Ek Bap Ki Kahani

जब कभी तू बीमार होता तो मै और तेरी माँ तेरे सिरहाने सारी सारी रात बैठते धड़ धड़ दिल धड़क रहे होते थे कहीं मर ना जाये कहीं मर ना जाए कुछ हो ना जाये कुछ हो ना जाए , इसी खौफनाक ख्यालात में हम रोते थे पिघलते थे तड़पते थे टूटते थे खुश्क पत्ते की तरह, तेरी एक मुस्कुराहट के लिए हम सारी मुस्कुराहटें भूल गए, तुझे सेहतमंद देखने के लिए अपनी सेहत के सौदे कर दिए,



Rizwan Ahmed 29-September-2020  

मै आपका दोस्त रिज़वान अहमद मै आज आपके लिए एक बाप का वाकिया लेकर आया हूँ, मै समझता हूँ ये बस एक ही बाप का वाकिया नहीं आज लगभग हर बाप का ही ये वाकिया है,

चलिए आपका ज्यादा वक़्त ना लेते हुए ये वाकिया सुरु करते हैं,    


एक शख्स ने अपने वालिद की शिकायत नबी-ए-पाक ﷺ के दरबार में की, बोला मेरे वालिद मेरा माल मुझसे पूछे बगैर खर्च कर देते हैं, आप   ने कहा बुलाओ उन्हें , 

जब बाप को पता चला के तेरे बेटे ने तेरी शिकायत की है तो वो भारी मन से मस्जिद की तरफ चल दिए, मन ही मन कुछ शेर पढ़ते हुवे जा रहे थे, अरब की शायरी उस ज़माने में पूरी दुनिया में मशहूर थी, तो वो दुखी दिल के साथ मन ही मन कुछ शेर पढ़ते हुवे मस्जिद जा रहे थे , 

मस्जिद में दाखिल हुवे जिब्राइल अ स (आसमान से फरिश्ता) आ गए, वो आकर प्यारे नबी  से बोले के आप इनकी शिकयत का फैसला बाद में करना पहले इनसे कहो जो ये मन ही मन शेर पढ़ते हुवे आ रहे थे वो किया हैं,

आप ﷺ ने कहा भाई तुम्हारा केस मै बाद में सुनुँगा पहले वो शेर सुनाओ जो तुम मन ही मन पढ़ते हुवे आ रहे थे,

वो कहने लगे या रसूल-अल्लाह  मै गवाही देता हूँ के आप अल्लाह के सच्चे रसूल  हैं आपका "रब" बड़ा ताक़तवर "रब" है आपके रब की कसम ज़बान से एक लफ्ज़ नहीं निकला वो लफ्ज़ जो दिल ही में रहे लबों तक ज़रा ना आये आपके "रब" ने उन्हें भी सुन लिया, एक दुःख भरी फरियाद थी जो दिल की दुनिया ही में रही सीने से उठी और सीने ही में दफ़न हो गई, और आपके रब ने आसमान पर सुन लिया, आपका रब हर घडी हर लम्हा हमारे ईमान को बढ़ाता ही रहता है,


बोले मै मन ही मन जो कह रहा था वो ये बात थी, के मेरे बच्चे जिस दिन तू पैदा हुवा उस दिन से हमने अपने लिए जीना छोड़ दिया हमने तेरे लिए जीना शुरू कर दिया, गर्मी से लड़े शर्दी से लड़े हर तरह के मौसम से लड़े, हालात के ज़ालिम पंजो से रिज़्क़ निकाला हालात के खूंखार जबड़ों से रिज़्क़ निकाला, अपनी जवानी को कुर्बान किया सेहत को कुर्बान किया, अपने जज़्बातों को सुला दिया तेरे चेहरे की एक मुस्कुराहट को देखने के लिए सारी सारी रात काम किया सारा सारा दिन काम किया, कभी धूप से लड़ा कभी सर्दी से लड़ा, कभी मौसम से लड़ा कभी भूक से लड़ा, तुझे खिलाया खुद भूखा रहा तुझे पिलाया खुद प्यासा रहा, तुझे छाओं में बिठाया खुद धूप में रहा, तुझे सुख पहुँचाया खुद दुःख झेला, मेरी तो ज़िन्दगी फिर तेरे लिए हो गई मैंने अपने लिए जीना छोड़ दिया,

जब कभी तू बीमार होता तो मै और तेरी माँ तेरे सिरहाने सारी सारी रात बैठते धड़ धड़ दिल धड़क रहे होते थे कहीं मर ना जाये कहीं मर ना जाए कुछ हो ना जाये कुछ हो ना जाए , इसी खौफनाक ख्यालात में हम रोते थे पिघलते थे तड़पते थे टूटते थे खुश्क पत्ते की तरह, तेरी एक मुस्कुराहट के लिए हम सारी मुस्कुराहटें भूल गए, तुझे सेहतमंद देखने के लिए अपनी सेहत के सौदे कर दिए,

और इस तरह एक दिन नहीं गुज़रा ये रोज गुज़रा, दिन गुज़रे रात गुज़रीं सुबह गुज़री शाम गुज़री रुत बदली मौसम बदला, बारिशें आंधी तूफान बादल आये और गए,

यहाँ तक के तू परवान चढ़ता गया मै ढलता गया तुझमे में जवानी ने रंग भरा और बुढ़ापे ने मेरे सारे रंग नोच लिए, तू सीधा खड़ा हुवा तने की तरह मेरी कमर झुक गई कमान की तरह, और मै आसरे का मोहताज हुवा तू ताक़तवर होके जवान हुवा,

फिर मुझे ख्याल आया के मै इसकी उँगली पकड़ के चला गोद बिठा के चला कंधे पे बिठा के चला इसके लिए दर दर की ठोकरें खाईं तो जब मै बूढ़ा हुवा हूँ तो ये मेरी उँगली पकड़ेगा हाथ पकड़ेगा, मै इसकी लाठी बना ये मेरी लाठी बनेगा , लेकिन एक दम मेरे बेटे तेरी आँखे माथे पे चढ़ गईं तेरे तेवर ही बदल गए तू मुझे यूं देखने लगा जैसे मै तेरा बाप नहीं तेरा नौकर हूँ, तो मैंने अपनी ज़िन्दगी को झुटला दिया मैंने कहा मै ख्वाब देख रहा था के मै बाप हूँ नहीं नहीं मै बाप नहीं मै नौकर ही हूँ, लेकिन मेरे बेटे नौकर से भी कभी कभी हाल पूछ लिया करते हैं कभी मुझसे मेरा हाल पूछ ही लेता, 

ये इतनी दर्द भरी बातें हैं मुझमे तो इतनी अक्ल ही नहीं जो इनका ठीक से आपके सामने खुलासा कर सकूँ लेकिन एक बात ज़रूर कहूंगा ये वो शेर थें वो बातें थी जिनको सुनकर प्यारे नबी ﷺ ज़ारों कतार रोने लगे आप  की दाढ़ी मुबारक आंसुओं से तर हो गई, तो आप  ने उसके बेटे को गिरेबान से पकड़ कर झटका दिया और कहा दफा हो जा तू बाप के खिलाफ मुक़दमे करता है निकल जा तू और तेरा सबकुछ तेरे बाप का है,

एक कडुवा सवाल :किया ये सब आज घर घर में नहीं हो रहा है? 

Thankyou for reading 

Regard Rizwan Ahmed

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