Vipaksh kahan hai.

Rizwan Ahmed ... 

विपक्ष कहाँ है...


पिछले कई महीनों से देश में किसान आंदोलन व पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के दामों में वृद्धि को लेकर 


हाहाकार मचा हुआ है और विपक्ष की तरफ एक अजीब सी ख़ामोशी छाई हुई है!


अमूमन देश की विपक्षी पार्टियां ऐसे मौकों की तलाश में रहती हैं! क्योंकि यही उनकी रोजी रोटी है, फिर भी इनकी तरफ से कोई पहल नहीं हो रही!

 

जैसा कि हर बार होता है, और लोगों ने देखा भी है कि किस प्रकार छोटे छोटे मुद्दों को लेकर कभी "भारत बन्द" तो कभी "चक्का जाम" ...और कभी कभी तो लोकसभा के दोनों सदन हफ़्तों तक स्थगित रहा करते थे!


फिर क्या हो गया है विपक्ष को? वह क्यों नहीं सड़कों पर उतर रहा है? क्यों नहीं सरकार को घेर रहा है?


आइये जानते हैं!


इस दुनिया में हर (सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, वैज्ञानिक सभी) मसले के जानने के दो तरीके होते हैं- सैद्धांतिक व प्रायोगिक!


मसले की सैद्धांतिक जानकारी हमें किताबों से मिलती है! प्रायोगिक पहलू उसी सिद्धान्त का व्यावहारिक स्वरूप होता है!


मसलन, हमें यदि किसी को ज्वालामुखी के बारे बताना है तो तो उसके दो तरीके हैं- ...या तो उस व्यक्ति को सीधे ज्वालामुखी के मुहाने के दर्शन करा दिए जाएं!!


...या फिर उसे अनुभवी लेखकों द्वारा लिखी किताबों के माध्यम से समझाया जाये!


अब हर किसी को ज्वालामुखी का दर्शन करवाना मुश्किल है! इसलिए किताबी ज्ञान पर ज्यादा जोर दिया जाता है!


जाहिर है, जो लेखक ज्वालामुखी के जितने पास तक गया होगा, उसकी किताब उतनी ही ज्यादा विश्वसनीय होगी!


अब जरा उस विद्यार्थी के लेवल का अंदाजा लगाइए जिसने किताब भी पढ़ी है और ज्वालामुखी के दर्शन भी किये हैं!


यहाँ भी वही हो रहा है!


बीजेपी को विपक्ष में रहने का 60 सालों का अनुभव है और कमोबेश उतने ही सालों तक सरकार चलाने का अनुभव कांग्रेस के पास है!


अब समस्या ये है कि जिसे समस्या और समस्या के निदान-दोनों के बारे में पता है वो विपक्ष में है और धरना प्रदर्शन के नाम पर बवाल काटने वाले सत्ता में हैं!


हर छोटी बात पर ट्रेन फूंक देना, आगजनी करना, बन्द बुला देना- सत्तापक्ष ये सब नहीं करता!


लेकिन बीजेपी!! वो यही सब कर के आज यहाँ तक पहुंची है!


सैद्धांतिक रूप से सत्ता बेशक बीजेपी के पास है! लेकिन इन्हें सरकार चलाने का अनुभव नहीं है!


विपक्ष (खासकर कांग्रेस) के पास दोनों कामों का अनुभव है! ये अंग्रेजों के खिलाफ विपक्ष में भी रहे हैं और आजादी के बाद देश भी चलाये हैं! इसलिए इनका थ्योरी और प्रैक्टिकल दोनों मजबूत है!


अब सवाल उठता है कि आज विपक्ष सड़कों पर क्यों नहीं है?


इसके भी कई पहलू हैं!


पहला, तो ये कि जिन्होंने अपने हाथों से देश को सजाया है, संवारा है, वे लोग अपने ही संसाधनों के साथ तोड़फोड़, आगजनी, बन्द, सदन में गतिरोध पैदा करने में हिचकिचा रहे होंगे!


दूसरा, कभी कभी एक मिनट की खामोशी घण्टों की बकैती पर भारी पड़ जाती है!


देश में नेतृत्व कैसा होना चाहिए....ये बताने के लिए आज विपक्ष को कोई विरोध प्रदर्शन, चक्का जाम, हल्ला बोल और भारत बन्द करने की जरूरत नहीं पड़ी!


अपने आप ये मेसेज चला गया कि कैसे 140 डॉलर का कच्चा तेल खरीदकर देश को 72₹ में जो पेट्रोल उपलब्ध हो रहा था जो आज 65 डॉलर पर भी नहीं हो पा रहा!


बुरे से बुरे दौर में भी एलपीजी पर 150-250 रूपये तक की सब्सिडी आ रही थी, आज 50 रूपये भी नहीं आ रही!


बड़ी से बड़ी आपदाओं के वक्त भी ट्रेनों का संचालन नहीं रोका गया! किराया नहीं बढ़ने दिया! आज 6 महीने से बिना फेस्टिवल के फेस्टिवल ट्रेनें क्यों चल रही हैं!!


तीसरी महत्त्वपूर्ण बात, हमने सदन को जितना विपक्ष दिया है वो उतना ही उछलेगा न!!


अब भेजेंगे 100 सांसद और चाहेंगे कि वे 135 करोड़ लोगों की आवाज बन जाएं! ऐसा मुमकिन है? उनका भी अपना क्षेत्र है! वहां की जनता है!


आज सदन में यदि सशक्त विपक्ष होता तो टैक्सपेयर के पैसे से चल रही ये फुटानी कब की बन्द हो गयी होती!


विपक्ष को हमने ही मार डाला है!


कपिल देव

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