rafi sahab ke ansune kisse

लोग मेरे ख्वाबों को चुरा कर ढालेंगे अफसानों में 

मेरे दिल की आग बटेगी दुनिया के  परवानों में 

वक़्त मेरे गीतों का खज़ाना ढूंढेगा ,

दोस्तों  रफ़ी साहब के ऐसे अनेकों अनसुने किस्से हैं जिनमे उनकी उदारता और देश सेवा का भी पता चलता है, जैसे किसी भी नए संगीतकार से पैसे ना लेना या ज्यादा ज़िद करने पर सिर्फ एक रुपया लेना कितनो ही की मदद करके उसके बारे में अपने परिवार तक को पता ना चलने देना जेब में जो भी हो बिना गिने किसी को दान दे देना,

दोस्तों ऐसा लगता है ये गाना रफ़ी साहब ने सिर्फ अपने  लिए ही गाया हो, आज इक्कीसवीं सदी में जबकि वाहियात  बेसुरे और सर पकाऊ गानों का दौर जोर शोर से चल रहा है, तब भी यूट्यूब के तहखानों में रफ़ी साहब के खूबसूरत गीतों के ख़ज़ानों की खोज हर उम्र के लोग करते हैं,  बच्चा हो बूढ़ा हो जवान हो आज भी रफ़ी साहब के गाये हुवे एक से एक खूबसूरत गीतों की खोज कर रहा है, यूट्यूब का तहखाना रफ़ी से साहब के गाये हुवे गीतों से अपरम्पार भरा  पड़ा है, 


दोस्तों ऐसी कोई सिचवेशन नहीं जिसके ऊपर रफ़ी साहब का गीत ना हो चाहे जन्म की ख़ुशी हो चाहे मौत के सदमे हों भजन हो नज़म हों बच्चों को सुलाने के लिए लोरियां हों हर सिचवेशन के लिए रफ़ी साहब ने गीत गाये हैं, दोस्ती के लिए गाने हों दर्द भरे गाने हों चाहे रोमैंटिक गाने हों रोमैंटिक गानों का तो उनका कोई सानी ही नहीं है, रफ़ी साहब की तारीफ में हमारे पास अल्फ़ाज़ नहीं होते और वैसे भी रफ़ी साहब की तारीफ में अल्फ़ाज़ कहना सूरज को मोमबत्ती जला कर दिखाने जैसा  है,

जितने किस्से हम सब उनके बारे में पढ़ते और जानते हैं उससे कहीं ज्यादा किस्से ऐसे हैं जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते जीने अनसुने किस्से कहा जाता है,


मैं आपका दोस्त रिज़वान अहमद उर्फ़ (सैफ) आपकी खिदमत में रफ़ी साहब का एक ऐसा ही किस्सा लेकर हाज़िर हूँ जिसे अनसुना किस्सा कहना ज्यादा बेहतर होगा,

जैसा के हम सभी जानते हैं 24 दिसंबर रफ़ी साहब का जनम का दिन है, ये महज एक तारिख नहीं हम इसको एक महोत्सव कहें तो ज्यादा बेहतर होगा, जिसे रफ़ी साहब के प्रसंशक बहुत सम्मान के साथ मानते हैं फिर चाहे वो देश हो या विदेश,

मैं जो आपको रफ़ी साहब का किस्सा सुनाने जा रहा हूँ उसे रफ़ी साहब के साथ गाने वाली एक गायिका उषा टीमोटि  शेयर किया है,  उन्होंने बताया एक जापान में रफ़ी साहब का एक स्टेज शो हुवा जिसमे ज्यादातर जापान के लोग ही शामिल थे भारतीय उसमे ना के बराबर थे, 

इसे रफ़ी साहब की आवाज़ का जादू ही तो कहेंगे के किसी को हिंदी ना समझ आने के बावजूद शो हॉउसफुल था  , 

ऐसा ही एक शो था जहाँ अंग्रेजों की तादाद बहुत ज्यादा थी वहां रफ़ी साहब ने अपने दो गीतों का अंग्रेजी अनुवाद करवाया और  उन्हें बिलकुल अंग्रेजो वाले अंदाज़ गाया ये दो गीत थे बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है, और हम काले हैं तो किया हुवा दिलवाले हैं,  लिंक नीचे दे रहा हूँ इन दोनों गानों का 

https://www.youtube.com/watch?v=OEH1B7wIovI


https://www.youtube.com/watch?v=40qbjVArvH4

दोस्तों बहुत कम लोगों को पता होगा के रफ़ी साहब को बचपन में लोग फीको नाम से पुकारते थे, रफ़ी साहब इतने सरल और सादगी पसंद इंसान थे और भोले और भले किस्म के इंसान थे के जो भी उनको जाता देखता था ताज्जुब करता था के ये इन्ही की आवाज़ है,किया ये वही सख्श है जो इतना धीरे बोलता है इतना धीरे के कई बार तो उनकी आवाज़ उनके पास खड़ा इंसान ठीक से सुन नहीं पाता था,
दरअसल रफ़ी साहब कम बोल कर अपनी एनर्जी को बचा कर रखते थे और उसे गाते वक़्त इस्तेमाल थे,करते, रफ़ी साहब को संगीत के साथ साथ आवाज़ और बोल अदाएगी की भी बहुत अच्छी समझ थी, उनका मानना था के अगर किसी की आवाज़ अच्छी ना हो फिर संगीत की कितनी भी समझ रखता हो लेकिन  सुनने वालों पर कभी अपना असर नहीं छोड़ पायेगा,
क्योंकि उसके गानों में वो मिठास कभी नहीं आ पायेगी जो होनी चाहिए, शायद इसी लिए उन्होंने अपने बच्चों तक को संगीत के क्षेत्र में नहीं आने दिया,
लेकिन बहुत कम लोगों को पता है के वो थोड़े शरारती और हाज़िर जवाब इंसान भी थे, हाज़िर जवाबी और मस्ती का ऐसा ही एक किस्सा उषा टीमोटि जी ने मुबारक बेगम जी की याद में साझा किया है, 
वो किस्सा कुछ इस तरह के गीत मुझको अपने गले लगा लो ओ मेरे हमराही, की रिकॉर्डिंग के बाद जाने माने तबला वादक नवाब अब्दुल करीम खान साहब ने मुबारक बेगम जी की कुछ ज्यादा तारीफ कर दी, तो रफ़ी साहब ने चुटकी लेते हुवे कहा के खान साहब कभी हमारी भी तारीफ कर दिया कीजिये आखिर हमने भी तो गाया है, 
इस पर खान साहब बोले मियां आप तो हमेशा बढ़िया गाते हैं, इस पर रफ़ी साहब ने कहा फिर भी चार बार तारीफ मुझे तो दाल में कुछ काला नज़र आरहा है,         
उसके बाद तो हर कोई खान साहब की टांग खींचने लगा, इससे खान साहब थोड़ा परेशान से हुवे और बोले मैं चला आपकी मुबारक बेगम को छोड़ कर आपकी मुबारक आप ही को मुबारक, इस पर रफ़ी साहब ने फिर चुटकी ली अच्छा जाते जाते भी उन्ही का नाम, बस फिर किया था इस बार सिर्फ बाकि लोग ही नहीं खुद खान साहब की भी बहुत ज़ोर की हंसी छूटी,

दोस्तों  रफ़ी साहब के ऐसे अनेकों अनसुने किस्से हैं जिनमे उनकी उदारता और देश सेवा का भी पता चलता है, जैसे किसी भी नए संगीतकार से पैसे ना लेना या ज्यादा ज़िद करने पर सिर्फ एक रुपया लेना कितनो ही की मदद करके उसके बारे में अपने परिवार तक को पता ना चलने देना जेब में जो भी हो बिना गिने किसी को दान दे देना ,रफ़ी साहब का कहना था जब अल्लाह मुझे बिना गिने देता है तो मैं क्यों किसी को देते वक़्त गिनु,   

दोस्तों ऐसा ही एक किस्सा है रफ़ी साहब की दिलदारी और देशप्रेम का,  रफ़ी साहब अक्सर अपने शो के सिलसिले में विदेश जाते रहते और जब भी वापस आते तो सबके लिए कुछ ना कुछ लाते, बच्चे कुछ ना कुछ फरमाइश करते
और अगर नहीं भी करते तो भी उनके लिए कुछ न कुछ ले ही आते, 
एक बार रफ़ी साहब विदेश के दौरे से वापस लोटे आने के बाद वो काफी खामोश थे सबने देखा वो खाली हाथ आये थे, किसी के लिए कुछ नहीं लाये थे, किसी की उनसे कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई, 
कुछ दिनों बाद पता चला के रफ़ी साहब ने अपने विदेश वाले शो के सारे पैसों से एक Dialysis machine खरीद मुंबई के एक अस्पताल को दान कर दी थी,

उस वक़्त ऐसी मशीनें भारत में बहुत कम थीं और वो अच्छी तरह जानते थे के इस मशीन से बहुतों का भला हो सकता था,

दोस्तों उस वक़्त रफ़ी साहब को शुगर थी और रफ़ी साहब को मीठा बहुत पसंद था इसलिए घर में उनको हर कोई मीठा खाने से मना करता था लेकिन वो मुस्कुरा कर कहते के बस थोड़ा सा चख कर सुन्नत अदा करने दो,

दोस्तों ऐसे थे हमारे रफ़ी साहब,   

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