वो गूंगे बहरों की भी सुनता है, वो कीड़े मकोड़ों की भी ज़रूरतें पूरी करता है नादान इंसान अपने रब को जानकर भी ज़माने के आगे अपने आंसू जाया करता है रिज़वान
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