियों ने कच्चे प्याज़ को तोड़ कर उससे रोटी खाई है, उमर को कच्चे प्याज़ बू पसंद नहीं थी, आज का तो मज़दूर भी कच्चे प्याज़ से रोटी नहीं खाता ये उस ज़माने के बादशाह की बेटियों को हाल है,

और आज का बिज़नेस मैन कहता है झूट ना बोलो तो कारोबार नहीं चलता अफसर कहता है रिश्वत ना लो तो घर का खर्च नहीं चलता,

उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo हिचकियों के साथ रोये, के मेरी बच्चियों मै तुम्हे बड़े अच्छे खाने खिला सकता पर मै जहन्नुम की आग बर्दाश्त नहीं कर सकता, दोस्तों उन्होंने होने आप को जिबह कर दिया अल्लाह को राज़ी करने के लिए खुद को जिबह कर दिया, अपनी ज़ात को अपने अहसासात को सब को अपने ही पैरों तले रोंद डाला,

जब आपका आखरी वक़्त आया आपने कहा अब मै मरने लगा हूँ वलीद मरा काला पड़ गया सुलेमान मरा काला पड़ गया अब्दुल मलिक मरा काला पड़ गया था जैसा के मैंने ऊपर लिखा है, ये क्यों काले पड़ गए थे नमाज़ नहीं पढ़ते थे नहीं ऐसा नहीं पढ़ते थे रोज़ा नहीं रखते थे नहीं ऐसा भी नहीं रोज़ा नमाज़ हर चीज़ के पाबंद थे फिर क्यों मौत के वक़्त ये लोग काले पड़े ज़ालिम थे ज़ुल्म करते थे अपनी रियाया पर इस  लिए मौत के वक़्त इनका ये हश्र हुआ, 

और उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo को जब कबर के पास ले कर गए तो एक हवा का झोंका आया उसके साथ एक परचा  उमर बिन-अब्दुल-अज़ीज़ रहo के सीने पर आकर गिरा,   उस पर्चे पर लिखा था ये परवाना है उमर के लिए उसके अल्लाह की तरफ से अल्लाह ने उसकी मग़फ़िरत कर दी है उसे खुशखबरी सुना दी जाए अल्लाह हु अकबर,              

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