कैसे जीते हैं भला - Kaise Jeete Hain Bhalaa (Md.Rafi, Lata Mangeshkar, Shatrughna Sinha, Dost)
Rizwan Ahmed 01-November-2020
Movie/Album: दोस्त (1974)
Music By: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
Lyrics By: आनंद बक्षी
Performed By: मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, शत्रुघ्न सिन्हा
Music By: लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
Lyrics By: आनंद बक्षी
Performed By: मोहम्मद रफ़ी, लता मंगेशकर, शत्रुघ्न सिन्हा
कैसे जीते हैं भला
हम से सीखो ये अदा
ऐसे क्यूँ ज़िंदा हैं लोग
जैसे शर्मिंदा हैं लोग
दिल पे सहकर सितम के तीर भी
पहनकर पाँव में ज़ंजीर भी
रक्स किया जाता है
आ, बता दें ये तुझे
कैसे जिया जाता है
दिल पे सहकर...
डर से ख़ामोश है जो
कैसा बे-पीर है वो
हाँ वो इंसान नहीं
एक तस्वीर है वो
तो बाख्ता-ए-खुदा जिससे डरता है अपन
और इस ग़रीबी में बड़ी मौज करता है अपन
परेशाँ लाख सही, गुल नहीं ख़ाक सही
ज़िन्दगी है लाजवाब, ये वो बेवा है जनाब
खूबसूरत है जो दुल्हन से भी
दोस्त तो दोस्त है, दुश्मन से भी
प्यार किया जाता है
आ, बता दें...
चीज़ इस ग़म से बड़ी
इस ज़माने में नहीं
जो मज़ा रोने में है
मुस्कुराने में नहीं
इसीलिए तो भई रूखी-सूखी जो मिले पेट भरने के लिए
और काफी दो गज है जमीं जीने-मरने के लिए
कैसे नादान हैं वो, ग़म से अनजान हैं वो
रंज ना होता अगर, क्या ख़ुशी की थी कदर
दर्द ख़ुद है मसीहा दोस्तों
दर्द से भी दवा का, दोस्तों
काम लिया जाता है (साबास दोस्त)
आ, बता दें...
चैन, महलों की नहीं रंगरलियों में
मुझे दे दो थोड़ी सी जगह
अपनी गलियों में मुझे
झूमकर नाचने दो
आज मस्ती में ज़रा
ले चलो साथ मुझे
अपने बस्ती में ज़रा
बना हो सोने का भी, पिंजरा है, पिंजरा जी
पैसा किस काम का है, धोखा बस नाम का है
रोक ले जो लबों पे गीत को
अपने हाथों से ऐसी रीत को
तोड़ दिया जाता है
मैंने भी सीख लिया, कैसे जिया जाता है
आ, बता दें...
हम से सीखो ये अदा
ऐसे क्यूँ ज़िंदा हैं लोग
जैसे शर्मिंदा हैं लोग
दिल पे सहकर सितम के तीर भी
पहनकर पाँव में ज़ंजीर भी
रक्स किया जाता है
आ, बता दें ये तुझे
कैसे जिया जाता है
दिल पे सहकर...
डर से ख़ामोश है जो
कैसा बे-पीर है वो
हाँ वो इंसान नहीं
एक तस्वीर है वो
तो बाख्ता-ए-खुदा जिससे डरता है अपन
और इस ग़रीबी में बड़ी मौज करता है अपन
परेशाँ लाख सही, गुल नहीं ख़ाक सही
ज़िन्दगी है लाजवाब, ये वो बेवा है जनाब
खूबसूरत है जो दुल्हन से भी
दोस्त तो दोस्त है, दुश्मन से भी
प्यार किया जाता है
आ, बता दें...
चीज़ इस ग़म से बड़ी
इस ज़माने में नहीं
जो मज़ा रोने में है
मुस्कुराने में नहीं
इसीलिए तो भई रूखी-सूखी जो मिले पेट भरने के लिए
और काफी दो गज है जमीं जीने-मरने के लिए
कैसे नादान हैं वो, ग़म से अनजान हैं वो
रंज ना होता अगर, क्या ख़ुशी की थी कदर
दर्द ख़ुद है मसीहा दोस्तों
दर्द से भी दवा का, दोस्तों
काम लिया जाता है (साबास दोस्त)
आ, बता दें...
चैन, महलों की नहीं रंगरलियों में
मुझे दे दो थोड़ी सी जगह
अपनी गलियों में मुझे
झूमकर नाचने दो
आज मस्ती में ज़रा
ले चलो साथ मुझे
अपने बस्ती में ज़रा
बना हो सोने का भी, पिंजरा है, पिंजरा जी
पैसा किस काम का है, धोखा बस नाम का है
रोक ले जो लबों पे गीत को
अपने हाथों से ऐसी रीत को
तोड़ दिया जाता है
मैंने भी सीख लिया, कैसे जिया जाता है
आ, बता दें...
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