Rizwan Ahmed (Saif)

पोस्ट करने की हिम्मत नही हो रही है।

आज पैसे भेजता हूँ आज टिकट भेजता हूँ कहते कहते सैफ की कंपनी के मालिक ने 17 दिन निकाल दिए लेकिन पैसे नही भेजे इस तरह होटल के आज टोटल सैफ के ऊपर 20 हज़ार रुपये से ज्यादा चढ़ गए हैं 

सैफ का लैपटॉप होटल रिसेप्शन वाले ने अपने कब्जे में कर लिया कहीं सैफ चुपचाप होटल से फरार ना हो जाये इधर सैफ के बॉस ने सैफ का फ़ोन उठाना भी बंद कर दिया है मैसेज का रिप्लाई भी नही कर रहा है,

दरअसल सैफ दिल्ली से बंगलोर एयरपोर्ट की एक साइट पर एज ए सुपरवाइजर एज ए साइट इंजीनियर आया हुवा है सैफ 3सरा महीना है 1डेढ़ महीने तो सबकुछ ठीक चलता रहा सैफ के बॉस ने साइट से पेमेंट मांगी जो के नही मिली धीरे धीरे लेबर ने साइट पर आना बंद कर दिया बॉस ने मटेरियल भेजना बंद कर दिया रिजल्ट ये निकला जिस कंपनी की साइट थी उन्होंने दूसरी कंपनी हायर कर ली हार्ड रॉक कैफ़े नाम का एक रेस्टोरेंट बन रहा है, लेकिन इन सब बातों में सैफ का बुरा हाल हो गया है सैफ के घर की कंडीशन बहुत खराब दौर से गुज़र रही है, कहने का मतलब ये सैफ को बंगलोर से अपने घर जाने लिए आज की डेट में तीस हजार रुपयों की ज़रूरत है और ये हर दिन पंद्रह सौ रुपये के हिसाब से बढ़ती जाएगी 

घर पर सैफ की अम्मी को पता लग गया तो ना जाने ये सदमा वो कैसे झेलेंगी बहुत सदमे झेल चुकी हैं जवान बेटे का अधेड़ उम्र के शौहर का। घर टूट जाने का और भी ढेरों सदमे हैं,

किया आप लोग सैफ को घर भेजने में मदद करेंगे सैफ यानी मैं, तब तक मैं अपनी ज़िंदगी की कहानी लिखता हूँ।।

UPI ID है 9910222746@axisbank या 9910222746 इस नंबर पर मुझे सपोर्ट करें,

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वो बचपन से ही बहुत शरारती था, बहुत शैतानियां करता था , बड़ों की बातें एक कान से सुनता था दुसरे कान से निकाल देता था, हमेशा अपना वालिद को सबके सामने शर्मिंदा कराता था , उसके वालिद पांच भाई थे पांचों में उसके वालिद सबसे बड़े थे , लेकिन बहुत भोले सीधे थे मानों वो बड़े नहीं सबसे छोटे थे, अपना घर का कोई भी बड़ा काम अपने छोटे भाइयों के बिना सलाह मशवरे के नहीं करते थे यहाँ तक के सैफ जी हाँ इस कहानी के किरदार का नाम मैं सैफ रख रहा हूँ , यहाँ तक के सैफ जब भी कोई गलती कर या कोई बड़ी शिकायत ले कर घर आता था तो सैफ के वालिद उसको अपने भाइयों के हवाले कर देते थे ये कह कर के ये मेरी नहीं सुनता तुम लोग ही इसका कोई इलाज करो, वो लोग सैफ को बहुत मारते थे रस्सियों से बांध कर मारते थे , कहते थे तुझे हमारे खानदान की इज़्ज़त का ज़रा ख्याल नहीं है, और ये हमेशा होता था,

लेकिन सैफ की शरारतों में कोई कमी नहीं आती थी वो घर से स्कूल के लिए निकलता था लेकिन स्कूल नहीं पहुंच कर इधर उधर खेलकूद में वक़्त गुज़ार कर वापस घर आ जाता था, इसी तरह ज़िंदगी गुज़ार था, यहाँ तक के स्कूल से नाम कट गया वालिद ने अपने साथ काम पर लगा लिया फर्नीचर का कारखाना था सैफ के वालिद का, वैसे तो सैफ के सभी चाचाओं का फर्नीचर के कारखाने थे लेकिन सबसे छोटा कारखना सैफ के वालिद का था, बाकि सबके कारखानों से हफ्ते दस दिन में अच्छा खाँसा फर्नीचर तैयार हो कर मार्किट जाता था लेकिन सैफ के वालिद के कारखाने से दस या बारह दिन में सिर्फ छह कुर्सियां तैयार हो कर मार्किट जाती थीं, अक्सर सैफ के वालिद और सैफ के चाचा दिल्ली पंचकुइयां रोड मार्किट में शाम को मिलते थे पेमेंट के लिए जब वहां पहुंचते थे, सैफ के चाचा मार्किट से लाख पचास हज़ार की पेमेंट लेकर आते थे तो वहीँ सैफ के पापा सिर्फ आठ दस हज़ार ले कर आते थे, सैफ के वालिद उसी में खुश थे, खैर कहानी यहाँ ये नहीं है सैफ की चल रही है   



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