kamaal ye hai urdu ghazal in hindi

 


Rizwan Ahmed (Saif) 


  • ख़िज़ाँ की रुत में गुलाब लहजे, बना के रखना कमाल ये है 
  • हवा की ज़द पे दिए जलाना, जला के रखना कमाल ये है  

  • ज़रा सी गलती पे तोड़ देते हैं सब तअल्लुक ज़माने वाले 
  • हज़ार ग़लतियों के बाद तअल्लुक़ बना के रखना कमाल ये है 

  • किसी को देना है ये मशवरा के दुःख बिछड़ने का वो भूल जाए 
  • और ऐसे लम्हे में अपने आंसू छुपा के रखना कमाल ये है 

  • ख्याल अपना मिज़ाज अपना पसंद अपनी कमाल किया है 
  • जो यार चाहे वो हाल अपना बना के रखना कमाल ये है
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  • किसी की राह से खुदा की खातिर उठा के कांटे हटा के पत्थर 
  • फिर उसके आगे निगाह अपनी झुका के रखना कमाल ये है 

  • वो जिसको देखे  दुःख का लश्कर लड़खड़ाए शिकश्त खाये 
  • लबों पे अपने वो मुस्कराहट सजा के रखना कमाल ये है 

  • हज़ार ताक़त हों सौ दलीलें हों फिर भी लहजे में आजिज़ी हो 
  • अदब की लज़्ज़त दुआ की खुशबु बसा के रखना कमाल ये है 
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वक़्त के हिसाब से चलना पड़ता है 
ठोकर के बाद आखिर सम्भलना पड़ता है 

साथ देने वाले जब औक़ात बताने लगते हैं 
उम्मीद के झूठे ख्वाब से निकलना पड़ता है 

जब ज़मीरों का सौदा सरेआम होने लगे 
नुकसान सच बोलने का भरना पड़ता है 

जिस वक़्त खिलौना समझते हैं हमे हमारे अज़ीज़ 
फिर क़िसमत के हाथों हमे बहलना पड़ता है 




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