Darwaza aur shohar


Rizwan Ahmed 24-01-22

और उसने शोर मचा दिया आस पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए और चोर को पकड़ लिया, जब देखा तो मालूम हुवा चोर तो पडोसी निकला, उस वक़्त औरत को अहसास हुवा दरअसल चोर और घर के बीच में रुकावट दरवाज़ा  नहीं मेरा शोहर था,  

एक पुराने कमज़ोर से मकान में एक गरीब मज़दूर रहता था मकान किया था बस एक खंडहर ही था, दरवाज़े के नाम पर एक पर्दा लटका हुवा था पर्दा वो भी फटी हुई हालत में या हम उसको चीथड़ा कह सकते हैं,  


वो मज़दूर रोज़ शाम को मज़दूरी कर के घर लौटता था तो उसकी बीवी बड़ी मासूमियत से उससे कहती के अब तो घर का दरवाज़ा लगवा दो कब तक इस लटके हुवे परदे के पीछे रहना पड़ेगा, अब तो ये भी पुराना हो कर फट गया है, मुझे डर है कहीं किसी रोज़ कोई चोर ही घर में ना घुस जाये ,

शोहर मुस्कुराते हुवे जवाब देता मेरे होते हुवे भला तुम्हे किया खौफ फ़िक्र ना करो मैं हूँ ना तुम्हारा दरवाज़ा,  इसी तरह बहस में कई साल गुज़र गए,

एक दिन बीवी ने बहुत ज़िद करते हुवे कहा के अब तो घर का दरवाज़ा लगवा दो, आख़िरकार शौहर को हार माननी पड़ी और उसने एक अच्छा सा दरवाज़ा लगवा दिया, अब बीवी बेख़ौफ़ घर के अंदर रहने लगी अब बीवी का खौफ कम हुवा और वो शौहर के मज़दूरी पर जाने के बाद खुद को महफूज़ समझने लगी, अभी कुछ ही दिन गुज़रे थे के शौहर का इंतक़ाल हो गया और घर का चराग़ बुझ गया, औरत घर का दरवाज़ा बंद कर पूरा दिन घर में चुपचाप बैठी रहती, एक रात औरत गहरी नींद सो रही थी के एक चोर घर की दीवार फलांग कर घर में दाखिल हो गया आहट से औरत की आँख खुल गई,     

और उसने शोर मचा दिया आस पड़ोस के लोग इकट्ठा हो गए और चोर को पकड़ लिया, जब देखा तो मालूम हुवा चोर तो पडोसी निकला, उस वक़्त औरत को अहसास हुवा दरअसल चोर और घर के बीच में रुकावट दरवाज़ा  नहीं मेरा शोहर था,  

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