Maut ke waqt ki qaifiyat

 “मौत के वक़्त की कैफ़ियत”






Rizwan Ahmed

14-07-2021

जब रूह निकलती है तो इंसान का मुंह खुल जाता है, होंठ किसी भी क़ीमत पर आपस में चिपके हुए नहीं रह सकते, रूह पैर के अंगूठे से खिंचती हुई ऊपर की तरफ़ आती है... जब फेफड़ों और दिल तक रूह खींच ली जाती है तो इंसान की सांस एक तरफ़ा बाहर की तरफ़ ही चलने लगती है... ये वो वक़्त होता है जब चन्द सेकेंडों में इंसान शैतान और फरिश्तों को दुनिया में अपने सामने देखता है...। एक तरफ़ शैतान उसके कान के ज़रिये कुछ मशवरे सुझाता है तो दूसरी तरफ़ उसकी ज़बान उसके अमल के मुताबिक़ कुछ लफ़्ज़ अदा करना चाहती है... अगर इंसान नेक होता है तो उसका दिमाग़ उसकी ज़बान को क़लमा ए शहादत का निर्देश देता है और अगर इंसान क़ाफ़िर, मुशरिक, बद्दीन या दुनिया परस्त होता है तो उसका दिमाग़ कन्फ्यूज़न और एक अजीब हैबत का शिकार होकर शैतान के मशवरे की पैरवी ही करता है और इंतेहाई मुश्किल से कुछ लफ़्ज़ ज़बान से अदा करने की भरसक कोशिश करता है...।


ये सब इतनी तेज़ी से होता है की दिमाग़ को दुनिया की फ़ुज़ूल बातों को सोचने का मौक़ा ही नहीं मिलता... इंसान की रूह निकलते हुए एक ज़बरदस्त तक़लीफ़ ज़हन महसूस करता है, लेकिन तड़प इसलिए नहीं पाता क्योंकि दिमाग़ को छोड़कर बाकी ज़िस्म की रूह उसके हलक में इकट्ठी हो जाती है और जिस्म एक गोश्त के बेजान लोथड़े की तरह पड़ा हुआ होता है जिसमे कोई हरकत की गुंजाइश बाक़ी ही नहीं रहती...। आख़िर में दिमाग़ की रूह भी खींच ली जाती है, आँखे रूह को ले जाते हुए देखती हैं इसलिए आँखों की पुतलियां ऊपर चढ़ जाती हैं या जिस सिम्त फ़रिश्ता रूह क़ब्ज़ करके जाता है उस तरफ़ हो जाती है...।


इसके बाद इंसान की ज़िन्दगी का वो सफ़र शुरू होता है जिसमें रूह तक़लीफ़ों के तहख़ानों से लेकर आराम के महलों की आहट महसूस करने लगती है, जैसा कि उससे वादा किया गया है… जो दुनिया से गया वो वापस कभी नहीं लौटा… सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उसकी रूह आलम ए बरज़ख में उस घड़ी का इंतज़ार कर रही होती है जिसमे उसे उसका ठिकाना दे दिया जाएगा… इस दुनिया में महसूस होने वाली तवील मुद्दत उन रूहों के लिये चन्द सेकेंडो से ज़्यादा नही होगी भले ही कोई आज से करोड़ो साल पहले ही क्यों न मर चुका हो...।


मोमिन की रूह इस तरह खींच ली जाती है जैसे आटे में से बाल खींच लिया जाता है और गुनाहगार की रूह कांटेदार पेड़ पर पड़े सूती कपड़े को खींचने की तरह खींची जाती है...।


अल्लाह पाक हम सब को मौत के वक़्त कलमा-ए-हक़ नसीब फ़रमाकर आसानी के साथ रूह क़ब्ज़ फ़रमा और उस वक़्त नबी-ए-करीम ﷺ का दीदार नसीब फ़रमा...।


आमीन या रब्बल आलमीन!



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